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Ek Masoom Ladki

शाम के लगभग छः बज रहे थे। पतिदेव के ऑफिस से घर आने का वक्त हो रहा था । बस रोज़ दिनचर्या का हिस्सा सा होता है उस वक्त उनको फ़ोन करके पूँछने का , कि निकले या नहीं , कब तक घर पहुँच रहे । इसलिए आज भी बस काल लगाके बॉलकनी में चली गई , हालाँकि बॉलकनी में खड़े होकर बात करने का दिनचर्या से कोई लेना देना नहीं है क्यूँकि घर के ठीक बाहर से मेन सड़क जाती है , जहां सुबह - शाम लोगों के टहलने से और ऐसे ही दिन भर चहल क़दमी बनी रहती है । बॉलकनी में जाने पर सड़क की तरफ़ देखना भी आम बात थी । सड़क के किनारे बॉलकनी की तरफ़ ही एक लगभग आठ से दस साल की छोटी बच्ची , जो टॉप स्कर्ट , पैरों में बहुत भारी सी पायल पहने और स्कूल के बैग को कंधे में टाँगे हुए मेरे घर के बाहर टहल रही थी । पहले तो मुझे लगा शायद कहीं से पढ़कर जा रही होगी या शायद मेरी ही बिल्डिंग से ट्यूशन पढ़के आयी होगी पर वो बार बार बस बिल्डिंग के बाहर इधर से उधर कभी ऊपर देखना कभी दायें बायें , कुछ अजीब सी निगाहों से टहल रही थी । एक बार तो मन में आया पूँछ ही लूँ कि कोई परेशानी है क्या तुम्हें बेटा , पर यह बोल पाती तब तक देखा कि एक भाईसाहब हेलमेट लगाये पीठ में बैग टाँगे दूसरी तरफ़ से बिल्डिंग की तरफ़ आ रहे थे । बाईक को सामने से आता देख वह बच्ची सड़क की दूसरी तरफ़ खड़ी कार के पीछे चली गई । बाइक से आने वाले महानुभाव बिल्डिंग के पास आकर रुक गये । फिर वह अपनी बाइक घुमाकर थोड़ा आगे खड़े हो गये और फिर ऊपर ट्यूशन पढ़ रहे बच्चे को आवाज़ देने लगे । वो बच्ची अब तक खड़ी हुई कार के पीछे ही थी । फिर मैं क्या देखती हूँ , हमारी ही बिल्डिंग में से एक बच्चा लगभग आठ से दस साल का कंधे में बैग टाँगे हुए बाहर आ रहा था । जैसे ही वो बच्चा बिल्डिंग से बाहर आया वो बच्ची भी सड़क के इसी तरफ़ आ गई तुरंत और उस लड़के की तरफ़ हाँथ हिलाते हुए ज़ोर से स्माइल पास की , उधर से उस लड़के का भी यही हाल था । और फिर वो लड़का उस आदमी जो उसकी पिता की उम्र का प्रतीत हो रहा था उसके पीछे बाईक में जाके बैठ गया । पर वो लड़की अब भी अपनी ही जगह पर खड़ी थी और वो दोनों एक दूसरे को हाँथ हिलाकर तब तक आभिवादन कर रहे थे जब तक वो नज़रों से ओझल नहीं हो गये । लड़के के जाने के बाद लड़की भी विपरीत दिशा में चली गई ।

आज के जमाने में उन दोनों का ऐसे अभिवादन करना , स्माइल पास करना सबके लिए आम बात हो सकती है पर मेरे नज़रिए से यह सामान्य तो नहीं ही था । कई प्रश्न दिमाग़ में चलने लगे जैसे कि

       1.     लड़की का ऐसे लड़के के आने का इंतज़ार करना

       2.     लड़की का बाइक को आता देख छुप जाना

       3.     दोनों का सांकेतिक भाषा में ही क्यूँ बात करना ?

    आज की भागमभाग ज़िंदगी में हमारे पास हमारे ख़ुद के बच्चों के लिए ही वक्त नहीं है । हमारे बच्चे किससे मिल रहे , क्या बात कर रहे , उनके दिमाग़ में क्या चल रहा यह सब जानने की हम ज़हमत भी उठाना नहीं चाहते हैं । हम यह भूल जाते हैं कि महज़ अच्छे कपड़े, अच्छा स्कूल, उनको घुमाना फिराना ही हमारी ज़िम्मेदारी नहीं है , बल्कि उनके भीतर अच्छे संस्कार रोपित करना भी हमारा सबसे बड़ा उत्तरदायित्व है । फूलों सा कोमल हृदय रखने वाले बच्चे सही और ग़लत की डगर से अनजान होते हैं । यह हमारा फ़र्ज़ है कि समाज में होने वाले हर तरह के अच्छे बुरे वाक़यों को बतायें और उन्हें दोनों में जो भेद है उसका अहसास करायें । कितने ही लोग आज के जमाने में यह जानने की कोशिश करते हैं कि उनके बच्चे की दिनचर्या क्या रही  , घर के बाहर ही नहीं घर के अंदर भी ? किन दोस्तों से मिले , क्या बातें की , क्या खेला , कहाँ खेलने गये, क्या खाया या घर में भी अगर मोबाइल में देखा तो क्या देखा , कौन सा गेम इत्यादि?  बच्चों की मानसिक स्थिति को समझने की कोशिश करें । कुछ अलग नज़र आ रहा है तो वजह जानने की कोशिश करें । कभी मोबाइल की हिस्ट्री भी चेक कर लें । आपके बच्चे जहाँ खेलते हों या जहां ट्यूशन पढ़ने जाते हों कभी सरप्राइज़ विजिट जैसे कर लें । बात शक की नहीं हमारे बच्चों की सुरक्षा की है । आज हमारा यह थोड़ा सा प्रयास उनके आने वाले स्वर्णिम भविष्य को सुनिश्चित करता है ।

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