हर्जाना - भाग 7 Ratna Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हर्जाना - भाग 7

सुहासिनी ने रोते हुए कहा, "उसके बलात्कार का नतीजा मेरी कोख में आ चुका था दीदी। मैं हर रोज़ रोती रही, हर रात तड़पती रही लेकिन कौन था मुझे संभालने वाला। सोचा था बच्चे को गिरा दूँ पर वह भी मैं ना कर पाई। पेट में पल रहे बच्चे की हत्या कर मैं हत्यारन नहीं बनना चाहती थी। भगवान ने किसी को मारने का हक़ हमें नहीं दिया है। दीदी आज से 25 साल पहले आज के ही दिन खून से लथपथ एक नवजात को मैं आपकी पनाह में यहाँ छोड़ गई थी। उस दिन केवल वह बालक ही खून से लथपथ नहीं था दीदी, मैं भी उसी हाल में थी। जन्म देते से उसे लेकर आते समय मेरा शरीर भी ...," इतना कह कर वह चुप हो गई।

तब गीता मैडम ने कहा, "ये क्या कह रही हो सुहासिनी?"

"हाँ दीदी यह सच है।"

"पर सुहासिनी तुम ख़ुद भी यदि उस समय यहाँ आ जातीं तो तुम्हें ..."

"नहीं दीदी बलात्कार और उसके बाद बिन ब्याहे बच्चा, इतनी बेइज्ज़ती, इतना अपमान सहन करने की शक्ति मुझ में नहीं थी। पर आज सोचती हूँ काश होती तो कम से कम पूरा जीवन अपने बेटे के साथ तो रहती। उसे छाती से लगा पाती, काश उसे उसके हक़ का दूध पिलाया होता। लेकिन मन मसोस कर रह गई थी मैं। इसीलिए दीदी मैं हर रोज़ मरी हूँ, तड़प-तड़प कर ज़िंदा रही हूँ। मुझे अपने आप से शर्म आती है। काश मैंने बदनामी से लड़ना सीख लिया होता। क्योंकि आख़िर उस सब में मेरी गलती थी ही कहाँ? दीदी आज मेरे बेटे का जन्मदिन है। वह डॉक्टर बन गया है ना?"

"ओफ्फ़ ओह सुहासिनी … तुम ये क्या कह रही हो? आज तो आयुष्मान का जन्मदिन है, तो क्या आयुष्मान ही तुम्हारा बेटा ...?"

"हाँ दीदी"

"पर तुम्हें उसके बारे में कैसे पता कि वह डॉक्टर ..."

"क्यों दीदी कैसे नहीं मालूम होगा, ना जाने कितनी बार कभी घूंघट में, कभी बुर्का पहनकर, मैं यहाँ से गुजरती रही हूँ। छुप-छुप कर अपने बेटे को निहारती रही हूँ। उसके हर पल के लिए मैं भगवान से प्रार्थना करती रही हूँ। ख़ुद को तो मैं भूल ही गई थी, यदि कुछ याद था तो केवल मेरा बेटा, जिसकी मैं पल-पल चिंता करती थी। उसे देखे बिना मेरे दिन रात कहाँ कटते थे। तुम्हें याद है दीदी, उस दिन बादल गरज रहे थे, बिजली चमक रही थी।"

"हाँ-हाँ सुहासिनी सब कुछ याद है।"

"मैं झाड़ के पीछे तेज बारिश में छिपकर रोते-रोते आपके बाहर आने का इंतज़ार कर रही थी कि कब आप बाहर आकर मेरे बच्चे को गोद में उठाएंगी। आपने जब उसे गोद में उठाया गीता दीदी; उस समय मेरे स्तन से दूध बह रहा था। आपकी गोदी में उसे देखकर मुझे लग गया था कि मेरा बेटा अब सुरक्षित बाँहों में पहुँच गया है। लेकिन स्तन से टपकते उस दूध का मैं क्या करती जो पल-पल उसकी याद में बह निकलता था। धीरे-धीरे दूध बहना बंद होकर गाँठ में बदलने लगा था।"

आयुष्मान गीता माँ के पैर छूने उनके कमरे में आ रहा था लेकिन उसके क़दम बाहर ही रुक गए थे किंतु उसके कान खुल गए और उसने उन दोनों के बीच हो रही इस पूरी कहानी को सुन लिया।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः