तमाचा - 37 (शरद ) नन्दलाल सुथार राही द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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तमाचा - 37 (शरद )

"आओ आओ विक्रम जी। आज हमारी कैसे याद आ गयी।" विक्रम के पड़ोसी शर्मा जी ने उनका स्वागत करते हुए कहा।
"अब क्या बताये आपको शर्मा जी?" कहकर विक्रम की आँखों में आँसू निकल आए। उसके जीने का एकमात्र सहारा बिंदु ही थी। पर अब उसका व्यवहार भी इस तरह का हो जायेगा ऐसा उसने कभी सोचा ही नहीं था।
"अरे ! ये क्या बात हुई। संभालो अपने आप को। ऐसे क्या रोते हो? बताओ तो सही क्या बात है?....अरे ...सुनती हो इधर आना तो...ज़रा एक गिलास पानी भरना।" शर्मा जी ने विक्रम के दोनों कंधे पकड़कर उसे संभालते हुए तथा अपनी पत्नी सारिका को बुलाते हुए कहा।
व्यक्ति जब पीड़ा में होता है और वह रोना चाहता है तो भी नहीं रो पाता लेकिन एक बार अगर उसके अश्रु की धारा निकल जाए तो फिर वो बहने ही लगती है। विक्रम जिसने अभी अपना क्रोध बिंदु पर निकाला था। अब वह भी अपनी व्यथा से रो पड़ा । उसकी वेदना उसकी आँखों से निकलकर बयाँ हो रही थी।
"क्या बताऊँ शर्मा जी? मेरी तो जैसे दुनियाँ ही उजड़ गयी। ना जाने कैसे बिंदु का व्यवहार इतना बदल गया। और आज तो ऐसा हो गया कि मुझे अपनी उस फूल जैसी प्यारी लाडली पर हाथ उठाना पड़ा।" विक्रम ने अपने आप को कुछ संभालते हुए कहा।
"विक्रम जी ऐसा क्या हो गया? ये लो पहले अपनी आँखें धो लो और पानी पीओ। " सारिका ने पानी का गिलास विक्रम को पकड़ाते हुए कहा।
विक्रम अपनी आँखें धोकर आता है। जो अब कुछ लाल हो गयी थी। उसने अपनी पूरी व्यथा उनको सुनाई और अपना सिर पकड़ लिया। अपने मन की पीड़ा जब किसी अपने को बताते तो अक्सर मन कुछ हल्का हो जाता है। विक्रम भी कुछ देर बाद कुछ शांत हुआ और उसने कुछ सोचकर बोला। "शर्मा जी अब बस, जल्दी से कोई अच्छा लड़का मिल जाए तो उसकी शादी कर दे। मुझे तो बस एक यही रास्ता नज़र आ रहा है। "
"हाँ विक्रम जी। अब यही सही रहेगा। आपने देखा है कोई लड़का ?" शर्मा जी ने विक्रम के मत का समर्थन करते हुए कहा।
"नहीं तो ! बस उसी की ही तो तलाश है। मुझे तो नहीं दिखा ऐसा कोई , जिसके साथ मैं बिंदु का रिश्ता कर सकूं। और मेरे रिश्तेदार भी कौनसे है यहाँ ? जिनसे भला मैं बात करूँ? एक मेहरबानी आप कर लो। अगर आपकी पहचान में कोई लड़का हो तो? आप ही रिश्ता तय करा लो।" विक्रम ने उनके आगे हाथ जोड़कर अपने आप को समर्पित करते हुए बोला।
"अरे! अरे! अरे! ऐसा मत करो विक्रम जी। इसमें मेहरबानी की भला क्या बात है! अवश्य , हम अपनी पूरी कोशिश करेंगे। आप निश्चित रहिए।" शर्मा जी उनको विश्वास दिलाते हुए बोले।
"विक्रम जी अगर आप कहो तो मैं एक बार अपनी भुआ जी से बात करूँ। उनका लड़का शरद जोधपुर में एक दुकान चलाता है। जो बहुत अच्छी चलती है। पैसों की भी कोई कमी नहीं है और लड़के का व्यवहार भी अच्छा है। "
सारिका उनके पास बैठती हुई बोली।
" हाँ ..हाँ.. करो ना बात! मैं तैयार हूँ। " विक्रम को एक आशा की किरण नज़र आई तो वह उतावलेपन में बोला।
"विक्रम जी , आप आराम से सोच लो। उनसे मिल लो और परख लो। हड़बड़ी में तय न कर देना। बाकी शरद को मैं जानता हूँ। बहुत मेहनती लड़का है। हमेशा अपने काम से काम रखता है और कोई नशा भी नहीं करता है। " शर्मा जी ने उन्हें कुछ होशपूर्वक सोचने और शरद के बारे में निश्चिन्तता लाने के भाव से कहा।

"हाँ, मैं आपका यह अहसान कभी नहीं भूल सकता। मैं खुद उनसे मिल के आ जाऊँगा। आप उनसे बात कर लो एक बार। " विक्रम उनके प्रति कृतज्ञता के भाव से बोला।
"इसमें अहसान कैसा शर्मा जी? और आप ज्यादा टेंशन मत लो। मैं उनसे बात कर लूँगी। आपको वहाँ जाने की जरूरत नहीं है। वैसे भी उनको जैसलमेर घूमने आना ही है तो हम यहीं उनसे मिल लेंगे। और बिंदु भी उनसे मिल लेगी। दोनों एक दूसरे को पसंद कर ले तो फिर बाद में कोई दिक्कत नहीं होगी।" सारिका ने स्नेहपूर्ण वाणी में बोला।
"हाँ आपकी बात तो उचित है। लेकिन मुझे डर है कहीं बिंदु इसमें भी मेरा विरोध न करें और लड़के को ना कह दे।"विक्रम अपने मन में उत्पन्न शंशय को प्रकट करते हुए बोला।
"आप इतना ज्यादा मत सोचो अब! मैं खुद बिंदु से बात कर लूँगी। अभी आप बिंदु से इस बारे में बात मत करना। जब आप हॉटेल जाओगे तब मैं बिंदु के पास जाकर उससे बात करूँगी। बस आप अपनी ओर से उसे कुछ मत कहना।" सारिका ने विक्रम को समझाते हुए कहा विक्रम के जाने के पश्चात अपनी भुआ से शरद के लिए बात कर दी।
बिंदु और शरद दोनों की ज़िंदगी जो अपनी-अपनी गति से चल रही थी। उसमें अब एक नया मोड़ आने वाला था। कुछ ही दिनों बाद शरद और उसका परिवार जैसलमेर आने वाला था और सारिका दूसरे ही दिन विक्रम के हॉटेल जाने के पश्चात बिंदु से मिलने उसके घर चली जाती है...



क्रमशः.....