प्रेम गली अति साँकरी - 49 Pranava Bharti द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम गली अति साँकरी - 49

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मैं गाड़ी में बैठ ही रही थी कि मुझे रुक जाना पड़ा | उत्पल ड्राइविंग-सीट पर बैठ चुका था और बैल्ट लगा रहा था | वैसे उसकी आदत थी कि जब वह कहीं भी मुझे अपने साथ ले जाता, पहले मेरी ओर का दरवाज़ा खोलकर बड़े आदब से जैसे मुझे बैठने का संकेत करता लेकिन आज उसने ऐसा नहीं किया था, मुझसे नाराज़ जो था | मेरे भीतर उसका बचपना हँस रहा था लेकिन अचानक ही----आवाज़ सुनाई दी और शिष्टाचार के लिहाज़ से पूछना पड़ा| 

“ओह ! आप ?कैसे हैं ?"उसकी गाड़ी हमारे समीप ही आकर रुकी थी और मुझे गाड़ी में बैठते देखकर न जाने कब वह बाहर निकलकर मेरी ओर आशा से देखता हुआ सामने खड़ा था| उत्पल की दृष्टि भी उस पर पड़ी और अब उसका खराब मूड और खराब हो चुका था | उसने उधर से मुँह घुमा लिया और सामने बड़े से चंपा के पेड़ पर लदे हुए चंपा के फूलों पर उसने अपना ध्यान अटका लिया जैसे गाड़ी में बैठे-बैठे उन फूलों  को गिनने की कोशिश कर रहा हो | 

"हम तो मोहतरमा आपसे मिलने आए थे लेकिन आप तो ----”उसने मुझसे नज़र घुमाकर उत्पल पर नज़र  टिका दी | 

“हाँ, आज बहुत दिनों बाद पुराने कॉलेज के दोस्तों से मिलने का प्रोग्राम बना है सो----"मैं कहते-कहते अटक गई| मैंने देखा उसकी दृष्टि उत्पल पर जाकर अटक गई थी लेकिन जानते हुए भी उसने अपना चेहरा उधर ही घुमाए रखा | 

"हैलो ----"श्रेष्ठ से जैसे रहा ही नहीं गया | 

"ओ ! हाय--हैलो---"उत्सव ने ऐसे देखा जैसे उसे कुछ पता ही न हो कि वह वहाँ तक आ चुका है और मुझसे बात कर रहा है | शिष्टाचार के नाते उसे उत्तर भी देना पड़ा| 

'पक्का नाटककार है' मैंने सोचा और भीतर ही भीतर मेरी हँसी फूटी पड़ी| अब थोड़ा सी मुस्कान तो चेहरे पर पसर ही जाती है चाहे कितना भी छिपाने की कोशिश कर ली जाए| 

"व्हाट ----क्या हुआ? मैं कुछ----"श्रेष्ठ अपने व्यक्तित्व के प्रति बहुत सावधान रहता था | 

"अरे ! आपको नहीं, उत्पल को हुआ है कुछ ---उस पर हँस रही थी मैं ---"मैंने भी नाटक किया | 

"क्यों?क्या हुआ है मुझे ?मैंने तो सर को रेस्पॉन्स किया न ?" उसने तुरंत जवाब दिया| 

"अरे ! तुम फूल गिन रहे थे न और श्रेष्ठ ने तुम्हारी गिनती में व्यवधान पैदा कर दिया---"मैंने खुलकर एक ठहाका लगा ही लिया | 

"ओ!दिस इज़ यू मैडम अमी ---"

"मतलब ?"

“मैंने आपको कभी इतना खुलकर हँसते हुए नहीं देखा| आज देखा तो पता चला कि बेसिकली तो आप ऐसी हैं| "उसके चेहरे की मुस्कान चौड़ी हो गई थी | 

"अरे सर, ये बिलकुल भी ऐसी नहीं हैं, बड़ी बोर हैं | हमसे पूछिए न हम इनके साथ काम करते हैं ---"पल भर रूककर उत्पल बोला ;

"अब चलें न, वहाँ सब वेट कर रहे होंगे ---"और फिर से श्रेष्ठ से नज़रें हटाकर मेरे चेहरे पर चिपका दीं | 

मैं अचकचा गई| ये हो क्या रहा था? एक तरफ़ श्रेष्ठ महाराज ऐसे दिखा रहे हैं मानो मुझे बरसों से जानते हों और आज मेरी कोई छिपी आश्चर्यजनक बात इन्होंने जान ली हो | दूसरी तरफ़ उत्पल जी ऐसे दिखा रहे थे जैसें मैं इनकी बहुत क्लोज़ फ्रैंड हूँ और मुझ पर इनका बहुत अधिकार हो| वैसे थी भी लेकिन मैंने कोई अधिकार उत्पल को नहीं दिया था| हमेशा एक डिस्टेंस बनाकर रखा था और अपनी आँखों में मेरे लिए बहुत कुछ समेटे, दिल की धड़कनों को कंट्रोल करते हुए भी वह मेरे साथ बना रहना चाहता था | 

"ओ, तो हम भी चलें आपके साथ --विद योर काइन्ड परमीशन ---"कमाल का बंदा है !अचानक गले पड़ने लगा वह !

"वो ---दरसल, हम बहुत पुराने दोस्तों की गैद-टुगैदर है तो ---आप तो किसी को वहाँ जानते नहीं हैं तो---? मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि कैसे टाला जाए ?

"सॉरी श्रेष्ठ, अभी आप अम्मा-पापा से मिल लीजिए। मुझे फ़ोन करके आएंगे तो मैं कहीं का प्रोग्राम नहीं बनाऊँगी ---" इतना कहने में मुझ पर बहुत ज़ोर पड़ा, साथ ही यह भी लगा कि ऐसी तो कैसी परसेनेलिटी है कि किसी अनजाने लोगों में किसी के भी साथ यूँ ही लटक जाओ| 

"उत्पल भी है न तो मैंने सोचा, एक और एक ग्यारह –क्यों मि.उत्पल?” उत्पल का चेहरा देखने लायक था| 

“उत्पल की पढ़ाई उसी कॉलेज में हुई है तो वह कंफरटेबल है--सीनियर--जूनीयर थे बस----लेकिन फ्रैंडशिप तो थी ही न !”

“देयर मस्ट बी ए बिग डिफ़रेन्स एमंग द एज ----” श्रेष्ठ उत्पल की ओर देखते हुए बोला जैसे उत्पल का मेरे साथ जाना कुछ अजीब या फिर अच्छा न लग रहा हो| उसे यह सब बोलने का कोई अधिकार ही नहीं था | वो मेरा निर्णय था कि मैं किसके साथ जाना चाहती हूँ या किसको मिलना चाहती हूँ | 

भला बताओ, इसे क्या मतलब है इन सब बातों से ?लेकिन था न, उत्पल मेरे साथ था और श्रेष्ठ मेरे साथ होने की कोशिश कर रहा था | 

“सो—यू थिंक, आई वोंट बी एबल टू एन्जॉय ----”क्या बंदा था श्रेष्ठ ! इशारों से न समझे तो ठीक, वह तो साफ़ साफ़ सामने सुनकर भी समझ नहीं पा रहा था या समझने की कोशिश नहीं कर रहा था| 

“अदर्स टू वोंट एन्जॉय यूअर कंपनी एंड यू टू ---”मेरे मुँह से निकल ही गया | वह मुझसे मिलने आया था और कारण भी मालूम था फिर भी मैं उसे रेस्पॉन्स कर नहीं पा रही थी | 

बात करते करते हम गुलमुहार के नीचे आ खड़े हुए थे | पता नहीं क्या सूझा उत्पल को उसने गुलमुहर के पेड़ को इतनी ज़ोर से हिलाया कि उसके फूल झरते हुए हम तीनों पर आ पड़े | मैंने उसकी तरफ़ देखा और मेरे चेहरे पर मुस्कान फैल गई | वह फूलों को केवल मुझ पर झारना चाहता था लेकिन---सभी तो उस पेड़ के नीचे सरक आए थे | उत्पल स्वयं भी कार में से निकल आया था | मैंने सोचा भी, यह क्यों निकला होगा गाड़ी में से? लेकिन वह यह हरकत करके फिर से गाड़ी में सरक गया और धीमे-धीमे हॉर्न बजाने लगा जो थोड़ा अजीब भी लग रहा था | 

“दिस इज़ डेनोलिक्स रेजिया -----वेरी स्वीट –बट ---व्हाट इज़ दिस ?”उसकी भाव भंगिमा कुछ अजीब सी हुई और उसने अपने कपड़ों पर गिरे हुए फूलों को हाथ से झाड़ना शुरू कर दिया | एक तरफ़ वे स्वीट थे तो दूसरी ओर उन्हें अपने ऊपर से ऐसे झाड रहा था जैसे कोई गंदी चीज़ ऊपर से गिर गई हो | दरसल, उसका असली गुस्सा मेरे साथ उत्पल को देखकर प्रगट हुआ था | 

“हम तो इसे गुलमोहर कहते हैं ---हमारा प्यार गुलमोहर ---” उत्पल को भी जैसे श्रेष्ठ को चिढ़ाने में मज़ा आने लगा | 

“हाँ। अरे ! नहीं बस पहुँच ही रहे हैं ---“मैंने दोस्त के फ़ोन का उत्तर दिया | 

“नाऊ नॉट गेटिग लेट ? कलिका का फ़ोन था | सब खार खाए बैठे हैं | ” मैं कार के दरवाज़े की ओर मुड़ी | 

“श्रेष्ठ, प्लीज़ गिव मी ए रिंग बिफ़ोर यू प्लान टु कम ---”मुझे श्रेष्ठ को कहना पड़ा | 

“प्लीज़ मीट अम्मा-पापा एट लीस्ट---”

“बाय, सी यू सुन ---” उत्पल पहले ही बैठ चुका था | उसने गुलमुहर के कुछ फूल चुनकर गाड़ी में आगे रख लिए थे और गाड़ी स्टार्ट कर दी | 

मैंने श्रेष्ठ को ‘बाय’के लिए हाथ हिला दिया था। उसने भी धीमे से बाय कहा और गाड़ी को जाते हुए घूरता रहा | 

“ये क्या था ?” गाड़ी थोड़ा आगे पहुंची तो मैंने उत्पल से पूछा | 

“शॉवर ऑफ़ लव ---” उसने ऐसे बुदबुदाकर कहा जैसे मुझे सुनाई नहीं देगा लेकिन मैं सुन चुकी थी|