कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(२३) Saroj Verma द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(२३)

कालवाची को चिन्तित देखकर भैरवी ने पूछा....
"मेरा नाम सुनकर तुम चिन्तित क्यों हो गई"?
"कुछ नहीं,ऐसे ही",कालवाची बोली....
"अच्छा!ये सब बातें छोड़ो ,ये बताओ कि तुम दोनों कौन हो?",भैरवी ने पूछा...
"ये मेरी बहन और मैं इसका भ्राता हूँ"कौत्रेय बोला...
"अच्छा!वो तो ठीक है ,परन्तु तुम दोनों इतनी रात्रि में यहाँ क्या कर रहे हो?कहीं तुम दोनों भी मेरी भाँति दस्यु तो नहीं",भैरवी ने पूछा...
"नहीं!ऐसा कुछ नहीं है,हम दोनों तो यात्री हैं ,यात्रा करने निकले थे,यहाँ लोगों की पुकार सुनी तो रूक गए",कालवाची बोली....
"मेरा नाम तो तुम लोगों ने जान लिया किन्तु अभी तक तुम दोनों ने अपना नाम नहीं बताया",भैरवी बोली...
"मेरा नाम कर्बला और ये मेरा भाई कुबेर है",कालवाची झूठ बोलते हुए बोली...
जब कालवाची ने झूठ बोला तो कौत्रेय ने उसकी ओर बड़ी आश्चर्यजनक दृष्टि से देखा किन्तु उस समय वो शान्त ही रहा....
"ओह...बहुत ही सुन्दर नाम हैं तुम दोनों के,वैसे कहाँ जा रहे थे तुम दोनों"?,भैरवी ने पूछा...
"चामुण्डा पर्वत पर जा रहे थे हम दोनों",कौत्रेय बोला...
"किन्तु!वहाँ क्यों जा रहे थे तुम दोनों"? मैनें तो सुना है कि वहाँ कोई महातंत्रेश्वर नामक कोई सिद्धपुरुष रहता है ,जो प्रेतों को मनुष्यों में परिवर्तित करता है,वहाँ तुम दोनों को क्या कार्य है जो वहांँ जा रहे हो?, भैरवी ने पूछा...
"बस!ऐसे ही किसी ने हमसे कहा कि उस स्थान का वातावरण अत्यधिक मनमोहक एवं प्राणियों के अनुकूल है इसलिए वहाँ जा रहे थे",कौत्रेय बोला...
"किसने कहा तुम दोनों से कि वहाँ का वातावरण मनमोहक है,वहाँ तो केवल संकट के सिवाय कुछ भी नहीं, वहाँ जाकर अपने प्राण मत दो,तनिक कुछ तो सोचो"भैरवी बोली...
"किन्तु!अब इस अर्द्धरात्रि में हम दोनों कहाँ जाएं?हम तो यहाँ किसी से परिचित भी नहीं"कालवाची बोली...
"तुम दोनों ऐसा करो,मेरे घर चलो,तुम दोनों को देखकर मेरी वृद्ध एवं नेत्रहीन माँ अति प्रसन्न होगी, हमारे यहाँ कभी कोई अतिथि नहीं आया,यदि तुम दोनों मेरे घर चलोगे तो वें अत्यधिक प्रसन्न होगीं",भैरवी बोली....
"ओह...ये अत्यन्त दुःख की बात है कि तुम्हारी माँ नेत्रहीन है,वैसे तुम्हारी माँ नेत्रहीन कैसे हुई?, कालवाची ने पूछा...
"ये अत्यधिक लम्बी कहानी है", भैरवी बोली...
"तो सुनाओ ना!",कौत्रेय बोला......
तब भैरवी बोली...
"मेरे पिता महाराज कुशाग्रसेन वैतालिक राज्य के राजा हुआ करते थे और मेरी माँ कुमुदिनी वहाँ की रानी थीं,हम सब अति प्रसन्नता के साथ वहाँ रह रहे थे,तभी किसी शत्रु ने हमारे राज्य पर आक्रमण कर दिया,पिताश्री ने हम दोनों माँ बेटी को राज्य से भाग जाने का आदेश दिया ,उस आक्रमण में मेरे पिताश्री वीरगति को प्राप्त हुए,ये संदेशा हमें एक आहत सैनिक ने आकर दिया था,इसके पश्चात वो सैनिक भी मृत्यु को प्राप्त हो गया,हम दोनों माँ पुत्री मेरे तात्श्री के राज्य में भागकर आए,मेरे तात्श्री भी अत्यधिक निर्धन थे,उनके मृत्युलोक जाने के पश्चात मेरी माँ दूसरों के घरों में दासी का कार्य करने लगी,किन्तु निर्धनता एवं पिताश्री की याद ने उन्हें समय से पहले नेत्रहीन एवं वृद्ध बना दिया,जब वें विवशता के कारण कोई भी कार्य करने में असमर्थ रहने लगीं तो मैनें दूसरों के घरों में कार्य करना प्रारम्भ कर दिया ,किन्तु पराए पुरूषों की घृणित दृष्टि के कारण मैनें ये कार्य करना छोड़ दिया एवं दस्यु बन गई"
"ओह...तो तुम राजकुमारी भैरवी हो एवं तुम्हारे पिता महाराज कुशाग्रसेन थे", कौत्रेय ने आश्चर्यचकित होकर कहा...
"क्या तुम मेरे पिताश्री को जानते थे"? भैरवी ने पूछा...
"मैनें वैतालिक राज्य के वासियों से उनकी प्रसंशा सुनी है,क्योंकि जो अब वहाँ का राजा है उससे वैतालिक राज्य के वासी प्रसन्न नहीं हैं,वो उन पर अत्यधिक अत्याचार करता है,हम दोनों वैतालिक राज्य से भी होकर आएँ हैं ना इसलिए हमें ज्ञात है",,कौत्रेय बोला...
"प्रसन्नता हुई ये जानकर कि मेरे पिताश्री को आज भी वैतालिक राज्य के वासी याद करते हैं", भैरवी बोली...
"अच्छे व्यक्तियों की प्रसंशा सदैव होती है", कालवाची बोली...
"तो क्या सोचा तुम लोगों ने कि मेरे घर चलोगे या नहीं"?, भैरवी ने पूछा...
"अच्छा चलो! तुम्हारे घर ही चलते हैं,हम दोनों को कोई आपत्ति नहीं",कालवाची बोली...
"किन्तु मुझे आपत्ति है",कौत्रेय बोला...
"किन्तु!क्यों"?,भैरवी ने पूछा....
"वो मैं तुम्हें नहीं बता सकता",कौत्रेय बोला...
"कुछ नहीं!कदाचित ये क्रोधित हो उठा है क्योकिं हम चामुण्डा पर्वत पर नहीं जा रहे इसलिए," कालवाची बोली...
"ओह..तो ये बात है,कुबेर इसमें इतना क्रोधित होने जैसा कुछ नहीं है,कुछ समय तुम मेरे घर पर रह लो,इसके पश्चात चामुण्डा पर्वत पर चले जाना", भैरवी बोली....
"नहीं!मैं इस बात पर क्रोधित नहीं हूँ,मैं तो इस बात पर क्रोधित हो रहा था कि मेरी बहन कर्बला क्षण-क्षण में अपने विचार बदलती है,है ना मेरी प्रिय बहन कर्बला!",कुबेर बने कौत्रेय ने कर्बला बनी कालवाची से चिढ़ते हुए कहा...
"तुम तो नाहक ही क्रोधित हो रहे हो कुबेर!,अब भैरवी इतना अनुरोध कर रही है तो इसके घर ही चलते हैं,चामुण्डा पर्वत पर हम कभी और चलेगें",कर्बला बनी कालवाची बोली....
"चलो!अब मैं क्रोधित नहीं हूँ,तुम दोनों को चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है,मैं भैरवी के घर जाने हेतु तत्पर हूँ",कुबेर बना कौत्रेय बोला....
इसके पश्चात तीनों भैरवी के घर पहुँचे,कर्बला बनी कालवाची और कुबेर बने कौत्रेय ने देखा कि वें दोनों माँ पुत्री एक छोटे से साधारण से घर में रहते हैं,घर के द्वार पर जाकर भैरवी ने किवाड़ों पर लगी साँकल को खड़काया तो भीतर से कुमुदिनी ने पूछा....
"कौन! कौन है?
"माँ!मैं हूँ भैरवी!कृपया किवाड़ खोलो",भैरवी ने द्वार से कहा...
"तभी कुछ समय पश्चात भीतर से कुमुदिनी ने किवाड़ खोलें,किवाड़ खुलते ही भैरवी ने कर्बला और कुबेर से कहा....
"देखो ये है मेरी माँ!"
तब कुमुदिनी ने भैरवी से पूछा...
"पुत्री!आज अपने संग किसी को लाई है क्या"?
"हाँ!माँ!ये है कर्बला और ये है इसका भाई कुबेर",भैरवी बोली...
"तो इन दोनों को द्वार पर क्यों खड़ा किया है शीघ्रता से भीतर लिवा ला",कुमुदिनी बोली...
तब भैरवी दोनों को शीघ्रता से भीतर ले गई,भीतर जाते ही कर्बला बनी कालवाची ने कुमुदिनी से कहा...
"प्रणाम!महारानी कुमुदिनी"
"तुम्हें कैसें पता कि मैं रानी कुमुदिनी थी",कुमुदिनी ने पूछा...
"हम दोनों को मार्ग में भैरवी ने बताया," कुबेर बना कौत्रेय बोला....
"ओह...मुझे लगा कि मुझसे खोजते हुए देवसेना यहाँ आ पहुँची है,"कुमुदिनी बोली...
तब भैरवी बोली...
"माँ!कब तक सेनापति व्योमकेश,उनके पुत्र अचल और छोटी माँ देवसेना को याद करती रहोगी,ना जाने वें सब कहाँ और कैसीं दशा में हैं?उस आक्रमण में ना जाने उन सभी के संग क्या हुआ होगा?"
"कुछ भी हो पुत्री!सेनापति व्योमकेश हमारे शुभचिन्तकों में से एक थे,अचल तेरे बाल्यकाल का मित्र था एवं उसकी माँ देवसेना तुझसे अपनी पुत्री की भाँति स्नेह रखती थी,क्या उन सभी को इस प्रकार भूल जाना सम्भव है"?,कुमुदिनी बोली...
"माँ!अतीत की स्मृतियों में जाकर सिवाय निराशा के कुछ भी उपलब्ध ना होगा,इससे श्रेष्ठ होगा कि हम उन सभी को स्मरण ही ना करें,क्योंकि स्मृतियाँ कभी कभी हृदय को अत्यधिक पीड़ा पहुँचाती हैं," भैरवी बोली...
दोनों माँ पुत्री के वार्तालाप को देखकर कर्बला बनी कालवाची बोली....
"आप दोनों धैर्य रखें,एक ना एक दिन सब ठीक हो जाएगा"
तब कुमुदिनी बोली....
"बस इसी आशा में तो अब तक जीवित हूँ,यदि हमने उसे दण्ड ना दिया होता तो आज हमें ये कष्ट ना झेलना पड़ता,ऐसा प्रतीत होता है कि हमें उसी का श्राप लगा है"
तब भैरवी ने पूछा...
"माँ!किसका श्राप? एवं आपने किसे दण्ड दिया था"?
तब कुमुदिनी बोली...
"कुछ नहीं पुत्री,बस अनायास ऐसे ही मुँख से निकल गया,तुम अतिथियों के जलपान की व्यवस्था करो"
तब भैरवी बोली...
"ठीक है माँ"

क्रमशः....
सरोज वर्मा....