कुमुदिनी के मुँख से जलपान की बात सुनकर कालवाची बोली...
"भैरवी!जलपान का प्रबन्ध करने की कोई आवश्यकता नहीं है,क्योंकि हम दोनों ने व्रत ले रखा है,हम केवल फलाहार करते हैं,वो भी सायंकाल में"
"इतनी कठिन तपस्या करने की क्या आवश्यकता है भला?",भैरवी बोली...
"कर्बला को सुन्दर एवं बलिष्ठ पति चाहिए होगा,इसलिए इतनी कड़ी तपस्या कर रही है,कुमुदिनी बोली...
ये सुनकर सभी हँसने लगे तभी कर्बला बनी कालवाची बोली...
"ना रानी कुमुदिनी!अभी विवाह करने की मेरी कोई इच्छा नहीं है,वो कारण तो कुछ और ही है ,जो मैं अभी आपको नहीं बता सकती"
"मुझे रानी मत कहो कर्बला!मैं अभागन अब कहीं की रानी नहीं,जिसका सुहाग ही ना बचा हो,वो भला कहाँ की रानी,स्त्री का मान तो स्वामी से होता है,जब वें ही जीवित ना रहे तो मैं कहाँ की रानी रह गई भला?" कुमुदिनी बोली....
"ऐसा ना कहें,वैतालिक राज्य अब भी आपका ही है और आपका राज्य मैं आपको वापस दिलवाकर रहूँगी",कर्बला बनी कालवाची बोली...
"ये तुम्हारे वश की बात नहीं है कर्बला!" तुम एक असहाय युवती हो ये सब कैसे करोगी?,हम माँ पुत्री को ये सुन्दर स्वप्न मत दिखाओ,ये असम्भव है,भैरवी बोली...
"ये सम्भव है भैरवी"!,कर्बला बनी कालवाची बोली...
"भला!तुम ये किस प्रकार करोगी?",भैरवी ने पूछा...
"अभी विश्राम करते हैं,इस विषय पर कल वार्तालाप होगी"कर्बला बनी कालवाची बोली....
"तुम ऐसे ही कह रही हो,सच तो ये है कि तुम्हारे पास ऐसी कोई योजना ही नहीं है"भैरवी बोली...
"नहीं!....मेरे पास योजना है और असमम्भव सम्भव में परिवर्तित हो सकता है"कर्बला बनी कालवाची बोली...
"भला वो किस प्रकार"?भैरवी ने पूछा...
तब कर्बला बनी कालवाची बोली....
"सर्वप्रथम हमें सेनापति व्योमकेश एवं उनके पुत्र को खोजना होगा,उनके संग मिलकर हम रणनीति तैयार कर सकते हैं,कुछ दिनों तक वेष बदलकर वैतालिक राज्य में रहकर वहाँ के वासियों को भी अपनी योजना में सम्मिलित कर लेगें,वहाँ के कुछ भेद जानकर हम वहाँ के राजा पर विजय प्राप्त कर सकते हैं,"...
"कर्बला!ये असमम्भव है,हम सेनापति व्योमकेश एवं उनके पुत्र को कहांँ खोजेगें,इतने वर्ष बीत गए,यदि वें जीवित होते तो स्वयं ही हम माँ पुत्री को खोजते हुए यहाँ आ पहुँचते",कुमुदिनी बोली...
"आप इतनी चिन्ता क्यों कर रहीं हैं रानी कुमुदिनी!आप एक बार सहमति तो जताएं,सबकुछ हो सकता है,जब तपस्या करने पर साधु को ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं तो प्रयास करने पर कुछ भी प्राप्त किया जा सकता है,ऐसे साहस हारने एवं हाथ पर हाथ धरे रखने से कुछ भी प्राप्त होने वाला नहीं,किसी वस्तु को प्राप्त करने के लिए प्रयास करना आवश्यक है,जब प्रयास करने पर वो ना मिले तब साहस हारना चाहिए" कर्बला बनी कालवाची बोली...
"मैं तुम्हारी बात से सहमत हूँ कर्बला"!,भैरवी बोली...
"किन्तु!मैं सहमत नहीं",कुबेर बना कौत्रेय बोला...
"क्यों?तुम्हें क्या आपत्ति है भला?",कर्बला बनी कालवाची ने पूछा..
"क्योंकि हम दोनों यहाँ किसी और कार्य हेतु आए थे और तुम यहाँ आकर ये क्या करने लगी?,दूसरों के जीवन में हस्तक्षेप करना बंद करो कर्बला!,हम दोनों स्वयं इतने असहाय है,हम कैसे भला किसी और की सहायता कर सकते हैं",कुबेर बना कौत्रेय बोला...
"कुबेर!तुम्हें क्या हो गया?तुम तो ऐसे ना थे"कर्बला बनी कालवाची बोली...
"विपरीत परिस्थितियों ने मुझे ऐसा बना दिया है,मैने लोगों की बहुत भलाई करके देख लिया,भलाई करके अन्त में प्राप्त कुछ भी नहीं होता",कुबेर बना कौत्रेय बोला.....
कुबेर की बात सुनकर कुमुदिनी बोली...
"ऐसा ना कहो कुबेर!तुम जैसा जिसके साथ व्यवहार करोगें तो तुम्हें वैसा ही बदले में मिलेगा,ये मैनें स्वयं देखा है,यदि महाराज ने उसके बुरा व्यवहार ना किया होता तो कदाचित आज हम माँ बेटी ऐसी स्थिति में ना होते"...
तब कुबेर बने कौत्रेय ने पूछा....
'किसके संग महाराज ने बुरा व्यवहार किया था"?
"थी कोई,वो महाराज से प्रेम भी करती थी किन्तु महाराज ने उसकी भावनाओं का मान ना रखा", कुमुदिनी बोली...
"कौन थी वो"? भैरवी ने पूछा....
तब कुमुदिनी बोली....
"वो एक प्रेतनी थी,उसका नाम कालवाची था और वो शीशमहल में कालिन्दी बनकर रह रही थी,उसकी विवशता ये थी कि उसे जीवित रहने हेतु प्राणी हृदय चाहिए था,जिससे वैतालिक राज्य में हत्याएंँ होने लगी, ये जब महाराज को ज्ञात हुआ तो उन्होंने कालवाची को दण्ड देने का विचार किया,अन्ततः उसे वन में किसी विशाल वृक्ष के भीतर स्थापित कर दिया गया,मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि कालवाची निर्दोष थी,क्योंकि उसने तो अपने भोजन हेतु प्राणियों की हत्या की थी,ये उसकी विवशता थी,उसमें उसका कोई भी दोष नहीं था, कदाचित उसी का श्राप लगा होगा हमारे परिवार को,तभी तो सब नष्ट हो गया"
कुमुदिनी की बात सुनकर भैरवी अपनी माँ से बोली...
"आपने कभी भी मुझे इस विषय में कुछ बताया नहीं"
"तुम क्या करती ये सब ज्ञात करके?"कुमुदिनी बोली...
"किन्तु !मुझे ये सब ज्ञात होना चाहिए माँ! ये सब मेरे जीवन से भी तो जुड़ा है",भैरवी बोली...
"भैरवी!कुछ बातों से अनभिज्ञ रहना ही अच्छा होता है" कर्बला बनी कालवाची बोली....
"तुम ऐसा क्यों कह रही हो कर्बला!मुझे इस विषय में यदि कुछ ज्ञात हो जाता तो क्या हानि हो जाती"?, भैरवी बोली...
"हानि तो कुछ ना होती पुत्री!किन्तु तुम्हारे मन में तुम्हारे पिताश्री के प्रति घृणा उत्पन्न हो जाती" कुमुदिनी बोली...
तब भैरवी बोली...
"किन्तु!मेरे पिताश्री वैतालिक राज्य के राजा थे एवं अपनी प्रजा की रक्षा करना उनका धर्म था,कोई राजा अपनी प्रजा की भलाई के विषय में ही सोचता है,इसमें उनका कोई लाभ नहीं था,उन्होंने तो केवल अपना कर्तव्य निभाया था,बुरा तब होता जब वें बिना सोचे समझे कालवाची की हत्या करवा देते,किन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया,उन्होंने उसे जीवित रखा और केवल दण्ड दिया,जिसकी वो भागीदार थी,यदि कालवाची को विशाल वृक्ष में स्थापित ना किया जाता तो वो और भी हत्याएँ करती"
"मैं तुम्हारी बात से पूर्णतः सहमत हूँ",कर्बला बनी कालवाची बोली...
"किन्तु मैं असहमत हूँ",कुबेर बना कौत्रेय बोला....
"परन्तु क्यों?"भैरवी ने पूछा...
"बस यूँ ही,"कुबेर बना कौत्रेय बोला....
तब कर्बला बनी कालवाची बोली...
"मेरा भ्राता तो ऐसा ही है,जब देखो तब इसका क्रोध इसकी नाक पर ही धरा रहता है"
तब कुबेर बना कौत्रेय बोला....
"तुम्हारे जो लक्षण हैं ना!उन्हें देखकर कभी कभी तुमसे दूर जाने का मन करता है,परन्तु चाहते हुए भी तुमसे दूर नहीं जा सकता,तुम्हें दूसरों की भलाई करने में इतनी रूचि है,चाहे वो तुम्हारा शत्रु ही क्यों ना हो"
"दूसरों की भलाई करना तो अच्छी बात है ना!",कर्बला बनी कालवाची बोली...
"हाँ! कुबेर!तुम्हें भलाई करने से इतनी आपत्ति क्यों है?" भैरवी ने पूछा....
"मुझे नहीं ज्ञात ,बस आपत्ति है तो है"कुबेर बना कौत्रेय बोला....
"अच्छा!अब विश्राम करते है,कल वार्तालाप करेगें एवं योजना बनाऐगें कि सेनापति व्योमकेश एवं उनके पुत्र अचल को कैसें खोजा जाएं,कर्बला बनी कालवाची बोली....
"हाँ...हाँ...अब सभी विश्राम करों,रात्रि बीतने वाली है"कुमुदिनी बोली....
और भैरवी ने सभी के बिछौने धरती पर बिछा दिए और सभी अपने अपने बिछौनों पर लेटकर विश्राम करने लगे.....
क्रमशः....
सरोज वर्मा.....