कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(१९) Saroj Verma द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(१९)

किन्तु कौत्रेय निरन्तर प्रयास करता रहा और ऐसे ही दो वर्ष और व्यतीत हो चुके थे,अन्ततः कौत्रेय को अपने कार्य में सफलता प्राप्त हुई,वृक्ष के तने को फोड़कर उसने कालवाची को उस वृक्ष से मुक्त करवा लिया,किन्तु अभी कालवाची इस अवस्था में नहीं थी कि वो कोई कार्य कर सके,वो अत्यधिक वृद्ध एवं निष्प्राण सी हो चुकी थी,कालवाची को भोजन की आवश्यकता थी एवं उसका भोजन किसी प्राणी का हृदय था,कौत्रेय ये सोच रहा था कि कालवाची के लिए भोजन कहाँ से लाएं? इसके लिए वो विचार कर रहा था, वह कालवाची को यूँ ऐसी दशा में छोड़ भी नहीं सकता,जब वह इतने वर्षों तक इतने परिश्रम के पश्चात कालवाची को वृक्ष के तने से मुक्त करा सकता है तो उसके भोजन का प्रबन्ध भी कर ही सकता है,यही सब सोचकर वो उड़ चला,वो कालवाची के लिए भोजन खोज ही रहा था कि सायंकाल बीतने लगी और रात्रि की कालिमा चहुँ ओर विसरित होने लगी थी, कौत्रेय थककर एक वृक्ष की शाखा पर जा बैठा और सोचने लगा कि वो कैसें कालवाची के भोजन का प्रबन्ध करें?
तभी उस वन में उसे कोई मनुष्य दिखा जो कदाचित कोई लकड़हारा था एवं लकड़ियाँ काटकर घर की ओर जा रहा था,तभी एक बाघ ने उस पर आक्रमण कर दिया,बेचारा लकड़हारा शक्तिहीन एवं असहाय था इसलिए स्वयं की रक्षा ना कर सका और बाघ ने उसके प्राण हर लिए ,बाघ अपना भोजन करने ही वाला था तभी वहाँ दो तीन तरक्षु(लकड़बग्घे) आ पहुँचें,अब बाघ और तरक्षुओं के मध्य अहेर(शिकार) हेतु घमासान युद्ध होने लगा,वें सब लड़ते लड़ते अहेर से कुछ दूरी पर चले गए तो कौत्रेय इस अवसर का लाभ उठाते हुए,उस अहेर के हृदय पर प्रहार करने लगा कुछ समय के परिश्रम के पश्चात वो उस अहेर के उर से हृदय को निकालकर अपनी चंचुका(चोंच) में दबाकर उड़ चला,कुछ समय पश्चात वो कालवाची के समीप पहुँच गया और उसे भोजन कराने लगा,उसने देखा कि जैसे जैसे भोजन कालवाची के शरीर में पहुँच रहा था तो उसकी त्वचा शुष्क से कोमल होती जा रही थी एवं उसके केशों का रंग भी श्वेत से श्याम होता जा रहा था , भोजन ग्रहण करने के पश्चात कालवाची ने अपनी आँखें खोलीं और अपने समक्ष कौत्रेय को पाकर अत्यधिक प्रसन्न हुई एवं उसकी आँखों से अश्रुधारा बह निकली,उसने अपनी शक्तियों द्वारा कौत्रेय को मानव रूप में बदल दिया,जब कौत्रेय मानव रूप में परिवर्तित हो गया तो उसने उसे अपने हृदय से लगाकर कहा....
"मैं तुम्हारी बहुत आभारी हूँ कौत्रेय! जो ऐसी विपत्ति में भी तुमने मेरा संग नहीं छोड़ा"...
तब कौत्रेय बोला....
"कालवाची!मैं वर्षों से इसी क्षण की प्रतीक्षा कर रहा था कि तुम कब स्वस्थ होकर मुझसे वार्तालाप करोगी"?मैं आज अत्यधिक प्रसन्न हूँ,"
तभी कालवाची ने पूछा....
"वैसें कितने वर्ष बीत गए कौत्रेय?"
"बारह वर्ष बीत चुके हैं कालवाची"!,कौत्रेय बोला...
'और तुम इतने वर्षों से निरन्तर मेरे स्वस्थ होने की प्रतीक्षा कर रहे थे",कालवाची ने पूछा...
"हाँ! और निरन्तर तुम्हें इस वृक्ष के तने से मुक्त करवाने का प्रयास करता रहा,पूरे बारह वर्ष लग गए,इस वृक्ष के तने को फोड़ने में,तब जाकर तुम मुक्त हुई',कौत्रेय बोला...
"सच्ची मित्रता करना तो कोई तुमसे सीखे" कालवाची बोली...
"तुमने भी तो मेरे लिए बहुत कुछ किया है कालवाची!"कौत्रेय बोला...
"परन्तु उतना नहीं,जितना कि तुमने किया मेरे लिए"कालवाची बोली...
"वो सब छोड़ो अब ये बताओ,अपने पुनर्रूप में आकर कैसा लग रहा है?" कौत्रेय ने पूछा....
"अच्छा लग रहा है"किन्तु ये बताओ तुम मेरे लिए किसी मनुष्य का हृदय कैसें ला पाएं? क्या तुमने किसी की हत्या की?"कालवाची ने पूछा........
"ना! ये तो बाघ एवं तरक्षुओं का आहेर था ,सब के मध्य युद्ध हो रहा तो मैं अवसर का लाभ उठाते हुए उस मनुष्य के हृदय को निकालने में सफल हो गया और वह तुम्हारे लिए ले आया"कौत्रेय बोला....
"अच्छा!ये बताओ वैतालिक राज्य का क्या हुआ? और वहाँ के राजा कुशाग्रसेन कैसें हैं?"कालवाची ने पूछा...
" उस दुष्ट राजा ने तुम्हारे संग ऐसा व्यवहार किया और तुम्हें अभी भी उसकी चिन्ता है"कौत्रेय ने क्रोधित होकर कहा...
कौत्रेय के क्रोधित होने पर कालवाची बोली....
"कुछ भी हो कौत्रेय!मैनें उनसे प्रेम किया था,उन्होंने मेरे साथ जो व्यवहार किया उसमें उनका स्वार्थ बिलकुल भी नहीं था,ऐसा उन्होंने अपनी प्रजा की भलाई हेतु किया"
"तुम उन्हें भले ही क्षमा कर सकती हो कालवाची!,किन्तु मैं यदि तुम्हारे स्थान पर होता तो उन्हें कदापि क्षमा ना करता" कौत्रेय बोला....
"किन्तु वें स्वस्थ और सुरक्षित तो हैं ना!"कालवाची ने पूछा....
"नहीं!वें अब इस संसार में नहीं हैं"कौत्रेय बोला....
"माना कि उन्होंने मेरे संग उचित व्यवहार नहीं किया,किन्तु उनके लिए ऐसे शब्दों का प्रयोग मत करो, कौत्रेय!,मैं सह नहीं पाऊँगीं",कालवाची बोली....
"मैं सत्य कह रहा हूँ कालवाची"!,कौत्रेय बोला...
"क्या वें अस्वस्थ थे?"कालवाची ने पूछा...
"नहीं!शत्रु राजा ने वैतालिक राज्य पर आक्रमण कर राजा कुशाग्रसेन की हत्या कर दी",कौत्रेय बोला....
"और उनकी रानी कुमुदिनी एवं पुत्री भैरवी,क्या वें भी अब इस संसार में नहीं रहे?"कालवाची ने पूछा...
"नहीं!सुना है कि वें दोनों सुरक्षित हैं और कहीं रह रहीं हैं"कौत्रेय बोला....
"और क्या सेनापति व्योमकेश भी उन आक्रमणकारियों की भेंट चढ़ गए"कालवाची ने पूछा....
सुना है वें भी सुरक्षित हैं,उनकी पत्नी देवसेना तो नहीं रहीं,परन्तु उनका पूत्र अचलराज उनके ही संग है,कौत्रेय बोला...
"तुम्हें ये सब कैसे ज्ञात हुआ"? कालवाची ने पूछा....
कालवाची की बात सुनकर कौत्रेय बोला....
मुझे ये सब हीरामन सुए ने बताया,वो राजमहल में रहता है,यदा कदा मैं उससे भेट करने चला जाता हूँ,उसने मुझसे क्षमा भी माँगी,उसने कहा कि सेनापति व्योमकेश ने उसे हम दोनों का गुप्तचर बनाकर ,हम दोनों के विषय में उससे सारी सूचनाएं प्राप्त की थीं,उसी ने सारी सूचनाएं दी और तुम्हें इस अवस्था तक पहुँचाया गया....
"ओह..तो ये बात है"कालवाची बोली...
"हाँ!और तुम्हारे संग इतना सब कुछ करने के पश्चात भी तुम्हें अब भी उस दुर्व्यवहारी राजा की याद है", कौत्रेय बोला....
"किन्तु कौत्रेय! प्रेम में केवल प्रेम होता है,उसमें घृणा का कोई स्थान नहीं रह जाता"कालवाची बोली...
"अब मुझे संदेह हो रहा है" कौत्रेय बोला...
"किस बात का संदेह कौत्रेय?"कालवाची ने पूछा...
"यही कि तुम कोई प्रेतनी हो भी या नहीं,तुम्हारी बातों से तो ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे तुम कोई स्वर्ग की देवी हो,जिसका व्यवहार सौम्य एवं वाणी मधुर है"कौत्रेय बोला....
कौत्रेय की बात सुनकर कालवाची हँसने लगी और कौत्रेय से बोली.....
"मैं वही हूँ कौत्रेय! किन्तु मेरी मानसिकता बदल गई है,ये मेरा दुर्भाग्य है कि मैं एक प्रेतनी हूँ एवं मेरा सबसे बड़ा दुर्भाग्य ये है कि मानव हृदय ही मेरा भोजन है,ना चाहते हुए भी मुझे मानवों की हत्या करनी पड़ती है केवल अपने भोजन के लिए, यही सबसे बड़ी समस्या है एवं इस समस्या का कोई भी समाधान नहीं,मैं स्वयं किसी की हत्या नहीं करना चाहती,किन्तु जीवनयापन के लिए मुझे ये घृणास्पद कार्य करना पड़ता है"...
और इतना कहते कहते कालवाची का मन द्रवित हो उठा......

क्रमशः...
सरोज वर्मा....