महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 15 Praveen kumrawat द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 15

[ हार्डी से आगे के पत्र व्यवहार और नेविल ]

इस बीच रामानुजन और प्रो. हार्डी एक-दूसरे से पत्र-व्यवहार करते रहे। प्रो. हार्डी साध्यों की पूरी-पूरी उपपत्तियाँ माँगते रहे, मगर रामानुजन ने उन्हें वह नहीं भेजी। उस पत्र व्यवहार से तंग आकर प्रो. लिटिलवुड ने प्रो. हार्डी को लिखा—‘‘उसका पत्र इन हालात में पागल बनाने वाला है। मुझे तो यह शंका है कि उसे यह भय है कि कहीं तुम उसके कार्य को चुरा न लो।”
इस पर प्रो. हार्डी ने रामानुजन को लिखा— “मैं सब बातें स्पष्ट रूप से तुम्हारे सम्मुख रखना चाहता हूँ। तुम्हारे तीन लंबे साध्य जो मेरे पास हैं, जिनमें मैंने स्पष्ट लिखा है कि तुमने क्या-क्या सिद्ध किया है अथवा सिद्ध करने का दावा किया है। मैंने तुम्हारे पत्र श्री लिटिलवुड, डॉ. बानेंस, श्री बेरी और अन्य गणितज्ञों को दिखाए हैं। यह बात निश्चित है कि यदि मैं तुम्हारे निष्कर्षों का कोई गैर-कानूनी दुरुपयोग करूँ तो मेरा भंडा फोड़ना तुम्हारे लिए सरल होगा। मुझे आशा है कि तुम मुझे यह सब इतने अति स्पष्ट शब्दों में रखने के लिए क्षमा करोगे। मैं ऐसा बिलकुल नहीं करता, यदि मैं हृदय से तुम्हारी गणितीय प्रतिभा को पल्लवित करने का अवसर देने का इच्छुक नहीं होता।”
रामानुजन ने बहुत ही शालीनता से इसका प्रतिकार किया। अप्रैल के मध्य में उन्होंने लिखा— “लिटिलवुड के सुझाव पर आपने जो लिखा है, उसे पढ़कर मुझे बहुत कष्ट हुआ है। मुझे दूसरों के द्वारा अपने साध्यों के ले लेने की तनिक भी शंका नहीं है। इसके ठीक विपरीत, मेरे तरीके मेरे पास पिछले आठ वर्षों से हैं और मुझे कोई उनकी प्रशंसा करने वाला भी नहीं मिला है। जैसा मैंने अपने पिछले पत्र में लिखा है, आप में मुझे एक संवेदनशील मित्र की प्राप्ति हुई है और बिना किसी दुराव के वह सबकुछ, जो कुछ थोड़ा-बहुत मेरे पास है, मैं आपको दे देना चाहता‍ हू।”

इसके पश्चात् कई माह तक प्रो. हार्डी की ओर से कोई पत्र नहीं आया। रामानुजन के इंग्लैंड आने में रुचि न दिखाने तथा पत्र-व्यवहार से पैदा होने वाली कुंठा के कारण प्रो. हार्डी भी कुछ हताश और विमुख हो गए थे। अंत में जनवरी के आरंभ में रामानुजन को प्रो. हार्डी का एक लंबा पत्र मिला। उसमें उन्होंने रामानुजन के एक ‘प्रूफ’, जो उन्हें पहले भेजा गया था, की त्रुटियों के बारे में लिखा और बताया कि इन त्रुटियों के कारण कैसे वह सही मार्ग से भटक गए हैं। बाद में यह भी लिखा था—
“मैं आशा करता हूँ कि मेरी आलोचना से तुम हतोत्साहित नहीं होगे। मेरे विचार से तुम्हारा तर्क बहुत कुशल एवं असाधारण हैं। जो तुम सिद्ध करना चाह रहे थे, वह यदि सिद्ध हो जाता तो गणित के पूरे इतिहास में एक चमत्कार हो जाता। हाँ, एक बात और है— श्री ई. एच. नेविल, जो आजकल मद्रास में अध्यापन के लिए आए हैं, से संपर्क करने का प्रयत्न करना। वह मेरे ही कॉलेज से हैं। अध्ययन करने तथा काम करने में तुम्हारे लिए उनकी सलाह बहुमूल्य रहेगी।”
वास्तव में प्रो. हार्डी ने नेविल को यह कार्य सौंपा था कि वह रामानुजन को कैंब्रिज लाने का सफल प्रयत्न करें। श्री नेविल मद्रास विश्वविद्यालय में 'डिफरेंशियल ज्योमिट्री' पर इक्कीस व्याख्यान देने आए थे और आयु में रामानुजन के समतुल्य ही थे। इस आयु में ही वह ट्रिनिटी कॉलेज के फेलो चुने जा चुके थे। रामानुजन उनके व्याख्यान सुनने जाते थे।
पहले व्याख्यान के बाद ही रामानुजन का नेविल से मिलना हुआ। नेविल ने बाद में लिखा है कि वह रामानुजन से बहुत प्रभावित हुए। उन्हें रामानुजन की अंग्रेजी वार्त्ता धाराप्रवाह तथा सारगर्भित लगी।
कम-से-कम तीन बार वह रामानुजन के साथ उनकी नोट बुक को देखने के लिए बैठे। नेविल तब हक्के-बक्के रह गए जब तीसरी भेंट के पश्चात् रामानुजन ने उनसे कहा कि यदि वह चाहें तो आराम से देखने के लिए उनकी नोट-बुक अपने साथ ले जाएँ। नेविल ने लिखा है कि अपने प्रति इस विश्वास ने उन्हें चौंका दिया। उनका अनुमान था कि रामानुजन ने कभी अपनी नोट बुक किसी को नहीं दी थी, क्योंकि कोई भारतीय उसको समझ नहीं सकता था और कोई अंग्रेज विश्वसनीय नहीं था। वह सोचते थे कि रामानुजन मद्रास में मिले अंग्रेजों अथवा प्रो. हार्डी पर विश्वास नहीं करते हैं।
नेविल ने रामानुजन का विश्वास पा लिया था। अतः उन्होंने यह मानते हुए भी कि उत्तर नकारात्मक होगा, रामानुजन से कह ही डाला, “क्या आप कैंब्रिज चलना चाहेंगे?”
नेविल ने लिखा है कि तब मेरे आश्चर्य एवं आनंद का ठिकाना नहीं रहा, जब रामानुजन इस प्रस्ताव पर विचार करने को तैयार हो गए।