महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 16 Praveen kumrawat द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 16

[ इंग्लैंड जाने की पृष्ठभूमि वह स्वप्न जिसने यह साकार कर दिया ]
आखिर क्यों रामानुजन का मन इंग्लैंड जाने का बना?
जैसा कि पहले लिख आए हैं, रामानुजन की माता बहुत धार्मिक एवं रूढ़िवादी विचारों की महिला थीं और रामानुजन उनकी प्रत्येक बात का बहुत आदर करते थे। स्वयं रामानुजन भी जन्मजात रहस्यवादी रहे और देवी नामगिरी को अपनी अधिष्ठात्री तथा गणित के निष्कर्षों की साक्षात् प्रेरणा मानते थे।
रामानुजन के विदेश जाने में उनका तथा उनकी माता के हृदय परिवर्तन का बड़ा महत्त्व है। इस हृदय परिवर्तन के सामाजिक एवं रहस्यवादी कारण बताए जाते हैं। सामाजिक तौर पर निकट के पारिवारिक मित्र श्री के. नरसिम्हा आयंगर तथा प्रो. शेषु अय्यर, जो स्वयं बड़े रूढ़िवादी विचारधारा के थे, ने उनकी माँ पर प्रभाव डाला। साथ ही रामास्वामी अय्यर तथा रामचंद्र राव ने रामानुजन को जाने के लिए तैयार किया। इन प्रयत्नों के अतिरिक्त कदाचित् कुछ और भी रहस्यवादी घटनाएँ रहीं, जो उनके विदेश जाने के निर्णय में सहायक बनीं।
नेविल के अनुसार, “रामानुजन की माता ने एक स्वप्न देखा, जिसमें रामानुजन यूरोपीय व्यक्तियों से घिरे हैं और नामगिरी देवी ने उन्हें आदेश दिया कि अब वह अपने बेटे के मार्ग में उसके जीवन की ध्येय प्राप्ति में बाधा न बनें।”
एक अन्य प्राप्त विवरण के अनुसार, विदेश यात्रा का आदेश देवी नामगिरी से अपने मंदिर नामक्कल में, स्वयं रामानुजन को मिला था। दिसंबर 1913 के अंत में रामानुजन, उनकी माता, नारायण अय्यर और नारायण अय्यर का पुत्र नामक्कल के लिए रेलगाड़ी से चले। मार्ग में वह सेलम उतर गए और श्री रामास्वामी अय्यर, जिन्होंने ‘इंडियन मैथेमेटिकल सोसाइटी’ की स्थापना की थी, के घर पर रुके। वहाँ से रामानुजन अपने नगर कुंभकोणम गए और बाद में अकेले नारायण अय्यर के साथ नामक्कल के लिए प्रस्थान किया। मार्ग शायद बैलगाड़ी से तय किया। पहले वह नामगिरी देवी के मंदिर के द्वार पर, जहाँ भगवान् नृसिंह (विष्णु के दशावतारों में चतुर्थ अवतार) की मूर्ति है, पहुँचे।
तीन दिनों तक वे दोनों मंदिर के फर्श पर ही सोए। पहली दो रातों को कोई विशेष बात नहीं हुई। परंतु तीसरी रात को रामानुजन नींद से उठे और नारायण अय्यर को यह कहकर जगाया कि बिजली की कौंध के साथ उन्हें यह दिव्य आदेश मिला है कि वह विदेश यात्रा के विरुद्ध कोई मान्यता स्वीकार न करें।
श्री नारायण अय्यर एवं उनके परिवार की यह मान्यता है कि देवी नामगिरी के प्रति रामानुजन की प्रगाढ़ भक्ति के कारण यह होना ही था, क्योंकि रामानुजन की इंग्लैंड जाने की प्रबल इच्छा थी।
अब देवी का यह आदेश उनकी माँ को मिला अथवा उन्हें या फिर दोनों को, यह पूरी तरह निश्चित नहीं है। हाँ, इतना अवश्य है कि रामानुजन ने सदा अपने सभी कार्यों के पीछे दिव्य प्रेरणा को माना है।
विदेश यात्रा के प्रति सामाजिक मान्यता के अवरोध का बंधन समाप्त करने पर इंग्लैंड जाने की अन्य बातें तय करने का प्रश्न उठा। उन्होंने इस बारे में नेविल से कुछ बातें कीं—
रामानुजन— धन का क्या होगा?
नेविल— उसकी चिंता न करें। उसका समुचित प्रबंध हो जाएगा।
रामानुजन— मेरी अंग्रेजी अच्छी नहीं है।
नेविल— ऐसा नहीं है। वह ठीक-ठाक है।
रामानुजन— मैं शाकाहारी हूँ।
नेविल— उसका आदर किया जाता रहेगा।
रामानुजन— और परीक्षाएँ?
नेविल— कोई परीक्षा नहीं होगी।
22 जनवरी, 1914 को रामानुजन ने प्रो. हार्डी को एक पत्र द्वारा अपने इंग्लैंड आने के लिए स्वीकृति की पुष्टि कर दी। धन्यवाद देते हुए उन्होंने लिखा कि अब कुछ ही महीनों में वह इंग्लैंड पहुँच जाएँगे।
नेविल इस प्रगति से प्रसन्न थे; परंतु वह निश्चिंत नहीं थे। इस बीच रामानुजन के कुछ मित्र इस बात से अप्रसन्न थे कि वह व्यक्ति, जो मद्रास का गौरव है, कैंब्रिज चला जाएगा। नेविल ने इसका भी निराकरण किया। उन्होंने तर्क दिया कि रामानुजन का वहाँ जाना स्वयं रामानुजन के हित में है तथा इससे मद्रास एवं भारत। दोनों का ही गौरव और बढ़ेगा।
इतना होने पर भी इंग्लैंड जाने के निर्णय पर सब प्रसन्न नहीं थे। रामानुजन के ससुर चाहते थे कि वह यहीं रहकर गणित का अध्ययन करते रहें। उनकी माता को उनके स्वास्थ्य की चिंता थी, वहाँ के ठंडे मौसम के बारे में भी चिंतित थीं। शाकाहारी भोजन का ठीक प्रबंध वहाँ हो पाएगा— इसको लेकर वे सशंकित थीं। लौटने पर समाज में
प्रतिष्ठा न पाने का डर भी था। मद्रास में मिलने आई अंग्रेज महिलाओं को रामानुजन से हाथ मिलाते उन्होंने देखा था, जो उन्हें पसंद नहीं था। मन में अंग्रेज महिलाओं के प्रति कहीं-कहीं संदेह भी था।