MADHAV SINGH KI BAAVDI books and stories free download online pdf in Hindi

माधव सिंह की बावड़ी

रात के ठीक नौ बज चुके थे,सीकर शहर की दूरी अभी पचास किलोमीटर थी।

सुधाकर को घर जाने की आज जितनी जल्दी थी,ये कम्बख्त कार खराब हो जाने की वजह से उतनी ज्यादा देरी हो रही थी, शायद फ्यूल टैंक में कोई समस्या आ गयी थी इस वजह से थोड़ा सा चलने के बाद कार बंद हो रही थी।

वह ऑफिस की एक आपातकालीन मीटिंग में शामिल होने के लिए अपने शहर सीकर से जयपुर गया था,जहां से लौटते वक्त अंधेरा हो चुका था।

घर से पत्नी मोहिनी और बेटे हर्षित का अब तक कई बार कॉल आ चुका था।

दोनों शहरों के बीच में एकाध कस्बा और कुछ छोटे छोटे गांव ही पड़ते थे ,जिनमे कार मैकेनिक इतने समय मिलना तो असम्भव ही था।

तभी फिर से तेज झटके के साथ कार बंद हों गई और इस बार तो लाख कोशिशों के बावजूद स्टार्ट होने का नाम भी नही ले रही थी,सुधाकर झुंझला उठा था,समझ नही आ रहा था कि अब करे तो क्या करें।

जब कार का बोनट खोल के उसमे कारीगरी करने का हर प्रयास विफल रहा,तो आते जाते वाहनों को हाथ देकर रोकना चाहा पर अँधेरी रात में किसी अनजान की मदद भी आज के जमाने मे हर कोई नही करता।

कोई विकल्प न देख अब सुधाकर ने अपने मित्र चंद्रकांत शास्त्री को कॉल किया,चंद्रकांत ने शहर से मैकेनिक ले कर जल्द ही सुधाकर द्वारा बताई जगह पर आने का वायदा किया और सुधाकर को हिम्मत बंधाई।

चंद्रकांत और सुधाकर बचपन के मित्र थे,चंद्रकांत एक विशुद्ध ब्राह्मण परिवार से था एवं वेद,पुराण,तंत्र इत्यादि का उसको अच्छा ज्ञान था।

वर्तमान में वह सीकर से ही 'आत्माओ का अस्तित्व' विषय पर पी.एच.डी के लिए शोध कर रहा था।

सुधाकर के लिए यह विषय केवल कोरी बकवास था,वह आत्मा,भूत, प्रेत इन सब चीजों को बस कुछ धर्म के ठेकेदारों द्वारा उनके निजी फायदे के लिए उड़ाई गयी अफवाह मात्र मानता था,दोनों के बीच इस मुद्दे पर काफी बहस भी होती थी।

जब सुधाकर चंद्रकांत से प्रत्यक्ष सबूत दिखाने को कहता तो शांत और गम्भीर स्वभाव वाला चंद्रकांत वक्त आने पर सबकुछ सिध्द करने का आश्वासन दे डालता।

अच्छी बात यह थी कि इस मुश्किल घड़ी में कम से कम फोन तो साथ दे रहा था, सुधाकर ने अपनी वाट्सएप लोकेशन चंद्रकांत के साथ शेयर कर दी,और उसके आने का इंतज़ार करने लगा।

मई के महीने में तपती हुई रेत राजस्थान को और ज्यादा गर्म कर देती है,यही वजह है कि रात के समय भी सड़को पर वाहनों की आवाजाही भी कम ही रहती है।

आज अमावस्या थी,लगभग सुनसान सी सड़क पर घनघोर काले अंधेरे में पेड़ो के पत्तो से टकरा कर चलने वाली हवा,वातावरण में एक अजीब सा माहौल उत्पन्न कर रही थी।

सामने से आते हुए किसी वाहन से कोई हादसा न हो जाये,इस आशंका से सुधाकर ने सड़क के एक कोने में खड़ी कार को साइड लाइट ऑन कर के लॉक कर दिया।

पसीने से तरबतर और प्यास से बेहाल सुधाकर ने कार में पड़ी पानी की बोतल को एक बार फिर से उठा कर देखा,बोतल में एक बूंद भी पानी न था।

सुधाकर ने मोबाइल में गूगल मैप पर सर्च किया तो पता चला कि सात किलोमीटर आगे पलसाना कस्बा है,उसके अलावा कोई रेस्टोरेंट अथवा पेट्रोल पंप भी आसपास नही था।

वाट्सएप की लोकेशन शेयरिंग पर जा के देखा तो पता चला कि चंद्रकांत को आने में अभी लगभग एक घण्टा लगने वाला है ,
पानी की तलाश में सुधाकर बेचैन सा सड़क के आसपास टहलने लगा ।

जयपुर से सीकर के बीच NH52 के आसपास काफी बड़ी संख्या में वीरान हो चुकी पुरानी हवेलियां,किले एवं अन्य पुरानी इमारतों के खंडहर मौजूद है, सर्दियों के दिनों में तो यहां काफी पर्यटक आते रहते है,पर राजस्थान की चिलचिलाती गर्मी को झेलने के साहस हर कोई नही कर पाता ,तो गर्मी के इस मौसम में पर्यटकों का आना जाना बंद ही रहता है।

ऐसे ही एक पुरानी हवेली की ओर जाने का इशारा करते हुए एक दिशा सूचक बोर्ड सड़क के उस पार सुधाकर को दिखाई दिया,जिस पर लिखा था 'माधव सिंह की हवेली और बावड़ी-दूरी 500 मीटर', सुधाकर ने इस उम्मीद के साथ उस ओर बढ़ना प्रारम्भ किया कि कम से कम पीने का पानी तो उपलब्ध हो ही जायेगा।

तभी दूर से आते किसी चारपहिया वाहन की तेज हेडलाइट में सड़क के बीचोबीच किसी जानवर की सुर्ख लाल रंग की दो चमकती हुई आंखे देख कर सुधाकर ठिठक गया, यह एक काफी बड़ी बिल्ली थी, तेज रोशनी में भी एकदम काली दिख रही थी,बिल्कुल कोयले की तरह।

वाहन के पास आते ही बिल्ली ने सरसरी नजरो से सुधाकर की ओर घूर कर देखा,उसकी आंखें दहकते हुए अंगारे की तरह प्रतीत हो रही थी ,अपने पंजो को सड़क पर रगड़ने के बाद नुकीले दांतो को बाहर निकाल कर भींचते हुए म्याऊऊ की तेज गुर्राहट के साथ छलांग लगाकर सड़क से उस पार कहीं ओझिल हो गई।

अमावस्या की काली रात में काली बिल्ली का इस प्रकार सामने आना कम से कम शुभ संकेत तो न था,पर कुदरत के इस इशारे को नजरअंदाज करते हुए सुधाकर ने उस हवेली की ओर जाने वाले संकरे रास्ते पर बढ़ना प्रारंभ कर दिया था

थोड़ी दूर चलने के बाद उसी रास्ते में दिखाई दे रहे प्रज्ज्वलित होते प्रकाश से अंदाजा लगाया जा सकता था कि मंजिल अब पास ही है।

रास्ते के दायीं तरफ लगे हुए पुराने पीपल के पेड़ के नीचे कुछ दिखाई दिया था सुधाकर को,उसे लगा कि शायद कोई बड़ा सा जानवर है ,कदमो का रुख उस ओर मोडा तो पता चला कि कोई इंसान अर्धनग्न अवस्था मे ही पेट के बल औंधा लेटा है, उसके लम्बे,मोटे, चिकटे बालो व वेषभूषा से प्रतीत हुआ कि कोई साधू है।

शायद इस व्यक्ति को यहां की कुछ जानकारी हो यह सोचकर सुधाकर ने उसे सोया हुआ समझकर जगाने के प्रयास में अपना हाथ आगे बढ़ाया ही था कि अचानक से वह उछलकर सुधाकर के ठीक सामने खड़ा हो गया, लम्बे बालो से उसके चेहरे का अधिकांश भाग ढका हुआ था,इस अप्रत्याशित प्रतिक्रिया से कभी न डरने वाला सुधाकर भी एकदम से घबरा गया था,अभी वह कुछ समझ पाता कि उस साधू जैसे बुजुर्ग व्यक्ति ने जोर जोर से हंसना चालू कर दिया,ठहाके लगाती हुई राक्षसी हंसी देखकर सुधाकर के रोंगटे खड़े हो गए ,फिर अचानक से वह चुप हो गया।

सुधाकर ने खुद को संभालते हुए तसल्ली दी कि शायद कोई पागल है,हिम्मत बांध कर पूछा "बाबा,आप कौन है, पानी मिलेगा यहां हवेली के आसपास"
यह सुनते ही थोड़ी देर तो उस साधू ने ऊपर से नीचे तक सुधाकर को एकटक देखा फिर अचानक से रोना चालू कर दिया और उल्टे पांव वहां मौजूद खंडहरों की ओर भागने लगा...जाते जाते समय उसके तीव्र रुदन के बीच उसकी चीत्कार युक्त आवाज इस सुनसान माहौल में चारो ओर गूंज रही थी "क़ोईई नहीईई बचेगा......"

सुधाकर अब पूरी तरह यकीन कर चुका था कि यह कोई पागल व्यक्ति ही है,चलते चलते वह जगह भी आ गयी...बड़े से बोर्ड पर लिखा था 'माधव सिंह की हवेली और बावड़ी' साथ में स्पष्ट रूप से एक चेतावनी भी अंकित थी 'रात्रि के समय प्रवेश पूर्णतः वर्जित है' यह पढ़ कर मन ही मन मुस्कुराता हुआ सुधाकर बुदबुदाया "अभी तक तो ऐसी अफवाह सिर्फ भानगढ़ के बारे में ही सुनी थी,यहां भी बेवकूफ बनाया जाता है ये आज पता चला।"

एक काफी पुरानी एवं बड़ी हवेली की आंशिक रूप से खंडहर में तब्दील हो चुकी इमारत प्रवेश द्वार के पास खम्भो पर लगी सोलर लाइट के प्रकाश में साफ दिख रही थी, पर प्रवेश द्वार के पास बने क्वार्टर गार्ड में लगा ताला बता रहा था कि इस समय कोई भी कर्मचारी यहां मौजूद नही है।

क्वार्टर गार्ड के पास ही एक वाटरकूलर दिखा,पर पास जाने पर पता चला कि यह काफी समय से बंद पड़ा है।
इतनी बड़ी हवेली में पानी की कुछ न कुछ व्यवस्था तो होगी,इसी उम्मीद के साथ सुधाकर आगे बढ़ा।

एक लकड़ी का बना हुआ विशालकाय पुराना दरवाजा इस हवेली में अंदर प्रविष्ट होने का एकमात्र रास्ता था, बड़ी जिज्ञासा के साथ दरवाजे को जैसे ही उसने स्पर्श किया... चर्ररर की तेज आवाज के साथ यह खुल गया।

कभी कभार अधिक साहस दिखाना भी हमें मुसीबत में डाल देता है,अंदर जाते वक्त सुधाकर ने यह सोचना भी मुनासिब न समझा की लकड़ी और लोहे के समन्वय से तैयार सैकड़ो वर्ष पुराना भारीभरकम दरवाजा उसके जोर लगाए बिना ही स्पर्श मात्र से कैसे खुल गया।

ऐसा प्रतीत हो रहा था कि कोई नकारात्मक शक्ति सुधाकर की बुद्धि,विवेक सब पर अपना एकाधिकार करके उससे लगातार दुस्साहस करवाते हुए अपनी ओर आने को प्रेरित कर रही थी।

अंदर काफी बड़ा एक मैदान था,जिसके बायीं तरफ हवेली के जीर्ण हो चुके अवशेष थे एवं दाई तरफ एक और रास्ता था जिसके करीब लगे हुए संकेतक बोर्ड पर पर दिशासूचक चिन्ह के साथ 'माधवसिंह की बावड़ी' लिखा हुआ था।

बावड़ी का इस्तेमाल राजपूतकाल में जल के भंडारण के लिए किया जाता था,इसमें कुँए की अपेक्षा अधिक मात्रा में पानी का संग्रहण किया जा सकता था,इसके चारों ओर नीचे तक जाने के लिए सीढ़ियां भी बनी होती है,जिससे जलस्तर कम होने के बाद भी पानी निकाला जा सकता था, पुराने महल अथवा हवेलियों में जल आपूर्ति का मुख्य स्रोत यह बावडी ही हुआ करती थी।

इन बावड़ियों का उपयोग युध्द अथवा अन्य आपातकाल में भी किया जाता रहे इसको ध्यान में रखकर महल के किसी गुप्त स्थान को जोड़ती हुई एक सुरंग भी बनाई जाती थी जो इन बावड़ियों में खुलती थी।

पेड़ो के पत्तो के सूखे ढेर पर चलते हुए सुधाकर के पैर अचानक से रुक गए, पीछे किसी के चलने की आवाज का अहसास हो रहा था, जैसे कोई भारी भरकम इंसान या जानवर बिल्कुल पीछे चला आ रहा हो।

सुधाकर तेजी से पलटा ,तो सामने तो कुछ नही दिखा पर एक चमगादड उसके बिल्कुल करीब से उड़ता हुआ गुजर गया।

वैसे सुधाकर की हिम्मत को दाद देनी पड़ेगी, इस डरावने माहौल में एक सुनसान व निर्जन हवेली में अमावस्या की काली रात में अकेले जाना ही अपने आप मे बड़ी बात थी,और फिर वह तो एक निश्चिन्त पर्यटक की तरह सिर्फ पानी की तलाश के बहाने हवेली के सम्पूर्ण प्रांगण में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाता चला जा रहा था।

बाहर लगे सोलर बल्ब की बहुत हल्की सी रोशनी हवेली के इस भाग में पड़ रही थी,सुधाकर को थोड़ी दूर चलने के बाद एक बहुत बड़ी पुरानी बावड़ी दिखाई दी।

बावड़ी में यदि पानी होगा तो वह अपनी प्यास बुझा सकता है यह सोचकर सुधाकर को इतनी दूर इस वीरान जगह पर आने का अपना उद्देश्य पूर्ण होता दिखाई दिया।

बावड़ी की दीवार पर बाहर की ओर एक शिलालेख लगा हुआ था,उसको पढ़ने के लिए सुधाकर को अपने फोन की फ़्लैश लाइट के अतिरिक्त प्रकाश की आवश्यकता पड़ी।

'इस बावड़ी का निर्माण 1120 ईस्वी में राजपूत काल के दौरान पलसाना रियासत के जागीरदार हनुमन्त सिंह जी ने हवेली के निर्माण के साथ ही करवाया था,बावड़ी से एक गुप्त रास्ता हवेली में निकलता था,जो कि अब शासन द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया है।
मुगल काल मे इस हवेली पर कई बार आक्रमण हुए पर हर बार वीर राजपूतो की मुट्ठी भर सेना ने मुगलो को धूल चटाई।
वर्ष 1576 में पलसाना राज्य का एक गद्दार मंत्री ने मुगलो से मिलकर इस हवेली एवं बावड़ी के गुप्त रास्ता समेत सारे भेद उनको बता दिए,फिर एक दिन रात्रि के समय मुगलो ने आक्रमण किया,तत्कालीन जागीरदार माधव सिंह के नेतृत्व में इस बावड़ी के गुप्त मार्ग से लड़ने के लिए बाहर निकलती राजपूत सेना को मुगलो ने दोनों ओर से घेर कर हमला कर दिया,वीरतापूर्वक लड़ रहे जागीरदार और सभी सैनिकों को वीरगति प्राप्त हुई,उनकी लाशो के ढेर से यह बावड़ी और गुप्त मार्ग दोनों पट गए थे।

किवंदती है कि तब से इस पूरे क्षेत्र में उन राजपूत राजाओं की आत्माएं विचरण करती रहती है,हवेली पर विजय प्राप्त करने के बाद भी उन आत्माओ ने मुगलो को यहां शासन करने नही दिया,फलस्वरूप यह हवेली खंडहर में परिवर्तित होती गयी।

तब से इस जगह पर रात में आने वाले कई पर्यटकों एवं स्थानीय लोगो की लगातार अज्ञात कारणों से हो रही मौतों की वजह से वर्ष 1999 में सरकार द्वारा बावड़ी के गुप्त मार्ग को हमेशा के लिए अवरुद्ध करके इस क्षेत्र को रात्रि में प्रवेश हेतु निषिद्ध घोषित कर दिया गया ।'

भूत,प्रेत,आत्माओ पर कभी विश्वास न करने वाला सुधाकर भी इस शिलालेख पर अंकित दावे को पढ़ कर चौंक गया था।

पर उसका सूखा गला पानी से तर हो जाने के लिए आतुर था,सुधाकर ने बावड़ी की ओर अपनी नजरें दौड़ाई, बावड़ी में नीचे जाने के लिए सीढ़िया दिखाई दे रही थी और कुछ ही नीचे बह रहा पानी भी अंधेरे में साफ दिखाई दे रहा था,गौर से सुनने पर पानी के बहने की आवाज भी इस निर्जन बावड़ी के आसपास गूंज रही थी।

सुधाकर ने अपने कदम आगे बढ़ाए,उसके हाथ मे पानी की खाली बोतल थी।

पर कुछ तो अजीब था यहाँ पर ऊपर से दिखने पर पानी और सुधाकर के मध्य बस कुछ सीढ़ियों की ही दूरी दिखाई पड़ रही थी,पर पानी मिलने की खुशी में सुधाकर ने महसूस ही नही किया कि वह कितने नीचे आ चुका है।

काफी चलने के बाद सुधाकर पानी के बिल्कुल समीप था,मोबाइल का फ़्लैश जला कर घुटनो के बल बैठा सुधाकर बोतल को पानी मे डुबोने का प्रयास करने ही वाला था कि अचानक से उसकी नजर फ़्लैश की पानी मे पड़ रही रोशनी पर पड़ी,
पानी मे सुधाकर का प्रतिबिंब साफ दिखाई दे रहा था, पर डरने वाली बात यह थी कि उसके साथ ठीक पीछे एक इंसान का प्रतिबिंब और भी दिख रहा था।

सुधाकर ने घबरा के पीछे देखा तो कोई भी नही था,पर एक और बड़ा आश्चर्यमिश्रित डर उसका इंतजार कर रहा था, सुधाकर इतने नीचे आ चुका था कि ऊपर सीढ़ियों के अलावा कुछ भी दिख नही रहा था।

वापस पानी की ओर पलटा तो फिर एकदम से हीहीहीहीहीsssss ठहाकों के साथ हंसने की जोरदार आवाज से बावड़ी की सारी दीवारे गूंज उठी, डर के नीचे देखा तो उसके पैरों के ठीक बगल में ही कोई निर्वस्त्र काला,भयानक सा इंसान बैठा हुआ दिखा,जो अपनी गर्दन को घुमा कर सुधाकर की ओर घूरने लगा

यह घटना किसी भी बहादुर इंसान को भयभीत करा के उसके होश उड़ा कर रोंगटे खड़े करा देने के लिए पर्याप्त थी।

चारो ओर के खौफनाक मंजर को आस पास से आती हुई घुघरू और चूड़ियों की जोरदार आवाज ने अब और भी डरावना बना दिया था।

अब जैसे सुधाकर नींद से जाग गया हो, चिल्लाते हुए दौड़ कर सीढ़ियां चढ़ते हुए ऊपर की ओर भागा।

अनिष्ट की आशंका और कुदरत के लगातार हो रहे इशारे अब जाकर सुधाकर की समझ मे आये, पर अब देर हो चुकी थी।

चारो ओर के खौफनाक मंजर को आस पास से आती हुई घुघरू और चूड़ियों की आवाज ने अब और भी डरावना बना दिया था।

अभी वह दो तीन सीढ़ियां ही चढ़ पाया था कि किसी मजबूत चीज से जा टकराया
डर से फक्क सफेद पड़ चुके चेहरे के साथ सुधाकर ने सामने देखा तो पाया कि उसकी आंखों के ठीक सामने खड़ा साढ़े छह फुट का एक शख्स सफेद भयानक चेहरा,आंखों से नीचे लटकती हुई रक्तरंजित पुतलियां,नुकीले दांत और हंसने की तेज आवाज के साथ सुधाकर पर टूट पड़ने के लिए उत्सुक दिख रहा था।

सुधाकर की हिम्मत जबाब दे चुकी थी,डर की वजह से उसका शरीर जोर से काँपा,कदम लड़खड़ाये और वह सीढ़ियों पर ही जा गिरा।

सीढ़ियों पर जिंदा लाश की तरह पड़े सुधाकर को अपनी आंखों पर भरोसा ही नही हो रहा था कि जिन बातों पर वह कभी विश्वास ही नही करता था वह सब कुछ उसके साथ प्रत्यक्ष हो रहा है।

एक डरावनी हॉरर फिल्म की तरह यह पूरा घटनाक्रम चल रहा था।

सुधाकर के शरीर मे अब इतनी हिम्मत भी न बची थी कि वह खड़ा हो सके,खुद को बचाने के लिए डर से चिल्लाना चाहता था पर उसकी आवाज गले से निकलने से पहले ही कहीं गुम हो गयी।

जोर जोर से हो रहे अठ्ठाहस,चीत्कार,चूड़ियों और घुघरू की आवाज के साथ साथ कई महिलाओं के सामूहिक सुबक सुबक कर रोने की आवाजों से सुधाकर के कान फ़टे जा रहे थे,एक साथ सैकड़ो लोगो की उपस्थिति उसे अपने चारों ओर महसूस हो रही थी।

इस खौफनाक परिस्थिति में किसी भी इंसान को कुछ ही सेकेंड में ह्रदयघात होना तय था,अब एक दर्दनाक मौत की उम्मीद के साथ सुधाकर जीने की आस भी पूरी तरह छोड़ चुका था।

सुधाकर की आंखे उसको लम्बी बेहोशी में डुबोने के लिए शायद अंतिम बार बंद हो ही रही थी,तभी जोरदार धमाके की आवाज के साथ तेज रोशनी उसको अपने चारों ओर दिखी।

घुघरू, चूड़ियों की आवाज एकदम से गायब हो चुकी थी,कुछ लोग रोशनी के साथ उसकी ओर बढ़ रहे थे।

और फिर "सुधाकर, तुम ठीक हो?" की चिरपरिचित आवाज सुनाई दी,पर इस से ज्यादा देर तक अपने होश को सुधाकर सम्भाल न सका और बेहोश हो गया।

यह चंद्रकांत था जो अपने गुरु बाबा विश्वनाथ जी के साथ वाट्सएप लोकेशन शेयरिंग के द्वारा सुधाकर को ढूंढता हुआ यहाँ पहुँचा था।

चंद्रकांत इस क्षेत्र के चप्पे चप्पे से वाफिक था,जब सुधाकर ने अपनी लोकेशन शेयर की थी वह तभी समझ गया था कि रात में इस बावड़ी के आसपास कुछ गड़बड़ जरूर हो सकती है, चंद्रकांत के साथ मे भूत प्रेत बाधा से निपटने वाले एवं वेदों में निपुण उसके गुरु विश्वनाथ जी भी थे,जो कि चंद्रकांत के पड़ोस में स्थित दुर्गा माँ के मंदिर में पुजारी भी थे,एवं उसके शोध कार्य मे भी मदद कर रहे थे।

यहां आने के बाद पहले चंद्रकांत ने सड़क किनारे रखी कार के पास मैकेनिक को छोड़ा,कार का बोनट खुला हुआ था,तो मैकेनिक ने अपना काम चालू कर दिया था ।

फिर इस हवेली की ओर सुधाकर को बचाने अपने गुरु जी के साथ बढ़ दिया था।
इस तरह उसने अंततः अपने दोस्त की जान बचा ली...

"चंदू बेटा जल्दी निकलो इस हवेली से,हमने माँ दुर्गा के जिस मन्त्र की शक्ति के प्रहार से इन आत्माओ को रोका है,उसका असर सिर्फ पन्द्रह मिनिट ही रहेगा, इस बीच हमे इस क्षेत्र से हर हाल में निकलना होगा, यह राजपूत सैनिकों की आत्माएं बहुत शक्तिशाली है आज तक कोई भी तांत्रिक इनको मोक्ष नही दिला पाया है,यहां रात में आने वाले प्रत्येक शख्स को यह अपना दुश्मन समझकर उन्हें अपनी रियासत से दूर रखती है,अगर यह हमारे निकलने से पहले जाग गयी तो हम में से कोई भी जीवित नही बचेगा।"
गुरु जी ने चंद्रकांत को चेतावनी देते हुए कहा।

उसके बाद चंद्रकांत और गुरुजी ने सुधाकर को बेहोशी की हालत में उठाया और उसे लेकर निकल दिए।

बाहर आकर मैकेनिक ने बताया कि कार अब सही हो चुकी है।

बिना देरी किये सभी लोग वहां से तुरन्त ही शहर के लिए निकल चुके थे।

पूरे चार दिन बाद जब सुधाकर को होश आया तो अपने सारे परिवार को आंखों के सामने पाकर ईश्वर को धन्यवाद दिया,और सीधा मिलने चला गया चंद्रकांत से...जो अगर समय पर न आया होता तो पता नही क्या होता।

चंद्रकांत ने जैसे ही सुधाकर को देखा तो उसने मुस्कुराते हुए प्रश्न किया "क्यो भाई,यह सबूत विश्वास करने के लिए पर्याप्त था या अभी भी सबूत चाहिए।"

निरुत्तर हो चुके सुधाकर के मुँह से बस इतना निकला "सॉरी चंदू भाई।"

इस घटना से सुधाकर को आत्माओ के अस्तित्व एवं देश के कई रहस्यमयी पुरातन स्थलों पर उनकी मौजूदगी का प्रत्यक्ष साक्ष्य मिल चुका था,एक बहुत ही कड़वे एवं खौफनाक अनुभव के साथ, जिसकी याद उसको निश्चित ही जीवन भर रहेगी।











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