कुलधरा - A Haunted Village anirudh Singh द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

कुलधरा - A Haunted Village

इंसान की नियति से बढ़कर कुछ भी नही हो सकता,
हम यूं भी कह सकते है कि हम नियति के हाथों की एक कठपुतली है जिसको वो हमारे जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रत्येक क्षण अपनी अंगुलियों पर नचाती है।

नियति से लड़ना असम्भव है,इस बात का अहसास मुझे अभी हुआ जब मैं अपनी मृत्यु से बस चंद कदम दूर जमीन पर असमर्थ पड़ा हुआ अंतिम सांसे गिन रहा हूँ।

पत्थरो के कई नुकीले लम्बे टुकड़े मेरे शरीर को आरपार कर चुके है,शरीर के घावों में से निकलते खून के असंख्य फब्बारो ने आसपास की सूखी जमीन को नम कर दिया है,
भीष्म पितामह की भांति सैया पर पड़ा हुआ मैं अब असहनीय वेदना की चरम सीमा को पार कर चुका था,

हमेशा के लिए बिछड़ने जा रहे वियोग रस में डूबे मेरे जिस्म और रूह भी अंतिम बार एक दूसरे का आलिंगन करने को आतुर थे।

शिथिल पड़ चुके मेरे मस्तिष्क एवं हमेशा के लिए बंद होती मेरी आँखों मे पिछले कुछ समय के दौरान हुए घटनाक्रम का चित्रांकन बार बार हो रहा था।

मेरा नाम है सिद्धार्थ श्रीवास्तव,उम्र तीस साल,
टूरिज्म ब्रांच से एमबीए करने के बाद जब जॉब में मनमुताबिक संतुष्टि न मिली तो कुछ नया करने का दिल किया, मेरा मानना था कि अपनी नियति या डेस्टिनी मैं खुद लिख सकता हूँ।

अगर आपको अपने करियर के साथ ही दिल में दबी वर्षो पुरानी ख्वाहिश पूरी करने का मौका भी मिल जाये तो इस से बेहतर कुछ हो ही नही सकता।

मेरी सोच थी कि भूत प्रेतों के नाम पर सदियों से लोगो को बरगलाया जाता रहा है, मेरा मानना था कि कुछ जगहों पर नकारात्मक शक्ति की मौजूदगी तो होती है पर यह सिर्फ एक एहसास होता है,भूत प्रेत नही।

जब भी कभी मैं आत्माओ,भुतहा जगहों का महिमा मण्डन करते हुए लेख,
इनको रहस्मयी बताने वाले टीवी शो एवं डॉक्यूमेंट्री इत्यादि देखता तो दिल मे एक ही इच्छा होती कि काश मैं दुनिया के सामने इन झूठे दावों की पोल खोल कर उनके दिमाग मे जबरदस्ती ठूस दिए गए इस अंधविश्वास के कीड़े को मार सकूं।

मैने 'भूत,प्रेत और अंधविश्वास' नाम से एक यूट्यूब चैनल शुरू किया और फिर शुरू हो गया मेरा अभियान...दुनिया मे अतृप्त आत्माओ के मिथ्या अस्तित्व के खिलाफ।

दुनिया की नजरों में जो भी हॉन्टेड जगह होती थी,मैं कैमरे के साथ वहां जाता था,
उस जगह पर रुक कर वहां के हर एक पहलू,हर एक घटना को अपनी डॉक्यूमेंट्री में शामिल करके ,
उस जगह को हॉन्टेड बताने वाले तमाम झूठ का पर्दाफाश करते हुए उस वीडियो को अपने चैनल पर अपलोड कर देता था।

लोगो द्वारा मेरे वीडियो काफी पसन्द किये जा रहे थे,मेरे इस अनोखे साहसिक काम की चर्चा हर ओर हो रही थी।

पहले अकेला काम किया बाद में जब मुझे अप्रत्याशित सफलता मिलने लगी तो कैमरा मैंन जय और एक हेल्पर गोपाल भी मेरी टीम में शामिल हो गए।

भानगढ़ का किला,जतिंगा घाटी,रामोजी फिल्मसिटी सहित भारत की सभी कथित हॉन्टेड जगहों पर जाकर मैं अपनी डॉक्यूमेंट्री बना चुका था,
एवं इन सभी जगहों पर भूतप्रेत का बच्चा भी न होने का दावा दुनिया के सामने कर चुका था।

कुछ जगहों पर कुछ अजीब सा महसूस जरूर किया था मैंने ,पर जैसा कि पहले बता चुका हूँ ये सब निगेटिव एनर्जी का रिएक्शन मात्र था

इसी श्रृंखला में मेरा अगला और सबसे महत्वपूर्ण ड्रीम प्रोजेक्ट था देश के सबसे खतरनाक एवं शापित गांव के रूप में विख्यात 'कुलधरा' पर डॉक्यूमेंट्री तैयार करना,
जिससे इसके भूतहा होने का खंडन दुनिया के सामने किया जा सके।

वर्षो से किये जा रहे दावों के अनुसार राजस्थान के जैसलमेर जिले का खंडहरों में तब्दील हो चुके 970 मकानों वाले कुलधरा गांव को 13 वीं शताब्दी में बड़े ही सुंदर व व्यवस्थित ढंग से बसाया गया था,

इस गांव के लोग वैदिक कर्मकांड,धार्मिक अनुष्ठानों में विशेष रूप से पारंगत होने के साथ ही बहुत ही नेक ह्रदय के थे,
19 वीं शताब्दी की शुरुआत इस गांव पर कहर बन कर टूटी ,
जैसलमेर राज्य के दुराचारी मंत्री सलीम सिंह के अत्याचारों का बोलबाला पूरे क्षेत्र में था,
इस गांव की महिलाओं पर उसके द्वारा डाली गई बुरी नजर का परिणाम सारे गांव को उसकी क्रूरता का दंस झेल कर चुकाना पड़ा।

सलीम सिंह इस गांव की भव्यता पर मोहित हो गया था,एवं यहां खुद का महल तैयार करवाना चाहता था।

बहुत से पुरुषों एवं महिलाओं को गांव के बीचोबीच जिंदा जलवा कर,लड़कियों का बलपूर्वक अपहरण कर लिया गया।

जान बचाकर गांव छोड़कर जाते समय शेष बचे कुछ सिध्द पुरुषों ने अपने व्यथित ह्रदय से गांव को हमेशा वीरान रहने का शाप दे डाला।

शापित हो जाने के कारण गांव के सारे प्राकृतिक जलस्रोत सूख गए, गांव में राजमहल बनाने आये कारीगरों एवं सैनिकों की रहस्यमयी तरीके से मौत हो गयी।

इस शाप का प्रभाव पूरे जैसलमेर राज्य पर भी हुआ ,राज्य में चारो ओर अकाल,अशांति,महामारी फैल गयी ,
सलीम सिंह एवं जैसलमेर के राजा भी सत्ता से बेदखल हो गये।

वर्तमान में राजस्थान सरकार ने कुलधरा को पर्यटक स्थल तो घोषित कर दिया है,पर वहां निवास करने अथवा रात्रिविश्राम की अनुमति किसी को भी नही है।

कुलधरा गांव की इन कहानियों को मैं बचपन से सुनता आ रहा हूँ,
पर आज मेरे पास मौका था किवंदतियो को प्रमाणों के साथ असत्य सिध्द करने का।

मेरी टीम पूरी तरह तैयार थी, दिल्ली से जैसलमेर की दूरी लगभग 750 किमी है, अपनी कार से जय और गोपाल के साथ किया गया यह सफर काफी रोमांचक था।

अठारह घण्टे के सफर के बाद हम सभी जैसलमेर पहुचे
सुबह के दस बजे थे , दिन में होटल में रुक कर थकान दूर करने के बाद शाम को 5 बजे हम कुलधरा के लिए निकले।

जैसलमेर से इस गांव की दूरी मात्र तीस किमी है, मई के महीने में शाम के समय भी तपती हुई रेत हमे विचलित कर रही थी।

डॉक्युमेंट्री में हम अपने सफर का वर्णन भी करते है इस वजह से जय के द्वारा रास्ते के दृश्य भी कैमरे में रिकॉर्ड किये जा रहे थे।

गांव पहुँचने से पहले ही अपने यूट्यूब चैनल पर सब्सक्राइबर्स को आज रात के इस खतरनाक अभियान के बारे में सूचना दे चुका था मैं।

थोड़ी ही देर में एक बड़े से लोहे के फाटक को पार करते हुए हम गांव में थे।

गांव के नाम पर बस मकानों के खंडहर ही दिखाई दे रहे थे दूर दूर तक,
अभी उजाला था तो गांव की झलक अपने दर्शकों को दिखाने के लिए हमने गलियों में घूमते हुए रिकॉर्डिंग स्टार्ट कर दी थी।

वैसे गांव कितना खूबसूरत रहा होगा इस बात का अंदाजा तो व्यवस्थित एवं सुंदर ढंग से बने मकानों को देखकर हमने लगा लिया था।
बड़े बड़े बरामदे ,उनमे लगे स्तम्भो पर की गई नक्काशी,मकानों की दीवारों पर जड़े सफेद संगमरमर के पत्थरों पर उकेरे गए देवी देवताओं के मनभावने चित्र
कुलधरा की इस आकर्षक स्थापत्यकला के मुरीद हो गए थे हम तीनों।

हर सौ मीटर की दूरी पर कुआँ और गांव के बिल्कुल मध्य में विशालकाय बावड़ी भी बनी थी,पर पानी की एक बूंद भी नही थी इनमे।

उजाले में भी एक अजीब सी खामोशी महसूस हो रही थी इस गांव में,
इस से पहले किसी भी पुराने किले या अन्य खण्डहर को भी इस प्रकार वीरान महसूस नही किया था कभी।

धीरे धीरे अंधेरा हो चुका था, अपनी कार के पास थोड़ा सा आराम करने के बाद साथ मे लाये हुए खाना खाकर हम लोग गांव में फिर से गये।

रात का समय सबसे महत्वपूर्ण होता है हमारी डॉक्यूमेंट्री के लिए,

'रात में जो भी इस गांव में रुकता है अगली सुबह नही देख पाता' इस किवंदती को दुनिया के सामने झूठा साबित करने के लिए हमारा नाइटविजन कैमरा पूरी तरह तैयार था।

रेगिस्तान के बीचों बीच स्थित इस गांव के खंडहर रात में चांद की हल्की दूधिया रोशनी से नहा गए थे, गांव के पत्थर से बने रास्तो पर अपनी डॉक्यूमेंट्री को होस्ट करते हुए सबसे आगे मैं चल रहा था,मेरे ठीक पीछे गोपाल और सबसे अंत मे हम पर कैमरे का फोकस बना कर जय चला आ रहा था।

मौसम अचानक से कुछ खराब सा होने लगा था, तेज रेतीली आंधी से बचने के लिए हम लोग एक बिना छत वाली चाहरदीवारी के अंदर प्रवेश कर गए।

राजस्थान में इस प्रकार के रेत भरे तूफान आना आम बात थी,पर हम थोड़ा खुश थे क्योंकि गर्मी से कुछ हद तक निजात मिली थी।

यह रेतीला तूफान इतना सामान्य सिध्द नही हुआ जितना सोचा था,शायद यह तो कोई चेतावनी थी जिसको हमने समझना जरूरी नही समझा।

तेज हवा के बीच हम सभी को मकान के बाहर कुछ महिलाओं के आपस में वार्तालाप करने की हल्की आवाजे सुनाई दे रही थी,
हमने सोचा शायद आसपास के गांव की महिलाएं रास्ता भटक गई हो ,मदद के लिए हम तेजी से बाहर निकले ,

आंधी में कुछ नही दिख रहा था,पर आवाजे साफ सुनाई दे रही थी ,महिलाएं राजस्थानी भाषा मे कुछ बाते कर रही थी।

मैंने तेज आवाज लगाकर उन्हें अपने मौजूद होने का अहसास करवाकर मदद करनी चाही पर वहां से कोई उत्तर नही आया।

अचानक से तूफान थम गया, आंखे मलते हुए चारो ओर देखा तो हम तीनों चौंक पड़े।

हम गांव के बीचों बीच बावड़ी के सामने खड़े थे, जबकि हमने तूफान से बचने जिस मकान में शरण ली थी वह गांव की शुरुआत में ही था, पर बिना चले 500 मीटर की दूरी हमने कैसे तय कर ली।
शायद कुछ दिखाई न देने की वजह से हम कन्फ्यूज हो गए हो यह बात हमने एक दूसरे को समझा कर तसल्ली देने की कोशिश की।

तूफान की वजह से कैमरे में भी कुछ रिकॉर्ड न कर पाए थे हम।

केसरिया बालम आवोनी, पधारो म्हारे देश जी
पियाँ प्यारी रा ढोला, आवोनी, पधारो म्हारे देश

किसी महिला की आवाज में राजस्थान में स्वागत गीत के रूप में प्रसिद्ध इस गीत की सुरीली आवाज हमें साफ सुनाई दे रही थी,

छपाक........ अभी हम तीनों गाने की दिशा में आगे बढे तभी बावड़ी से बहुत तेज आवाज आई, पानी मे किसी बड़े पत्थर या किसी के कूदने की आवाज।

आश्चर्यचकित हो कर हम बावड़ी की ओर मुड़े, देखा तो बावड़ी अभी भी सूखी ही पड़ी थी......फिर ये आवाजे।

इस घटना से गोपाल अब डर रहा था,उसने मुझसे लौट चलने का बहुत आग्रह किया,पर मुझ पर तो लोगो के दिमाग से अंधविश्वास दूर करने का भूत सवार था।

कैमरे में रिकॉर्ड करते हुए हम फिर से आगे बढ़ ही थे कि जय चीखता हुआ गिर पड़ा,कैमरा भी हाथ से छूटकर बड़े से पत्थर से जा टकराया।

एक भयंकर काला सांप उसके पैर से लिपटा हुआ था,
उसके मुंह से निकल रहा झाग बता रहा था कि यह सांप उसे डस चुका है,
हमने बड़ी मुश्किल में सांप को दूर भगाया।

ऐसी जगहों पर जाते समय हम अपने बैग में सांप के जहर का एंटीडोट भी साथ लेकर चलते है,हमने तुरन्त ही उसे इंजेक्शन दिया,पर इस सांप के जहर का इलाज हमारा एंटीडोट भी नही कर पा रहा था।

इस घटना से मैं और गोपाल सिहर गए थे,जय की हालत लगातार खराब हो रही थी,अब हमारा लक्ष्य हर हाल में उसे बचाना था,अपने टूटे कैमरे को उठाकर जय को लेकर हम अपनी कार की ओर बढे।

हमारे ठीक सामने एक महिला पीठ किये हुए खड़ी दिखाई दी
सुरीली आवाज में पधारो म्हारे देश......गाते हुए।

इस से पहले कि हम कुछ समझ पाते चारो ओर से भयानक ठहाकों की आवाजें गूंजने लगी।

वह महिला हवा में उड़ती हुई हमारे सिर के ठीक ऊपर आ कर धुंए में बदल गयी।

सारा गांव तेजी से कांपने लगा,जैसे भूकम्प आ रहा हो।

खण्डहर हो चुके मकानों से निकल कर ढेर सारे पुरुष महिलाओं की कुछ धुंधली सी आकृतियां यहां वहां विचरण करने लगी,

पुरुष कानो में जनेऊ एवं धोती कुर्ता धारण किये हुए थे एवं महिलाएं पारम्पारिक प्राचीन राजस्थानी परिधान।

हमारी आंखों के सामने घट रहा इस घटनाक्रम ने कुछ ही सेकेंड में आत्माओ के न होने की मेरी मानसिकता को चूर चूर कर दिया था।

ऐसा महसूस हो रहा था कि सारा गांव पुनः जीवित हो गया हो,हम डर से कांप रहे थे,गोपाल की तो अब तक पेंट भी गीली हो चुकी थी।

आग की लपटों से घिरा हुआ एक इंसान दौड़ता हुआ मेरी तरफ आया और मेरे कुछ समझने से पहले ही मेरे शरीर को पार करता हुआ बावड़ी में कूद गया।

शायद इस गांव से जुड़ी सारी किवंदतिया पूरी तरह सच थी।

मकानों की दीवारों से लाल खून का तेज रिसाव होने लगा ,जिसके बहाने से सड़के भी लाल हो गयी थी।

हम टूटे कैमरे से कुछ भी रिकॉर्ड नही कर सकते थे,और फिर अब इतनी हिम्मत भी न बची थी।

तभी हमारे कैमरामैन जय ने अपनी अंतिम सांस ले ली,उसकी धड़कन बंद हो चुकी थी.....जय अब हमारे बीच नही रहा.... मेरी कुलधरा आने की जिद उसकी जान ले चुकी थी।

बुरी तरह जल्दी से अपनी कार के पास पहुंचना चाहते थे,पर एक विशालकाय जीवित मुर्दा हमारे ठीक सामने जमीन को फाड़ कर आ खड़ा हुआ और अट्टहास लगाने लगा।

हमने पीछे भागना चाहा पर जमीन से निकले कुछ पंजो ने मेरे और गोपाल के पैरों को जकड़ लिया।

वह वीभत्स से चेहरे वाला सात फुट का लंबा चौड़ा खौफनाक मुर्दा जमीन पर अपने भारीभरकम पैर पटकता हुआ हमारे बिल्कुल नजदीक आ गया था।

हम फ़टी हुई आंखों से अपनी मौत को सामने आता हुआ देख रहे थे,
मजबूत पंजो की कैद से छूटने का हर प्रयास विफल हो चुका था हमारा।

गोपाल रोने के साथ जोर जोर से चीखता ,चिल्लाता हुआ मदद की गुहार लगा रहा था।

मुर्दा रूपी दैत्य ने सड़क पर पड़ी जय की लाश को देखा तो उस पे टूट पड़ा ,अपने लंबे लम्बे नाखूनों से उसकी छाती और पेट को फाड़ दिया,
पेट के अंदर मुंह डाल के पहले तो जी भर के उसका खून पिया फिर हाथ से सारी आंतो को खींच कर एक झटके में निकाल लिया।

जय की आंतो को माला की तरह गले मे पहन चुका था वो दैत्य।

न चाहते हुए भी इस दृश्य को देखना पड़ रहा था हमे,भय से चीख चीख कर अब तक गला बैठ चुके थे हमारे,गोपाल तो अब अपनी मानसिक स्थिति भी खो चुका था।

जय के शरीर को चीरफाड़ने के बाद उसके सिर को मरोड़ मरोड़ के उखाड़ लिया था उस दैत्य ने, एक छोटे बच्चे की तरह खून से लथपथ सिर को उछाल उछाल कर खेल रहा था वो।
अपने नाखूनों से जय की पुतलियां निकाल कर बड़े चाव से खाने के बाद,वो दैत्य जोर जोर से ठहाके मारने लगा।

इस से ज्यादा कुछ देखने की स्थिति अब मेरी भी नही बची थी,
फिर भी शरीर के किसी कोने में बची खुची हिम्मत को इकठ्ठा करके बैग में रखा तेजधार वाला चाकू निकाल कर मैने उन पंजो को काट दिया,जो मुझे व गोपाल को जकड़े थे।

कार की तरफ जा नही सकते थे तो जान बचाने के लिए हम दूसरी ओर भागे,

गांव की गलियां, मैदान, सभी सुनसान जगह अब भूतिया चहलपहल से आबाद हो गयी थी।

तभी अचानक से गोपाल जमीन पर गिर पड़ा, और घिसटता हुआ बावड़ी की ओर जाने लगा ,
कोई अदृश्य शक्ति उसको चुम्बक की तरह अपनी ओर खींच रही थी,मैं चाह कर भी उसे बचाने में असमर्थ था।

छपाक....की आवाज और गोपाल की दर्दनाक चीख इस बात की गवाही दे चुकी थी कि वह इस दुनिया से जा चुका है।

मेरे पास सिवाय पश्चाताप के अब कोई भी मार्ग शेष न था,
चारो ओर सिर्फ मौत का खौफनाक मंजर पसरा हुआ नजर आ रहा था।

तभी बुरी तरह जले हुए चेहरे के साथ कुछ स्त्रियों ने मुझे घेर लिया, वह जोर जोर से खिलखिला रही थी, मेरी स्थिति अब भागने की भी न बची थी।

"तुम उस दुष्ट मंत्री के साथी हो न, हमें ले जाने आये हो यहां से....पर यह हमारा गांव है...हमारे पुरखो का गांव है हीहीहीहीही...हम सब मिलकर तुम्हारे रक्त से इस गांव की मिट्टी की प्यास बुझाएंगे आज......हीहीहीहीही।"

उनमें से एक स्त्री ने डरावनी आवाज में मुझे चेतावनी देने के साथ मे जोर का धक्का दिया ,
मैं हवा में उड़ता हुआ कुछ दूर जा कर एक पुराने चबूतरे पर पेट के बल जा गिरा,

इस टूटे फूटे चबूतरे में से कई तेजधार वाले लम्बे नुकीले पत्थर निकले हुए थे, जो मेरे शरीर के कई हिस्सो को चीर कर आर पार हो गए।

मैने उठने की बहुत कोशिश की पर जख्मो से निकलते रक्त और असहनीय दर्द ने मुझे लाचार कर दिया था।

तेज खिलखिलाहट की आवाज अभी भी मेरे कानों में पड़ रही थी।

और फिर धीमे धीमे मेरी आँखें बंद हो गयी और आंखों के सामने घना अंधेरा छा गया।

मेरा मस्तिष्क इस बात को स्वीकार कर चुका था कि ये आंखे अब कभी नही खुलेगी,
पर जैसा कि मैने शुरुआत में बताया कि नियति से बढ़कर कुछ भी नही,

एक माह बाद मेरी आँखें फिर खुली ,जैसलमेर के रॉयल हॉस्पिटल के आईसीयू में,
मेरी फैमिली सामने खड़ी थी।

मैं हतप्रभ था,उठने की कोशिश की तो पता चला रीढ़ की हड्डी हमेशा के लिए टूट चुकी है।

मेरे बेहोश होने के बाद क्या क्या हुआ जब इस बारे में अपनी फैमिली वालो से पता किया तो पता चला कि मेरे द्वारा यूट्यूब पर कुलधरा जाने की खबर जैसलमेर प्रशासन को लग गयी थी, कुछ दूर में लगे आर्मी कैम्प के जवान हमे रोकने के लिए कुलधरा पहुंचे थे जो वहां से लेकर आये।

उनके अनुसार हम तीनों अत्यधिक नशे में कार चला रहे थे,जो कि कुलधरा के एक खण्डहर से टकरा गई,हादसे में जय और गोपाल की मौत हो गयी एवं मैं घायल अवस्था मे मूर्छित पड़ा था।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी दोनों के शरीर मे अत्यधिक एल्कोहल पाया गया था।

शायद कुलधरा गांव ने मुझे जानबूझकर मरने नही दिया कि मैं अपनी गलती सुधार सकू,

कुछ दिन के बाद जैसलमेर के अस्पताल से दिल्ली में अपने घर पहुचने के बाद व्हील चेयर पर सरकते हुए मैने यूट्यूब पर एक और वीडियो अपलोड किया ,जिसमें मैने अपने तमाम सब्सक्राइबर्स को इस खौफनाक सफर से मिले अनुभव के कारण उत्पन्न हुए नए विचारों से अवगत कराया।
"आत्माओ का होना अंधविश्वास नही है ,यह तो एक अटूट सत्य है, लोग जिस दर्द व अधूरी इच्छाओं के साथ जब मृत हो जाते है तो अपनी एक अलग दुनिया बसा लेते है..इसके जिम्मेदार सिर्फ हम लोग है, जो अपने निजी स्वार्थों के प्रयोजन के लिए इंसान हो कर भी दूसरे कमजोर इंसानों पर अत्याचार,उत्पीड़न करने की सदियों पुरानी हरकतों से अभी तक बाज नही आये है, सताए गए असहाय लोग ग़ैरप्राकृतिक ढंग से जब मृत्य को प्राप्त हो जाते है तो मजबूरन उनको इस अलग दुनिया मे रहना पड़ता है,और फिर उनके कोप का प्रकोप आम लोगो पर भी पड़ता है....इसलिए कृपया इंसानियत को पहचानिए, इंसानी गुणों को अपने अंदर विकसित करिए, किसी को भी इतना दर्द,इतना दुख मत दीजिए कि वो टूट जाये और मृत्यु के बाद इस रूप में सदियो तक भटकता रहे।"

(समाप्त )