जिंदगी और सफर नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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जिंदगी और सफर



मानव खोजी अपनी खोजी प्रबृत्ति के कारण जगह जगह की सभ्यता, संस्कृति, संस्कार ,भाषा, बोली और वातावरण ,इतिहास को जाजने के लिये एक जगह से दूसरी जगह जाता आता रहता है साहित्य में यात्रा संस्मरण लिखे जाते है जो समचीन समाज को सार्थक संदेश तो देते ही है कुछ जानने सीखने का अवसर भी प्रदान करते है ।।
जयेंद्र के पिता पंडित जसराज एक साधारण परिवार के मुखिया थे जयेंद्र तीन भाइयों निकुंज ,नीरव में सबसे छोटा था बचपन से ही जयेंद्र का पढ़ने लिखने में कम घूमने फिरने में अधिक मन लगात जब गांव के आस पास कोई मेला या सांस्कृतिक कार्यक्रम होता वह पिता जसराज और भाइयों निकुंज और नीरव को बिना बताए ही चला जाता कभी कभी हप्तों महीनों घूमता घर वाले परेशान होते उसको बिभिन्न स्थानों पर खोजते परेशान होते जब कुछ पता नही लगता तो भगवान भरोसे छोड़ बैठ जाते तब तक जयेंद्र घूम फिर कर लौट आता एक दो बार तो घर वाले जयेंद्र की इस हरकत से परेशान हुए जब संमझ गए कि उसकी आदत है तो ज्यादा परेशान नही होते उसके भाई पढ़ने में मन लगाते वही जयेंद्र का मन पढ़ने में विल्कुल नही लगता और घूमने फिरने में अधिक व्यस्त रहता जहाँ भी जाता वहाँ की विशेषता खास चीजों को वह संजोय कर रखता उधर भाई निकुंज और नीरव ने अपनी शिक्षाएं पूरी करकेअच्छी सरकारी सेवाओं में चयनित हो गए निकुंज पब्लिक प्रोसिक्यूटर तो नीरव भारतीय रेल में अच्छे पद पर पदास्थापित हुआ जयेंद्र किसी तरह से स्नातक स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की एक तो नौकरी में उसका मन नही लगता और मिली भी नही पण्डित जसराज के दो बेटों निकुंज और नीरव के प्रति ज्यादे संवेनशील रहते तो जयेंद्र को नाकारा और बोझ समझते उससे बात भी कम से कम ही करते इष्ट मित्र भी जब आते तो निकुंज और नीरव की तारीफ करते और जयेंद्र पर ध्यान तक नही देते पण्डित जसराज भी जयेंद्र की यदि भूल से भी चर्चा कर दे तो उसे कोसते समय अपनी गति से चल रहा था एक दिन पण्डित जसराज ने जयेंद्र से कहा बेटे तुम्हारे भाईयों ने अपनी जिंदगी के रास्ते चुन लिये है और फक्र से आगे बढ़ते हुये मेरा नाम भी रोशन कर रहे है दोनों की शादियां भी अच्छे परिवारो में हो गए है तुम्हारी तो शादी भी नही हो सकती क्योंकि तुम जैसे नाकारा को अपनी बेटी कौन देगा कुछ भी हो जब बाप ऐसे विचार अपनी संतान के लिये रखता है तो संतान के लिये जीवन कठिन और चुनौतीपूर्ण हो जाती है जयेंद्र और जसराज में बात चीत का शिलशिला कब पराकाष्ठा को पहुंच गया दोनों को भान नही रहा भादों की काली रात भयंकर बरसात में कब जयराज इतने क्रोधित हो आबे से बाहर हो गए और उन्होनें अपना आपा खोते हुये जवान बेटे पर हाथ उठा दिया जयेंद्र पिता के तिरस्कार के तमाचे को हृदय से स्वीकार किया और बोला पिता जी सही कहा आपने मैं आपके तिरस्कार का ही पात्र हूँ भईया लोंगो ने आपको आपकी चाहत का सब कुछ दिया है और मेरी वजह से सिर्फ क्लेश कष्ट और अपमानजनक स्थितियों का ही सामना आपको करना पड़ा है अतः आज हम जीवन की यात्रा का शुभारंभ करने जा रहे है इस भयंकर भादो की काली बरसात की रात से देखते है मुझे क्या हासिल होता है और जयेंद्र भयंकर बरसात में घर छोड़ अपनी यात्रा या यूं कहें जीवन यात्रा के लिये निकल पड़ा संतान दुख दे या सुख लायक हो या नायलायक माँ बाप को उसकी चिंता बराबर रहती है क्रोध में जयेंद्र पर हाथ उठाने के बाद पण्डित जसराज को लगा कि जवान बेटे पर हाथ उठा कर गलती किया जिसका पश्चाताप उनको धिक्कारने लगा पत्नी तृषा ने भी जवान बेटे पर हाथ उठाने पर क्रोधित थी विवश वेवश पण्डित जसराज ने तृषा को सांत्वना दिया कि चिंता न करो भाग्यवान जैसे हम लोग जयेंद्र के लिये परेशान हो रहे है जब उंसे इस बात का एहसास होगा लौट आएगा
बरसात थमने का नाम नही ले रही थी इसी घनघोर बारिश की भयावह रात में ज्येन्द जीवन की महत्वपूर्ण यत्रा पर निकल चुका था वदन पर एक धोती और कुर्ते के सिवा कुछ नही था वह भी बरसात में भीगने के कारण गीली जयेंद्र पैदल बढ़ता जा रहा था इधर पण्डित जसराज और तृषा पूरी रात जयेंद्र के लौटने की राह देखते रह गए लेकिन वह लौट कर नही आया सुबह वारिश बन्द हो चुकी थी लेकिन सूरज अभ भी बादलों की ओट में छुपा था उधर जयेंद्र गांव से नजदीक करीब दस किलोमीटर पर स्थिति रेलवे स्टेशन पहुंचा और जो ट्रेन उंसे खड़ी दिखी उस पर सवार हो गया बरसात के कारण बहुत भीड़ भाड़ नही थी ट्रेन चल दी अपनी रफ़्तार से अपने गंतव्य को जयेंद्र को पता नही था कि ट्रेन कहाँ जाएगी वह किनारे बैठ गया ट्रैन एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन रुकती कुछ देर रुकती आगे बढ़ जाती सुबह तीन बजे ट्रेन में जयेंद्र बैठा था और दिन के चार बजने वाले थे रात को ही घर पर खाना खाने के बाद पिता के क्रोध का शिकार होकर उन्ही से आशीर्वाद लेकर घर से निकला था भूख भी बहुत सता रही थी मगर उसके पास ना तो पैसा था ना ही कोई खाना खिलाने वाला तभी ट्रेन में टी टी आया और बोला टिकट जयेंद्र बोला साहब टिकट तो नही है टी टी ने सवाल किया ट्रेन में कहां बैठो हो और कहाँ जाना है जयेंद्र ने ईमानदारी से बता दिया कि वह छपरा बिहार से सवार हुआ है और जहाँ तक ट्रेन जाएगी वहाँ उतर जायेगे टी टी फिर बोला यह ट्रेन हाबड़ा से चलती है और
पंजाब अमृतसर तक जाएगी और तुम्हे हाबडा से टिकट का चार्ज और पेनाल्टी देनी होगी जयेंद्र बोला साहब टिकट नही है टी टी बोला टिकट नही है पैसे नही है जाना कहाँ है पता नही ट्रेन क्या तुम्हारे बाप की प्रॉपर्टी है या तो पगल या मनबढ़ ठीक है अगले स्टेशन तुम उतर जाना मैं तुन्हें एक मौका दे रहा हूँ जयेन्द्र का बड़ा भाई रेलवे में ही उच्चपद पद पर था जिसका परिचय देना उंसे गंवारा नही था जयेन्द्र ने कहा टी टी तुम मुझे चाहे जो कह लो जो भी व्यवहार करना हो मेरे साथ करो लेकिन मेरे बाप का नाम मत लो क्योकि तुम्हारा भी बाप होगा इतना सुनते टी टी आबे से बाहर हो गया और बोला कि तुम्हें अगले स्टेशन उतरने का मौका देकर हम गलती कर रहे थे अब तुम्हे अगले स्टेशन आर पी एफ के हवाले करते है बात विवाद में ट्रेन फिरोजाबाद पहुंची टी टी ने उसे जयेन्द्र को आर पी एफ के हवाले कर दिया रात भर हवालात में रहने के बाद
सुबह उसकी पेशी न्यायालय में हुई और उसे दो माह के लिये जेल की सजा हो गयी और उसे जेल भेज दिया गया घर से निकलने के चौथे दिन उसे भोजन नसीब हुआ जब उसे कैदी के रूप में जेल पंजीकृत कर लिया गया।।
इधर पण्डित जसराज तृषा और निकुंज नीरव ने रिश्ते नाते और जहां जहां भी जयेन्द्र के मिलने की संभावना थी तलाश किया मगर कही पता नही चल सका एफ आई आर नही दर्ज कराया क्योंकि पहले भी जयेन्द्र बहुत बार घर छ साथ माह बाद लौटता था।इधर जयेन्द्र जेल में एक सप्ताह में जेलर महिमा चौधरी का मन जीत लिया महिमा की प्रथम नियुक्ति जेलर के रूप में हुई थी और उस पर कोई क्रिबिनल चार्ज नही थे अतः महिमा को भी जयेन्द्र से किसी तरह के खतरनाक आचरण का भय नही था उन्होंने जयेन्द्र को किसी भी बैरक में आने जाने की छूट दे रखी थी दुर्दान्त अपराधी भी जयेन्द्र की बात मानते और इज़्ज़त करते जयेन्द्र की आत्मा से आवाज आई जयेन्द्र तेरे यात्रा का पहला पड़ाव जेल है यही तू आपराधिक मनोदशा, जेल ,सजा और सजा मजा या मौत का इंतजार विषय पर दुनियां को सच्चाई बता यही ईश्वर की इच्छा है ।।जयेन्द्र ने कलम खोली और रेल यात्र से जेल यत्रा स्मरण लिखना शुरू किया जेल के साधारण अपराधी हो या दुर्दान्त सबसे मिलता उनकी सच्चाई जानने की कोशिश करता और फिर महिमा चौधरी से उनके अपराध इतिहास को न्यायिक प्रक्रियाओं की फाइलों में खोजता अपराधियों की खुद बयानी और उनके न्यायिक इतिहास के मध्य चूक सच्चाई की तलाश करता इस काम मे कब दो माह बीत गये पता ही नही चला जयेन्द्र को लगा कि जेल में अभी उसका काम पूरा नही हुआ है अतः उसने जेलर महिमा से सजा बढ़ाने की तरकीब और सुझाव लिया जेलर महिमा ने कहा बड़ा अजीब आदमी है बड़े से बड़ा अपराधी जेल से बाहर जाना चाहता है और यह जेल में रहना चाहता है महिमा ने कहा जयेन्द्र हम नही जानती तुम जेल में क्यो रहना चाहते तब तक जेलर के कार्यकाल ने जेल पुलिस का हवलदार लखन सिंह पहुंचा महिमा के ही इशारे पर जयेन्द्र ने उठकर लाखन के दाहिने बाए दोनों गाल पर हल्के हल्के हाथों से चांटा मारने जैसा स्पर्श किया जेलर महिमा ने पूरे घटना की वीडियो रिकॉर्डिंग किया और दूसरे दिन न्यायालय में जयेन्द्र को प्रस्तुत करा दिया विद्वान न्यायाधीश ने साक्ष्य और सबूतों के बिना पर जयेन्द्र को एक वर्ष की सजा सुनाई अब जयेन्द्र को जेल में एक वर्ष और मिल गया उसने अपराध अपराधी न्याय जेल और सजा पर अपना शोध स्मरण लिखा कब एक वर्ष पूरे होने वाले थे उसको पता नही जेल में उसका महिमा के अतिरिक्त एक ही विश्वास पात्र था शाहिल जिसको झूठे हत्या आरोप में सजा हुई थी एक वर्ष की बढ़ी सजा पूर्ण होने से दो माह पूर्व जयेंद्र ने महिमा से अपने स्मरण जेल यात्रा से जेल यात्रा को छपवाने की अपील की महिमा ने बहुत ना नुकुर करने के बाद जयेन्द्र के यात्रा स्मरण रेल यात्रा से जेल यात्रा के प्रकाशन में छुपे तौर पर मदद किया ।।इधर एक वर्ष का समय बीतने के बाद पण्डित जसराज ने जयेन्द्र की गुमशुदगी की रिपोर्ट थाने में दर्ज करा दी सभी थानों रेलवे स्टेशन टी बी दूरदर्शन रेडियो पर जयेन्द्र के गुमसुदगी की खबर प्रसारित होती जल्द ही पता भी चल गया कि जयेन्द्र फिरोजाबाद जेल में है जब तक उसे लेने पण्डित जसराज ,नीरव निकुंज माँ तृषा फिरोजाबाद बाद जेल पहुंचे तीन दिन पूर्व जयेन्द्र जेल से रिहा होकर जाने किधर चला गया जाते समय महिमा ने उससे कहा मैं अपने दिल कैद खाने में तुम्हे कैद करने के लिये तुम्हारे अपराध का इंतजार करूँगी ।पण्डिन्त जसराज नीरव ,निकुंज और तृषा निराश लौट आये उनको इतना ही संतोष था कि जयेन्द्र जीवित है तो कभी न कभी लौटेगा ही।इधर जयेंद्र की प्रथम यात्रा स्मरण रेल यात्रा से जेल यात्रा प्रकाशित हुई किताब ने रातों रात धूम मचा दिया और करोड़ो की रॉयल्टी आने लगी जयेन्द्र ने रॉयल्टी को तीन हिस्से में पहले ही बाटने का समझौता प्रेस से किया था पचास प्रतिशत भाग जेल के कैदियों की शिक्षा और स्वस्थ पच्चीस प्रतिशत माँ बापू को और शेष पच्चीस प्रतिशत से आधा महिमा को और आधा भाग स्वय के लिये रखा पण्डित जसराज को जयेन्द्र के रेल यात्रा से जेल यात्रा स्मरण से लाखों रुपये मिलने लगे जहाँ भी जाते वही उनको लोग जायेंद्र के पिता के तौर पर जानते पहचानते जब कोई पण्डित जसराज से कोई कहता कि पण्डित जी कितने भाग्यशाली है जिनके बेटे जसराज ने इनकी प्रतिष्ठा को चार चांद लगाया है पण्डित जसराज के कानों में जयेन्द्र को मारे चाटे की आवाज़ की गूंज और भयंकर बरसात की भादो की रात का नज़ारा मानस पटल पर उभर आते ।इधर जयेन्द्र की रेल यात्रा से जेल यात्रा स्मरण की सच्चाई के आधार पर शाहिल का केश रीओपन हुआ और साक्ष्य और सच्चाई की कसौटी पर उसके सजा की विवेचना की गयी और विद्वान न्यायाधीश ने निर्णय दिया की कभी कभी न्याय भी वास्तविक अंधा हो जाता और उसे कागजी सच्चाई जो मनगढ़ंत भी हो सकती है के अलावा वास्तविक सच्चाई नज़र नही आती शाहिल इसी का शिकार हो गया न्यायालय उसके जेल में बिताए दिन वापस नही कर सकता मगर सरकार से सिपारिश करता है कि सरकार उंसे इज़्ज़तदार नागरिक की हर सुरक्षा जरूरतें मुहैय्या कराए ।।शाहिल जेल से रिहा हुआ और उसने अपना ऑटोमोबाइल पार्ट का व्यवसास सुरु किया और अपने फर्म का नाम रखा जयेंद्र आटोपार्ट्स अपनी मेहनत और लोंगो के प्यार विश्वास से दिन दूनी रात तरक्की के सीढियां चढ़ता जा रहा था इधर जयेन्द्र अपने यात्रा पर पुनः निकल पड़ा और छत्तीसगढ़ बस्तर की जंगलों आदिवासी क्षेत्र में पहुंचा जब वह फिरोजाबाद बाद जेल से निकला और कुछ दूर पर उसे एक दस वर्ष का एक लावारिस लड़का मिला जो भीख मांग रहा था जयेन्द्र को उस बच्चे में एक होनहार राष्ट्र नागरिक दिखा उसको साथ ले लिया उस बच्चे का नाम था रमेश अब जयेन्द्र और रमेश रतलाम बांसवाड़ा आदि अनेको स्थान भ्रमण करते हुये छत्तीसगढ़ गढ़ आदिवासियों के बीच पहुंचे जयेंद्र और रमेश को जंगल के शुरू में ही एक पुराने शिव मंदिर मिला जिसको अपना निवास और अपने यात्रा का एक अहम पड़ाव बनाया और आदिवासियों के रहन सहन पर अध्ययन करना शुरु किया आदिवासी इलाकों में जाते जहां उन्हें बहुत कठिनाईयो का सामना करना पड़ता फिर भी उनके रहन सहन और देश समाज से उनके विरक्त भाव की गहराई को समझने की कोशिश करते आदिवासी विरोध का सामना करते और उन्हें शिक्षा दीक्षा के लिये प्रेरित करने की कोशिश करते लेकिन आदिवासी अपने मूल संस्कृति को छोड़ जयेन्द्र के साथ आने के बजाय तरह तरह से उंसे एव रमेश को तंग करते एक दिन तो हद ही हो गयी रात को जयेन्द्र रमेश मन्दिर में सो रहे थे आदि वासियों ने आक्रमण कर दिया और धारदार हथियारों से उस पर वार करना शुरू कर दिया लगभग मरणासन्न हो चुके जयेन्द्र पर अंतिम वार करने ही वाले थे कि शेर के दहाड़ने की आवाज बहुत नजदीक से आने लगी आदिवासी जयेन्द्र को छोड़ कर शेर की तरफ उसकी तलाश में निकल पड़े इधर जयेन्द्र के शरीर से खून बहुत निकल चुका था और सिर्फ मृत्यु की औपचारिकता भर ही रह गयी थी सुबह हुआ रमेश भयाक्रांत थर थर जयेन्द्र के पास बैठा कांप रहा था और रोये जा रहा था तभी नक्सल विरोधी दस्ते की नज़र रमेश पर पड़ी रमेश के पास जब नक्सल विरोधी दस्ता आया और देखा कि एक नवजवान लगभग मरनासन्न पड़ा है सिर्फ सांस चल रही है तो उसे फौरन जीप से अस्पताल पहुंचाया रमेश भी उनके साथ था डॉक्टरों ने तुरन्त बिना विलम्ब जयेन्द्र की चिकित्सा शुरू की और गहन चिकित्सा कक्ष में भर्ती किया डॉक्टरों की बहुत मेहनत के बाद जायेंद्र को होश आया उसने अपना पूरा बयान दिया दूसरे दिन देश की मीडिया में जायेंद्र के साहस संकल्प की खबर बड़े जोर शोर से छपी सोसल मीडिया पर केवल और केवल जायेंद्र छाया हुआ था महिमा ने भी जब सोसल मीडिया पर जयेन्द्र की खबर देखी तो उससे रहा नही गया उसने छत्तीसगढ़ प्रशासन के सम्पर्क सूत्र को प्राप्त करने के बाद स्वय बात किया अब छत्तीसगढ़ एव बस्तर के जिला प्रशासन ज्यादा संजीदगी से जयेन्द्र की देख भाल करने लगा जयेन्द्र लग्भग तीन महीने बाद स्वस्थ होकर पुनः आदिवासी क्षेत्र के उसी शिव मंदिर पहुँच गया जहाँ आदिवासी उंसे मार देने के लिये आमादा थे जयेन्द्र की जिद को देखते हुये छत्तीसगढ़ प्रशासन ने शिव मंदिर के परिसर में ही नक्सल विरोधी चौकी की स्थापना कर दी अब जयेन्द्र ने उस जंगल मे जसराज तृषा विद्यालय की स्थापना किया और छोटे छोटे आदिवासी बच्चो को पढ़ाने का प्रायास करते रहे पुनः जीवन मृत्यु के मध्य अनेक संघर्ष हुए लेकीन पुलिस एव प्रशासन के सकारात्मक सगयोग से धीरेधीरे मेहनत रंग लायी और जयेन्द्र का जसराज तृषा विद्यालय चल पड़ा और धीरे धीरे रमेश की उम्र भी पच्चीस वर्ष हो चुकी थी और जयेन्द्र की चालीस वर्ष की जायेंद्र ने अपनी इस यत्रा का भी एक स्मरण लिखा शीर्षक था आदि मानव की जीवन यत्रा स्मरण जिसमे जयेन्द्र ने आदिवासी संस्कृति अंधविश्वास रहन सहन अशिक्षा क्रूरता और देश के समाज से उनकी घृणा का यथार्थ वर्णन किया था जयेन्द्र की यह पुस्तक भी सारे रिकॉर्ड तोड़ चुकी थी इस किताब की रॉयल्टी का पचास प्रतिशत भाग जसराजतृषा विद्यलय को पच्चीस प्रतिशत भाग पिता एव माँ को एव शेष पच्चीस प्रतिशत भाग का आधा महिमा को एव आधा भाग स्वय के लिये निर्धारित किया जयेन्द्र देश मे इतना प्रतिष्टित हो चुका था कि उसे विभिन्न विश्वविद्यालयों में अतिथि संकाय के रूप में बुलाया जाने लगा और विदेशी लोग भी जिज्ञासा बस उससे मिलने आते रमेश एक मात्र उसके पास था जिसे पढा लखा कर एक अच्छा योग्य नागरिक बना चुका था स्वय की दृढ़ता और संकल्प के हथियारों से सुसज्जित कर चुका था।विद्यकय दिन दूनी रात चौगुनी तरक़्क़ी करता आदिवासी अंचल में शैक्षणिक क्रांति बन चुका था बीस वर्षों की चुनोतिपूर्ण मेहनत के बाद आदिवासी देश समाज की मुख्य धारा में जुड़ने लगे पण्डिन्त जसराज तृषा विद्यालय का प्रथम छात्र दानु एक नामचीन चिकित्सक बन आदिवासी क्षेत्र में स्वास्थ के लिये कार्य कर रहा था उसने अपने स्वस्थ मिशन का नाम ही रखा था जयेन्द्र स्वस्थ मिशन जब सारा देश जयेन्द्र से परिचित था तो कैसे संभव था कि पण्डिन्त जसराज तृषा नीरव निकुंज जयेन्द्र से अनजान रहते पूरा परिवार महिमा जो अब
उपमहानिरीक्षक जेल बन चूंकि थी के साथ बस्तर के उन जंगलों में पहुंचे जहाँ जयेन्द्र रहता था जयेन्द्र ने माँ बाप और भाइयों का बहुत आदर सत्कार किया जव माँ बाप और भाइयों ने उससे घर लौटने को कहा तब बोला यदि उस कली अंधेरी भयानक रात को पिता जी का आशीर्वाद नही मिला होता तो मैं अपनी यात्रा कभी प्रारम्भ ही नही कर पाता जन्म से जीवन औए मृत्यु एक यात्रा ही तो है जो इंसान एक परिवार समाज और दायरे के सुख दुख में रह करता है और चलता जाता है और एक दिन वहा पहुंच जाता जहा से उंसे लौटना नही होता मैंने इसमें बहुत नही थोड़ा परिवर्तन अपने पूज्य पिता और माँ के आशीर्वाद से किया है मैने सीमित रिश्ते समाज के दायरे को तोड़ समग्र मानव समाज मे अपनी जीवन यात्रा शुरू की है और चलता जा रहा हू और कहा लौटना बचपन लौट नही सकता ,बिता समय लौट नही सकता चाहे मेरा हो या आप सभी का हम सब अपनी अपनी मनपसंद यात्रा के मुसाफिर है अतः मेरे लौटने का प्रश्न ही नही उठता भाईयों एव माँ बाप ने बहुत समझने की कोशिश की मगर जयेन्द्र लौटने को तैयार नही हुआ अंत मे विवस वे सभी स्वय होकर लौट गए लेकिन महिमा नही मानी उसने कहा जयेन्द्र जब तुम जेल से रिहा होकर जा रहे थे तब मैंने कहा था कि मैं तुम्हारा इंतज़ार करूँगी आज इन्ज़ातर खत्म हुआ तुमने अपनी यात्रा स्मरण की पुस्तकों की रॉयल्टी का जो हिस्सा हमे दिया था वह बैंक में सुरक्षित है मैं अपने पद से त्याग पत्र देकर आयी हूँ तुम्हारे भविष्य की यात्रा स्मरण में साथ रहने जयेन्द्र महिमा के समक्ष कुछ भी नही बोल सका महिमा उसके साथ उसके यात्रा की संगिनी बन गयी अकेला चला था मगर अब रमेश और महिमा के साथ साथ लाखो लांगो की आशाओं का एक परिवार था जिनके साथ यात्रा करता और स्मरण लिखता जा रहा था जयेन्द्र।।

कहानीकार-- नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश