तमाचा - 36 ( द्वंद्व ) नन्दलाल सुथार राही द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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तमाचा - 36 ( द्वंद्व )

"अभी तक मैं इक्कीस साल का भी नहीं हुआ। अभी मेरा अध्ययन चल रहा है। ना तो आपने मेरे से पूछा । फिर कैसे भला मेरा रिश्ता आपने तय कर लिया।" राकेश ने अपनी माँ पर झल्लाते हुए कहा।
"बेटा , तो अभी तेरी शादी थोड़ी कर रहे है। सिर्फ बात की है उनसे। प्रिया बहुत अच्छी लड़की है। फिर क्या पता वैसी लड़की मिले या नहीं?" माँ ने राकेश को प्यार से समझाते हुए कहा। राकेश के पिता अभी बाज़ार गए हुए थे। पीछे रेखा ने आख़िर अपने बेटे से शादी की बात कर ही ली।
"मुझे नहीं पता? बाद में मिले या नहीं मिले? मुझे अभी शादी और सगाई कुछ नहीं करनी है। आप उन्हें मना कर दो वरना मैं घर छोड़ के चला जाऊँगा।" राकेश यह धमकी देकर अपने कमरे में चला गया।
"बेटा, सुन तो सही ! " रेखा ने उसे रोककर बात करनी चाही पर वह न रुका अपने कमरे में जाकर थोड़ी देर बाद घर से बाहर की ओर चला गया।
रेखा की धड़कन जोर से धड़कने लगी। अब वह क्या करें? उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। एक तरफ़ बेटा धमकी देकर गया है और दूसरी तरफ़ वो यह बात अपने पति से कैसे कहे? क्योंकि मोहनचंद ने उसे पहले ही अभी यह बात उसे बताने के लिए मना किया था। उसके प्राण सूखते जा रहे थे। माथे से पसीना झलकने लगा। सिर किसी लट्टू की तरह घूमने लगा। कुछ ही देर में चक्कर खा कर गिर पड़ी। थोड़ी देर बाद उसने स्वयं को बिस्तर पर पाया जहाँ मोहनचंद उसके पैरों की मालिश कर रहे थे और उसे पुकार रहे थे।
"क्या हो गया था रे तुझे? तुमने तो डरा ही दिया। " मोहनचंद चिंतित स्वर में बोले।
"पता नहीं कैसे चक्कर आ गया।" रेखा ने थोड़ा सा उठते हुए कहा और मोहनचंद ने उसे पानी का गिलास पकड़ाया।
"ऐसे कैसे चक्कर आ गया? कितनी बार कहा है , समय पर कुछ खा पी लिया करो। ऊपर से दिन रात दिमाग में टेंशन लेकर घूमती रहती हो। फिर चक्कर नहीं आएगा तो क्या होगा।" मोहनचंद ने उसे संभालते हुए कहा।

रेखा कुछ देर सोचती रही। फिर अचानक उसके अश्कों से अश्रु की धारा बहने लगी। वह अपनी साड़ी के पल्लू से अपने आँसू पोछने लगी पर वह आँसू किसी सूखे कुँए से न निकलकर उसके विशाल समुद्र जैसे हृदय से आ रहे थे।
"अरे! क्या हो गया तुझे? बता तो सही ऐसी क्या बात हो गई? क्यों भला रोये जा रही हो?" मोहनचंद की कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आज अचानक यह क्या हो गया।
"कुछ नहीं जी । ऐसे ही पता नहीं आज जी कुछ लग नहीं रहा है। मेरा बेटा कहाँ है बुलाओ न उसको।" रेखा अपने दर्द को समेटते हुए बोली।
"हाँ , अभी कॉल करता हूँ उसको। तुम आराम करो थोड़ी देर। वह आ जायेगा। "
मोहनचंद अपने फ़ोन से राकेश को कॉल करता है पर उसका फ़ोन घर पर ही चार्ज लगा हुआ था।
"अरे! उसका फोन तो यहीं चार्जिंग पर लगा हुआ है। आ जायेगा वह थोड़ी देर में तुम आराम करो।"



गाड़ियों का शोर शराबा शहर के होने का प्रमाण प्रस्तुत कर रहा था। राकेश अपने मित्रों अभिषेक और योगेश के साथ पार्क के एक कोने की दीवार पर बैठे थे। योगेश ने सिगरेट जलाकर राकेश को दी। जिसे अकेले राकेश ने ही पी लिया। उसकी नाक और मुँह से धुवां निकल रहा था। वह अक्सर सिगरेट शेयर करके पीता था और अभिषेक द्वारा ना कहने पर उसे जबर्दस्ती पिलाया करता था। पर आज राकेश अपने में ही खोया हुआ था। अभिषेक जो हमेशा ख़ुद की इच्छा से नहीं राकेश द्वारा जबर्दस्ती पिलाने पर सिगरेट पीता था, वह भी इंतजार ही करता रहा कि कब राकेश जबर्दस्ती करें और मेरे को सिगरेट पीने को मिले। अक्सर ऐसे लोग होते है जिसके मन में तो कुछ कार्य करने को तो होता है पर वह स्वयं पर उसकी ज़िम्मेदारी न लेकर किसी और के बहाने से वह कार्य सम्पन्न करते है।


"क्या बात है राकेश? आज कोई टेंशन?" योगेश ने स्थिति को भांपते हुए कहा।
"क्या बताऊँ यार! मम्मी पापा ने तो अभी ही मेरे लिए लड़की फिक्स कर दी।" राकेश ने एक आह भरकर कहा।
"ओए होए ! बल्ले-बल्ले! साले इसमें टेंशन लेने वाली कौनसी बात है? आज तो मजा आ गया।" अभिषेक ने उछलते हुए कहा।
"हाँ भाई। आज तो फिर पार्टी पक्की हो गयी।" योगेश ने अभिषेक का साथ देते हुए कहा।
"क्यों जला रहे हो कमीनों? अभी क्या मेरी उम्र है शादी के बारे में सोचने की भी?" राकेश ने झल्लाते हुए कहा।
"अरे तो लड़की फिक्स ही की है ना शादी थोड़ी कर रहे है अभी!" अभिषेक बोला।
"हाँ , पर मेरे से तो पूछा तक नहीं। मेरी पसंद का भी तो ध्यान रखना चाहिए।" राकेश ने पुनः अपने गुस्से को जाहिर करते हुए कहा।
"तेरी पसंद गयी भाड़ में साले, लड़की मिल रही है । वही बड़ी बात है।" योगेश ने मस्ती के मूड में कहा।
पर अभिषेक ने योगेश की बात को गंभीरता से लेते हुए कहा कि"देख भाई , आज का समय ऐसा है कि तू बूढ़ा हो जाएगा पर कोई भरोसा नहीं कि शादी के लिए लड़की मिले या ना मिले। देख ले अपने पड़ोस में राहुल, विजय और राज को । उनके माता पिता ने कितना ट्राय किया पर कोई लड़की देने को तैयार ही नहीं। बोलते है लड़का सरकारी नौकरी में होना चाहिए या परिवार अमीर होना चाहिए। देख, तू पहले ठंडे दिमाक से सोच और उस लड़की के बारे में पता कर। कैसी है? उसके बाद कोई अभी तेरी शादी थोड़ी कर रहे है। बाद में समय आने पर कर लेना।"
"हाँ भाई, अगर ट्रैन में रिजर्वेशन हो जाये तो अच्छा है । क्या पता तत्काल में टिकट मिले या न मिले? फिर हम अपने सफर के शुरुआत में ही अटक जाए।" योगेश ने उसे उदाहरण देकर समझाया।
इस उम्र में बालकों को घर वाले कितना भी समझाए उनके कुछ पल्ले नहीं पड़ता है पर अगर दोस्त कोई भी बात उससे थोड़ी गंभीरता से कर ले तो उनके मस्तिष्क में वह बात ऐसी निशाने में लगती है जैसे अर्जुन ने चिड़िया की आँख में तीर का निशाना लगाया।
राकेश अब कुछ-कुछ नरम हो गया था पर अभी भी उसके मन में कुछ सवाल गोता लगा रहे थे। वह कुछ नरमी और शंशय के साथ बोला,"वो ठीक है। लेकिन अगर मेरी किसी और से शादी करने की इच्छा हो। हो सकता है जिसे मैं चाहता हूँ वो मुझसे शादी करने को तैयार हो जाये।"
राकेश के हृदय में बार-बार दिव्या का ही चित्र उपस्थित हो रहा था। अभिषेक ने फिर उसके मनोभावों को भांपते हुए कहा।"तेरे मन में कौन है और साले? वह दिव्या? वो विधायक की बेटी है! चुनाव तक बात ठीक है। पर इतना करीब भी मत जाना । और विधायक का पता ही है तेरे को? यह कोई फ़िल्म नहीं है जिसका तू हीरो है और अपने बल पर विधायक को जीतकर उसकी बेटी को ब्याह लेगा। अगर उसको तेरी दिव्या के प्रति ऐसी भावना की भनक भी लग गयी ना साले तेरा कुछ पता ही नहीं चलेगा कि तू था भी कोई।"

राकेश का मन फिर अंतर्द्वंद्व में फंस गया। अभिषेक और योगेश की बातों का उसके हृदय पर गहरा असर पड़ा। वह सोचने लगा कि अभी सगाई के लिए तो हाँ कर देता हूँ। बाद में अगर कोई लड़की मिल गयी तो इसको किसी न किसी बहाने से ना बोल दूँगा। पर अचानक उसे ख़याल आया कि वह तो माँ को घर छोड़ने की धमकी देकर आया है। क्या पता माँ ने उन्हें फ़ोन करके मना कर दिया हो....


क्रमशः....