009 SUPER AGENT DHRUVA - 20 books and stories free download online pdf in Hindi

009 सुपर एजेंट ध्रुव (ऑपरेशन वुहान) - भाग 20

रात के घनघोर अंधेरे को चीरने का प्रयास करती हुई सुबह के उजाले की कुछ किरणों ने अभी लोगो की नींद से उठाना आरम्भ किया ही था कि तभी तंग और संकरी गलियों में मुस्तैदी के साथ अपने शिकार की ओर आगे बढ़ती सैनिकों की एक हथियारबंद टुकड़ी जल्दी ही एक सात मंजिला इमारत को चारों ओर से घेर चुकी थी......सुनसान और वीरान सड़कों पर मातम का एक अजीब सा सन्नाटा पसरा था, न तो मॉर्निंग वॉक के लिए जाते हेल्थ कॉन्शियस लोग नजर आ रहे थे, और न ही दिहाड़ी मजदूरी करने के लिए सुबह तड़के घर छोड़ने वाले मजदूर........ इस अजीब से माहौल में कुछ कुत्तों के भौंकने के अलावा इन सैनिकों के पदचापों की हल्की आवाज सुनाई चारो ओर सुनाई दे रही थी.....तो वहीं पास के किसी एक घर में से टीवी समाचार की तेज एवं स्पष्ट आवाज भी आसपास थोड़ी दूर तक गूंज रही थी।

"देश में वायरस की दूसरी लहर ने अब प्रलयंकारी रूप ले लिया है,पिछले चौबीस घण्टो में देश मे अचानक से वायरस संक्रमितों की संख्या में बड़ा उछाल देखने को तो मिला ही है,साथ ही इस वायरस से होने वाली मौतों की तादाद में भी अप्रत्याशित बढोत्तरी हुई हुई है.....कल देश में वायरस के डेढ़ लाख नए मामले सामने आए है तो वहीं एक हजार लोगो ने इस वायरस से दम तोड़ दिया है....जिस गति से अब यह वायरस तबाही मचा रहा है,वायरस गति रोकने के सभी प्रयास असफल रहे है,तेजी से बढ़ती मृत्यु दर ने देश मे चारो ओर भयानक डर और हाहाकार का माहौल बना दिया है,
सरकार ने देश भर में सख्त लॉकडउन के साथ साथ कईं राज्यो में कर्फ्यू का भी एलान कर दिया है......"
टीवी में चलती इन हेडलाइन्स की आवाज किसी के भी दिल मे डर पैदा कर देने के लिए काफी थी....पर बिल्डिंग को चारों ओर से घेर कर उसमें मेन गेट एवं छत के सहारे अंदर दाखिल होने का प्रयत्न करते उन सैनिकों को ऐसी किसी भी व्यवधान पैदा करने वाली आवाजो से कोई भी सरोकार न था.....उनका ध्यान तो बस अपने लक्ष्य पर केंद्रित था.......और फिर जल्दी ही उनमें से कुछ सैनिक उस बिल्डिंग के फोर्थ फ्लोर की पूरी नाकाबंदी कर चुके थे......और बाकी बिल्डिंग की छत पर एवं नीचे पोजीशन लेकर मुस्तैद थे।

फोर्थ फ्लोर का फ्लैट नम्बर 409 इन सैनिकों की गन्स के निशाने पर था,
शायद अगली कार्यवाही के लिए यह सैनिक अपने नेतृत्व के ऑर्डर्स का इंतजार कर रहे थे,
और तभी सीढ़ियों के रास्ते कुछ अन्य सैनिकों के साथ वह शख्स भी उनके बीच आ गया ,जिसके आदेश का वह इंतजार कर रहे थे.....
और वह था कैप्टन विराज, जो कि इस ऑपरेशन को लीड़ कर रहा था।

स्थान-भारत के बिहार राज्य की राजधानी 'पटना'
समय-भारतीय समयानुसार सुबह के लगभग 5 बजे।

कांगास्वामी को कस्टडी में लेकर जब जबरदस्त थर्ड डिग्री का इस्तेमाल किया गया, तो मौत के डर ने उसके मुंह से कई राज उगलवाये........उन्ही में से एक था चांग ली क़ा भारत छोड़ने से पहले का यह एक अंतिम ठिकाना,जिस पर इंडियन आर्मी सुबह सुबह ही टूट पड़ी थी.......देश भर में वायरस को फैला कर उसे खौफनाक रूप देने के अपने मंसूबो में पूरी तरह कामयाब होने के बाद अब चांग ली का प्लान आज ही देश छोड़ने का था......सुबह आठ बजे वह बिहार से नेपाल के रास्ते चाइना वापस जाने वाला था.....पर उस से पहले ही उसके ठिकाने की भनक भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को लग चुकी थी।

कैप्टन विराज के इशारे पर उस फ्लैट के अंदर से लॉक मजबूत दरवाजे को सैनिकों ने मिनी रॉकेट लॉन्चर से धमाका कर के उड़ा दिया।
और फिर उस टूटे हुए दरवाजे के रास्ते सावधानी के साथ पोजिशन लेकर अंदर प्रविष्ट हो गए......फ्लैट के अंदर कोई भी नही था.....बाथरूम,किचिन,बेडरूम....कहीं पर भी कोई नही.........पर विराज ने नोटिस किया कि बेडरूम के बिस्तर पर अभी भी सिलवटे थी,जिससे पता चल रहा था कि किसी ने इस बेड का हाल ही में उपयोग किया हूं.....साथ ही वहाँ क़ा टेम्परेचर काफी कम था,मतलब कुछ देर पहले तक एयरकंडीशनर को ऑन रखा गया था.......बेडरूम की दीवार की वह खिड़की जो बाहर की ओर खुलती है,उसकी चटखनी खुली हुई थी.......मतलब साफ था, चांग ली कुछ देर पहले तक यहां था, पर शायद आर्मी की मौजूदगी का एहसास पाकर खिड़की के रास्ते बाहर भाग गया......
पर छत व बिल्डिंग के चारो ओर सेना का जबरदस्त घेराव होने की स्थिति में उसका बिना नजर आए भाग कर जाना भी आसान न था।

खिड़की से नीचे झांक कर देखने पर भी कोई नजर न आया......कमरें के चप्पे चप्पे पर अपनी सरसरी नजरों से जांच पड़ताल करते हुए विराज का माथा कुछ सोचते हुए अचानक से ठनका.........उसने तत्काल ही कमरे में अपने साथ मौजूद एक सैनिक को कुछ निर्देश दिए,और फिर खुद कमरे से निकलकर छत की ओर भागा......
विराज के निर्देशानुसार उस सैनिक ने अपने साथ लाये हुए बैग से 'एक्सप्लोरर डिटेक्टिव डिवाइस' निकालकर उसको उसको ऑन करते हुए चारो ओर जैसे ही स्कैन किया......बीप की तेज आवाज के साथ डिवाइस की रेड लाइट्स जलना स्टार्ट हो गयी......मतलब साफ था,इस फ्लैट में कोई बॉम्ब अथवा एक्प्लोरर मौजूद था...सभी अलर्ट हो गए....डिवाइस के सिग्नल्स के आधार पर जल्दी ही डायनिंग टेबल के नीचे छिपाया हुआ एक साउंड लेस टाइम बॉम्ब मिल गया..जिसको ब्लास्ट होने में मात्र 2 मिनिट 43 सेकेंड्स शेष थे.......आनन फानन में सभी सैनिकों को फ्लैट से बाहर कर दिया गया....अंदर बस साथ आये हुए बम स्क्वॉड यूनिट के दो कमांडो मौजूद थे।
बॉम्ब को डिफ्यूज किये जाने की कोशिश की जाने लगी......और फिर इन कमांडोज ने बड़ी ही होशियारी के साथ बॉम्ब को डिफ्यूज कर डाला।

और उधर कैप्टन विराज छत पर पहुंच चुका था, इस सात मंजिला इमारत के सभी फ्लोर में रसोई गैस की सप्लाई के लिए एक लोहे का पाइप लगा हुआ था,जो प्रथम तल को इस इमारत के आख़िरी तल को जोड़ता था.......विराज ने गौर से इस हरे रंग के पाइप को देखा, तो उसे छठे फ्लोर पर पाइप से सटी हुई खिड़की के बाहर कांच के कुछ छोटे टुकड़े नजर आए,जो कि खिड़की की मुंडेर पर पड़े हुए थे......
माजरा विराज को समझ आ चुका था.....उसने छत पर खड़े अपने साथियों को अलर्ट रहने का बोल कर खुद सीढ़ियों के रास्ते छठे फ्लोर के लिए दौड़ लगा दी......साथ ही इस दौरान कान में पहने ब्लूटूथ डिवाइस द्वारा साथ कनेक्ट कुछ अन्य सैनिकों को भी इसी छठे फ्लोर पर आने हेतु निर्देशित कर डाला........

इस फ्लोर का फ्लैट नम्बर 609.....जिसके बाहर 'मिस्टर एन्ड मिसेज चटर्जी' की नेम प्लेट लगी हुई थी........
विराज ने अन्दाजा लगा लिया था कि चांग ली इसी फ्लैट में हो सकता है,और स्वंय को बचाने के लिए वह इसमें रहने वाली बेकसूर फैमिली को अपनी ढाल बना सकता है.......इस फ्लैट का दरवाजा तोड़ कर इसमें दाखिल होना इस फैमिली को खतरे में डाल सकता है।

पर इस वक्त लाखो करोड़ो बेगुनाहों की मौत का षड्यंत्र रचने वाले को पकड़ा जाना बेहद अहम था,फिर भले ही मजबूरीवश चन्द लोगो की जान ख़तरे में क्यो न डालना पड़े.........

"चांग.......तुम बच कर नही जा सकते, सरेंडर कर दो तो जान बच जाएगी....नही तो भयानक मौत मरने के लिए तैयार हो जाओ।"

विराज ने हाथ में पकड़े लाउडस्पीकर द्वारा दरवाजे के बाहर से ही तेज आवाज में अल्टीमेटम दिया।

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उधर सामने से मिले अल्टीमेटम के बाद जॉन और ध्रुव ने गोलियों से छलनी होने के बजाय सरेंडर करना उचित समझा.......और दोनो हाथ ऊपर उठा कर आत्मसमपर्ण की मुद्रा में खड़े हो गए........क्योकि भागने के लिए उस अंधेरे गटर में दूसरा कोई रास्ता न था

और अगले ही क्षण ध्रुव और जॉन दोनो चारो ओर से गन प्वाइंट्स पर थे.....हाथ उपर किये हुए जॉन 'अब आगे क्या होगा' इस शंका के साथ ध्रुव की ओर देख रहा था।

और ध्रुव......हमेशा की तरह इस समय भी उसके चेहरे पर कोई ड़र,कोई चिंता नही थी।

मगर उसे भी समझ नही आ रहा था कि आख़िर कैसे इतने फुलप्रूफ प्लानिंग के बावजूद चाइनीज़ सिक्योरिटी एजेंसीज को उनके प्लान की भनक लग गई।

ध्रुव इस वक्त झांग म्याऊ का चेहरा त्याग कर अपने असली वेश में था....

तभी अचानक से सामने खड़े उस चाइनीज पुलिस की टोली में से भीड़ को चीरता हुआ एक ऑफीसर्स रैंक का शख्स बाहर आया........और ध्रुव की ओर खा जाने वाली नज़रों से देखता हुआ पहले गुर्राया और फिर तंज कसा।

"तो तुम ही हो वह इंडियन जासूस........मुझे बताया गया था कि तुम शेर हो,सावधान रहना....मगर तुम तो चूहे निकले....बड़ी आसानी से चूहेदानी में फ़ंस गए।"

और फिर उसने अपने अधीनस्थों की ओर इशारा करते हुए कहा....

"लगा दो हथकड़ी इन कुत्तों के पिल्लों को......कमांडर चिन ची की टीम इनको लेने आती ही होगी.....आज उनको भी अहसास हो जाएगा कि हम चाइनीज लोकल पुलिस भी सेंट्रल सिक्योरिटी एजेंसीज के मुकाबले कम नहीं"

और फिर उनमें से कुछ ने गन प्वाइंट्स पर ध्रुव और जॉन को घुटनों के बल झुकने को कहा......
पर यह क्या....उनकी धमकी सुनकर ध्रुव बिना डरे ही मुस्कुराने लगा........
और फिर अचानक से ही उसके तेवर बदल गए.....

"चूहा नही.....शेर खड़ा है तुम्हारे सामने.....एक भारतीय बब्बर शेर......जो जिस जगह खड़ा होता है,वह उसकी मांद बन जाती है.......और जो भी उस शेर की मांद में घुस कर उसे डिस्टर्ब करता है.....यह शेर उसी का शिकार कर लेता है........फिर चाहे शिकार होने वाला कोई जानवर हो या फिर खुद शिकारी...............Boom"

अतिउत्साही चाइनीज इस से पहले कि माजरा समझ पाते......उनके हाथों से गन्स छिटकने लगी......एक तेज खिंचाव उनके हाथों से गन्स को छीन कर ले जा रहा था......हवा में लहरा कर उड़ती हुई गन्स गटर के अन्दर बनी हुई लोहे की दीवारों से चिपकने लगी.......कुछ ही सेकेंड्स में वह सभी हथियारबंद चाइनीज अब निहत्थे होकर खड़े थे।

और इस असमंजस से वह उबर पाते उस से पहले ही बिजली की गति से ध्रुव उन पर टूट पड़ा......चीते सी फुर्ती, बाज जैसा निशाना......कुंगफू ताइक्वांडो जैसी आत्मरक्षा की कलाओं में माहिर माने जाने वाले चाइनीजो पर ध्रुव की भारतीय युध्द कला भारी पड़ रही थी......वह अकेले ही उस तंग गटर में उन ढेर सारे चाइनीज्स पर हावी हो रहा था....हवा में कलाबाजियां खाकर जब ध्रुव का मुक्का जिस चाइनीज के भी थोबड़े ने खाया....वह मुंह दिखाने लायक नही रहा........
जॉन भी इस युध्द में शामिल हो गया था.....दोनो ही वेल ट्रेंड फाइटर्स थे.......कुछ ही देर में वहां मौजूद हर एक चाइनीज गटर के दो फीट पानी मे भी गोते खा रहा था।

और फिर वह दोनो आगे बढ़ चले......

जॉन- "what a miracle......कैसे हुआ यह"

ध्रुव- "not a miracle ,just a science.....इस जगह को हमने पहले ही मैग्नेटिक फील्ड में बदल दिया था.......जिसका एक्टिवेशन कंट्रोल जेनी के पास था..../बस,जब जरूरत पड़ी तो सही वक्त पर मैंने गले मे पड़े लॉकेट के 'voice sensor' के द्वारा जेनी को सिग्नल दिया....और उसने इस field को एक्टिवेट कर दिया.....और फिर हथियारों को उड़ते हुए तुमने देखा ही था।"

John- "oh my god.....But this was not in our plan"

Dhruva- " प्लान का कुछ हिस्सा हमने डिस्कस नही किया था......तुम इसे प्लान बी का एक पार्ट समझ सकते हो।......फिलहाल हमें जल्दी से अपने लक्ष्य तक पहुंचना है,और साथ मे यह भी पता करना है कि अचानक से कैसे इन चाइनीज्स को हमारे बारे में इतना कुछ पता चल गया।"

जॉन ध्रुव के दिमागी तिकड़मों को देख कर हैरान था......सच मे मास्टरमाइंड था वह।

।कहानी जारी रहेगी।
















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