प्रेम गली अति साँकरी - 45 Pranava Bharti द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम गली अति साँकरी - 45

45—

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संस्थान के काम में दिक्कत तो आ रही थी, मैं भी आजकल गंभीरता से काम संभालने लगी थी | उत्पल तो पहले से ही मुझसे अधिक सिन्सियर था | अम्मा-पापा ने किसी तरह मैनेज करके, एम्बेसी से सारी स्थिति स्पष्ट बताकर एक छोटे ग्रुप को नृत्य के दो गुरुओं के साथ यू.के के लिए रवाना कर दिया था | भाई अमोल और एमिली से भी सब बातें हो गईं और उन्होंने आश्वासन दिया कि वह और वे वहाँ की व्यवस्था देख लेंगे, जहाँ तक होगा भई छुट्टी लेकर यहाँ से जाने वाले लोगों के साथ रहेगा | कई गुरु तो बरसों से संस्थान को अपनी सेवाएं दे रहे थे और भाई उन सबसे परिचित थे | वैसे व्यवस्थता तो सब हो ही चुकी थी लेकिन जो बदलाव हुए थे, वे कठिन होने के साथ भविष्य के लिए ठीक भी नहीं थे लेकिन समय के अनुसार ही सब काम होता है | बस, समय ही था जो सब कुछ करवा रहा था | भाई भी तो शीला दीदी के परिवार से बचपन से ही जुड़ा हुआ था | वह बात अलग थी कि उसने अपनी पसंद के अनुसार, अपने सपने के अनुसार अपना कैरियर और अपने जीवनसाथी का चुनाव किया था | हम सब उसके लिए खुश थे | बस, मैं ही कभी-कभी नाराज़ हो जाती थी कि उसने अम्मा के सपने से खुद के सपने को ज़्यादा अहमियत दी थी | सवाल यह भी तो सदा बना रहा कि मुझे किसने अपने सपने को साकार करने से रोका था? कौन आया था मेरे और मेरे सपने के बीच? मैं स्वयं ही तो अड़ी हुई थी न? 

एक दिन हड़बड़ाहट में शीला दीदी का फ़ोन आया;

“सर---कल से पुलिस वाले फिर से चक्कर काट रहे हैं--- | ” उनका स्वर काँप रहा था, पापा ने महसूस किया कि शीला घबराहट से थर थर काँप रही थीं लेकिन पापा सहज थे।

“हमें चलना चाहिए शीला के घर की तरफ़---” पापा ने अम्मा से कहा | हम सब इस समय डाइनिंग में थे और महाराज गर्म खाना लगा ही रहे थे कि पापा ने महाराज से कहा कि वे पहले सड़क पार मुहल्ले में जाकर आते हैं फिर खाना खाएंगे | मुझे कभी-कभी बहुत हँसी आती थी कि मुहल्ले का नाम ही सड़क पार ओड़ गया था | उसका नाम कुछ और था लेकिन जो भी बात करता, सड़क पार मुहल्ला ही कहता | शायद उसका असली नाम भी लोग भूल गए होंगे | वैसे भी हम तो भेड़ चाल के आदी हैं, जहाँ सब----वहाँ हम !मुझे लगा । इस विषय पर बात होनी चाहिए। आखिर किसी की ऑरिजिनेलिटी यूँ ही हवा में उड़ा दें लोग ? ये क्या बात हुई? भला बताइए। ये बकवास सोचने का ये कोई समय था ? लेकिन मैं ऐसी ही थी | 

अपने सामने की खाली प्लेट को भी पापा ने हाथ जोड़कर क्षमा की मुद्रा में ईश्वर से प्रार्थना की और उठ खड़े हुए | ज़रूर कुछ अधिक गंभीर बात थी | मैं और अम्मा भी हाथ जोड़कर खड़े हो गए | अब वहाँ होकर आ जाएँ, तभी खाएँगे, कुछ इसी भाव से हम तीनों डाइनिंग से उठ खड़े हुए | स्थिति को देखते हुए महाराज ने गार्ड को फ़ोन करके ड्राइवर रामदीन को गाड़ी गेट पर निकालने के लिए कह दिया था | कितना सिस्टम था हमारे घर का, घर का भी क्या—पूरे संस्थान का !लेकिन फिर भी सब चीज़ें हमारे अनुसार चलती कब हैं ? हमें ही तो समय के अनुसार चलना पड़ता है | चल रहे थे समय के अनुसार ही, चारा भी क्या था ? हम तीनों बिना कुछ कहे चुपचाप, गुमसुम से गाड़ी में आ बैठे और कुछ ही मिनट में गाड़ी सड़क पार जा पहुँची | 

“शीला दीदी, रतनी, दिव्य और डॉली के चेहरे उतरे हुए थे | वहाँ बैठे सिमटे हुए मेहमान जिनकी पुलिस को देखते ही फूँक सरक गई थी और भी सिमट गए थे | पुलिस को देखते ही घबराहट उनके चेहरों से झाँकने लगी थी | पापा को देखकर उनमें से कुछ पापा-अम्मा की ओर बढ़ आए;

“आपकी कोई ड्यूटी नहीं होती कुछ करने की, इन्हें संभालने की, आपके यहाँ ही नौकरी करते हैं न ये सब ? ” यह शायद जगन का भाई था जो अपने आपको सबका लीडर समझने की गलती कर गया था | 

“लेकिन ----” पापा मुस्कुराए और उन्होंने शीला के उस रिश्तेदार से पूछा ;

“आप----आप इनके क्या हैं? ”कोई उत्तर न पाकर उन्होंने फिर से बड़ी ठंडी आवाज़ में पूछा | 

“हम ---उस दिन बताया तो था, हम जगन और सीलों के बड़े भाई हैं---” उन्होंने अकड़कर कहा | 

“तब तो ठीक है, आप सब कुछ हैंडल कर सकते हैं ---” पापा ने मुस्कुराकर कहा | 

“हम यहाँ बिदेस में क्या कर लेंगे जी, यहाँ तो ये आपके नौकर हैं और आपको उस दिन के बाद तो देखा ही नहीं यहाँ पे ---” वह पापा को आँखें दिखाने लगा तो ए.सी.पी आगे बढ़ आए | 

“ये बार-बार नौकर, नौकर क्या कर रहे हैं---? ” पापा के मुख से निकला | हमारे यहाँ तो ‘हाऊस हेल्प’ को भी इतनी इज़्ज़त, प्यार, अपनापन दिया जाता है फिर यह परिवार तो एक प्रकार से संस्थान का ही भाग था | 

“जगन आपके रिश्तेदार थे, आप शीला जी के रिश्तेदार हैं तो पिक्चर में तो आपको आना पड़ेगा, इनको क्यों और क्या मतलब है ? ”अपना रौब झाड़ते हुए ए.सी.पी ने कहा और पापा की ओर आँखों से इशारा किया | 

“हाँ, तो बताओ, क्या करना है ? ”उन महाशय ने अपनी कमर पर दोनों हाथ रखकर रौब से पूछा | उन्होंने रौब को बिलकुल भी कम न होने दिया | कम होने देते तो नायक न कट जाती !

“कुछ खास नहीं, जिन परिस्थितियों में जगन जी की मृत्यु हुई है, उनमें उनका जो कुछ भी अंतिम क्रिया का करना था, साहब ने संभाल लिया था लेकिन इन्होंने जिस बात को दबाया, वह राज खुल गया है और अब हमारे ऊपर बात पहुँच चुकी है---तो----” पुलिस के साहब ने कहा तो धीरे-धीरे सामने वाले शेर का चेहरा गीदड़ में परिवर्तित होने लगा | 

“तो इन्होंने जो किया धरा है, इनसे पूछो न, हम क्या करें ? ” अचानक सामने वाले की आवाज़ पिद्दी सी हो गई | 

“इनका तो नौकर मालिक का नाता है न, आप लोगों से खून का नाता है फिर ये क्यों करेंगे ? उस समय ज़रूरत थी, कर दिया इन्होंने अपना फ़र्ज़ पूरा | वैसे ज़्यादा कुछ नहीं बस दो लाख रुपए जमा करवा दो, केस बंद हो जाएगा | ऊपर बात पहुंची गई है कि बिना पोस्टमार्टम के क्रिया कैसे कर दी गई? ” पुलिस के साहब ने मुँह बनाते हुए उनकी ओर घूरते हुए कहा | 

“तो क्यों नई करवाया जो---भी कह रहे हो आप? "उसने अपनी अकड़ नहीं छोड़ी | 

"साहब आगे न आते तो पड़े रहते आप सब, उलझन में ----और पता नहीं क्या होता आपके साथ !"

“अरे!तो हम कहाँ थे तब, ये लोग ही तो थे, इन्होंने किया जो भी किया तो पैसे भी ये ही भरेंगे, क्यों भाई ? ” सामने वाला शेर जो अभी तक कमर पर हाथ जमाए रौब से खड़ा था अचानक गीदड़ बनकर दूसरी लोमड़ी को पुकारने लगा था | 

“तो मतलब, इन्होंने जो किया, गलत किया? ” पुलिस के साहब ने ज़रा गुस्से से पूछा | 

“न—नहीं—मैं ऐसा थोड़े ही कह रहा हूँ, मेरा मतलब है---” वह फिर अटक गया | 

“मतलब आपका कुछ भी हो, पुलिस को तो पैसा चाहिए वरना ----वो तो आप लोगों को अंदर करेगी | आप लोग नियम तोड़ते हैं, बात पुलिस पर आती है | पुलिस अपना काम करेगी ही न ? ”

अब तो उन सभी तथाकथित रिश्तेदारों में हलचल मचने लगी थी | वैसे तो एक से एक घाघ थे, सोचा होगा सब मिलकर पापा पर दबाव डालेंगे | उस दिन पापा ने वाकई बड़ी मुश्किल से जगन की अंतिम क्रिया करवाई थी | लेकिन अब तो वो शायद सभी सोच रहे होंगे कि कहाँ आ फँसे? एक सन्नाटा सा पसरने लगा था उनके चेहरों पर !

शीला दीदी, रतनी और बच्चे चुप थे | उनकी और रतनी की समझ में बात आ रही थी और बच्चे तो कभी कुछ बोलते ही नहीं थे | रिश्तेदारों के चेहरे की हवाइयाँ देखते ही बनती थीं | 

“ये इतना खर्चा, पूजा-पाठ कौन करवा रहा है ? आपको पता है आपके भाई जगन के खिलाफ़ पुलिस में कम्पलेन्ट है, पूरी तरह तो पता नहीं पर उसने कई लोगों से पैसा लिया हुआ है, उस पैसे का हिसाब भी तो करना पड़ेगा | ”

अब तो और भी सुन्न हो गए सारे | 

“कमिश्नर साहब ! आइए, आप संस्थान में चलिए, बात करते हैं---” पापा ने कहा और ऐसा दिखाया जैसे वे पुलिस के अधिकारी को ज़बरदस्ती लेकर जा रहे हैं | 

पुलिस अधिकारी ने भी अपने मुँह पर कोई शिकन आने नहीं दी—

“देखिए, मैं कुछ नहीं जानता, या तो ये साहब पैसा भर देंगे या फिर कल आपसे बात की जाएगी –” कहकर आँखें दिखाते हुए उन्होंने अपने सहकर्मियों को कुछ इशारा किया और घर से निकल गए | 

शीला दीदी के इतने ठसाठस भरे हुए घर में एक सन्नाटा पसर गया जैसे | कोई भी कुछ बोलने की स्थिति में नहीं था | पापा और अम्मा ने शीला दीदी से कहा कि वे चिंता न करें, पुलिस के साहब से बात कर लेंगे और जो होगा देख लिया जाएगा लेकिन अगर ये सब यहाँ शोर-शराब करेंगे तो वे कुछ नहीं कर सकते | 

एक दूसरे की आँखों से बात को समझते हुए हम सब बाहर सड़क पर आकर गाड़ी में बैठ गए और रामदीन ने गाड़ी भगा दी | घर पहुँचकर सब डाइनिंग की ओर भागे, भूख के मारे सबका बुरा हाल था | पापा ने हमें घर से निकलने से पहले कुछ भी नहीं बताया था | उस दिन पापा पैसा खिलाकर सब काम पूरा करवाकर आ गए थे तो---? प्रश्न सामने था जो खाना खाते-खाते खुला कि यह पापा और असिस्टेंस कमिश्नर की मिली भगत थी उन मेहमाननवाज़ी करवाने वाले बेशर्मों को सबक सिखाने की, जिसके बारे में केवल उन दोनों को ही मालूम था | शीला दीदी घबरा गईं थीं लेकिन पापा जानते थे कि वे कहाँ और क्यों जा रहे हैं | पापा ने उन्हें शांत रहने का इशारा कर दिया था | 

“इन लोगों को सबक सिखाना जरूरी था | अब तो इतने दिन हो गए हैं, दो-चार दिन की बात और है | किसी तरह निकल जाएँ तो इन लोगों को छुट्टी मिले –” पापा ने हमें पूरी कहानी बताते हुए कहा | 

“आप भी कमाल हैं? हमें भी नहीं बताया--!”अम्मा ने शिकायत की, यही शिकायत मेरे मन में भी थी | पापा भी न !लेकिन पापा का सोचना ठीक था कि अगर वे पहले हमें बता देते तो हमारे चेहरों पर निश्चिंतता आ जाती और उन लोगों पर इसका वह असर न होता जो अब हुआ था | 

“अरे!तुम लोगों को बताता तो तुम्हारे चेहरों के एक्स्प्रेशन से सब भेद खुल जाता | अब देखते हैं कल क्या होता है | ”पापा ने कहा, उनकी मुस्कान से हम सब समझ रहे थे |