कहानी:- परदेस मैं ज़िंदगी
भाग - 2
अब तक आपने पढ़ा की किस प्रकार मितेश भाई के जीवन में उतार चढ़ाव आए और वो लोग हमेशा हमेशा के लिए विदेश चले गए। अब आगे
विदेश का जीवन मितेश भाई के लिए आसान न था अपना घर, अपने लोग और अपने शहर को छोड़ कर एक ऐसे देश में रहना जहाँ का मौसम भी आपका बैरी हो। अपना देश, अपनी धरती, अपने लोगों को छोड़कर कौन जाना चाहता है? पर कई बार हम बहुत से फैसले परिवार के लिए करते हैं। हमको। लगता है कि विदेश जाकर रहना ही ठीक है तो परिवार के सदस्यों को इस फैसले को मानना ही पड़ता है। यहाँ पर भी मितेश भाई ने हर बार की तरह मीरा भाभी के इस फैसले को मान लिया था और इस फैसले के पीछे दूसरी यह भी उम्मीद थी कि उनके इकलौते बेटे को एक ऐसे देश में ले जाना और उसके जीवन को संवारना। जिसे संभावनाओं का देश कहा जाता है। खैर, सूरत का खूबसूरत सा बांग्ला, जिसे उन्होंने अपनी मेहनत और अरमानों से सजाया था, उस घर को बिरानी के हवाले कर ताला लगा, हमेशा- हमेशा के लिए विदेश चले गए। शुरुआती समय मितेश भाई के लिए भी उतना ही कठिन था जितना कि हर भारतीय के लिए बिदेस में होता है या उससे भी ज्यादा। अधिक मुश्किल अभिषेक के लिए था अभिषेक यहाँ आया तो था कुछ बन जाने की नीयत से ,और अपना अतीत भूल जाने की कोशिश में। मीरा भाभी और मितेशभाई ने अपनी जिंदगी का इतना बड़ा जुआ खेला था जिंदगी की जद्दो जहद बहुत मुश्किल होती है और इस मुश्किल को पार पाना उतना ही भी आसान न था। अभिषेक का भूत काल उसका पीछा ही नहीं छोड़ता था। कभी -कभी भूतकाल का साया हमारे वर्तमान पर। इस कदर हावी हो जाता है कि वह। भविष्य के चमकते सूरज को अपने को कुहासे से ढक लेता है। अभिषेक को उसका भूतकाल छोड़ता ही न था। दसवीं अच्छे नंबरों से पास करने के बाद अभिषेक को लगने लगा था, कि बस अब मंजिल दूर नहीं है। ऐसे ही एक एक सीढ़ी चढ़कर वह जल्द ही अपनी मंजिल पार कर जाएगा और अपने माता पिता का सिर फक्र से ऊंचा कर देगा। पर निर्दयी वक्त किसी को भी नहीं छोड़ता। वक्त ने अपनी कठिन परीक्षा में अविषेक को भी डाल दिया था। कुशाग्र बुद्धि वाला अभिषेक पता नहीं कहाँ से कुछ ऐसे मित्र बना बैठा जो रोज़ किसी न किसी तरह का नशा करते और झूठे संसार में विचरण कर, अपने आप को सो कॉल्ड कूल जेनरेशन का नाम देते थे। शुरू -शुरू में तो अभिषेक का जेबखर्च इन सब क्रिया कालापो है ना के लिए पूरा पड़ जाता था किंतु ये लत तो ऐसा काल है जिससे कुबेर का खजाना भी समा जाए और किसी को कानों कान खबर भी न लगे तो यही हो रहा था। अभिषेक के साथ जब, जेब खर्च कम पड़ने लगा तब अभिषेक ने और पैसों की मांग रखी मीरा भाभी और मितेशभाई के सामने। अपने इकलौते बच्चे पर भला कौन शक करता और जब बच्चा इतना होनहार हो तब तो बिल्कुल भी नहीं। खैर, मीरा भाभी ने अभिषेक के जेब खर्च की रकम बढ़ा दी। पर एक मध्यमवर्गीय परिवार भला कितना जेब खर्च दे सकता जो ऐसी जरूरतों को पूरा कर सके? कामकाजी मेरा भाभी अपने काम पर। ये सोचकर जाती है कि स्कूल से घर आकर बच्चा बड़े और सुविधाजनक घर में सुकून से पढ़ रहा होगा। पर उनका राज़ दुलारा स्कूल ही नहीं पहुँच सका होता है। वह तो कहीं किसी सुनसान टूटे बिखरे मकान में अपने उम्र से कहीं बड़े और स्वच्छंद लोगों के साथ धुएं के आगोश में अपनी सुध -बुध खोकर पड़ा होता है। शाम ढलते ढलते जब पैसा खत्म होता, धुआं उड़ जाता और नशे का गुब्बार उतर जाता तब अभिषेक को याद। आती घर के सुकून और माँ बाप के संस्कारों की और वैसे भी उसकी ये तथाकथित दोस्ती तो सिर्फ तब तक ही चलती जब तक उनके पास पैसा होता। ऐसा हजम खेल खत्म यहाँ तो खेल धुएं में उड़ जाता था। खैर, अभिषेक शाम ढले घर आता और अपने बड़े से घर के एक कमरे की। चार दीवारों में समा जाता। इन दीवारों को बहुत ही प्यार से सजाया था मीरा भाभी ने अपने लाल की पढ़ाई लिखाई के लिए पर यह लाल। कोई और ही पढ़ाई कर रहा था। अगर सोचा जाए तो हर बार की तरह इस बार भी अभिषेक की भटकन भरी जिंदगी का सारा दौश परवरिश पर डाला जा सकता है, लेकिन मीरा भाभी और मितेश भाई को तो ऐसी कोई भी आदतें ना थी। सांत सरल मध्यम वर्गीय संस्कारी परिवार जो प्याज लहसुन भी दिन देखकर ही खाता था। जिनके मुँह से अनजाने में भी कोई अपशब्द न निकलते हों, जिनकी सुबह कृष्ण के नाम से और शाम। दूरदर्शन के समाचार से होती हो, वो बेचारे क्या ही गलत परवरिश दे देंगे।
और वैसे भी परवरिश देने का काम सिर्फ परिवार का तो अकेले नहीं हैं ना? परवरिश की जिम्मेदारी स्कूल और समाज की भी होती है। तो किस से यह चूक हो गई, स्कूल से या समाज से? या खुदही अभिषेक से? मुझे अच्छी तरह से याद है 1 दिन मेरे पास अचानक ही मीरा भाभी का फ़ोन आया था। बिना वजह ही इधर- उधर की बातें कर रही थी। मैं भी समझ रही थी कि बात कुछ और है पर कैसे कहती की सीधे साफ- साफ कहो क्या बात है? किस बात से आप इतनी परेशान है? किस बात ने आपकी आवाज में यह थरथराहट पैदा कर दी है? थोड़ी देर में भी घूमा, फिरा कर बात करती रही, फिर मैंने उनसे कहा भाभी आप मेरा विश्वास करो, अपने दिल की बात बेखौफ़ होकर कहो मेरे पास आपके राज सुरक्षित है
मेरी दिलासा वाली बातें सुनकर भाभी अचानक भरभरा के रो पड़ीं। और फिर जो उन्होंने बताया वह सुनकर मेरी भी रूह कांप गई। मीरा भाभी ने बताया कि घर के मंदिर में से धीरे धीरे चांदी के बर्तन गायब हो रहे। कभी। भगवान को स्नान कराने की थाली गायब हो जाती है। तो कभी पानी भरने पर लौटा। पहले तो मुझे लगा कि यह सब शायद मेरे ऑफिस जाने के बाद घर का काम। करने।आने वाली गीता बेन का होगा। पर वो तो बरसों से घर में काम कर रही है। पहले ऐसा कुछ भी नहीं। तो कौन ऐसा कर सकता है? घर। में हम तीन लोग और एक कामवाली ही तो होते हैं। इसी उधेड़बुन में। 1 दिन भाभी ने अभिषेक के कमरे की तलाशी ली और तलाशी में जो कुछ सामने आया। उसने उनका? दिमाग हिला कर रख दिया। अभिषेक मंदिर में से धीरे धीरे पूजा के बर्तन। सेंध लगा रहा था। धीरे धीरे एक एक बर्तन चुराके अपनी अलमारी में रख लेता और जब सरवत पड़ती है, उसे बेचकर ड्रग्स के पैसे चुकता करता। ड्रग्स की सलत ने। अभिषेक की 12 वीं की पढ़ाई। लगभग खत्म ही करती थी। बीते श भाई ने। पता नहीं किस किस के हाथ पैर जोड़कर? परीक्षा में बैठने की परमिशन दिलवाई। पर जिसने सालभर कुछ पढ़ा ही ना हो, वो परीक्षा कैसे पास करता? मितेश भाई खुद अभिषेक को परीक्षा दिलाने ले जाते हैं और अपने साथी वापस लेकर आते हैं। पर ये क्या जब रिज़ल्ट आया। अभिषेक लगभग सभी विषयों में फेल था। अभिषेक का 12 वीं क्लास में फेल हो जाना। भाभी को ऑफिस में ब्यस्त रहना। और मितेशभाई अपने। स्वास्थ्य। और ऑफिस के बीच झूलते रहते थे। ऐसे में कौन ध्यान देता अभिषेक पर? एक तो बारहवीं का रिज़ल्ट खराब आया था। ऊपर से घर में कोई ध्यान नहीं दे पा रहा था। ऐसे में अभिषेक। और भी ज्यादा। ड्रग्स के जाल में फंसता ही चला गया।
आखिरकार मितेश भाई के ऑफिस से छुट्टी लेकर। अभिषेक को। किसी। रिहेब सेंटर में भर्ती कराया। और उसका ही नतीजा था कि अभिषेक काफी ठीक था। पर अभी भी अभिषेक को लगातार। साथ की जरूरत थी। ऐसे में नीतीश भाई अपने। ऑफिस से छुट्टी करके दिन रात अभिषेक के साथ रहते। और उसे बारहवीं की पढ़ाई करने के लिए प्रेरित करते हैं। इस प्रेरणा का ही असर था कि इस साल अभिषेक पास हो गया था ठीक ठाक नंबरों से । एक तरफ अभिषेक का पास होना था तो। दूसरी तरफ परदेश। जाने के पेपर्स बनकर आ गए थे। बच्चे का भविष्य देखते हुए मीरा भाभी और मितेशभाई हमेशा -हमेशा के लिए परदेश की तरफ चल पड़े।
नए शहर नए देश नए माहौल ने। मीरा भाभी और मितेश भाई के लगातार प्रोत्साहन ने अभिषेक को बदलकर रख दिया था। अब वह परदेश में अपने लिए कोई नौकरी की तलाश में था।
परदेश में न सिर्फ अभिषेक अपने लिए नौकरी की तलाश कर रहा था बल्कि मीरा भाभी और मितेश। भाई को भी जीवन यापन के लिये नौकरी की तलाश थी? तो आगे के भाग में आप पढ़ेंगे। कि कैसे मीरा भाभी। मितेश।भाई और अभिषेक ने मिलकर। परदेश में अपने नए जीवन की शुरुआत की ।