परदेस में ज़िंदगी - भाग 3 Ekta Vyas द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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परदेस में ज़िंदगी - भाग 3

अब तक आपने पढ़ा :-

विदेश भाई का परिवार कैसे अपने ही देश में अप्रत्याशित तकलीफ़ों का सामना कर रहा था उस परसे विदेश जाने की कार्यवाही पूरी हो गई ऐसे मैं अपने देश में सब छोड़ छाड़कर नई उम्मीदों के सहारेमें तेज भाई भाभी और अभिषेक चल पड़े एक देश की ओर जिसे संभावनाओं का देश कहते हैं

अब आगे पढ़ीये:-

सामान्यतः लोग संकोच करते हैं अपने देश से बाहर पैर निकालने मैं, और अपने देश में अपनों केबीच चल रहे हैं रोज़मर्रा के सामान्य जीवन से बाहर निकलना ये बिलकुल आसान नहीं है व्यवस्थितपरिस्थितियां को छोड़ना या यूँ कहे की कहें कि पिक्चर परफ़ेक्ट जीवन को छोड़कर जाना बहुत हीचिंताओं से भरा होता है

पर कभी कभी एक जगह आकर समय रुक जाता है और हम फ़ैसला करते हैं जो हमें ख़ास पसंदनहीं आता हमारी मर्ज़ी का तो बिलकुल भी नहीं होता ,मर्ज़ी का भी नहीं होता और हमारे ख़ुद के हितमें भी नहीं होता और बहूत ही अधिक तनावपूर्ण भी होता है फिर भी हम जीवन मैं कभी ना कभी ऐसेफ़ैसले लेते हैं अपने लिए नहीं बल्कि अपनों के लिए यह जानते बूझते हुए भी कि यह फ़ैसला ख़ुद केहित में नहीं है पर क्या करें अब तो फ़ैसला हो चुका है वापसी का कोई रास्ता नहीं है और अपने हीफ़ैसले पर दुख मनाना सिर्फ़ सिर्फ़ शिकायतों को पैदा करता है

पर मरता क्या करता मितेश भाई फ़ैसला कर चुके थे अब वापसी का कोई रास्ता था देश कहाका शहर का ओर नौकरी का 50 की उम्र में बदलना अपने आप में एक कठिन परीक्षा है

ख़ुद की बसी- बसायी ज़िंदगी को और उखाड़कर फिर कही और बसाना बो भी अपने सुविधाजनकमाहौल संस्कृति समाज और अपनी शाख़ से उखड़ जाना है आज कल के ज़माने में वर्चुअल री बर्थकहलाता है किसी भी वयस्क के लिए

अंततः मितेश भाई पहुँच चुके थे एक ऐसे देश में जिसे संभावनाओं का देश कहते हैं ये और बात हैकि इस देश की बेरोज़गारी दर किसी भी विकासशील देश जैसे ही थी लगभग 5 % या 6% परकम से कम वह इस देश में अभिषेक का भविष्य बना सकते थे वो फिर से नई शुरुआत कर सकताथा अपने पिछले जीवन के कड़वाहटों को भूल सकता था और नहीं तो नई शुरुआत की उम्मीद वो तोकर ही सकता था


तो अब मितेश भाई का परिवार भी शामिल हो चुका था कभी ख़त्म होने वाली इस चूहा दौड़ में

मितेश भाई अपनी वर्तमान नौकरी मैं एक महत्वपूर्ण पद पर कार्य कर रहे थे कई भारतीयों के बीचउनकी कंपनी एक प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय कंपनी थी उसमें उनको भी तरक़्क़ी मिलने की संभावनाएं भीथी यदि वे एक मोटी रक़म ख़र्च करके M B A करके उस चूहा दौड़ में शामिल हो जाते जहाँ मात्र25, हज़ार रुपया प्रतिमाह मिलने की उम्मीद थी

मितेश भाई का शुरुआती अनुभव भी लगभग वैसा ही था जैसा कि हर एक प्रवासी का होता है परइन परीक्षा की घड़ियों में एक सुकून की ख़बर ये थी कि अभिषेक को काफ़ी मेहनत और ट्रेनिंग केबाद एक कॉल सेंटर में काम मिल गया था

साथ ही मीरा भाभी को भी एक subway restaurant, में काम मिल गया था बतौर सर्विस होस्टके रेस्टोरेंट का मालिक एक गुजराती परिवार था जो बड़े ही सुकून का विषय था

इससे अच्छा क्या हो सकता है किसी अप्रवासी के लिए के तीन पारिवारिक सदस्यों में से दो कोठीक -ठाक नौकरी मिल जाए मितेश भाई ये जानते थे कि ये बहुत-बहुत कठिन समय होने वाला हैके परिवार के दो सदस्य इस विशालकाय शहर के दो अलग अलग छोरों पर काम कर रहे हैं परकुछ होने से कुछ होना ज़्यादा बेहतर होता है

इन सब कठिन परिस्थितियों में मीता भाभी की बहन ने बहुत साथ दिया सिर्फ़ रोज़मर्रा कीसमस्याओं में बल्कि उन्हें रहने के लिए अपने घर में जगह भी दी जिसमें मितेश भाई का परिवारलगभग छह महीने तक रहा

कहीं स्वतंत्र होकर काम करना नौकरी ढूँढना भी भी एक नई शुरुआत ही होती है

मितेश भाई एक तरह से निर्भर हो चुके थे मीरा भाभी और अभिषेक को मिलने वाली तनख़्वाह पर परमरता क्या करता

उस पर से ये चिंता भी की अपने इकलौते बेटे को कॉलेज भेजना है उसकी पढ़ाई पूरी करवानी हैकुछ कमी थी

इनसब कठिन परिस्थितियों के बीच मितेश भाई जैसे सक्षम व्यक्ति ने नौकरियों के लिए लगभग250 आवेदन पत्र प्रस्तुत किए अपने पाँच महीने के प्रवास के दौरान। जिनमें लगभग60 से भीअधिक कॉर्पोरेट कम्पनियाँ 90 सरकारी संस्थानों और 70बेहतरीन खुदरा व्यापारिक संस्थानों में


इन विकट परिस्थितियों में एक दिन मितेश भाई ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति हुई या यूँ कहें के उस विकसितदेश की कडवी सच्चाई का पता चला कि वे पूरी तरह से सक्षम है ना सिर्फ़ अपने कार्यकारी अनुभवोंसे बल्कि शैक्षिक रूप से भी एक बढ़ती हुई अंतरराष्ट्रीय कंपनी में HR अधिकारी के रूप में कामकरने के लिए

पर क्या फ़ायदा सब कुछ कम ही पड़ जाता है आपका ज्ञान आपके रिफरेन्स और आपके पासमौजूदा विभिन्न प्रकार के प्रमाण पत्रएक विश्वास हासिल करने के लिए आप भी इस देश में ठीकसे काम कर सकते हैं या फिर उस विश्वास को हासिल करने में जिसकी तलाश में आप यहाँ आए थे


जब कभी कोई आपसे कहता है कि फ़लाँ व्यक्ति आपकी मदद कर सकता है तब दुनिया का कोईभी आपकी मदद कर सकता है पर वह फ़लाँ व्यक्ति तो नहीं ही करता है ।आप पर तब ही ध्यानदिया जाएगा जब आपको उसकी ज़रूरत हो ऐसा हमेशा संभव नहीं होता और वह आत्मविश्वासजिस कि आपको ज़रूरत होगी वो हमेशा मिले येयह ज़रूरी नहीं है


आप लोगों का ध्यान और विश्वास दोनों हासिल कर सकते हैं पर सर भी से ये दोनों ही तरह काभावनात्मक सहारा मिल जाए ये ज़रूरी नहीं है किंतु जो व्यक्ति आपकी ज़रूरतों की ज़रूरत है यदिउससे ये दोनों भावनाएँ मिल जाए तो क्या बात है या वह व्यक्ति ही मिल जाए जिससे आप चाहते होया जो आपको चाहता हूँ

इन् सब परिस्थितियों में भीमितेश भाई को पता चलता है कि दुनिया इतनी सारी भाषाएँ होने केबावजूद भी वह किसी एक भाषा को ना तो ठीक तरह से बोल सकते हैं और अपने विचार रख सकतेहैं सही समय पर सही शब्दों में कह पाने का हुनर शायद मितेश भाई में ना था अपने काम की जगहपर ठीक पहचाना मिलना भी उनके लिए एक समस्या था

सोशल मीडिया एक अच्छा माध्यम हो सकता है अपनी क़ाबिलीयत को लोगों की नज़रों में ज़ाहिरकरने का

जब मितेश भाई काम के दौरान अमरीका जैसे देश के काम करने के तरीक़े में धीरे धीरे पारंगत होनेलगे और उनका इस्तेमाल बाखूबी करना सीख रहे थे आगे बढ़ रहे थे तब प्रतिस्पर्धा इतनी अधिकथी की मितेश भाई जैसे अप्रवासियों को कई तरह के शोषण का भी सामना करना पड़ रहा था


यह व्यवस्था मितेश भाई को झांझकोर कर रख देती थी पर मरता क्या करता

परदेश में ऑक्सिजन से ज़्यादा नौकरी की दरकार होती है


संसार के हर प्राणी जीवन यापन के लिए कोई तो साधन चाहिए ही होता है और अपनीक़ाबिलीयत दोनों को ठीक से इस्तेमाल करने की तलाश में ही होता है

सबसे अधिक ख़राब परिस्थितियां तो ये हैं की अप्रवासी पूरी मेहनत और समझदारी के बाद भी वहविश्वास नहीं हासिल कर पाते हैं जो उन्हें मिलना चाहिए पर एक अच्छी बात है कि वह हमेशाकोशिश करते रहते हैं और अपने जीवन की यह बहुमूल्य पूँजी कहीं कहीं इस समाज को अर्पितकर देते हैं उम्मीद के साथ ही कभी कभी उन्हें भी आदरपूर्वक पहचाना जाएगा।

मितेश भाई ने अमेरिका जैसे बड़े देश में और क्या संघर्ष किये हम पढ़गे अगले भाग में