Pardesh me Jindagi - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

परदेस में ज़िंदगी - भाग 1

आर्ट ऑफ लिविंग संस्था के कच्छ सेंटर जहाँ मैं अपने अति उत्साही कार्यकर्ताओं के साथ एक बड़े से हॉल में जमीन पर बिछी लाल- काली धारी वाली दरी पर बैठी हूँ। आने वाले दो दिवसीय। श्री श्री के कच्छ प्रवास पर चर्चा हो रहे हैं। बहुत ही जोश का माहौल था हर एक कार्यकर्ता के पास श्रीश्री। के कार्यक्रम के लिए कुछ न कुछ खास सुझाव थे। सभी कार्यकर्ता गुरुदेव से अधिक से अधिक निकटता चाहते थे। साथ ही कुछ कार्यकर्ता यह भी चाहते थे कि गुरुदेव के दर्शनों का लाभ अधिक से अधिक लोगों को मिल सके। साथ ही इस प्रवास में गुरुदेव के शारीरिक स्वरूप को अधिक श्रम न करना पड़े। उन्हें सुविधाजनक माहौल मिल सके।

तो अब ऐसे महान कार्यक्रम की रूप रेखा पर विचार विमर्श के दौरान जहाँ हॉल में विशेष ऊर्जा का संचार हो रहा था वहीं दूसरी ओर बहुत ही हर्ष का माहौल था सब ख़ुश थे खिलखिला रहे थे और खिले हुए थे जैसा कि अनेको सत्संग में श्री श्री ने कहा है कि तुम फूल की तरह हल्के और प्रसन्न हो जाओ तो बस उसी ख़ुशनुमा माहौल में मेरा फ़ोन घनघना उठा पहले तो लगा फ़ोन देखूं ही ना पर घर पर वृद्ध सास- ससुर का ख़याल आते ही फ़ोन देखा तो ये क्या स्क्रीन पर तो हमारे बहुत ही पुराने पारिवारिक मित्र मितेश भाई का नाम चमक रहा था। अभी तो अमेरिका में रात के दो बजे होंगे इस समय फ़ोन ज़रूर कोई बहुत ही आवश्यक काम होगा नहीं तो मितेश भाई इतनी रात को फ़ोन न करें। ख़ैर जय श्री कृष्णा के संबोधन के साथ डरते डरते वार्तालाप की शुरुआत की मन आशंकाओं से घिरा हुआ था ऐसे मैं उधर से आवाज़ आयी जयश्री कृष्णा भाभी के जवाब में मैंने भी कहा जैसे इटला मोड़ा राते सब ठीक तो है जवाब मिला 1 वॉट्सऐप मैसेज किया है आप ध्यान से पढ़ लेना फिर आराम से सोचकर बात करना मैं जानता हूँ कि आप गुरुदेव के कच्छ प्रवास पर बहुत ही व्यस्त होगी ,पर बात दिल में समा नहीं रही थी इसलिए आपको यह मैसेज किया इस उम्मीद के साथ कि जब आप श्री श्री के दर्शन करे । तो मन ही मन में ही सही मेरे सवाल का जवाब भी भाग लेना आख़िर इस परदेस में किस से दिल की बात करूँ यहाँ के डेस्पोरिक जीवन में ना तो कोई सच्चा मित्र है ना ही मार्ग दिखाने वाला कोई गुरु इसीलिए आप की याद आई।

कृपया मेरी तरफ़ से हाथ जोड़कर गुरुदेव से प्रार्थना कर लीजिएगा भले ही मन ही मन कर , मैं उनकी व्यस्तताओं को समझता हूँ और आपकी मर्यादाओं को भी, फ़ोन रखता हूँ जय श्री कृष्णा । जयश्री कृष्णा कहकर मैंने भी मोबाइल तो बंद कर दिया पर विचार की चक्की चल पड़ी। और मन रूपी पहिया वर्तमान समय को छोड़कर भूतकाल में विचरण करने लगा था

गुजरात प्रदेश का महानगर सूरत जहां सामान्य से दो कमरों के मकान में बहुत ही जहीन मीरा भाभी पूरी डायनिंग टेबल पर तरह तरह के अल्पाहार की सामग्री सजाए बैठी थी ।और बहुत ही आग्रह से एक- एक वानगी परोसकर खिला रही थी ।पतिदेव के लिए अंकुरित सलाद थेपला दहि लड्डू और मसाला चाय बनाई थी, तो मेरे लिए आलू परांठा दही लस्सी। और हमारे दो वर्षीय बेटी के लिए दूध दलिया और ना जाने कितने ही डब्बों में रखे तरह तरह के सूखे नाश्ते हर एक नाश्ते को चख लेने का प्यार भरा आग्रह।

तो ऐसी थी हमारी मीरा भाभी उन्हें देखकर हर स्त्री उनके जैसी सर्वगुण संपन्न और आदर्श गृह संचालिका, माँ और पत्नी बनने की तमन्ना कर सकती थी।

इन सब गतिविधियों में अभिषेक मित्र परिवार का इकलौता बेटा भी कहाँ पीछे था माँ के ही पद चिन्हों पर चलते हुए अपने काका काकी और बहन की सेवा में लगा हुआ था साथ ही इस प्रयास में भी था कि जल्द से जल्द अपनी सारी उपलब्धियों से मेहमानों का परिचित करा दें और अपनी बहन के साथ जी भर खेल भी लू आखिर शाम तो सब वापस ही चले जायेंगे।

खैर दिन भर भाभी और अभिषेक के साथ बहुत ही मज़े का बीता और शाम ढलते- ढलते मितेश भाई भी ऑफिस से वापस आ गए सामान्य मध्यम वर्गीय पुरुष की तरह मितेश भाई भी एक खुशनुमा व्यक्तित्व के मालिक थे ।जो भी कमाते थे उसे खुशी -खुशी परिवार और बच्चे की शिक्षा पर खर्च करते और निश्चिंत नींद सो जाते तो ऐसी थी मेरी पहली मुलाकात मीतेश भाई के परिवार के साथ। जो ,थे तो पतिदेव के मित्र पर अब मेरे साथ भी उनका एक खास संबंध था

बीच के कुछ सालों में अपनी पारिवारिक ज़िम्मेदारियों और बेटी की परवरिश में व्यस्तताओं के चलते मिलना जुलना न के बराबर हुआ पर फ़ोन पर हाल चाल मिलते रहे हैं ।बड़े होते हुए अभिषेक की सफलताओं के बारे में भाभी और मितेश भाई ख़ूब ख़ुश होकर बात करते थे उनके पारिवारिक सफलता देखकर हम बहुत प्रसन्न थे।

इतने वर्षों तक हम चाहकर भी कोई मुलाकात नहीं कर पा रहे थे दोनों ही परिवार की अपनी व्यस्तताएं थीं दोनो ही परिवारों में बच्चे बड़े हो गए थे और अभिषेक ने 10 वीं कक्षा पास कर ली थी जिंदगी अपनी गति से दौड़ रही थी के अचानक मितेश भाई के एक फ़ोन कॉल ने हमें सोचने पर विवश कर दिया थोड़े से सोच विचार के बाद सप्ताह अंत पर सड़क मार्ग से ही सूरत की तरफ़ रवाना होना ही हमनें ठीक समझा खैर लंबी थका देने वाली रात्रिकालीन सड़क यात्रा के बाद सुबह के कुछ 9:10 बजे हम दिए गए पते पर पहुँचे, खूबसूरत टाउनशिप साफ सुथरा माहौल देखकर मन प्रसन्न हो गया और यात्रा की थकान लगभग भूल ही गए पर शरीर की थकान अभी भी पूरी तरह से गयी न थी ।ये थकान जैसे एक मसाला चाय के इंतजार में ही बैठी थी।

मितेश भाई संग पीछे छूट गए सालो पर खूब चर्चा हुई पर साथ ही चाय की तलब पीछा ही न छोड़ती थी। घूम -घूम कर नए घर और साज सज्जा की कई- कई बार तारीफ़ की पर ,गृहस्वामी याने कि मीरा भाभी अब तक कहीं न दीखी थी । नये बने हुए हैं घर के हर कोने में भाभी के हाथों की छाप को स्पष्ट देखी जा सकती थी पर भाभी ही दिखने में नहीं आ रही थी ख़ैर बहुत देर के बाद ही सही, भाभी प्रकट हुई……… न कोई अभिवादन न कोई हाल चाल बस अपने में ही मग्न कभी घर के दरवाज़े पर कोई पूजा करती ,कभी तुलसी को जल चढ़ाते हैं और पूरे जोश के साथ मंत्रोच्चारण करती ।ये और कोई भी हो सकती थी पर हमारी भाभी तो बिलकुल भी नहीं थी ।जो घर आए मेहमान से मुस्कुराकर 2 बोल भी ना बोले। इसी विचार में हम पति पत्नी एक दूसरे को शांत रहने का इशारा करते रहे और बैठे रहे बहुत लंबे इंतजार के बाद भाभी हमारे पास आकर बैठी पर कुछ अनमनी सी कुछ अपने आप से बाहर सी थी कुछ भी बातें कर रही थी उनकी बातों का साथ आंखें नहीं निभा पा रही थी जैसे जैसे समय गुजर रहा था ना तो अपने नए घर की ख़ुशी उनके चेहरे पे थी न ही हम से मुलाक़ात की प्रसन्नता कहीं कोई चिन्ह दिखाई देता था।

करते कराते हम सब खाना खाने बैठें तो मेरा माथा ही ठनक गया ।क्या ये वही खानपान की व्यवस्था है जो मीरा भाभी वर्षों से करती आयी थी। कहाँ गयी वह सुरुचिपूर्ण तरीके से तैयार की गई भोजन व्यवस्था ,खैर मित्र परिवार से मिलने की खुशी में हम इन सब बातों पर कुछ खास ध्यान न दे पाए थे पर मन में कुछ खटक जरूर गया था।

कहीं कहीं यह महसूस होने लगा था की शायद मीरा भाभी सभी तरह के भौतिक सुख होने के बावजूद भी किसी अभाव मैं जी रही हूँ।

हम इस परिवार के मानसिक बुलंदियों के साक्षी रहे हैं ।अब तो बस आर्थिक सजा सज्जा को ही देख पा रहे थे। क्यों हमें अपने पुराने पारिवारिक मित्र के मन तक जाने वाले रास्ते की GPS सेटिंग नहीं मिल रही थी ।

खैर शाम का भोजन जल्दी निपटाकर भावी सोने चली गई पर भी देश भाई कामन कुछ खुलने लगा था रुक रुक कर उन्होंने अभिषेक के विषय में सारी दुखद जानकारियां और उसके गिरते स्कूल रिज़ल्ट और उसके संगत दोनों ही बातों की जानकारी हमें दी है हम क्या करते सांत्वना और अपनी समझ के अनुरूप कुछ सलाह देकर एक दो विशेषज्ञों से मिलने का प्लैन बनाया जो सुनकर मितेश भाई ने राहत की दो चार लंबी लंबी सांसें ली और मित्र परिवार के प्रति कृतज्ञता का भाव लिए सोने चले गए ।

दूसरे दिन किए हुए वादे को निभाकर अच्छे की उम्मीद के साथ हम भी वापस अपने घर को आए

फिर कुछ सालों का विराम और फ़ोन पर खबरें मिलती रहीं, कहीं कुछ ठीक होता सा लगता फिर अचानक सब बिखरता सा दिखाई देता ।इसी जिंदगी को उतार चढ़ाव में पता चला कि मितेश भाई का परिवार भारत से अमेरिका जा रहा है हमेशा- हमेशा के लिए इस खबर ने हमें सोचने पर मजबूर कर दिया कि उम्र के पचासवें दशक में कौन अपना देश अपना परिवार अपने मित्र छोड़ कर जाता है ।पर जाने वाले को कौन रोक सकता है, तो मितेश भाई का परिवार अपनी जड़ों को छोड़कर अमेरिका चले गए हमेशा- हमेशा के लिए।

परदेस मैं मितेश भाई की ज़िंदगी में क्या उथल-पुथल मची जानने के लिए पढ़िए कहानी का दूसरा भाग।



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