सरकार के विरुद्ध विद्रोह करने का अभियोग लगाकर धारा 121 A के आधीन वीर सावरकर जी पर मुकद्दमा चलाया गया। इन्हें बम्बई से नासिक हथकड़ी लगाकर लाया गया था। जब ये नासिक में पहुॅच गये तो वहां किसी ने इन्हें एक पत्र दिया जिसमें इस बात का उल्लेख था कि फ्रांस की सरकार ने, इंगलैण्ड से, अपनी सीमा में से गिरफ्तार करके ले जाया गया हुआ व्यक्ति वापिस मांगा है। उन दिनों क्रान्तिकारियों के मुकद्दमों की जंग में सर्वत्र चर्चा हो रही थी और सावरकर जी के मुकद्दमे की तो बहुत ही हलचल थी। इनको नासिक से बम्बई हाईकोर्ट ले जाया गया। वहां इनके मुकद्दमे के समय सशस्त्र घुड़सवारों का बड़ा सतर्क पहरा रहा करता और जनता की भी अपार भीड़ रहा करती थी। जब सावरकर जी जेल से कोर्ट तक आते तो मार्ग में जनता हृदय से अभिनन्दन करती । इनका मुकद्दमा डेढ़ मास तक चला और २३ दिसम्बर सन् १९१० के दिन जजों ने अपना निर्णय सुना दिया। सावरकर जी पर तीन भयंकर अपराध लगाये गये। जजों ने अपने निर्णय में यह भी कहा कि सावरकर को फांसी का दण्ड मिलना चाहिये था, किन्तु हम केवल कालेपानी का ही दण्ड दे रहे हैं। दो आजीवन कालापानी और नजरबन्दी आदि सब मिलाकर सावरकर जी को ५५ वर्ष का कठोर दण्ड दिया गया। जिस दिन जजों द्वारा निर्णय सुनाया जाने को था, उस दिन तो कोर्ट के चारो ओर सुनने वालों का अपार जन समुदाय समुद्र की भांति उमड़ आया था । पुलिस का उस दिन बहुत विशेष प्रबन्ध किया गया। अदालत का निर्णय सुनने के बाद सावरकर जी ने कहा “तप और बलिदान से ही हमारी प्रिय मातृभूमि निश्चय ही विजय पायेगी, यह मेरा पूर्ण विश्वास है। इसीलिये मैं तुम्हारे कानून का यह कठोर दण्ड भोगने के लिये तैयार हूँ।” यह कहकर भारत मां के लाल वीर सावरकर ने कैदियों के वस्त्र पहन लिये। इन्हें देखकर एकत्र भारी भीड़ के हृदय में भी मातृभूमि के प्रति पवित्र भावनाये उद्वेलित होने लगीं। ‘स्वातन्त्र्य लक्ष्मी की जय’ और 'वन्देमातरम्' आदि का जयघोष करके जनता ने अपने वीर सावरकर को हृदय से प्रणाम और अभिनन्दन किया। जनता के इस उत्साह को देखकर पुलिस अधिकारियों ने जनता को भी दबाने का प्रयत्न किया।
काले पानी के दण्ड के साथ-साथ सावरकर जी की सारी सम्पत्ति भी जब्त कर ली । सन् १९११ में सावरकर जी अण्डमान पहुँचे। वहां की जेलों की बहुत ही बुरी हालत थी। कमरे अंधेरे तथा कच्चे थे । बरसात होने पर छत से पानी टपकता था । अण्डमान का जलवायु भी बहुत बुरा है। इसलिये नये आदमी को वहां मलेरिया आदि हो जाना तो एक साधारण-सी बात थी । सावरकर जी सदा संयमपूर्वक रहते थे इसलिये ये बीमारी से बचे रहे। वर्ष में एक बार घर पत्र लिखने की आज्ञा मिलती थी । सावरकर जी के बड़े भाई गणेश दामोदर सावरकर को पहिले ही काला पानी मिल चुका था, अब वीर सावरकर भी वहां पहुँच गये। कुछ वर्षों के पश्चात् श्री भाई परमानन्द जी भी वहीं पहुँच गये। बंगाली नवयुवक तो कई पहिले से ही वहां सड़ रहे थे। सावरकर-बन्धुओं को सबसे अलग रखा जाता था और इन्हें परस्पर भी मिलने नहीं दिया जाता था। यहां तक कि बड़े भाई को अभी तक यह मालूम भी नहीं हुआ था कि मेरा प्रिय भाई विनायक दामोदर सावरकर भी वहां ही आ पहुॅचा है। वे सावरकर जी को तात्या कहा करते थे। एक दिन बाग़ में घूमते हुए दोनों की भेंट हो गई। बड़े भाई ने आश्चर्य से पूछा “तात्या! तूं इथें कसा?” अर्थात् तात्या, तु यहां कैसे आ गया। सावरकर जी ने अपनी सारी कथा कह सुनाई। सावरकर जी अण्डमान में अनपढ़ों को पढ़ाया करते और चक्की पीसा करते थे। सावरकर जी के हृदय में मातृभूमि को स्वतन्त्र करने की भावनायें वहां भी जागरूक होकर कार्य कर रही थीं। सावरकर जी गीत बनाया करते और उन्हें दीवारों पर लिख दिया करते थे । आन्दोलन का उन्होंने इस समय केवल यह ही उपाय सोच रखा था। किन्तु अधिकारी दीवारों पर लिखे हुए को भी मिटाने लगे । सावरकर जी केंदीयों में भी देश प्रेम के भाव भरते ही रहे । महायुद्ध छिड़ जाने के कारण राजनैतिक कैदियों के साथ कुछ अच्छा व्यवहार होने लगा। इसलिये भारत से कुछ पुस्तकें मंगाकर वहां पर एक छोटा सा पुस्तकालय बनाया गया। सावरकर जी नवयुवक कैदयो को अर्थशास्त्र, इतिहास तथा राजनीति आदि का अध्ययन करने के लिये उत्तेजित करते और स्वयं इन विषयों पर व्याख्यान देते। सावरकर जी ने अण्डमान में हिन्दुओं को मुसलमान होते देखकर शुद्धि का भी काफी कार्य किया ।
ब्रिटिश अधिकारियों का विचार था कि अण्डमान में जाकर सावरकर के विचार ठीक हो जायेंगे, पर उनकी आशाओं पर तुषारपात हो गया। सावरकर जी पर मानसिक तथा शारीरिक कष्टो का प्रभाव अवश्य हुआ। अत्यन्त परिश्रम के कारण सावरकर जी बीमार हो गये। सन् १९२० में भाई परमानन्द जी अण्डमान से छूटकर लाहौर आये। उन्होने आते ही सावरकर जी को छुड़ाने के लिये भी प्रयत्न आरम्भ कर दिया। उन दिनों पार्लियामेण्ट का एक मेम्बर 'काल बेजवुड' भारत आया। वह लाहौर भी आया और वहां लाला लाजपतराय के मकान पर ठहरा लाला जी ने भाई जी की मुलाकात उनसे करा दी। लगातार ६ घंटे के वाद-विवाद के बाद उसने सावरकर के
लगातार छुटकारे के लिये प्रयत्न करने का वचन दिया। जब 'काल बेजवुड भारत से वापिस लौटने लगा तो वह बम्बई के गवर्नर से मिला । बम्बई के गवर्नर ने बतलाया कि अब मेरी जगह दूसरा ही गवर्नर आने वाला है। इस लिये बेजवुड ने इंगलैण्ड जाकर उस नये गवनर से सावरकर-बन्धुओं को अण्डमान से भारत वापिस बुलाने के लिये कहा। नये गवर्नर ने भारत आते ही यह कहकर कि, सावरवर बन्धुओं को अण्डमान का जलवायु हानिकारक प्रतीत होता है उन्हें भारत वापिस बुला लिया। अण्डमान में सावरकर जी को कुछ क्षयरोग-सी शिकायत हो गई थी और ये इतने निर्बल हो गये कि इनके जीवन की भी कम आशा रह गई थी। अण्डमान में आपका वजन ११९ पौण्ड से घटकर केवल ९८ पौण्ड रह गया सन् १९२४ में दोनों भाइयों ने फिर अपनी मातृभूमि के दर्शन किये और कलकत्ता बन्दरगाह पर उतरे। वहां फिर सावरकर जी को अपने बड़े भाई से अलग कर दिया गया और इन्हें रत्नागिरि जिले की जेल मे भेज दिया गया।