एक दुआ - 17 Seema Saxena द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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एक दुआ - 17

17

उसे लगा, हम किसी के बारे में कोई भी राय नहीं बना सकते, अगर हम उसके साथ थोड़ा वक्त न बिता लें और थोड़ी देर खुलकर बात न कर लें। सही में किसी को बरतने के बाद ही उसे जाना समझा जा सकता है । गाड़ी को बैक करके ड्राईवर ने यू टर्न लिया और फ़र्स्ट गियर में चलाने लगा । मेन मार्केट होने की बजह से रोड पर काफी भीड़ थी । विशी ने मिलन की तरफ देखा वे चुपचाप उसे ही देख रहे थे, जब दोनों की नजरें मिली तो विशी ने हल्के से मुस्कुरा दिया और मिलन ने भी अपनी मुस्कान से उसका स्वागत किया ।

“आपसे एक बात कहूँ ?” आखिर विशी ने मौन को तोड़ा ।

“हाँ कहो न ।” वे एकदम से बोल पड़े शायद वे भी इस खामोशी को तोड़ना चाहते थे।

“मैं आपको मिलन जी कहती हूँ तो आपको कुछ बुरा तो नहीं लगता है न ?”

“नहीं इसमें बुरा मानने की क्या बात है भला ? तुम चाहो तो मुझे सिर्फ मिलन कह कर भी बुला सकती हो।”

“नहीं मिलन जी ही ठीक है क्योंकि छोटे बड़े सब लोग आपको सर कहते हैं फिर ऐसे में आपको अगर मिलन कहूँगी तो मुझे ही अच्छा नहीं लगेगा लोगों की बात तो जाने ही दें कि वे क्या सोचेंगे ?”

“अभी तो कह सकती हो न ?”

“अभी कहूँगी तो फिर आदत पड जायेगी । वैसे उसका मन तो मिलन कहने का ही करता है लेकिन उनकी जॉब ही ऐसी है कि उनको मान सम्मान मिलना कोई बड़ी बात नहीं।”

“क्या सोचने लगी विशी ?” वे बोले ।

“कुछ भी तो नहीं।” उनका उसे बार बार विशी कह कर बुलाना बहुत अच्छा लग रहा था क्योंकि कोई किसी को नाम लेकर बुलाता है तो बहुत ज्यादा अपनापन सा लगता है ।

“और सुनाओ आपको प्ले करने के अलावा और क्या हॉबी हैं ?”

“लिखना, पढ्ना और घूमना ।”

“हाँ याद आया, तुम तो कवितायें भी लिखती हो न ?”

“जी कभी कभार लिख लेती हूँ ।”

“हाँ तुमने मुझे बताया था, मैंने ब्लॉग पर पढ़ी भी थी ।”

“कैसी लगी आपको ?”

“कुछ तो बहुत ही प्यारी लिखी हैं ।”

हाँ, मुझे भी यही लगता है लेकिन मैं अपनी हर रचना को अपने दिल की कलम से लिखती हूँ ।”

“सच में मुझे खुशी हुई कि मुझे इतनी प्रतिभावान लड़की से मिलने का मौका मिला, काश मेरे अंदर भी कुछ अच्छाइयाँ होती ।”

“अरे यह आप क्या कह रहे हैं ? आप तो इतनी अच्छी जॉब पर हैं, सब आपकी इतनी इज्जत करते हैं, मैं तो आपके सामने कुछ भी नहीं हूँ।”

“जॉब तो आप भी करती हो न, और जॉब जॉब होता है कोई अच्छा या बुरा नहीं।” वे थोड़ा सा उत्तेजित होते हुए बोले ।

“नहीं मिलन जी ऐसा नहीं है, मुझे लगता है आपके अंदर जो भावनाएं हैं वे हर किसी के अंदर नहीं होती आप दूसरों के काम की इज्जत करना जानते हो ।”

“मैं भी आप सबकी तरह ही एक इंसान हूँ और मेरे अंदर भी वही सब भावनाएं हैं, जो आपके अंदर हैं । प्लीज विशी मुझे एक साधारण इंसान ही रहने दो ।”

उनके यह शब्द सीधे विशी के दिल को छु गये, क्या वे सच में खुद को उसकी तरह से समझते हैं जैसे उसके मन में प्रेम की भावनाएं हिलोरे ले रही हैं क्या वैसे ही वे भी उसके लिए ऐसा ही सोच रहे हैं । विशी जो अभी तक खूब खुल कर बात कर रही थी अचानक से वो खामोश हो गयी और उसकी नजरें मिलन की तरफ उठ गयी जो उसी की तरफ देख रही थी । एक ही सीट पर बैठे हुए वे दोनों और कोई नहीं। आगे ड्राइवर अपनी गाड़ी चलाने में मगन । खामोश होते ही दिल के तार आपस में मिलकर साथ साथ खनकने लगे थे, मानों कोई लय में गीत बज रहा हो और धड़कने साथ में नृत्य कर रही हैं। शरीर की रोमावलियाँ भी झंकृत सी हो रही थी । न एक दूसरे का हाथ पकड़ा न शरीर का कोई अंग भी एक दूसरे से छुआ फिर यह कैसी मधुर ध्वनि है जो आपस में टकराने से पैदा होती है ?

उसने अपनी नजरें नीची कर ली शायद यह नजरों के मिलने से कोई तरंगें पैदा हो रही हैं ?

“विशी आपको कहाँ तक जाना है ?” मिलन ने मौके की नजाकत को भांपते हुए बात शुरू कर दी ।

“जी।” वो एकदम से चौंक गयी ।

“जी नहीं कुछ बोलो भी । कहाँ जाना है घर या रिहर्सल पर ?”

“आप एक काम करिए मुझे रिहर्सल के लिए हाल तक छोड़ दीजिये ।“ अगर घर तक लेकर जाऊँगी तो अंदर भी बुलाना पड़ेगा और भैया घर में हुए तो कहीं कुछ कहें फिर अच्छा नहीं लगेगा इसलिए रिहर्सल हाल तक जाना ही सही है, वहाँ से पैदल या रिक्शे घर आ जायेगी, यह सब विशी ने मन में सोचा ।

“लेकिन विशी, अभी इस समय कौन होगा वहाँ पर ?”

“मैडम तो जरूर ही होंगी क्योंकि अब समय ही नहीं बचा है प्ले को तैयार करने का।”

“ठीक है, मैं वही छोड़ देता हूँ फिर मुझे जल्दी ही ऑफिस भी जाना है।”

“आज तो सनडे है न ?”

“हाँ वो तो है लेकिन कुछ जरूरी काम है ।”

सच में ज़िम्मेदारी भी बढ़ जाती है काम की जब हम बड़े पद पर होते हैं । वैसे अच्छा ही है अन्यथा वे भी आ जाते और अगर मैडम नहीं मिलती तो पक्का घर तक छोड़ कर जाते । भगवान आज बचा ले । उसने मन ही मन प्रार्थना की ।

वो जब भी मन ही मन प्रार्थना करती सामने से ईश्वर के रूप में शिव जी आ जाते और अब मिलन की घुली मिली तस्वीर भी साथ में आ रही थी । अरे यह सब क्या है वो तो अपने ईश्वर को याद कर रही है जिनसे अपने मन की हर अच्छी और बुरी बात कह कर मन को हल्का कर लेती है लेकिन आज ईश्वर के रूप में मिलन क्यों नजरों के सामने आ जा रहे हैं उसने अपनी आँखें और कस कर बंद की लेकिन भोले बाबा के साथ मिलन का अक्स भी साथ में उभर आ रहा था । उसने जल्दी से अपनी आँखें खोल ली और बाहर की तरफ देखने लगी ।

नबम्बर महीने की अभी शुरुआत ही हुई थी इसलिए उत्तर भारत में थोड़ी थोड़ी सर्दी का अहसास होने लगा था अभी दोपहर का समय था धूप में भी सर्दी का महसूस हो रही थी मानों सूर्य ने गरम किरणों का दुशाला उतार कर सर्द कंबल लपेट लिया हो ।

विशी ने उनकी आँखों में देखा और शरमा कर अपनी नजरें झुका ली । उसकी धड़कने तेज हो रही थी । बाहर बहुत भीड़ थी लेकिन अंदर वे दोनों अकेले । ड्राइवर अपनी ही धुन में मगन बैठा हुआ हल्के हल्के गाड़ी चला रहा था।

क्या हुआ विशी ? मैं ऑफिस में तुम लोगों का बॉस जरूर हूँ लेकिन हूँ तो एक इंसान ही मेरे पास भी वैसा ही दिल है जैसा तुम लोगों के पास है और उतना ही तेज धड़कता है जितना किसी आम इंसान का ।

विशी शांत ही रही, कुछ भी नहीं बोली ।

“सुनो विशी, तुम्हें पता है मुझे भी लिखने पढ़ने का बहुत शौक है लेकिन समय की कमी के कारण कुछ नहीं लिख पाता हूँ ।”

“हाँ सही कहा, समय की कमी, लेकिन मिलन जी समय न होने का दुख तो हर किसी का है इसलिए हमें समय निकलना नहीं चुराना पड़ता है और जो इस समय को चुराने की कला को सीख जाता है वो कभी भी इस दुख से दुखी नहीं होता कि मेरे पास समय नहीं है ।“

“वाह क्या बात कही है विशी जी । आप कम बोलती हैं लेकिन जो भी कहती हैं सटीक कह देती हैं ।”

“जी मुझे लगता है एक लेखक या एक कलाकार किसी भी बड़े अफसर से बड़ा होता है क्योंकि अफसर जब तक सीट पर है तभी तक है और रिटायर होने के बाद उसकी कोई अहमियत नहीं है, जबकि लेखक अपनी कृति के साथ अजर अमर हो जाता है ।”

“वाह । यह तुमने बिलकुल सच कहा । अफसर की अहमियत सिर्फ कुर्सी रहने तक ही होती है ।”

“हाँ जी हम तो सच ही कहते हैं ।” विशी इतराई ।

“ठीक है ठीक है हम भी तुमसे सीखेंगे दिल चुराने की कला । दिल नहीं समय चुराने की कला ।” वे हड़बड़ाते हुए बोले ।

विशी देख रही थी कि इस नीली बत्ती कि गाड़ी को रोड पर चलने के लिए आराम से जगह मिलती जा रही थी जबकि इधर से फोरव्हीलर चलाने की भी अनुमति नहीं है फौरन चालान हो जाता है ।

“अरे विशी अब कहाँ खो गयी ? देखो तुम्हारा डेस्टिनेशन आ गया ।” मिलन ने थोड़ा ऊंचे स्वर में कहा ।

“जी अपने कुछ कहा ?” विशी एकदम से चौंकते हुए बोली ।

“हाँ भाई आपको उतरना नहीं है क्या ? या फिर आपको भी मेरे साथ ऑफिस चलना है ?” मिलन ने मज़ाकिया लहजे में कहा ।

“जी हाँ, अरे नहीं नहीं .... ”वो थोड़ा हडबड़ाई ॥

“क्या हाँ हाँ और क्या नहीं नहीं ?”

“जी कुछ नहीं । अच्छा बहुत शुक्रिया यहाँ तक लाने के लिए ।” विशी ने उनकी तरफ देखते हुए कहा, वे भी उसकी तरफ ही देख रहे थे । मानों अपनी आँखों से ही सब कुछ कह देना चाह रहे थे जिसे विशी समझ कर भी नहीं समझना चाहती थी ।

गाड़ी के रुकते ही ड्राइवर ने उतर कर उसकी तरफ वाला गेट खोल दिया । विशी जल्दी से उतरी और मिलन को हाथ हिलाकर बाय किया । मिलन अब बिलकुल शांत बैठे थे, उनके चेहरे से उदासी साफ झलक रही थी । वे उसे देख कर चुपचाप हाथ हिलाने लगे, “विशी तुम आ गयी ?” यह मैडम की आवाज कहाँ से आ रही है उसने मिलन की तरफ से नजर हटाकर मैडम की आवाज की तरफ देखना शुरू कर दिया । उसने देखा वे उसी की तरफ बढ़ी चली आ रही हैं ।

“जी मैडम, आज जल्दी आ गयी । प्ले के दो दिन ही तो बचे हैं और मेरी छुट्टियाँ भी बहुत हो गयी थी ।“ विशी ने बात बनाते हुए कहा ।

 

क्रमशः