एक दुआ - 13 Seema Saxena द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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एक दुआ - 13

13

“कहाँ हो विशी ? तुम आजकल रिहर्सल पर नहीं आ रही हो ?” मिलन ने बड़ी जल्दी जल्दी शब्द कहे।

“मैं घर में ही हूँ आजकल मेरी दीदी आई हुई थी न बस इसलिए नहीं आ सकी !” शुभी अचानक से मिलन का फोन आया देख थोड़ा घबरा भी गयी थी ! मन में कहीं खुशी भी हो रही थी और कहीं थोड़ी घबराहट भी ।

“अरे वाह ! कोई बात नहीं बस बता देती, यहाँ पर मैडम बहुत नाराज हो रही थी तो मैंने सोचा कि चलो फोन करके पूछ लिया जाए !”

“ओहह ! क्या आज शाम को रिहर्सल होगी ?”

“हाँ होनी तो चाहिए क्योंकि समय कम बचा है ! ऐसा करो तुम खुद ही मैडम से फोन करके पूछ लो न ?”

“नहीं जी ! मैं शाम को आकर वहीं पर मैडम से बात कर लूँगी !”

“हाँ यही ठीक भी रहेगा ! ओके चलो बाय !” वो बाय कह पाती उससे पहले ही मिलन ने फोन रख दिया था ।

उसे दो तीन दिन हो गए रिहर्सल पर न जाते हुए जबकि मैडम ने कहा था कि जो छुट्टी करेगा उससे कुछ कहेंगे नहीं बल्कि उसे प्ले से हटा देंगे । कोई नहीं शाम को चली जाऊँगी जो भी होगा देखा जायेगा ! मम्मी से कह देती हूँ कि आज शाम को रिहर्सल पर जाना है ! मम्मी पूजाघर में आँखें बंद किए हुए आसन लगाए हुए ध्यान कर रही थी ! अब मम्मी तो ध्यान मगन हैं इनसे कैसे कहें ? करीब एक घंटा तो ध्यान लगाएँगी ही ! अभी भैया नहीं हैं तो मम्मी से कहना ठीक है लेकिन भैया के आने के बाद अगर कहा तो कहीं मम्मी ने मना कर दिया तो फिर हो गया रिहर्सल पर जाना ! क्या करूँ मैं ? थोड़ी देर बाद कह दूँगी अभी भैया को आने में थोड़ी देर तो है ही ! अपने कमरे में आकर उसने तकिये को उठाया और अपनी बाँहों में लेकर सीने के नीचे दबाया और पेट के बल बेड पर लेट गयी और मिलन के बारे में सोचने लगी कितना प्यारे हैं मिलन ! उसे रिहर्सल में नहीं देखा तो फौरन फोन कर दिया, एक बार भी नहीं हिचके कि क्या सोचेगी विशी या उसके घर वाले ! ऐसा ही तो होता है दोस्ती का रिश्ता ! जिसमें कुछ सोचना पड़े परेशान होना पड़े लेकिन कुछ कह न पाओ वो भी कोई रिश्ता होता है क्या ? नहीं वो तो सिर्फ दिखावा और स्वार्थ होता है ! शायद मैं भी इस तरह से उसे फौरन फोन नहीं कर पाती ! विशी ने सोचा।

दीदी के आने के बाद तो सब कुछ भूल ही गयी थी । उस समय घर और दीदी जीजू ही याद रह गए थे । वैसे दीदी के आने के बाद दिन कहाँ गए पता ही नहीं चले थे ! मिलन उसे याद कर रहे हैं और याद करते भी रहे होंगे तभी हिचकी आती थी और उसने तब भी उसके बारे में नहीं सोचा ! यही सब सोचते हुए कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला ! सोने के बाद भी वो ख्वाब में चले आये थे । वे अपने हाथ में बड़ा सा गुलाब का बुके पकड़े हुए सीधे उसके कमरे में आये, उसके माथे को प्यार से सहलाया और थोड़ी देर तक उसे प्रेम से देखते रहे फिर गुलाब का बुके साइड टेबल पर रखा और कमरे से बाहर जाने लगे तभी विशी ने उनको आवाज दी अरे मिलन आप कहाँ जा रहे हो? बैठो न, कुछ चाय या कॉफी पीकर जाना । रुको मिलन रुको न आज तुम पहली बार मेरे घर में आए हो ! उसकी तरफ मुड़ कर देखने के बजाय वे सीधे चले जा रहे थे ! अरे रुको मिलन, अरे सुनो तो मिलन ! मिलन,,,,,,क्या हुआ है तुझे किसे बुला रही है विशी ? क्या कह रही है, सुन विशी ! मम्मी ने उसे हिलाते हुए कहा ! अरे वो वो कहाँ हैं ? कहाँ चले गए ? विशी एकदम से हड्बड़ा कर उठ कर बैठ गयी ! अरे मम्मी आप कब आई ? आपकी पूजा हो गयी ?

“हाँ हो गयी पूजा ! तू किसे बुला रही थी ?”

“नहीं तो किसी को भी नहीं ।”

“शायद तू कोई प्यारा सा सपना देख रही होगी ?” कहते हुए मम्मी मुस्कुरा दी ।

गुलाब वाला बुके किधर है कहीं मम्मी ने देख तो नहीं लिया ! इधर तो कुछ भी नहीं है ! शायद वो सपना ही देख रही थी ! हो सकता है, लेकिन बड़ा प्यारा सपना था ! काश यह सपना सच हो जाये ! सपने सच भी तो होते हैं बल्कि सपने ही सच होते हैं अगर हम सपना न देखे तो कैसे कोई बात आगे बढ़ेगी ?

“अरे मम्मी मैं आपसे कुछ कहने के लिए पूजाघर में गयी थी लेकिन आप पूजा कर रही थी !” विशी ने बात पलटी ।

“हाँ बेटा, अब कहो न क्या कहना है ?”

“वो मम्मी मैडम का फोन आया था ! आज रिहर्सल पर जाना है ! इतने दिनों से जा नहीं पाई तो मैडम नाराज हो रही थी ।”

“क्यों करती हो बेटा वे सब काम, जो तेरे भैया को पसंद नहीं है ?” मम्मी के स्वर में थोड़ी नाराजगी थी ।

“बस इस बार कर लेने दो क्योंकि मैंने मैडम को हाँ बोल दिया है आगे से नहीं करूंगी ।”

“तुम हर बार यही कहती हो और फिर भी करती रहती हो ।”

“प्लीज मम्मी, सिर्फ इस बार !” विशी ने उनके गले में अपनी बाँहें डालकर बड़े प्यार से कहा ।

“अब तू मुझे मक्खन लगाना छोड़ ! मैं कुछ नहीं जानती, अपने भैया से पूछ लो क्योंकि तेरी वजह से मुझे डांट खानी पड़ती है ।”

“क्या पूछना है मुझसे ?” यह कहते हुए भैया कमरे में आ गए ।

“अरे भैया आप काम से वापस कब आए ?” विशी एकदम से बोल पड़ी।

“जब तू सो रही थी !”

“बताओ अपने भैया को क्या कहना है तुझे ?” मम्मी ने विशी से कहा ।

“जो करना है करो लेकिन खुश रहो ! जिंदगी थोड़ी है और दोबारा जीने को नहीं मिलती है ! छुटकी यही तो तेरे दिन हैं जिंदगी को जीने के !” भैया ने बड़े प्यार से मुसकुराते हुए कहा ।

“क्या सच में भैया ?” आज विशी खुशी से पागल हो उठी ! भैया बदल गए हैं और पहले से बिल्कुल नहीं रहे हैं ! अगर भैया उसके साथ हैं तो फिर उसे किसी का डर नहीं है अब हर काम मजे से करेगी, तनाव में काम करने से हमेशा गलतियाँ हो जाया करती थी ।

“हाँ भई, मैं कभी झूठ नहीं बोलता हूँ !” भैया आज बड़े अच्छे मूड में लग रहे थे ।

“विशी की आँखों में आँसू भर आए लेकिन यह आँसू खुशी के थे ! सुख के दिन आते हैं न तो सब कुछ अच्छा होने लगता है फिर दुख या तकलीफ का कोई ख्याल ही नहीं रहता है ! दुख के दिनों में तो सुख की याद आती है लेकिन सुख के दिनों में दुख भूल जाते हैं ! सुख भी एक नशा ही है जो सिर चढ़कर बोलता है।

रिहर्सल पर जाते समय मन बहुत अच्छा था ! उसने ब्लैक जींस पर व्हाइट टॉप पहना था साथ ही रंगीन फ्लावर वाला शरक डाला था ! इस शरक में उसके चेहरे की खूबसूरती और निखर आई थी ! बालों को यूं ही खुला रहने दिया था ।

“भैया मुझे रिहर्सल हॉल तक छोड़ देना !” आज विशी ने भैया से बेहिचक कह दिया था ।

“ठीक है चलो, मुझे उधर जाना भी है किसी काम से !” भैया फौरन जाने को तैयार हो गए थे ।

गेट पर ही भैया ने छोड़ दिया, वो कार से उतर रही थी तभी मैडम अपनी स्कूटी से आती हुई दिख गयी ! हे भगवान, सबसे पहले इनकी ही शक्ल दिखानी थी? आते ही डांट खाओ तो काम करने का सारा मजा किरकिरा हो जाता है ! पर क्या हो सकता था भैया के सामने भाग कर कहीं छिप भी नहीं सकती थी ।

“भैया मेरी मैडम आ रही हैं आप उनसे मिलोगे ?” विशी ने भैया को अपनी बातों में उलझाते हुए कहा।

“मैं क्या करूंगा मिलकर वैसे अगर तू कहेगी तो मिल भी लूँगा !” वे मुसकुराते हुए बोले।

तब तक मैडम आ भी गयी थी ।

“मैडम नमस्ते ! यह मेरे भैया हैं !” उसने अपने भैया से मैडम को मिलाते हुए कहा।

मैडम ने बड़े प्यार और खुशी से भैया से अभिवादन किया और बात की ! लग ही नहीं रहा था कि वे उसके रिहर्सल पर ना आने से नाराज या गुस्सा हैं ! अच्छा ही किया जो भैया को मैडम से मिला दिया अब कोई डर नहीं है ! भैया गाड़ी को यू टर्न करके घर वापस चले गए ! इनको तो किसी काम से कहीं इधर जाना था ! अचानक से उसे याद आया ।

“और कहाँ थी इतने दिनों से विशी ?” वो मैडम की यह बात सुनकर चौंक गयी।

“कहीं नहीं मैडम, मैं घर में ही थी ! मेरी बड़ी दीदी आई हुई थी न ? सॉरी मैडम मैं आपको बता नहीं सकी !”

“बेटा आपको पता था न कि अब समय नहीं बचा है रिहर्सल का, बस इसलिए ही कहा था तुम लोगों से ! खैर .... आओ बैठो स्कूटी पर।“

“कहाँ जाना है मैडम ?”

“अंदर हाल तक और कहीं नहीं ले जा रहे हैं हम तुम्हें !” मैडम का मूड आज बड़ा अच्छा लगा ।

मैडम ने हाल के बाहर स्कूटी खड़ी की और डिक्की में से स्क्रिप्ट निकाल कर उसे पकड़ाते हुए कहा, “तुम अंदर चलो मैं जरा गार्ड से मिल कर आती हूँ !”

“जी ठीक है !” कह कर विशी अंदर आ गयी ! हाल में सभी लोग लगभग आ गए थे बस दो चार लोग नहीं आए थे।

“विशी कहाँ गायब हो गयी थी ? तेरा तो कोई भरोसा है नहीं जब मन आया तू छुट्टी कर लेती है !” उसे देखते ही नईम भाई बोले !

“हम्म ! आपको क्या प्राबलम है मैं किसी मजबूरी के कारण नहीं आ पाई थी ।”

“कोई नहीं ! आज तो समय पर आ गयी है और इसका रोल भी तैयार ही है !” निशांत ने उसका पक्ष लेते हुए कहा ।

“हुंहह।” कहते हुए विशी ने नईम की तरफ मुंह बनाया ।

“अब मुँह क्यों छिड़ा रही है ? देखना तेरा ही मुँह ऐसा हो जायेगा !”

“आते ही तुम लोगों की लड़ाई शुरू हो गयी ? अपनी अपनी लाईन कर लो वो काम आयेगी ! यह लड़ाई किसी भी काम की नहीं है सिवाय दिमाग खराब करने के ।” मैडम ने आते ही सबकी डांट लगाई ।

 

क्रमशः