एक दुआ - 10 Seema Saxena द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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एक दुआ - 10

10

“ठीक है आज का लंच हम लोग बाहर खाएँगे ।”

“कहाँ चलना है, मतलब किस रेस्टोरेन्ट में ?”

“ओशियन फूड कोर्ट चलते हैं दीदी, वहाँ का खाना बहुत स्वादिष्ट होता है!” भाई के बोलने से पहले ही विशी बोल पड़ी ।

“चलो डन ! मैंने भी बहुत नाम सुना है ओशियन का आज खा कर भी देख लेंगे !” भाई ने कहा ।

“दीदी आप भी तो बताओ कहाँ चलना है ?” विशी ने पूछा ।

“जो तुम दोनों की पसंद, वही मेरी भी ।”

“शहर का सबसे अच्छा बफे सिस्टम वाला रेस्टोरेन्ट है चाहें जितना खाओ, जो भी खाओ, जैसे खाओ, वेज, नानवेज सभी कुछ मिलता है ! 1200 रुपये परहेड देने होते हैं ! दीदी हैं तो कोई परेशानी ही नहीं वरना कौन खाने जायेगा ? ऐसा बिलकुल नहीं कि भैया पैसे नहीं कमाते या उनके पास पैसे नहीं हैं बल्कि पापा के न रहने के बाद इतनी परेशानियाँ देखी कि हाथ भी उसी तरह से कम खर्चा का आदि हो गया है ! भाई, वो और दीदी सब नई कार में गए, गेट पर पहुँच कार की चाबी गार्ड को दे दी । उसने एक तरफ किनारे से पार्किंग में गाड़ी को पार्क कर दिया होगा और वे लोग उस बड़े आलीशान से रेस्ट्रा के अंदर आ गए ! हल्की हल्की नीली रोशनी और मध्यम मध्यम संगीत की धुन मन में अलग सा रोमांच पैदा कर रहा था ।

“काश जीजू भी आ जाते तो बहुत मजा आता !” विशी ने दीदी से कहा तो वे बोली उनको अगली बार जरूर ले कर आएंगे ! वैसे उनके होने से बहुत अच्छा लगता लेकिन न होने पर भी उन्हें यूं मिस करके तुम उनको यहीं पर पा रही हो ।

“हम्म ! वो कैसे दीदी ?”

“वो ऐसे कि जब हम किसी को याद करते हैं तो हवाएँ उन तक हमारा पैगाम पहुंचा देती हैं ! तुम चाहें अभी जीजू को फोन करके पता कर सकती हो, वे भी वहाँ पर तुम्हें किसी न किसी वहाने से याद कर रहे होंगे ।”

“दीदी अभी बस यह बातें कर ही रही थी कि जीजू का फोन आ गया ।”

“अरे जीजू अभी हम लोग आप की ही बातें कर रहे थे और आपका फोन आ गया।”

“क्या हुआ भई इतनी याद क्यों आ रही थी कहो तो आ जाएँ ?”

“आ जाइए न जीजू । आप आये और चले भी गए यह भी कोई आना हुआ ? आप कम से कम दो दिन के लिए तो आइये ।”

“ठीक है तुम्हारी बात मानकर अगली बार दो दिन के लिए आ जाऊंगा लेकिन मैंने पूरे हफ्ते का प्लान किया था कहीं ट्रिप पर जाने का ।”

“अरे नहीं नहीं जीजू, आपका वाला प्लान ज्यादा बेहतर है !” विशी जल्दी से बोली।

“हाहाहा पागल लड़की ! अच्छा यह बताओ क्या हो रहा है ?”

“हम लोग अभी ओशियन रेस्टोरेन्ट में आए हुए हैं तभी आपकी याद आई और आपका फोन आ गया ।”

“चलो फिर तुम लोग मज़े करो मैं जल्दी आऊँगा और हाँ जो मन करे वो खा लेना पैसों की फिक्र बिलकुल मत करना ।”

“हाँ जीजू कोई फिक्र नहीं है भैया और दीदी दोनों ही साथ में है ! यहाँ पर बफे सिस्टम है तो हम मन का भी खाएँगे और सब कुछ भी खा कर देखेंगे !” विशी खुशी में भर कर बोली ।

“हाहाहा बहुत सही है जरा अपनी दीदी से बात करा दो ?”

“हाँ लीजिये !” विशी ने दीदी को अपना फोन पकडाते हुए कहा !

“क्या हाल है ? पता है बढ़िया ही होंगे ! सुनो जरा इन लोगों का ख्याल रखना, आज मेरी तरफ से तुम इन्हें इनकी पसंद का खाना पीना करा देना ।”

“ठीक है मेरे दरियादिल पति महोदय !” कहते हुए दीदी मुस्कुराइ ।

“मैं अभी मीटिंग में जा रहा हूँ, घर पहुँच कर फिर बात करता हूँ तब तक तुम सब मजे करो ।”

“ठीक है जी !” कहते हुए दीदी ने फोन रख दिया ।

अब तक टेबल पर स्नेक्स और वैल्कम ड्रिंक आ गया था !

“आप लोग यह सब खाइये, मैं तो खुद ही लेकर आती हूँ अपनी पसंद का कुछ अच्छा सा ।”

“वो सनैक्स वाले काउंटर पर आ गयी ! वहाँ पर कम से कम 50 तरह के स्नेक्स तो होंगे ही ! अपनी पसंद की कुछ चीजें बेटर को बताकर वो सबके साथ आ कर बैठ गयी ! थोड़ी ही देर में वो सब कुछ एक बेटर उसकी टेबल पर आकर रख गया, एकदम गरम गरम और फ्रेश !

“वाह विशी तेरी च्वाइस कमाल है !” दीदी ने उसकी प्लेट से पनीर मंचुरियन को टेस्ट करते हुए कहा ।

“दीदी आपके लिए भी मँगवा कर दूँ न, यह सब कुछ?”

“नहीं रहने दो अगर बहुत ज्यादा स्टार्टर खा लेंगे तो खाना नहीं खाया जायेगा ।”

“दीदी आपको पता है ? यही पॉलिसी होती है इन लोगों की ! खूब सारा स्टार्टर खिला दो फिर बंदा अपने आप ही कम खायेगा !” भैया ने अपनी बात रखी ।

हाहाहा ! कोई बात नहीं भाई खाना तो रोज ही खाते हैं आज कुछ नया ट्राई करने में कोई हर्ज नहीं है ! दीदी मुसकुराते हुए अपने रौले में बोली !

विशी उठी और शुशी के काउंटर पर जाकर अपने लिए कुछ सर्च करने लगी ! तब तक दीदी भी उसके पास आ गयी और “बोली यार यह सूशी रहने दे कुछ और टेस्ट करते हैं !”

“एक दो लेकर देखते हैं दी !”

“चल फिर तू देख ले, मैं तो जा रही हूँ अपने और भाई के लिए काकटेल लेने ।”

“मेरे लिए भी दी !” विशी ने जल्दी से कहा ।

“पूरे दो घंटे जाने कब गुजरे पता ही नहीं चला ! माउथ फ्रेशनर मुँह में डालते हुए दीदी बोली, विशी तेरा पेट भर गया न ?”

“हाँ दीदी लेकिन मन नहीं भरा !”

“घर में दो रोटी, दाल सब्जी और सलाद खाकर जो तृप्ति मिलती है वो यहाँ नहीं हुई जबकि सैकड़ों पकवान खा लिए !” भाई ने ज़ोर से ठहाका लगते हुए कहा ! आस पास के लोग उनकी इस हँसी को देख बिना हँसे नहीं रह पाये ।

“कल मम्मी भी आ जायेगी, मैं इस नई कार से ही उनको लेने जाऊँगा !” भाई कार ड्राइव करते हुए बोले ।

“अरे भैया यह नई कार नहीं है ।”

“मेरे लिए तो नई ही है छुटकी !” भैया आज बहुत खुश नजर आ रहे थे ।

“हे ईश्वर, मेरे भैया को हमेशा ऐसे ही खुश रखना ! उनके जीवन में ढेर सारी खुशियाँ भर देना !” विशी ने मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना की ।

“भाई जरा यहाँ गाड़ी रोकना ! शॉपिंग सेंटर के पास से गुजरते हुए दीदी बोल पड़ी।”

यह वही शॉपिंग सेंटर है जहां से वो हमेशा अपने लिए कोस्मेटिक के सामान खरीदती हैं ! भाई ने गाड़ी थोड़ी बैक की और ठीक उसी शाप के सामने जाकर गाड़ी रोक दी ! दीदी के साथ विशी भी उतर गयी और भैया गाड़ी पार्क करने चले गए ! “भाई तू भी अभी आ जाना गाड़ी पार्क करके !” दीदी ने अपने मोबाइल से भैया को फौरन फोन करके कह दिया था ।

“खूब बड़ा कर लिया है अब तो यह शॉपिंग सेंटर !” दीदी उसकी सीढ़ियाँ छड़ते हुए बोली ।

“हाँ दीदी, अब तो सभी लोग अपने काम को बढ़ाते ही जा रहे हैं ! अभी की दुकानें अब छोटे मौल के रूप में ढलने लगी हैं ! अपना जो बी जे नमकीन वाला था न उसने भी अपनी दुकान को कई फ्लोर का बना दिया है वहाँ सब कुछ मिलने लगा है कपड़े ग्रोसरी कोस्मेटिकस और डेली नीड्स आदि ।”

“अच्छा ?”

“हाँ दीदी !”

“ओहो बड़ी बातें हो रही हैं अपनी बहन से,,, हमारी तरफ नजर जाएगी भी कैसे ?” इस बात को सुनकर दोनों की नजरें उस दिशा में घूम गयी ! सामने से दो लड़कियां आ रही थी ! दोनों ने ही जींस टॉप और बूट पहने हुए थे और बाल भी लगभग एक से ही थे ।

“अरे रुही तू,, कैसी है ? कहाँ है आजकल ?” उनमें से एक लड़की को अपने गले से लगाते हुए दीदी बोली ।

“मैं मुंबई में हूँ और अभी यहाँ भाई की बर्थ ड़े पर आई थी ! तू सुना तू कब आई ? यह तेरी छोटी बहन है न ?” विशी की तरफ देखते हुए वे बोली ।

“हाँ और यह तुम्हारी छोटी बहन है न ?”

“हाँ यह मेरी छोटी बहन है जो अब मुझसे भी ज्यादा लंबी हो गयी है लेकिन तेरी छोटी बहन बड़ी क्यूट है ।”

 

क्रमशः