एक दुआ - 6 Seema Saxena द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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एक दुआ - 6

6

“मुझे लग रहा है कि तेरे जीजू की गाड़ी का हॉर्न बजा ?”

“ओहह तो दीदी आप यूं ही मुझसे बातें करने का बहाना कर रही थी जबकि आपका मन जीजू में अटका हुआ है तभी आपको सुनाई दे गया और मुझे बिलकुल पता ही नहीं चला ?”

“अच्छा चुपचाप जाकर गेट खोलकर आ, कोई मस्ती नहीं !” दीदी ने उसे प्यार से एक चपत लगाते हुए कहा ।

विशी जल्दी से गेट की तरफ दौड़ी आखिर उसके प्यारे जीजू आये हैं तो उसे सबसे ज्यादा खुशी हो रही थी ! जीजू अपनी बड़ी सी कार से नीचे उतरे और उसे गले से लगाते हुए पूछा, और क्या हाल हैं साली साहिबा ?”

“बिल्कुल बढ़िया !”

“हमारे साले साहब कहाँ हैं बुलाओ जरा गाड़ी अंदर खड़ी कर लें वो अपने हिसाब से सैट करके !”

“अरे जीजाजी मैं तो आपकी सेवा में हाजिर हूँ !” तब तक भाई भी लपकते हुए आ गए थे ।

उन्होने जल्दी से जीजू के झुककर पैर छुए और गाड़ी की तरफ बढ़ गए !

“भाई सुनो गाड़ी की पिछली सीट पर थोड़ा सामान भी है उठाते लाना !” जीजू घर के अंदर आते हुए बोले ।

“अरे वाह जीजा जी आप तो बहुत सारा समान ले आए हैं ! विशी जरा इधर आओ यह सामान पकड़ लो ।”

“अब आप ही ले आओ मैं जीजू के साथ अंदर जा रही हूँ !” आज भाई को काम के लिये न कहने की विशी के अंदर बहुत सारी हिम्मत आ गयी थी आखिर दीदी और जीजू दोनों उसके साथ हैं !

“ओए जरा सुन तो विशी की बच्ची !” भैया बुलाते ही रह गए और वो घर के अंदर चली गयी थी ।

“तू अभी कर ले मनमानी दो दिन में दीदी चली जायेंगी फिर बताता हूँ तुझे !” भैया बड़बड़ाते ही रह गए ।

दीदी जीजाजी को देख मुस्कुरा दी मानों जीजू को देखकर उनके मन में कितनी खुशी हो रही है, आज ही तो आई हैं दीदी फिर भी । विशी सोच में पड गयी शायद यही प्यार होता है ।

“और बताओ कैसी हो डार्लिंग ?” जीजू ने उनसे मुसकुराते हुए पूछा ।

“मैं बिलकुल सही ! बस अभी आपके बारे में ही सोच रहे थे कि आप अभी तक आए क्यों नहीं ?”

“ओहह मेरा इंतजार हो रहा था? मतलब हमारी बीबी अपनी माँ के घर आकर भी अपने पति को मिस कर रही है ? हैं न ? अरे मम्मी जी कहाँ हैं कहीं दिखाई नहीं दे रही ?” जीजू थोड़ा परेशान से लगे ।

“मम्मी तो मामा जी के घर गयी हैं न !”

“अच्छा ! लेकिन क्यों ? वे तो कहीं नहीं जाती हैं !”

“मामी जी के घुटनों का ऑपरेशन हुआ है इसलिए जाना पड़ा ! शायद दो दिन लग जाएँगे वापस आने में ।”

“ओहह ! क्या दोनों घुटनों का एक साथ हुआ ?”

“नहीं एक का पहले हो गया था, लगभग एक महीने पहले ! उस समय मम्मी नहीं जा पाई थी !”

“चलो ठीक किया लेकिन अकेले क्यों गयी किसी को साथ ले जाती या मुझे ही बता देती मैं छोड़ कर आ जाता ।”

“अरे भाई गया था न मम्मी के साथ फिर वो वापस आ गया और मम्मी वहाँ पर ही रुक गयी ।”

“हाँ ऐसे में एकाध दिन रुक जाना ही ठीक है ! वैसे अभी मामी जी की एज ज्यादा तो नहीं है ?”

“हाँ वे मम्मी से तो काफी छोटी हैं ! पता नहीं कैसे हो गया ! मेरे ख्याल से वो अभी 45 की तो होंगी ही ! बड़े भैया की शादी भी हो गयी है और उनका बेटा भी ! दादी तो बन ही गयी हैं अब एज से क्या लेना देना ?” दीदी मुसकुराती हुई बोली।

“बिलकुल सही कहा तुमने, एज से क्या लेना देना, मस्ती जो सूझ रही है न ?” जीजू ने थोड़ा चिड़ते हुए कहा ।

“नहीं भाई मैं उनका मज़ाक थोड़े ही न उढ़ा रही हूँ एक बात कह रही हूँ बस कि दादी बन गयी मतलब उनकी उम्र हो गयी, और कोई वो सुन थोड़े ही न रही हैं।”

“ठीक है अब सफाई मत दो ! जो कहा सो कहा, वे यहाँ हैं या नहीं है यह मायने नहीं रखता बल्कि मायने रखती हैं भावनाएं ! चाहें सामने हो या पीछे मन में आदर और सम्मान का भाव हमेशा एक सा ही होना चाहिए।”

“ठीक है महाराज ! अब माफ कर दो मैं आपकी तरह से इतनी ज्ञानी कहाँ हूँ ?” दीदी ने मुसकुराते हुए अपने दोनों हाथ जोड़कर कहा ।

“चलो माफ किया पुत्री ! तुम भी क्या याद करोगी कि किसी महान आत्मा से पाला पड़ा है ।” जीजू ने उनके सर पर हाथ रखते हुए कहा।

विशी यह सब बड़े मजे से देख और सुन रही थी ! कितना प्यारा रिश्ता है इन दोनों का न कोई बड़ा न कोई छोटा दोनों ही एक से हैं ! शुद्ध और समर्पित प्रेम है दोनों के बीच ! प्रेम में यही भावना मन को छू जाती है ! भगवान इन लोगों को हमेशा यूं ही खुश रखे ।

“क्या सोचने लगी विशी ?” जीजू ने पूछा ।

“अरे ओ वैरागिन ! कहाँ गुम हो गयी ? यही हो या कहीं और चली गयी ?” दीदी ने उसे हिलाते हुए कहा तो वो चौंक गयी ! “हाँ दीदी, बोलो न क्या हुआ ?”

“कुछ नहीं हुआ ? चलो तुम चाय का पानी रखो मैं आती हूँ अभी ।”

“नहीं दी, आज जीजू के लिए मैं अपने हाथों से कॉफी बना कर पिलाती हूँ ।”

“देखो यह की न विशी ने सालियों वाली बात, भला जीजू को कोई क्या चाय पिलाता है ? तुम आज मुझे कॉफी पिलाओ मैं तुम्हें कॉफी फेक्टरी की मालकिन बना दूंगा।”

“यह क्या कह रहे हैं जनाब ?” दीदी ने चुटकी ली ।

“सोच रहा हूँ अपने दोस्त से विशी की शादी की बात चलाई जाये, उसकी कॉफी की फेक्टरी है। विशी अब अच्छी ख़ासी बड़ी, खूब सूरत और ज़हीन हो गयी है ।”

“आखिर बहन किसकी है ?”

“नहीं साली किसकी है कहो ?”

“जीजा जी क्या झगड़े में पड़े हो जो यह कहें बस आप इनकी बात मान लो और सुखी रहो ।”

“तेरा कहना भी सही है यार ! सामान कहाँ है ?”

“वो बाहर तख्त पर रख दिया है विशी को कहता हूँ कि जाकर उठा लाये ।”

अरे विशी क्यो? तुम ही ले आओ ।”

“जीजा जी आप इतना सारा सामान क्यों लेकर आए ?”

“क्यों इतना सामान लाना मना है क्या ?”

“हाहा ! जीजा जी आप भी न .... चलो मैं अभी सामान अंदर उठा कर लाता हूँ ।” कहते हुए भाई बाहर चले गए ! एक जीजा जी ही हैं जो भाई को सही लाइन में रखते हैं बाकी को तो भाई ही लाइन में लगाए रहते हैं ! भाई एक बार सामान रखकर फिर और सामान उठकर लाने को चले गये ।

“जीजू आज तो आपने भाई की अच्छी ख़ासी कसरत करा दी ?” विशी मुसकुराते हुए बोली।

“सही किया न ?” जीजू बोले ।

“हाँ बिलकुल सही ।”

“अब उनको आदत दाल लेनी चाहिए हर काम को अकेले करने की ।”

“पता नहीं कैसे पड़ेगी ? वैसे मेरी तो आदत में ही सब आ गया है ।”

“इनको भी अपनी आदत डालनी चाहिए न, कल को तुम चली जाओगी फिर यह अकेले रह जाएँगे क्योंकि यह तो ब्याह करेंगे नहीं न ?”

“मम्मी तो होंगी न इनके साथ ?” विशी ने बीच में ही अपनी बात जोड़ते हुए कहा।

“क्या मम्मी हमेशा बैठी रहेंगी और मम्मी थोड़े ही न इतनी मेहनत कर पाएँगी।”

“बड़ा गंभीर डिस्कशन चल रहा है जीजा साली में ?” दीदी काफी और नाश्ता लाती हुई बोली ।

“दीदी आप काफी बना कर ले भी आई ?”

“हाँ क्यों नहीं लाती ?”

“नहीं मेरा यह मतलब नहीं है बस इसलिए कहा कि काफी तो मुझे बना कर लानी थी दी ?”

“कोई बात नहीं ! तू बैठ बातें कर ।”

“ओहह प्यारी दी और जीजू आप दोनों कितने अच्छे हो ?”

“हाँ तू मेरी प्यारी बेटी है न ?” दीदी ने उसका माथा चूम लिया !

“दीदी के कोई बेटी न होने से उसे ही तो अपनी बेटी की तरह मानती हैं और उसे प्यार देती हैं ! जीजू भी हमेशा उसकी ही तरफ दारी करते रहते हैं ।”

“भाई अब तू बैठ, पहले काफी पी ले ! आज तो जीजू ने तुझे काम पर लगा दिया।”

“कोई बात नहीं दीदी ! जीजा जी का तो हक बनता है ! वो जो कहेंगे मैं करूंगा ।” उनके लिए कभी किसी काम के लिए न नहीं है ।” भाई जीजू के पैरों के पास बैठते हुए बोले ।

“वाह ! साला हो तो ऐसा ! तू बस मेरा एक काम कर दे और मुझे कुछ ज्यादा नहीं चाहिए !”

“बोलिए न जीजू क्या काम ? आपके लिए तो मेरी जान भी हाजिर है ।”

“तू अब शादी कर ले ।”

“बस यही काम मुझे नहीं करना है जीजू, इसके अलावा आप कुछ और कहो ! जब सबको पता ही है कि मैं शादी नहीं करूंगा फिर बार बार वही बात क्यों कहना?”

“कभी नहीं करोगे न ?”

“अभी तक तो यही इरादा है बाकी बाद की बाद में देखेंगे।”

“क्या यार तू भी न ! बिल्कुल अजीब है ! पापा भी तेरी शादी की आस लिए चले गए, अब मम्मी की उम्मीदों पर भी पानी फेर रहे हो।”

“उनकी उम्मीदें, उनकी इच्छायेँ, उनकी ख्वाहिशें सब उनका और मेरा कुछ भी नहीं, हैं न ?” यह कहते हुए भाई की आँखों से आँसू बहने लगे और वे वहाँ से चले गये।

“आपको पता है, वो शादी नहीं करेगे फिर क्यों वही बात छेंड कर उन्हें दुखी करते हो ? दिल के जख्म आसानी से नहीं भरते हैं । वे कभी शादी नहीं करेंगे और जबर्दस्ती तो बिल्कुल भी नहीं, जब उनका खुद का दिल करेगा तब शायद कुछ हो सके ।” दीदी ने बड़ी नाराजी के स्वर में कहा और भाई के कमरे की तरफ चली गयी ।

विशी और जीजू भी उनके पीछे पीछे चले गए थे ! भैया कमरे में बेड पर तकिये में मुंह छिपाए लेटे हुए थे ! विशी उनको इस तरह देख कर बहुत हैरान सी थी, उसने भैया का यह रूप आज तक नहीं देखा था ! क्या हुआ है भाई को शादी के नाम से ही इतना परेशान और दुखी हो गए जरूर कोई बड़ी बात है जो उसे पता नहीं है ।

“भाई उठ, तू बाहर आ यह तेरे जीजा जी तो यूं ही कहते रहते हैं, तू मत सुना कर उनकी कोई भी बात ! उठ भाई उठ, चल बाहर आ कर काफी पी ले ।”

“दीदी तू जा मैं आ रहा हूँ ।”

क्रमशः