एक दुआ - 3 Seema Saxena द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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एक दुआ - 3

3

वो खोई हुई थी कि उनकी आवाज से उसकी तन्द्रा टूट गयी, “सुनो तुम कैसे आयी हो ? मतलब गाड़ी कहाँ है तुम्हारी ?”

“जी मैं तो औटो बुक करके आयी थी ।”

“हम्म । अब यहाँ कहाँ से मिलेगा ?”वे बोले ।

“मुझे पता नहीं, मैं पहली बार इस तरफ आयी हूँ ।”

“अच्छा तुम अभी रुको,मैं अभी देखता हूँ।“ और अपने ड्राइवर को बुलाकर कहा, जाओ जरा मैडम को छोड़ कर आओ, जहाँ तक यह कहें ।”

“अरे रहने दीजिये न, मैं चली जाउंगी।”

“क्या चली जाओगी ? यहाँ से जाने का तो कोई भी साधन नहीं मिलेगा ।”

“ठीक है फिर जहाँ पर औटो मिले वहां तक छोड़ दो ।”

“ओके, चलो बाय !” उसने हाथ हिलाते हुए कहा।

“ठीक है फिर मिलते हैं न फिर शाम को ?” एक बार फिर आग्रह ।

“जी।” उसने अपना सर हाँ में हिलाते हुए कहा तो वो हल्के से मुस्कुराये उनको मुसकुराता देख वो स्वयं भी मुस्कुरा दी ।

ओह ईश्वर, इतना प्यारा इंसान मैंने आज तक कहीं देखा ही नहीं, कोई इतना प्यारा भी हो सकता है, सच में इस दुनिया में इतना प्यारा कोई भी नहीं ?

जी चाहा की दो पल और मिल जाए इनके साथ में बिताने को लेकिन यह तो सब किस्मत के खेल होते हैं इसपर अपना कोई जोर नहीं चलता है जब रब चाहेगा मिला देगा जब वो चाहेगा दूर कर देगा ! तभी तो कहते हैं प्यार ईश्वर है ! खैर शाम को मिल ही रहे हैं तो वो उनका हाथ पकड़ कर ले जायेगी और दिल भर के बातें कर लेगी और उन्हें अपने गले से भी लगा लेगी ताकि इन बढ़ी हुई दिल की धड़कनों को थोड़ा सकूँ मिल जाए ! उफ़ यह कैसा प्रेम है, कह देगी अपने मन का सब हाल, कि वे उसे बहुत प्यारे लगते हैं बहुत ही अच्छे, सबसे अच्छे और उनकी तरह आज तक दुनिया में कोई भी इंसान नहीं देखा । किसी ने कभी उसका ऐसे हाथ भी नहीं पकड़ा और न कभी ऐसी दिल में झनझनाहट हुई और न ही मन में कभी ऐसे भाव उमड़े । यह क्या किया है उसने ? यह मन का कौन सा तार छेड़ दिया ? या छू लिया मन कि अपने वश में ही नहीं रहा अपना होकर भी अपना नहीं मानों पराया सा हो गया या कोई मन से मन को निकल कर ले गया है । ड्राइवर ने गाडी का हार्न बजाया तो उसकी तन्द्रा टूटी, सडक पर जाम लगा था बेहद भीड़, न जाने कहाँ से इतनी जनता या लोग शहर में आ गए हैं कि जहाँ देखो वहां लोग ही लोग, भीड़ ही भीड़ । कभी कभी तो ऐसा लगता है कि मानो सब लोग घर से निकल कर सड़क पर ही आ जाते हैं ।

“ मैम किस तरफ चलना है आपको आपके घर तक छोड़ देता हूँ ।”

नहीं नहीं रहने दो, घर तक नहीं, आप मुझे आगे वाले चौराहे पर उतार देना, मैं वहां से चली जाउंगी ।”

“ठीक है !”

वो फिर मिलन के बारे में सोचने लगी । सच अभी कितना समय हुआ है मिले हुए और इतना प्रेम कैसे मन में आ गया ! हमने तो कभी बात भी नहीं की हालाँकि हमारी एकाध मुलाकातें हुई थी लेकिन बस सबके साथ दो चार बातें वो भी करती थी लेकिन प्रेम का अंकुर अचानक से फूटा और पनपने लगा ।

हालांकि शाम को जाने का मन नहीं था लेकिन जब उसने इतने प्यार से कहा है तो जाना ही पड़ेगा और उसका भी अब मन हो आया था जाने का ! उसने रेड कलर की ड्रेस पहनी बहुत हल्का सा मेकअप किया और अपने लंबे खुले बालों को यूं ही खुला छोड़ दिया ।

“क्या खूब लगती हो बड़ी सुंदर दिखती हो ।”

विशी को देखते ही मिलन के मुँह से निकल गया ! मिलन को एक टक अपनी तरफ देखते देख विशी की शरम से आँखें झुक गयी ।

न जाने कैसा अहसास था ? ना जाने कैसा खिंचाव था ? गरमी ना होने के बाद भी पूरा शरीर पसीने में भीग गया था ! उसके साथ आई कोमल ने हाथ पकड़ कर उसे अंदर ले जाते हुए कहा ।

“अरे तुझे तो बुखार लग रहा है ?”

“नहीं ! बुखार तो नहीं है ।” विशी हड्बड़ा कर बोली ।

“नहीं बहन तुझे तेज बुखार है ! तू घर चली चल ! यहाँ अभी बहुत समय लगेगा !” कोमल ने उसे समझाया ।

“यार रहने दे सही हो जाएगा । इतनी मुश्किल से तो भाई ने आने दिया अब यहाँ रुकूँ भी न और वापस चली जाऊँ !” मन में कहीं न कहीं मिलन के साथ बात करने का, उसके साथ बैठने का मन था । कहाँ चले गए अभी तो यहीं पर थे ! नजरे मिलन को ढूँढ रही थी ।

“अब तू इस तरह अकबकाई सी इधर उधर क्या देख रही है ? चल मैं तुझे घर तक छोड़ कर आती हूँ ।”

“अरे तू रहने दे बहन, मैं चली जाऊँगी तू यहाँ इंजोय कर ।” उसे पता था अगर वो घर कोमल के साथ गयी तो यह जरूर कहेगी कि विशी को बुखार है और मैं खामखाह भाई कि डांट का निशाना बन जाऊँगी ।

“तू यहाँ बैठ और मजे कर मैं खुद चली जाती हूँ !” जाने का बिलकुल मन नहीं था लेकिन कोमल की वजह से घर जाना पड़ा ।

“अरे बड़ी जल्दी आ गयी !” देखते ही भाई ने दपटा ।

अरे जल्दी आओ तो देर में आओ तो हर बार डांट । हे भगवान तू मुझे उठा क्यों नहीं लेता । विशी ने अपने दोनों हाथ हवा उठाते हुए दुआ मांगी ।

वो बड़ी प्यारी सी सुबह थी और आज मन था कि घर से थोड़ी देर को निकल जाऊं प्रकृति के बीच ! अकेले ही जाना पड़ेगा क्योंकि साथी तो कोई है नहीं ! घर में किसी को जाने का शौक नहीं भैया तो जाने से रहे रात को इतनी देर से सोते हैं तो सुबह कैसे जल्दी उठ पाएंगे वैसे भी उनकी सुबह नौ बजे होती है ! खैर मैं खुद ही खुद की साथी बन जाती हूँ ! उसने मन ही मन सोचा ! जब हमारा कोई साथी नहीं होता है तो हमसे बढ़कर हमारा कोई दूसरा सच्चा साथी बन ही नहीं सकता क्योंकि हम खुद ही खुद के सच्चे साथी होते हैं,, रात के कपडे पहन कर जाना अच्छा नहीं लगेगा इसलिए जींस और लॉन्ग कुर्ती के साथ स्पोर्ट्स शूज पहन कर दरवाजा खोलकर घर से बाहर निकल ली ! सुबह के लगभग साढ़े पांच या पौने छ बजे का समय था । बाहर बड़ा अच्छा मौसम था । सुबह सुबह की ताज़ी हवा मन को सकूँ दे रही थी सर के भारीपन में थोड़ी राहत थी लेकिन मन में तो मिलन आकर बैठ गए थे और आँखों में उसकी छवि बसी हुई थी, रात को ठीक से नींद नहीं आई जब जरा आँख लगी तो मिलन के ख्वाब ! मन मिलन कि तरफ उड़ा चला जा रहा था न जाने क्या हुआ कि यह जज्बात कैसे मुझे मेरे ही वश में नहीं रहने दे रहे थे ! क्या हुआ जा रहा है मुझे ? मैं बहुत बेचैन हूँ ? एक पल का चैन नहीं ! ऐसा तो कभी नहीं हुआ ! जब भी कहीं पर बैठो ! बस एक ही ख्याल, एक ही बात, समझ नहीं आ रहा था क्या करूँ ? जितना दूर जाने की कोशिश करती हूँ वो और करीब आ रहा था ! बेहद करीब, इतना कि मैं तनहा होकर भी तनहा नहीं, वो हरदम मेरे साथ मुझसे बातें करता हुआ मेरे आसपास खाते पीते उठते बैठते सोते जागते सिर्फ वो और कोई नहीं ! मैं खुद भी नहीं न जाने कहाँ खो गयी मैं कहाँ चली गयी मैं सब दुनिया भूल गयी ! ख्यालों में आकर वो कभी मेरे बालों से अठखेलियां करता कभी मेरे गालों को चूमता और कभी पास में बैठ कर एकटक निहारता ! उफ़ यह कैसा प्रेम है या क्या है जो मुझे इतना खींचे लिए जा रहा है !जितना दूर जाने की सोचो उतना ही वो मुझे और डूबाये दे रहा है ! उसने फूलों को देखा कितने सुंदर और प्यारे प्यारे रंग वाले फूल खिले हुए थे । उनकी खुशबू से मन खुशी से भर रहा था लेकिन कुछ लोग फूल तोड़ने में लगे हुए थे । डाली झुका कर आखिरी फूल तक तोड़े ले रहे थे । न जाने क्या करेंगे यह लोग फूलों का शायद कोई माली होगा जो मंदिर में बेचने के लिए तोड़ रहा होगा ! उसके मन में एक ख्याल उपजा ! आम, जामुन, बेल, कटहल के पेड़ लगे हुए थे साथ ही अशोक के पेड़ भी वहाँ पर लाइन से लगे थे । उसने एक पेड़ को अपनी बाहों में भरा और चूम लिया मानों यह मिलन है । मिलो या न मिलो मिलन पर लो बना लिया मैंने तुम्हें अपना। यह कह कर वो अपनी ही बात पर हंस पड़ी । क्या ऐसा ही दीवानापन हो जाता है प्यार मे ? कितने अनगिनत सवाल थे मन में लेकिन उनका जवाब देने वाला कोई नहीं था ! आधे घंटे में ही पार्क से घूम कर वापस घर आ गयी !

वो अब ख्वाब नहीं रहा बल्कि मेरी हकीकत बन गया ! मेरा अपना, सिर्फ मेरा अपना ! जैसे उसके सिवाय मेरी कोई दुनिया ही नहीं, अजीब सी हालत होती जा रही है मेरी, न जी पा रही हूँ न ही मर पा रही हूँ ! ऐसा लगता है कि हमारे रोम रोम आपस में जुड़ गए हैं और हमारी सांसे साथ साथ स्वाँसे ले रही हैं ओह्ह यह धड़कने क्यों बेकाबू हो रही हैं इन पर कैसे लगाम लगाऊं? हे ईश्वर! मेरी मदद करो यह प्रेम मेरी जान ले लेगा। सोफे पर रखे हुए कुशन को उसने कस कर अपने सीने से चिपका लिया, किसी तरह मन को सकूँ तो आये ! मैं उससे दूर जाना चाहती हूँ क्योंकि घर में किसी को भी पसंद ही नहीं आयेगा कि मैं मिलन से मिलूं या उससे कभी कोई बात करूँ ? शायद यही बजह थी कि उसका विद्रोही मन उनके फैसले के खिलाफ खड़ा हो गया और अपने मन की करने को उतावला हो गया ! शायद ऐसा ही होता है न कि हमें जिस किसी से बात करने के लिए या कोई काम करने के लिए मना किया जाता है उसी काम को करने के लिए हम और भी ज्यादा करना चाहते हैं ।

“महक नाट्य ग्रुप” में वे बिलकुल अभी नए नए ही आये थे ! जब उन्हें अपने ग्रुप

में शामिल किया गया तो उनको नाटक के विषय में कोई भी जानकारी ही नहीं थी लेकिन उनका शौक उन्हें यहाँ खींच कर ले आया था क्योंकि उनको पहले कभी यह काम करने का अवसर ही नहीं मिला था । पढ़ाई नौकरी और तमाम तरह की जिम्मेदारियों में फंसा हुआ इंसान अपने शौक को भुला ही देता है, पर उन्होने भुलाया तो था लेकिन मारा नहीं था दिल के एक कोने में जिंदा रखा था !

“मैम मैं पहले आप लोगों की रिहर्शल देखूंगा अगर मुझे समझ आया कि मैं कर सकता हूँ तभी इसे करूँगा ।” आते ही उन्होने स्पष्ट किया ।

“अरे नहीं मिलन, तुम सीख सकते हो और कर भी सकते हो, तुम्हें मैं सिखाऊंगी। मैम ने उनको समझाते हुए कहा था ।

“ठीक है मैं पूरी लगन के साथ सीखूँगा।“ उन्होने किसी आज्ञाकारी शिष्य की तरह बेहद नम्रता से कहा ।   

क्रमशः