भाग 10
विजय बड़े ही उत्साह से भरा हुआ अपने घर पहुंचा। राज रानी तो उसका इंतजार कर ही रही थी। पर गुलाबो को कुछ पता नही था की उसका पति विजय आ रहा है। कुछ उसके गर्भावस्था के कारण और कुछ उसके आलस ने उसका वजन बहुत ज्यादा बढ़ा दिया था। उस दिन भी सास के हाथों का स्वादिष्ट खाना खा कर वो सो रही थी। हमेशा की तरह खाना खाने के बाद नींद आने पर बहाना बनाया की अम्मा मेरा पेट दुख रहा है। और सदा की भांति राज रानी भी दिलासा देते हुए बोली, "घबरा ना बहू, जा थोड़ा आराम कर ले तो दर्द ठीक हो जायेगा। इस हालत में थोड़ा बहुत तो लगा ही रहता है।"
गुलाबो आज्ञाकारी बहु की तरह अपनी सास की बात मान कर, "जी अम्मा कहती हुई कमरे में चली गई। अपनी इस चतुराई पर वो मन ही मन मुस्कुरा रही थी।
कमरे में जा कर लेटते ही वो नींद के आगोश में चली गई।
इधर भरी दोपहरी में विजय स्टेशन पर उतारा। अप्रैल का महीना था। बाहर चटक धूप चमक रही थी। घर स्टेशन से लगभग कोस भर रहा होगा। साधन तो कोई चलता नही था। पहले से ही सहेजे जाने पर एक दो इक्का मिल जाया करता था। आने का दिन निश्चित नही था वरना राज रानी किसी को भेज देती। विजय ने कुछ देर तक प्रतीक्षा की सवारी मिलने की। फिर उसे उसे ये इंतजार करना बेकार ही लगा। उसने सोचा चलता हूं, हो सकता है रास्ते में कोई परिचित मिल जाए। यही सोच कर अपने साथ के समान का बड़ा झोला उसने पीठ पर लादा और घर की ओर चल पड़ा।
संयोग ऐसा उसे कोई भी परिचित रास्ते भर खूब गौर से देखने के बाद भी नही मिला। तेज धूप उसके बदन को जला रही थी। वो जहां छांव देखता रुक कर कुछ देर सुस्ता लेता फिर चल पड़ता। इस तरह रुकते रुकते वो घर पहुंच गया। राज रानी दालान में पड़ी चारपाई पर अधलेटी सी ऊंघ रही थी। जब नीद का झोका आता, हाथ में झलता पंखा गिरने को होता, तो उसकी आंख खुल जाती। फिर कुछ देर तक वो पंखे की ठंडी हवा खाती तो फिर नींद आने लगती। इस बार कुछ लंबी झपकी हो गई। तभी विजय आ गया। दालान में खड़ा हो कर देखा तो अम्मा मीठी झपकी ले रही थी। उसे भी शरारत सूझी। जोर से पीठ पर लदा झोला जमीन पर गिरा दिया। धम्म की आवाज सुनते ही जगत रानी ने चौक के अपनी आंखे खोल दी ये देखने के लिए की ये आखिर कैसी आवाज थी? आंख खुलते ही सामने अपने लाडले बेटे विजय को देखा। वो अपनी खुशी को दबाते हुए एक मीठी सी झिड़की लगाई। वो बोली, "क्या रे.. विजू..! आते ही शरारत शुरू कर दी। कुछ तो शरम कर।"
विजय हंसता हुआ आगे बढ़ा और मां के पांव छू लिए। जगत रानी उसे पैरों को छूते ही उसका हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया और गले से लगा कर बोली, "मेरा विजू..! मेरा लाल..!"
विजू जवाब में अपनी मस्त सी हंसी हंसते हुए वही चारपाई पर मां के बगल बैठ गया। विजय के माथे पर आई पसीने की बूंदों को अपने आंचल से पोंछते हुए जगत रानी बोली, "कैसा है बेटा तू..? वहां पे सब ठीक हैं ना..? जय, तेरे पिता जी और रज्जो..?"
जवाब में विजय बोला, "हां ..! अम्मा सब ठीक हैं वहां। भईया, पिताजी, भाभी सब कुशल मंगल से है। बल्कि भाभी तो आने को भी बोल रही थी। वो आपकी मदद के लिए आना चाहती थीं। पर पिता जी ने मना कर दिया ये बोल कर की आपने चिट्ठी में सिर्फ मुझे आने को लिखवाया है।"
रज्जो का नाम सुन मुंह बनाते हुए जगत रानी बोली, "अच्छा किया जो उसे साथ नही लाया। अब घर में लंबे समय के बाद कुछ शुभ होने वाला है। वो आकर क्या करती यहां..?मैं नही चाहती इस शुभ घड़ी में उसकी परछाई पड़े।"
जगत रानी का चेहरा कठोर हो गया। विजय कुछ समझा कुछ नही समझ पाया। वो बोला, "क्या अम्मा ..? ये कैसी बातें कर रही हो आप आज..?"
तभी जगत रानी बोली, "छोड़ ये सब बात। तू प्यासा होगा। मैं तेरे लिए पानी ले कर आती हूं।" कह कर वो उठने को हुई।
विजय बोला, "अम्मा तुम क्यों जाओगी..? वो गुलाबो कहां है..? उसे आवाज दो ले आएगी पानी।"
जगत रानी बोली, "ठीक है बेटा" फिर वो आवाज लगाने लगी गुलाबो को। "गुलाबो ..! ओ गुलाबो..!" पहले धीरे फिर आवाज तेज होती गई। पर गुलाबो को न आना था तो नही आई। सोती गुलाबो के कान में हल्की हल्की आवाज आ रही थी की सास आवाज दे रही है। पर वो बुदबुदाते हुए करवट बदल कर फिर सो गई की "इन्हे एक मिनट भी चैन नहीं है। हर घड़ी गुलाबो गुलाबो। जाओ नही जाती।" इस बच्चे के आगमन के आहट के साथ ही गुलाबो ढीठ हो गई थी। अब उसे सास से कोई भय नहीं लगता था।
आवाज देते देते राज रानी थक गई। झल्लाते हुए बोली, "घोड़े बेच कर सोती होंगी महारानी। मैं चिल्ला चिल्ला कर मर जाऊं इसके कान पर जुएं नही रेंगेगी। अब तक तो मैने तेरे लिए चाय भी बना दी होती।" जगत रानी उठने लगी तो विजय ने रोक दिया।
"रहने दे अम्मा ..! मैं खुद जाकर उसे जगा देता हूं। वो सोती रहे और तू काम कर..?" इतना कहते हुए विजय खुद ही अंदर चला गया। वो लंबा सफर तय करके घर पहुंच गया था। अब उससे एक पल को सब्र नही हो रहा था। अम्मा चाय पानी देने चली जायेगी तो उसे फिर रात के पहले गुलाबो से अकेले में मिलने को नही मिलेगा। वो इस बात का फायदा उठाने को आतुर हो गया। वो दबे कदमों से कमरे में दाखिल हुआ। गुलाबो लंबी खिंचे पड़ी थी। विजय उसके पास गया और बगल में खाली जगह में लेट गया और उसे अपनी बाहों में समेट लिया। गुलाबो का मुंह दूसरी ओर था। वो विजय की छूवन को पहचानती थी। पर इस तरह उसके आने की कोई उम्मीद गुलाबो को नही थी। वो अपनी आंख बंद किया हुए ही करवट बदला और अपनी बाहों का हार विजय को पहना दिया। विजय ने सोचा था गुलाबो चौक कर उठ बैठेगी। पर ऐसा कुछ नही हुआ था। गुलाबो मुस्कुराती हुई बिना आंखों को खोले ही बोली, आप आ गए..?"
विजय बोला, "तूने कैसे जाना की मैं ही हूं। मेरी जगह कोई और होता तो..? तू उससे भी ऐसे लिपट जाती..?"
विजय बनावटी नाराजगी दिखाते हुए बोला।
गुलाबो बोली, "किसकी इतनी हिम्मत है की मेरे बिस्तर पर बैठ सके.? आप चाहे कितने भी समय बाद आओ। मैं आपकी आहट पहचान सकती हूं। आपके हाथो को पहचान सकती हूं।" गुलाबो ने कहते हुए अपनी आंखें खोल दी। वो कुछ बातें कर पाते उसके पहले ही राज रानी की गरजती आवाज आई। "क्या हुआ विजू जगाया उसे..? महारानी जागी या नही..? क्या कहूं मैं इसे..? इतनी दूर से बच्चा चल कर आया है गरमी में पर इतना भी नही हुआ की पानी दे दे।" जगत रानी सीधा उसी के कमरे की ओर आ रही थी।
विजय का सारा जोश ठंढा हो गया। वो अपने साथ के छोटे थैले में गुलाबो की पसंद के मुताबिक साज श्रृंगार का सामान लाया था। उसे दिखा कर उसे गुलाबो के चेहरे की खुशी देखनी थी। पर अम्मा के इतनी जल्दी आ जाने से उसकी मंशा पूरी नहीं हो पाई। वो गुलाबो को छोड़ कर जल्दी से बिस्तर से नीचे उतरा और बाहर आकर कहने लगा। "हां अम्मा जगाया है। बड़ी गहरी नींद में थी। अभी जागी है।"
"उसके भरोसे रहोगे तो पी चुके पानी। आओ मैं दूं।" जगत रानी पानी का लोटा और गुड़ की डली पकड़ाते हुए बोली।
गुलाबो सर पर पल्ला लेते हुए बाहर आ गई। राज रानी बोली, "तेरा पेट दर्द ठीक हो गया हो तो चाय बना दे विजू के लिए। साथ में कुछ खाने को भी।"
गुलाबो "जी अम्मा" कहती हुई रसोई घर में चली गई। विजय उसे देखता ही रह गया। गुलाबो इतना बदल जायेगी ये उसने नही सोचा था। बड़ा सा पेट थामे वो सधे कदमों से धीरे धीरे चल रही थी। लग ही नहीं रहा था कि ये वही कृषकाय गुलाबो है.? उसकी वो चपल चाल ही विजय के जेहन में बसी हुई थी। हर कदम वो ऐसे रख रही थी जैसे बहुत ही मुश्किल से चल पा रही हो। गुलाबो ने सभी के लिए चाय बनाने को चूल्हे पर रख दी। जगत रानी और विजय दोनो मां बेटे बैठ कर बातें करने लगे। विजय शहर की सारी बातें अम्मा से बताता रहा। राज रानी उसे घर गांव की बाते बताती रही। चाय बनाती गुलाबो की निगाह जब भी विजय की ओर जाती उसे अपनी ओर ही देखते पाती। वो विजय को देख कर मुस्कुरा देती। विजय बेहद खुश था घर आकर। उससे भी ज्यादा खुश था वो गुलाबो का साथ पाकर।
क्या गुलाबो पति द्वारा लाई सौगात पाकर खुश हुई? क्या उसका बच्चा सही सलामत इस दुनिया में आ सका.?आखिर जगत रानी रज्जो से क्यों खफा थी.? क्या दादी बन कर जगत रानी का स्वभाव कुछ बदल पाया..? जानने के लिए पढ़ते रहें गुलाबो.. का अगला भाग।