कालवाची--प्रेतनी रहस्य--भाग(६) Saroj Verma द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कालवाची--प्रेतनी रहस्य--भाग(६)

कालवाची की दृष्टि जैसे ही कुशाग्रसेन से मिली तो उसने लज्जावश अपने नयनपट बंद कर लिए,कुशाग्रसेन भी अभी तक कालवाची को एकाग्रचित होकर देख रहे थे,दोनों के मध्य का मौन कौत्रेय ने तोड़ने का प्रयास किया एवं वो राजा कुशाग्रसेन से बोला....
महाराज!इसका नाम कालिन्दी है एवं ये उस ओर एक कुटिया में रहती है,बेचारी अत्यन्त निर्धन है,बेचारी के भाग्य में पर्याप्त मात्रा में भोजन भी नहीं लिखा,मुझे इस पर दया आ गई तो मैने इससे कहा कि हमारे वैतालिक राज्य के राजा कुशाग्रसेन अत्यन्त ही दयालु प्रवृत्ति के हैं,वें अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेगें,इसे तो मेरी बात पर विश्वास ही नहीं था,इसलिए मैंने इससे कहा कि मैं तुम्हें राजा के पास ले चलता हूँ,तुम्हारी अवस्था देखकर वें कुछ ना कुछ तो प्रबन्ध कर ही देगें तुम्हारे लिए,मैंने ठीक किया ना महाराज!
हाँ...हाँ...ठीक किया,कुशाग्रसेन बोलें...
मुझे भय है महाराज!कौत्रेय बोला....
किस बात का भय कौत्रेय?कुशाग्रसेन ने पूछा...
ये वन में निवास करती है तो कहीं इसके प्राणों पर कोई संकट ना आ जाएं,कौत्रेय बोला....
तो कादम्बरी की सुरक्षा हेतु क्या किया जा सकता है?कुशाग्रसेन ने पूछा....
क्यों ना !आप इसे दासी बनाकर अपने महल में ले जाएंँ,कौत्रेय बोला...
ऐसा सम्भव नहीं है कौत्रेय!कुशाग्रसेन बोलें...
किन्तु!क्यों महाराज!कौत्रेय ने पूछा....
वो इसलिए कि मैं इतनी शीघ्र इन पर विश्वास कैसे कर सकता हूँ?मैं तो इन्हें अभी जानता भी नहीं,कुशाग्रसेन बोलें....
क्या आपके लिए इतना अधिक नहीं होगा कि ये एक निर्धन,असहाय युवती है,कितनी विवश है ये इस वन में रहने के लिए,इसका कोई अपना होता तो इसकी चिन्ता करता,बेचारी अनाथ जो ठहरी,हे!ईश्वर किसी को निर्धन एवं असहाय कभी मत करना,युवती होने का दण्ड तो पहले ही भुगत रही है ,बेचारी के भाग्य में और ना जाने क्या क्या लिखा?क्या पता इसकी हत्या भी उस हत्यारे के हाथों से लिखी हो,कौत्रेय अभिनय करते हुए बोला....
बस..बहुत हुआ कौत्रेय!यदि तुम्हें लगता है कि इन्हें राजमहल मे दासी बनाकर ले जाया सकता है तो ये अवश्य जाएगीं,किन्तु इनसे ये पूछो कि ये राजमहल जा सकेगीं?कुशाग्रसेन बोलें....
आप क्यों नहीं इसी से पूछ लेते महाराज?वैसे भी ये अनाथ क्यों मना करने लगी?डूबते को तो तिनके का सहारा बहुत होता है,किन्तु आप तो इसे बचाने के लिए पूरी नौका ही दे रहे हैं ,तो ये बेचारी क्यों मना करने लगी भला,वैसें आप अपनी संतुष्टि के लिए इन्हीं से पूछ लेते तो अच्छा रहता,कौत्रेय बोला...
तब कुशाग्रसेन ने कालिन्दी बनी कालवाची से पूछा....
तो तुम मेरे साथ राजमल चलने को तत्पर हो....
जैसी आप की आज्ञा होगी महाराज!तो मैं वैसा ही करूँगीं,कालिन्दी बोली...
इसका तात्पर्य है कि तुम मेरे साथ राजमहल चलोगी,कुशाग्रसेन बोलें...
जी!महाराज!मुझ निर्धन को आप अपने राजमहल में आसरा देने के लिए तत्पर हैं तो मैं कैसें मना कर सकती हूँ?आप मेरी भलाई चाहते होगें तभी तो आप ऐसा कह रहे हैं,कालिन्दी बोली.....
तो ठीक है! आज रात्रि तुम भी इसी वृक्ष तले विश्राम करो,प्रातःकाल तुम मेरे साथ राजमहल चलना,कुशाग्रसेन ने कालिन्दी से कहा.....
जी!महाराज!जैसी आपकी आज्ञा,कालिन्दी बोली....
तब कौत्रेय बोला....
महाराज!अब आप विश्राम कीजिए,वार्तालाप सुबह भी तो हो सकता है...
नहीं!मुझे अभी इसी समय कालिन्दी से उस हत्यारे के विषय में वार्तालाप करनी है,मैं तो वैसे भी रात्रि भर जागने वाला हूँ,मुझे उस हत्यारे के विषय में ज्ञात करना है,कुशाग्रसेन बोले....
जी!तो हम दोनों भी आपके संग रात्रिभर जागते हैं,कौत्रेय बोला....
नहीं!मैं तो इस राज्य का राजा हूँ एवं अपना कर्तव्य निभा रहा हूँ,तुम दोनों क्यों मेरे संग जागोगे?कुशाग्रसेन बोले...
आप हम लोगों के राजा है,यदि आप हम सभी की भलाई के लिए इतना त्याग कर सकते हैं तो क्या हम दोनों आप के लिए रात्रि भर जाग नहीं सकते,कालिन्दी बोली....
कालिन्दी की बात सुनकर कुशाग्रसेन मुस्कुरा उठे एवं उनके हृदय में कालिन्दी के प्रति विशिष्ट से भाव उत्पन्न हुए एवं वें कालिन्दी से बोले.....
नहीं!कालिन्दी!तुम सो जाओ,नहीं तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा,तुम एक युवती हो एवं युवतियाँ कोमल होतीं हैं,तनिक से कष्ट से कुम्भला जातीं हैं,कुशाग्रसेन बोलें...
महाराज!मैं वैसी युवती नहीं हूँ जो तनिक से कष्ट से कुम्भला जाऊँ,मैं अनाथ एवं निर्धन अवश्य हूँ परन्तु कोमलांगी नहीं,मुझे भी संकटो से लड़ना आता है,कालिन्दी बोली....
युवती होकर तुम ऐसी साहस पूर्ण बातें कर रही हो,मैं अत्यधिक प्रभावित हुआ तुमसे,तुम्हारी जैसी साहसी युवतियों की इस राज्य को आवश्यकता है,कुशाग्रसेन बोले....
महाराज!आप मुझसे परिहास कर रहे हैं ना!कालिन्दी लजाते हुए बोली.....
नहीं! मैं तुमसे परिहास क्यों करूँगा भला!मैं सच कह रहा हूँ,कुशाग्रसेन बोलें...
जी!मुझे आप पर पूर्ण विश्वास है,कालिन्दी सकुचाती सी बोलीं...
महाराज!आप वो सब तो पूछ ही नहीं रहे जो आप कालिन्दी से पूछना चाहते थे,कौत्रेय बोला...
वो भी पूछता हूँ तनिक धैर्य धरो,कुशाग्रसेन बोलें...
मैं तो धैर्य धर रहा हूँ किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि कालिन्दी को देखकर आपका धैर्य डिग रहा है,कौत्रेय बोला...
तुम्हारा तात्पर्य क्या है?कुशाग्रसेन ने पूछा....
कुछ नहीं महाराज!मेरे कहने का तात्पर्य था कि आप कालिन्दी से हत्यारे के विषय में पूछिए ना!,कौत्रेय बोला...
हाँ!तो कालिन्दी!अब बताओ कि तुम उस हत्यारे के विषय में क्या क्या जानती हो?वो हत्यारा पुरूष है या स्त्री,कुशाग्रसेन ने पूछा....
जी!वो हत्यारा एक पुरूष है,उसका मुँख वीभत्स सा है,कालिन्दी ने झूठ बोलते हुए कहा.....
एवं वो किस अस्त्र से हत्या करता है,कुशाग्रसेन ने पूछा....
महाराज!वो हत्या करने हेतु,किसी भी अस्त्र का प्रयोग नहीं करता,वो तो दूर से ही अपने हाथों को बड़ा करके उस युवक या युवती के पास ले जाता है एवं उनके वक्ष को चीड़कर उनका हृदय निकाल लेता है,वो सबकी हत्या इसी प्रकार करता है,कालिन्दी बोली...
इसके पश्चात वो उन हृदयों का क्या करता है?कुशाग्रसेन ने पूछा...
ये तो मुझे ज्ञात नहीं महाराज!क्योंकि इसके उपरान्त मैं इतनी भयभीत हो गई थी कि उस स्थान से भाग गई,मुझे भय था कि कहीं उस हत्यारे ने मुझे देख लिया तो मेरी भी वही दशा कर देगा जो उसने उन सभी युवक और युवतियों की थी,कालिन्दी बोली...
ये तुमने ठीक किया ,परन्तु उस हत्यारे के नैन-नख्श,कद-काठी के विषय में कुछ बता सकती हो?कुशाग्रसेन ने पूछा...
महाराज!उस समय वन में अंधकार था,केवल चन्द्र-प्रकाश में मुझे जो दिखाई दिया तो मैंने आपको बता दिया,वैसें भी उस हत्यारे से मैं अत्यधिक दूर थी,कालिन्दी बोली....
और क्या क्या बता सकती हो उस हत्यारे के विषय में,कुशाग्रसेन ने पूछा...
बस,इतना ही बता सकती हूँ महाराज!कालिन्दी बोली...
मुझे तुम्हारा कोमल एवं मृदु स्वाभाव भा गया है कालिन्दी!तुम अत्यधिक भोली हो,कुशाग्रसेन बोले....
धन्यवाद महाराज!कालिन्दी बोली....
एवं उस रात्रि तीनों के मध्य ऐसे ही वार्तालाप चलता रहा,प्रातःकाल हुई तो सभी ने राजमहल की ओर प्रस्थान करने का सोचा,किन्तु जब कौत्रेय उनके संग चलने को तत्पर हुआ तो महाराज कुशाग्रसेन बोलें...
कौत्रेय!तुम हम दोनों के संग क्यों जा रहे हो?तुम्हारा घर तो हैं ना राज्य के भीतर...
जी!महाराज!मुझे राजमहल भा गया था इसलिए वहाँ पुनः जाने का मन कर रहा है,कौत्रेय बोला....
तभी महाराज कुशाग्रसेन बोले....
तुम अपने निवासस्थान हेतु प्रस्थान करो,जब मुझे तुम्हारी आवश्यकता होगी तो मैं तुम्हें सैनिकों द्वारा बुलवा लूँगा,
जी!महाराज!कौत्रेय बोला...
सुनो!जाने से पहले अपने निवासस्थान के विषय में बताकर जाओ,कुशाग्रसेन बोलें...
अब कौत्रेय की दशा देखने लायक थी,उसे अब सूझ ही नहीं रहा था कि वो अपना निवासस्थान क्या बताएँ क्योंकि वो तो इसी वृक्ष पर रहता है....

क्रमशः....
सरोज वर्मा.....