प्रेम गली अति साँकरी - 37 Pranava Bharti द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम गली अति साँकरी - 37

37—

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इतने लंबे-चौड़े परिसर में सन्नाटा पसरा हुआ था, संस्थान में छुट्टी घोषित कर दी गई थी | अजीब प्रकार का वातावरण था, उदासी से भरा ! मैं तो मन में हमेशा जगन के बारे में यही सोचती रहती थी, इसका मतलब मैं यही चाहती थी फिर इस घटना से क्यों इतनी अधिक उदास व उद्विग्न थी? 

“मे आई कम इन ----? ”मैं नहाकर निकली ही थी कि बाहर से आवाज़ आई | 

“आओ उत्पल ----” मैंने अपने बालों को तौलिए में लपेट रखा था | 

यहाँ से जाते हुए अम्मा-पापा कह गए थे कि वे फ़्रेश होने जा रहे हैं, मैं भी नहा-धो लूँ तो फ़्रेश हो जाऊँगी | उन्होंने डाइनिंग-रूम में बुलाया था उस दिन सारा सिस्टम ही उलट-पलट गया था | स्वाभाविक भी था | संस्थान से इतने करीब से जुड़ा परिवार था, उसका प्रभाव सब पर पड़ना था ही | 

पता नहीं क्या हुआ उत्पल के कमरे में आते ही मैं फूट पड़ी | इससे पहले मेरी आँखों से एक भी आँसु नहीं निकला था | उसने मेरे करीब आकर प्यार से मेरे तौलिए में लिपटे हुए बालों को सहलाया तो मैं और भी टूटकर रो पड़ी | 

“उत्पल! मैं पता नहीं क्यों बार-बार जगन के लिए गलत सोचती थी, आखिर वह हो ही गया | कोई कैसे किसी के बारे में ऐसे सोच सकता है? ज़िंदगी क्या बार-बार मिलती है और मैं उसके बारे में---”मैं फूट-फूटकर रो रही थी और उत्पल मुझे सांत्वना दे रहा था | पता नहीं मैं कितनी देर तक उससे चिपटी रोती रही फिर ख्याल आया तो एकदम झटके से उसके पास से हट गई | मैं उसके इतना करीब कभी नहीं गई थी, कैसे आज जाकर उससे यूँ चिपट गई जैसे न जाने उसके इतने करीब थी !उसका अपनापन, उसका मेरे प्रति आकर्षण कहाँ किसी से छिपा था लेकिन हम दोनों का कभी कोई स्पर्श तक नहीं हुआ था | हाँ, अच्छे मित्रों की भाँति हम दोनों खूब खुलकर एक-दूसरे से बातें साझा करने लगे थे---लेकिन---आज यह ---मैं शर्मिंदगी सी महसूस करने लगी !

शायद मैं रतनी या शीला दीदी के कंधे से लगकर रोना चाहती थी, अंदर से जैसे कोई प्रताड़ित कर रहा था कि मैंने इतना गलत कैसे सोच लिया था जगन के बारे में ? मैं रतनी के सामने भी जाने कितनी बार ये सब बातें कह चुकी थी, शायद मैं अपने आँसुओं को बहाकर उन सबसे माफ़ी माँगना चाहती थी | अभी 13/14 दिन परिवार को उसी मकान में रहना था जिससे उनके रिवाज़ के अनुसार जगन के सारे कर्मकांड वहीं पूरे किए जा सकें | 

“आपको डाइनिंग-रूम में बुला रहे हैं –”महाराज ने बाहर से नॉक करके कहा | 

“चलिए” उत्पल ने भी धीरे से बिना मुझसे आँखे मिलाए कहा | बालों पर से तौलिया हटाकर मैंने उन्हें समेटकर एक गोले में कैद करके गर्दन पर टिका लिया | बाल अभी गीले और उलझे हुए थे | 

“चलो---”मैं उत्पल के साथ कमरे से बाहर निकलने को हुई | 

“कितने अच्छे लगते हैं आपके बाल ! सॉल्ट—पेपर---”ओह ! मैं इसके कंधे पर सिर टिकाकर रो क्या ली, यह तो---मैं जानती थी वह मेरी हर चीज पर फ़िदा रहता है | 

“यह क्यों नहीं कहते, बूढ़े हो रहे हैं बाल भी ---”एक बार उसके चेहरे पर गहरी दृष्टि डालकर मैंने कहा | मैं भी शायद कुछ हल्का होने की कोशिश कर रही थी | 

“आपको पता नहीं कितना फ़ैशन है आजकल ऐसे बालों का---? ”उसने मुझे हँसाना चाहा लेकिन मैं वैसी ही चुप, गुमसुम सी बनी रही | 

कुछ ही मिनटों में हम डाइनिंग-रूम में पहुँच चुके थे | अम्मा-पापा हमारी प्रतीक्षा ही कर रहे थे | खाने का तो किसी का बिलकुल भी मन नहीं था लेकिन कोई भी परिस्थिति हो, उदर को तो अपना चारा चाहिए ही होता है, कम या ज़्यादा ! अम्मा ने ज़बरदस्ती थोड़ा सा खिलाकर ही पीछा छोड़ा | उत्पल भी साथ ही था | 

“तुम घर जाओगे या अभी रुकोगे उत्पल? आज संस्थान की तो छुट्टी डिक्लेयर कर दी थी | ”अम्मा ने कहा | 

“जी, घर जाकर भी क्या करुंगा? ट्रिप पर आपका साथ ले जाने वाला सब काम पूरा हो गया है | मैं कुछ भी एडिट कर लूँगा, दूसरी एडिटिंग काफ़ी बाकी हैं | ”

हाँ, वह अपने और सभी प्रोजेक्ट्स छोड़कर ट्रिप पर ले जाने के कामों में व्यस्त रहा था | 

“अगर अमी का मन हो तो इसके साथ ज़रा शीला और रतनी को मिलवाने चले जाना, यह बहुत बेचैन हो रही है | ” पापा ने कहा | 

“जी---” उत्पल गहरी दृष्टि से लगातार मेरे मुरझाए चेहरे पर नज़र चिपकाए शायद मेरे भीतर के तूफ़ान को समझने की कोशिश कर रहा था | 

“अभी चलोगे उत्पल? या बाद में ? ” उसका मूड भी तो देखना चाहिए था न!पता नहीं, बेचारा जाने के मूड में हो भी या नहीं ? मैंने मन में सोचा | 

“जैसे आप कहें ---” उसने धीरे से उत्तर दिया | 

अम्मा-पापा खाने के बाद फिर से अपने कमरे में चले गए थे | दोनों बहुत सुस्त और थके हुए दिखाई दे रहे थे | उन्हें आराम की सख्त ज़रूरत थी | 

“मैं आती हूँ ज़रा कमरे में जाकर----” मैंने उत्पल से कहा तो वह समझ गया कि मैं अकेली ही अपने कमरे में जाना चाहती थी | 

“ठीक है, मैं स्टूडियो में बैठता हूँ ---”

मैंने सफ़ेद साड़ी निकालकर पहनी और बाल ड्रायर से ठीक से सुखाकर एक ढीली सी लंबी चोटी कमर की  ओर पीछे उछाल दी | पैरों में से स्लीपर निकालकर बाहर जाने वाली सादी सी चप्पलें पहनीं और एक बार ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़े होकर अपने मुरझाए मुँह पर हाथ फिराकर देखा जो ज्यादा ही मुरझाया हुआ लग रहा था। थोड़ी सा मॉसचेराइज़र हथेलियों में लेकर अनमने से ही सही, मुँह पर हाथ फिरा लिया और कमरे से बाहर निकल गई | 

“आइए----अंदर आ जाइए न ---” मुझे बाहर से नॉक करते सुन उत्पल ने कहा | 

“अब क्या करने बैठ गए, चलो न----” कमरे में पैर रखकर मैंने कहा | 

“हाँ, चलिए न, आपकी ही वेट कर रहा था---”उसने जल्दी से अपने हाथ में पकड़ा हुआ कुछ अपनी ड्रॉअर में रख दिया और बाहर निकल आया | 

मुझे लगा जो कुछ भी उसके हाथ में था, वह मुझसे छिपाना चाहता था | और कोई समय होता तो मैं पूछ भी लेती लेकिन इस समय नहीं !