प्रेम गली अति साँकरी - 33 Pranava Bharti द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम गली अति साँकरी - 33

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उस दिन संस्थान में ही रतनी दिव्य का सामान उठा लाई | शीला दीदी ने ऑफ़िस के लॉकर में उसका पासपोर्ट संभालकर रख दिया था और यह बात और भी पक्की हो गई थी कि किसी न किसी तरह दिव्य को वहाँ से निकलना है | डॉली भी स्कूल से संस्थान आ गई थी और दिव्य ने फ़्लैट झड़वा-पुंछवाकर फिलहाल सोने योग्य बना लिया था | उस दिन रात को वह वहीं सोया | शायद बहुत दिनों बाद उसे चैन की नींद आई होगी | वैसे उस परिवार के भाग्य में चैन की नींद थी क्या? 

अगले दिन डॉली ठुनक गई कि वह भी भाई के पास रहेगी | वह उस घर में नहीं रहना चाहती| उसकी बात गलत नहीं थी लेकिन दिव्य लड़का था| हाल में ही किसी कंपनी में उसकी नौकरी मार्केटिंग में लगी थी | वैसे वह ज़रूरत पड़ने पर संस्थान के काम भी करता रहता था | साथ ही अपने संगीत का रियाज़ भी ! डॉली उसके पास रहती तो वह बंध जाता और उससे भी ज़्यादा जगन का प्रकोप उसकी माँ को ही झेलना पड़ता| उसे किसी तरह पटाया गया कि अभी सब लोग ही उस नए वाले फ़्लैट में चलकर रहेंगे | थोड़े दिन रुक जाए बस---

मेरे मन में तो न जाने कितनी बार आता था कि जगन आखिर जिंदा क्यों है ? अगर वह कहीं बीमार-वीमार पड़ गया तो और इन दोनों स्त्रियों के गले का फंदा बन जाएगा लेकिन मैं खुद को ऐसा सोचने से रोकने की कोशिश करना चाहती थी जबकि यह जानती थी कि दिलोदिमाग पर किसका बस रहता है? सोच के तो ऐसे पंख लगे होते हैं कि मनुष्य बात कर रहा होता है वर्तमान की और सोच रहा होता है आसमान की| अभी यही तो हुआ था जब मैं अम्मा के चैंबर में गई थी | मुझे समझ नहीं आया था कि अचानक डॉ.सुनीला पाठक क्यों याद आ गईं थीं | मैं वैसे ही प्रमेश को लेकर व्यग्र थी ऊपर से पापा ने कहलवाया कि आज मुझे डिनर पर उनकी प्रतीक्षा करनी है | मैं जानती थी, वे दोनों कितने अकेले पड़ गए थे | 

आज डिनर पर अम्मा-पापा और मैं तीनों न जाने कितने दिनों बाद साथ होने वाले थे | पापा ने खास कहलवाया था कि मैं उनका इंतज़ार करूँ, अपने कमरे में न चली जाऊँ | लेकिन हम तीनों अकेले कहाँ थे| मैं अपने कमरे से निकलकर डाइनिंग की ओर जाने लगी तो देखा सिटिंग रूम में ड्रिंक का दौर चल रहा था | अम्मा-पापा कोई हर रोज़ डिनर से पहले नहीं लेते थे | किसी के डिनर पर आने पर ही बीयर ले ली जाती थी | वो भी बड़े सलीके से ! कई बार मुझे इससे भी तकलीफ़ होती कि डिनर से पहले ड्रिंक लेना एक फैशन हो गया था ! अरे!यह क्या ? डॉ.सुनीला पाठक अपने पति के साथ सिटिंग-रूम में बैठीं थीं| कई बार मुझे लगता था कि जो कुछ मेरे दिमाग में आ जाता, वह न जाने कैसे पूरा हो जाता था| इसलिए मैं कुछ भी सोचते हुए बहुत डरती थी| 

मैं सबके सामने पहुँच चुकी थी | अम्मा ने बड़े प्यार से मुझे बुलाकर कहा ;

“कितने दिनों से याद कर रही थी मैं डॉ.पाठक को, बड़ी मुश्किल से आज मिलना हो पाया है| ”

“कहाँ हो अमी ? ऐसी गायब हो गईं ---| ” डॉ.पाठक ने सोफ़े से उठकर मुझे गले से लगा लिया| 

“बहुत अच्छा लगा आप लोगों को देखकर--” मैंने दोनों पति-पत्नी को नमस्कार करते हुए कहा | मैं वाकई में खुश थी | बड़े प्यारे लगते थे वे दोनों ही मुझे | दुनिया में ऐसे लोग भी होते हैं जिन्हें सच में रिश्ते जीने आते हैं!ये ऐसे ही लोग थे | 

“इनका हनीमून कहाँ खतम होता है ---”अम्मा हँसकर जैसे इशारे से मुझे कुछ कह रही थीं| 

“हनीमून खतम होना भी क्यों चाहिए ---? ” पापा की हँसी देखकर मैं चौंकी, मन खुशी से भर उठा | आज मुझे पहले वाले पापा दिखाई दे रहे थे | कमाल था ! आज इतने दिनों बाद पापा की थोड़ी सी पहले जैसी आवाज़ सुनाई दी, जैसे मन को राहत मिली | 

“आज कैसे आप लोग ? ”आश्चर्य से मेरे मुँह से निकल ही गया| 

“इनसे मिलो, मिलवाने आए हैं तुम्हें ----” सुनीला जी ने उस ओर सोफ़े के कोने में बैठे हुए एक सुदर्शन युवक की ओर इशारा किया | 

कमाल है, कई मिनट हो गए मुझे उस कमरे में पहुँचे लेकिन मेरी उस पर दृष्टि भी नहीं पड़ी थी | मैं झेंप गई | 

“मेरा भाई है, कज़िन श्रेष्ठ ---आया तो सोचा, आप लोगों से मिलवा लाऊँ –” डॉ.पाठक ने मुस्कुराकर कहा| 

“अरे बेटा!मैं कई दिनों से फ़ोन कर रही थी कि आ जाइए तब आए हैं ये लोग | ” अम्मा ने मेरी ओर देखकर कहा | वे भी आज मूड में लग रही थीं | कमजोरी की जगह इस समय तो उनके चेहरे पर चमक थी| मुझे क्षण भर में ही मामला समझ में आ गया | मेरी नज़र फिर उस बंदे पर पड़ी, इतना युवा तो नहीं था लेकिन सुदर्शन व परिपक्व लग रहा था| 

ये क्या करती रहती हैं अम्मा भी !मेरे मन में फिर से गुबार सा उठा| ज़रूर इन दोनों महिलाओं के बीच मुझको लेकर कुछ बात हुई है इसीलिए इन महाशय के आने पर डॉ.पाठक ने यह कार्यक्रम बनाया| एक से बात नहीं बनी तो दूसरा सामान लाकर दिखा दिया, ये क्या है ? जो थोड़ा-बहुत मूड ठीक हुआ था, वह फिर से खराब होने लगा| 

“श्रेष्ठ! यह अमी है ---” उन्होंने मुस्कुराकर मेरी ओर देखा | 

“अमी !ये -----”

“श्रेष्ठ हैं ----”अपनी आदत के विपरीत मैं मुस्कुराकर बोल पड़ी और वहाँ बैठे सब ही खिलखिलाकर हँस पड़े | 

“आज हमारी बिटिया अलग ही मूड में है----” पापा बड़े प्रसन्न थे | मैं ऊपर से मुस्कुरा रही थी और अंदर से कुढ़ रही थी| 

अब डिनर पर मुझे उसके प्रोफेशन के बारे में, उसके परिवार के बारे में बताकर कहा जाएगा कि उसे संस्थान दिखा दूँ | ऐसा कई बार कर चुके थे अम्मा-पापा लेकिन अब तक तो उनकी योजना सफ़ल हुई नहीं थी| अम्मा के चेहरे पर विश्वास देखकर लग रहा था कि उन्हें डॉ.पाठक के कारण इस बार अपनी योजना पर कुछ भरोसा है शायद !

श्रेष्ठ ठीक मेरे सामने की कुर्सी पर बैठा था और बातों-बातों में मेरी रुचि के बारे में जानने की कोशिश कर रहा था| सब एक-दूसरे से सहज संवाद कर रहे थे लेकिन जब वह मुझसे कोई बात पूछता, सब जैसे क्षण भर के लिए आँखों ही आँखों में जैसे वार्तालाप करने लगते | 

श्रेष्ठ मि.पाठक के बड़े भाई का लड़का था और भारतीय वायुसेना में विमान-चालक रह चुका था| अब रिटायरमैंट लेकर एयरफोर्स से जुड़ा ही कोई व्यवसाय करने लगा था | श्रेष्ठ काफ़ी स्मार्ट था, उसका जीवन बहुत व्यस्त रहता | एक अलग ही पहचान बनी थी उसकी| सच तो यह है कि मैं उसे देखकर पता नहीं क्यों, बड़ा अच्छा महसूस कर रही थी | मैंने उसकी ओर ध्यान से देखा, नियमानुसार उसकी काफ़ी वर्ष की सेवाएँ हो गई होंगी शायद इसीलिए उसने अपना व्यक्तिगत कार्य शुरू किया | मैं यूँ ही उसके बारे में सोचने लगी | मुझे लगा कि जब तक वह भारतीय सेना से जुड़ा हुआ था, तब तक तो शायद फिर भी मैं उसमें रुचि ले सकती थी लेकिन अब ---अब तो वह एक्स हो गया है, उसमें और एक आम आदमी में आखिर फ़र्क ही क्या रह गया है ? मुझे तो हर बात में मीन-मेख निकालनी होती थी | वैसे अभी तक किसी ने मुझसे कुछ भी नहीं कहा था| 

जैसा मेरे मन में चल रहा था, वैसा ही हुआ | भोजन के बाद अम्मा ने मुझे संस्थान दिखाने की आज्ञा दी और मैं उसकी गाइड बनकर आगे-आगे चल पड़ी |