इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 21 Vaidehi Vaishnav द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 21

(21)

मनोरमा- अर्नव बिटवा आज कौन सा स्पेशल दिन है ? काहे इतना रंगबिरंगाई रहे। आज होली नाही है।

अर्नव- मामी, मेरे सारे फॉर्मल कपड़े लॉन्ड्री बॉय ले गया।

अर्नव नाश्ते का इंतजार करते हुए डॉयनिंग टेबल को तबले की तरह बजाने लगता है।

आकाश नहा-धोकर जब नाश्ते के लिए आता है, तो अर्नव को लाल रंग की शर्ट में डॉयनिंग टेबल बजाते हुए देखकर अपनी आंखे मसलने लगता है।

आकाश- भाई, सब ठीक तो है न ?

आज ये आपका कौन सा अवतार हैं जो मैंने आज तक कभी नहीं देखा।

अंजली- हाँ आकाश, हमें भी पिंच करो न ? हमें तो यक़ीन ही नहीं हो रहा।

आकाश अंजलि को पिंच कर देता है।

अंजलि- आउच..

अर्नव- आप सब भी कभी-कभी डेलीसोप की तरह बिहेव करने लगते है। बताइये नानी मैं अजीब लग रहा हूँ क्या ?

देवयानी (झिझकते हुए)- हाँ, अजीब तो लग रहे हैं आजकल आप।

आकाश- मुझे तो लगता है अर्नव भाई में कोई भूत आ गया है। डरकर आकाश पीछे हट जाता है।

अर्नव- ओह शटअप आकाश !

लगता है मुझे नाश्ता अपने रूम में जाकर ही करना होगा। अर्नव उठकर जाने लगता है तो मुख्य द्वार से अंदर आते हुए श्याम (अंजलि के पति) ने कहा- अरे ! भोंदूजी हमारे रहते आप अकेले कमरे में नाश्ता करें, ये तो बहुत नाइंसाफी है।

अर्नव (ख़ुश होकर)- वाओ जीजाजी..

अर्नव, श्याम से गले मिलकर उनका अभिवादन करता है। आकाश भी दौड़कर आता है और श्याम के पैर छूकर उनसे मिलता है।

परिवार के बाक़ी सदस्य भी श्याम के पास जाते है। श्याम फुर्ती से देवयानी की तरफ आता है और पैर छूकर उनकी खेरख़बर पूछता है।

देवयानी- आयुष्मान भव! हम ठीक है, आप कैसे है दामादजी ?

श्याम ( मुस्कुराकर)- आपके सामने खड़े हैं नानी जी, आपके आशीर्वाद से बिल्कुल ठीक ठाक।

मनोरमा- हमरा भी आशीर्वाद रहा आपको ठीक रखने में..

श्याम मनोरमा की ओर मुखातिब होकर, पैर छूकर आशीर्वाद लेते हुए- हाँ मामीजी, सही कहा आपने। हम अपने साथ आपके लिए सरप्राइज भी लाए है ।

सरप्राइज की बात सुनकर मनोरमा की आंखों में चमक आ जाती है।

मनोरमा- कहो ना, का सरप्राइज है... वइसन तो गाड का दिया सब कुछ है हमरे पास, फिर भी तुम्हरि बतवा लांग सस्पेंस स्टोरी की माफ़िक लागत है जरूर कौनहु बहुत अच्छी बात होई है..

श्याम अपने दोनों हाथ मुख्य दरवाज़े की ओर करते हुए मनोरमा से उस तरफ़ देखने का कहता है। मनोरमा के साथ ही सभी सदस्य उत्सुकता से दरवाज़े की ओर देखते हैं तो वहाँ मनोहर को खड़ा हुआ पाते हैं।

मनोहर की देखकर सबके चेहरे खिल जाते हैं।

अंजलि- अरे वाह! मामाजी..

अर्नव- हम सब एक साथ बहुत दिनों बाद दिख रहे हैं। सच में आज के दिन की शुरुआत बहुत ही बेहतरीन हुई है।

मनोहर- सही कह रहे हो अर्नव बेटा।

हमने जब आकाश की सगाई की बात सुनी तो हमसे तो रहा ही नहीं गया। हमने सारा काम जल्दी ही निपटा लिया और आ गए तो देखा दामादजी भी एयरपोर्ट पर ही मिल गए।

सभी लोग एकदूसरे से मिलते हैं, एकदूसरे के हालचाल पूछते है।

बहुत दिनों बाद सब एक साथ नाश्ते की टेबल पर चर्चा के साथ चाय नाश्ते का आनंद लेते हैं।

मनोहर अर्नव को देखकर कहते हैं- घर आकर बाक़ी सब तो वैसा ही लग रहा, बस अर्नव बिटवा बहुत ही अलग दिख रहे हैं।

श्याम (सहमति जताते हुए)- मामाजी, मैं बहुत देर से यही सोच रहा था कि मुझे क्या बात है जो अलग लग रही है और वो अर्नव ही है। कही अर्नव का कोई डुप्लीकेट तो घर नहीं आ गया।

श्याम की बात सुनकर सब हँसने लगते हैं। अर्नव भी मुस्कुरा देता है।

वह मन ही मन सोचता है- जल्दी ही आप सबको मेरे बदलते रूप की वज़ह भी पता चल जाएगी। आज का दिन बहुत अच्छा लग रहा है। आज ही अपने दिल का हाल खुशी को कह सुनाऊँगा।

अर्नव ख़ुशी के आने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा होता है। उसे इंतज़ार की ये घड़िया सदियों सी लम्बी लग रहीं थी। वह अपने कमरे में एक साइड से दूसरी साइड व्याकुल होकर टहल रहा था। तभी वहाँ अंजली आती है। वह अर्नव को बेचैन देखकर पूछती है-

अंजली- लगता है तुम्हारी कोई डील कैंसिल हो गईं हैं, तभी इतने परेशान दिख रहो हो।

अर्नव बुदबुदाते हुए- अभी तो पार्टनर ही नहीं आया। प्रपोजल दिया नहीं डील हुई नहीं है पर डर उसके कैंसिल हो जाने का ही है।

अंजली- ओहो ! तुम और तुम्हारी ये बिजनेस की बातें.. सो बोरिंग! हम तो ये पूछने आए थे कि तुमने हमसे पार्टी का जो वादा किया था, वह कब होगी?

अर्नव (मज़ाक करते हुए गम्भीर लहज़े में)- "कभी नहीं"

अंजली (हैरान होते हुए)- क्यों, हमने ऐसा क्या कर दिया।

अर्नव- मुझसे झूठ कहा...

अंजली- कैसा झूठ..?

अर्नव- यही कि आपको किसी ने सगाई का नहीं बताया। आपने झूठ-मूट की नाराजगी दिखाकर मेरा वक़्त बर्बाद किया। इसलिए अब कोई पार्टी नहीं होगी।

अर्नव की बात सुनकर अंजली उसे सच समझती है और उसका चेहरा उतर जाता है।

अपनी बहन को उदास देखकर अर्नव कहता है- आपको क्या लगता है दी, मज़ाक करना सिर्फ़ आपको ही आता है। पार्टी होगी और इसी सप्ताह होगी। आप तैयारियां शुरू कीजिए। मैंने आज ऑफिस से छुट्टी इसीलिए ली है ताकि मैं सारा मैनेजमेंट प्लान कर सकूं।

अर्नव की बात सुनकर अंजली खुशी से उछल पड़ती है। वह अर्नव को गले लगाकर कहती है- थैंक यू भोंदु!

अंजली को खुश देखकर अर्नव के चेहरे पर मुस्कान तैर जाती है। वह कहता है- दी, खुशी आए तो उससे कहना मैंने बुलाया है। मैं उससे सलाह लेकर उनके मेहमानों की लिस्ट भी बनवा लूंगा।

अंजली- ये ठीक रहेगा। मैं अभी उनको भेजती हूँ। वह आ गई है।

अंजली कमरे से बाहर चली जाती है।

हॉल में घर के सभी सदस्य मौजूद थे। देवयानी ने खुशी का परिचय मनोहर व श्याम से करवाया।

देवयानी- ये खुशी है, आकाश की साली और हम सबकी लाडली।

खुशी- नमस्ते !

श्याम- नमस्ते ! ख़ुशीजी..

भई हम तो सगाई में शामिल नहीं हो सके वरना आपसे उसी दिन मिल लेते और आप को लड़केवाले होने का थोड़ा सा रौब भी बताते।

खुशी (मुस्कुराते हुए)- अब बता लीजिये.. यह घर भी हमारा ही है। हम तो जीजी की सगाई से पहले ही यहाँ से जुड़ गए थे।

मनोहर- मनोरमा ने सच ही कहा था कि तुम बहुत प्यारी बातें करती हो।

खुशी- आँटी को तो हमारी सभी बातें प्यारी ही लगती है।

मनोरमा (नाराज़ होते हुए)- पर तुम्हरी ईको बात हमका प्यारी नाही लागत।

खुशी- कौन सी बात आँटी ..?

मनोरमा- ई जो तुम हमका आँटी कहत हो न.. ई हमरे कलेजवा में शूल की माफ़िक भीतर तक घुसत जात है और हमरे साफ्ट मनवा को आहत कर देब।

खुशी (अपनेपन से)- अगर हमें पता होता तो हम आपको कभी आँटी नहीं कहते। शुरू से ही मामीजी कहकर बुलाते।

मनोरमा- अब की हो न हमरी बेसट फिरेण्डवा की बिटियां जईसन बात।

अंजली- खुशीजी की तो बात ही अलग है, हम इनसे पहली बार मार्किट में मिले थे और पहली बार मिलकर ही लगा जैसे इनसे बरसों की पहचान हो। बहुत अपनापन लगता हैं इनकी बातें सुनकर। अरे ! बातों ही बातों में हम तो भूल ही गए.. ख़ुशीजी आपको अर्नव बुला रहे हैं।

अर्नव का नाम सुनते ही खुशी के दिल की धड़कनें तेज़ी से धड़कने लगती है।

खुशी अर्नव के कमरे की ओर जाती है। एक अजीब सी दुविधा में खुशी ने ख़ुद को उलझा हुआ महसूस किया। उसका मन तो अर्नव के इर्दगिर्द रहना चाहता है, लेकिन दिमाग़ अर्नव से दूरी बनाएं रखने की सलाह दे रहा था।

खुशी का दिमाग कहता है- इश्क की जिस राह पर तुम्हारे कदम बढ़ रहे हैं उसकी कोई मंजिल नहीं है। इन रास्तों पर चलकर सिवाय दुःख-दर्द के तुम्हें कुछ हासिल होने वाला नहीं है।

खुशी का मन उसके दिमाग का खंडन करते हुए अपनी दलील देता है- प्यार, इश्क, मोहब्बत कोई व्यापार या जंग नहीं जिसमें अपने स्वार्थ में अंधे होकर हर हाल में लाभ प्राप्त कर लो या जो चाहो वह हासिल कर लो।

प्यार कोई सोची समझी योजना भी नहीं होता। जैसे चोर हमसें पूछकर हमारा सामान चोरी नहीं करता है, ठीक वैसे ही इस प्यार में कब दिल चोरी हो जाता है हमें खबर ही नहीं होतीं।

दिल और दिमाग के द्वंद में ही खुशी अर्नव के कमरे तक पहुंच जाती है।

दरवाजा खुला हुआ ही था। अंदर जाने से पहले खुशी दरवाजा खटखटाती है।

अर्नव- आ जाओ...

खुशी धीमी गति से अंदर आती है। खुशी बहुत बार अर्नव के कमरे में आ चुकी थी, पर आज उसे अर्नव का सामना करते हुए असहज महसूस हो रहा है। पहले जिस बेबाकी से वह अपनी बात अर्नव से कहा करती थी आज उसके उलट खुशी ऐसे खामोश खड़ी थी जैसे उसके होंठ सील गए हो।

खुशी को चुपचाप खड़ा हुआ देखकर अर्नव कहता है- क्या बात है, आज नॉन स्टॉप चलने वाला रेडियो बन्द क्यों है?

खुशी अर्नव के मजाक पर कोई टिप्पणी न देते हुए कहती है- आपने हमें यहाँ किसलिए बुलाया है?

अर्नव- पार्टी के लिए..

खुशी (सवालिया नजरों से देखते हुए)- पार्टी.. ?

अर्नव- हां, पार्टी...

मैं खुशी के लिए पार्टी देना चाहता हूँ, इसलिए तुम्हें यहाँ बुलाया है।

खुशी (हैरान होकर)- किसके लिए..?

अर्नव बात सम्भालते हुए- खुशी.. अपनों की खुशी के लिए एक पार्टी इसी सप्ताह देने का प्लान कर रहा हूँ। मुझे तुम्हारी बस इतनी सी मदद चाहिए कि तुम मुझे अपने क़रीबी रिश्तेदारों के नाम बता दो।

खुशी- जी ठीक है।

अर्नव (गम्भीर होते हुए)- क्या हुआ खुशी ? सब ठीक तो है न? कुछ कहना चाहती हो?

खुशी (डरते-सहमते हुए)- हाँ, हमें ये कहना है कि हमारी जीजी बहुत सीधी है। वह घर में बड़ी थी तो सबने लाड़प्यार से ही रखा। हम लोग आपके जितने अमीर नहीं है। आपकी जीवनशैली, तौर-तरीके हम लोगों से बहुत अलग है। कभी हमारी जीजी से कोई भूल हो जाए तो जैसे आप हमें डाँटते वैसे उन्हें कभी मत डाँट देना। वह बर्दाश्त नहीं कर पाएगी। हम जानते है कि आकाशजी और जीजी का रिश्ता किन परिस्थितियों में हुआ है। हम ये भी अच्छे से जानते हैं कि हम लोग पूरी जिंदगी चौबीस घण्टे भी कमाते रहे तो आपके जितना रुपया नहीं कमा पाएंगे। हमारा आपसे कोई मेल ही नहीं है फिर भी आपके परिवार में हमारी बहन का रिश्ता तय हो गया है। आपको यह सदमा बर्दाश्त तो नहीं हुआ होगा पर आपने अपनो की खुशी के लिए नानीजी के इस फैसले को स्वीकार कर लिया है। हम आपको वचन देते हैं कि अबसे आपको अपनी शक़्ल नहीं दिखाएंगे, आप बस हमारी जीजी से कुछ मत कहिएगा।

खुशी की बात सुनकर अर्नव का दिल बैठ जाता है। वह समझ ही नहीं पाता है कि खुशी को कैसे बताए कि उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है कि खुशी का बैंक बैलेंस क्या है, उसका समाज में क्या ओहदा है, वह जानी पहचानी शख्शियत है या नहीं... अर्नव के लिए ये सारी बातें खोखली है। न जाने क्यों आज खुशी इन सबको इतना महत्व दे रही थी।

खुशी अपनी बात कहने के बाद कमरे से जाने लगती है। अर्नव खुशी को रोकते हुए..

अर्नव- रुको खुशी ! तुमने सिर्फ़ अपनी बात कही है। मेरी बात भी सुनती जाओ।

खुशी (कयास लगाते हुए बुदबुदाती हैं)- जरूर फिर से शानोशौकत पर लेक्चर देंगे।

खुशी के अनुमान उस समय कपूर की तरह फुर्र हो गए जब अर्नव ने अपनी बात कहना शुरू की।

अर्नव- तुम वहीं खुशी कुमारी गुप्ता हो न जो कभी शेरनी की तरह दहाड़ा करती थी। मेरी हर बात का जवाब ऐसे देती, जैसे ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाता है। आज तुम दीनदुखियों की तरह बात क्यों कर रही हो? तुम तो मुझसे बहुत अमीर थी न..

खुशी की नजरें प्रश्नवाचक चिन्ह की तरह अर्नव को देखती है।

अर्नव- संस्कारो में मुझसे अमीर, गुणों में मुझसे अमीर। अब क्या हुआ? संस्कार और गुण ख़त्म हो गए?

खुशी- ये सब कहने की बामें है अर्नवजी। संस्कार और गुणों की कद्र कौन करता है। आज के युग में लड़का अमीर हो तो वह सर्वगुणसम्पन्न माना जाता है, भले ही उसमें सारी बुरी आदतें हो। ठीक ऐसा ही लड़कियों के लिए देखा जाता है, अमीर घराने की लड़कीं को तो रानी की तरह रखा जाता है और गरीब घर की बेटियों को नौकरानी ही समझा जाता है। जो जितना ज़्यादा दहेज़ लाएगी वह उतना ही कम काम करेगी फिर भी वही प्यारी लगेगी। सारा दिन काम करने वाली गरीब बेटियों को तो मीनमेख निकालकर तिरस्कृत ही किया जाता है। यही इस संसार की रीत है।

हमें अब आपकी बातें भी समझ आ गई कि दुनिया में जिसके पास रुपए हैं वही भगवान है।

अर्नव- तुमने यह तय कर रखा है क्या कि मैं जो भी बात कहूँगा तुम उसके विपरीत ही जवाब दोगी। आज जब मुझे समझ आ गया है कि रुपए से ज़्यादा कीमत इंसान की होती है तब तुम मुझे रुपयों का महत्व समझा रहीं हो।

खुशी- हमें भी रुपयों का महत्व उस समय समझ आया जब जीजी की सगाई चन्द रुपयों के लिए टूट गई थी।

अर्नव- आज नकारात्मकता का भूत तुम पर सिर चढ़कर बोल रहा है। तुम्हें यह नहीं दिख रहा कि तुम्हारी बहन का रिश्ता एक लालची घर में होने से बच गया, तुम्हें तो उसके टूट जाने का अफसोस हैं। एक काम करो आज नानीजी ने सत्यनारायण भगवान की कथा रखी है, तुम जाओ और कथा सुनो। जब तुम्हारा मन ठीक हो जाएगा तब तुमसे बात करूंगा।

खुशी- आपकी यही तो प्रॉब्लम है कि आप सच सुनना ही नहीं चाहते।

अर्नव- और तुम्हारी यही प्रॉब्लम है कि तुम सच समझना ही नहीं चाहती।

खुशी वहाँ से चली जाती है। अर्नव भी सिर पकड़कर पलंग पर बैठ जाता है।

अर्नव- कितना कुछ सोचा था, कि जब वो आएगी तब उससे दिल की बात कह दूँगा। आज तो वो जैसे दिल नहीं बिल की बात कर रही हो.. हर बात को पैसों के तराजू में तोल रही थी।

अगले दृश्य में...