Is Pyaar ko kya naam dun - 19 books and stories free download online pdf in Hindi

इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 19

(19)

देवयानी- जी..

पुष्पा- हमारा बेटा जितेंद्र उन्हीं की कम्पनी में सुपरवाइजर है।

देवयानी- जी अच्छी बात है।

आकाश गरिमा से पूछती है- आँटी, ख़ुशीजी कही नजऱ नहीं आ रहीं ?

गरिमा- लेट लतीफी करना उसकी आदत है। आती ही होगी।

ख़ुशी के आने से पहले ही वहाँ अर्नव आ जाता है। अर्नव को देखकर उसके परिवार के सदस्यों साथ ही अन्य लोगों के चेहरे पर भी हैरानी साफ़ दिखाई देती हैं।

लड़के वालों के रिश्तेदारों में कानाफूसी होने लगती है- बहुत रईस परिवार से मित्रता है इनकी तो.. अच्छा खासा दहेज़ मिलेगा। भई, जितेंद्र की तो पाँचो उंगलियां घी में हो गई। अब सारी जिंदगी ऐश करेगा।

पायल का मन बहुत घबरा रहा था वह ख़ुशी मन ही मन कोसती है- जब भी हमें ख़ुशी की सबसे ज़्यादा जरूरत होती है, तब वह हमारे साथ नहीं होती।

तभी पायल को जल्दबाज़ी में सीढ़ियों से उतरतीं हुई ख़ुशी दिखाई देती है।

ख़ुशी को देखकर पायल और आकाश का चेहरा खिल उठता है।

अर्नव किसी से बात करने में व्यस्त था तभी उसे ख़ुशी दिखाई देती हैं। अर्नव अपलक ख़ुशी को देखता रह जाता है।

नीले रंग की ड्रेस में ख़ुशी बेहद खूबसूरत लग रही थी।

पायल दूर से ही खुशी को देरी से आने पर आंख दिखाती है, तो खुशी अपने कान पकड़कर माफ़ी मांगती है।

ख़ुशी पायल के पास जाकर बैठ जाती है, वह मेहमानों पर सरसरी नज़र डालती है तो सामने अर्नव को खड़ा देखकर पहले तो चौंक जाती है फिर अपनी कल वाली नई बीमारी जानकर वह अर्नव को अपनी आंखों का धोखा समझकर नजरअंदाज कर देती है।

अर्नव भी ख़ुशी के ऐसे रवैये को देखकर नाराज़ हो जाता है और वहाँ से चला जाता है।

अगले दृश्य में

मधुमती, गरिमा के पास जाकर कहती है- पंडित जी कहाँ है ? सगाई का महूर्त निकला जा रहा है।

गरिमा (आंखों के इशारे से)- वो देखिए जीजी पंडितजी आ गए।

मुहूर्त शुरू होते ही लड़का और लड़कीं सगाई के लिए आमने-सामने खड़े हो जाते हैं।

पण्डितजी अँगूठी का महत्व समझाते हुए कहते हैं- अँगूठी से पति-पत्नी के बीच आपसी प्यार और विश्वास बना रहता है। यह दोनों को आपस में जोड़े रखती है।

पण्डित जी कहते हैं- "अब कन्यापक्ष वर का तिलक करें"

शशिकांत उठकर अपने होने वाले दामाद का तिलक करते हैं। इसके बाद  नारियल, रुपया, सुपारी, जनेऊ, फल, मिठाई, मेवे, पान, वस्त्र, घड़ी व नक़द आदि उपहार स्वरूप देते हैं। ख़ुशी फूलों से सजी थाल में अँगूठी का बॉक्स खोलकर रखती है।

वरपक्ष से किसी महिला की आवाज़ आती है- इतनी हल्की अँगूठी। देखना जितेंद्र कही एक ही बार में टूट न जाए।

दूसरी महिला- अरे! अँगूठी तो ठीक है उपहार में भी कुछ नहीं दिया। हम तो सोच रहे थे कार की चाबी रखकर देंगे।

अब तक बहुत देर से चुप बैठी पायल वरपक्ष की ओर से हो रहीं ज़हर उगलती चर्चा को बर्दाश्त नहीं कर पाई वह अपने घूँघट को उठाती है और कहती है- बस कीजिये ! बहुत हुआ..

कान पक गए हमारे कमियां सुनते-सुनते। अँगूठी हल्की नहीं हैं हल्की तो आप लोगों की सोच हैं। घटिया खाना और व्यवस्था नहीं आप लोग हैं। जब से यहाँ आए हैं किसी न किसी बात को लेकर हमारे बाबूजी को नीचा ही दिखा रहे हैं। अगर इतनी ही ऊंची नाक वाले हैं आप लोग तो क्यों चले आए यहाँ मुँह उठाकर। जब रिश्ता तय हुआ था तब ही यह सब सोचना था।

गरिमा, पायल को चुप रहने का इशारा करती है।

पायल- नहीं अम्मा, आज अगर हम चुप रहे तो ज़िन्दगीभर एक जिंदा मुर्दे की तरह जिएंगे। इन लोगों को आप अपने खून से भी सींच देंगे न, तब भी ये मरुभूमि की तरह सूखे और भूखें ही रहेंगे। पति-पत्नी का रिश्ता महज़ अँगूठी पहना देने से मजबूत नहीं होता। यह तो वह पवित्र बंधन है जिसमें एक दूसरे के मान-सम्मान का भी ख्याल रखा जाता है।

पायल (घृणा की दृष्टि से लड़के को देखते हुए कहती है)- "हम एक ऐसी कठपुतली से विवाह नहीं कर सकते जिसका अपना कोई वजूद नहीं, जो गलत होते देखकर भी बूत बना खड़ा रहे।"

पायल लड़के के सामने से हट जाती है और वहाँ से जाने लगती है।

शशिकांत, मधुमती और गरिमा अचानक हुई इस घटना से स्तब्ध रह जाते है। लड़के वाले ख़ुद को इतने सारे लोगों के सामने तिरस्कृत होता देखकर अपनी झूठी शान दिखाते हुए ...

लड़के की माँ पुष्पा- "अरे हमें कोई कमी है क्या लड़कियों की। इस लड़कीं ने इतनी बड़ी-बड़ी बातें की है न.? देखती हूँ कौन करता है इससे शादी। हमने तो साँवला रंग देखने के बाद भी हाँ कह दी थी...

पुष्पा की बात सुनकर देवयानी गुस्से से तिलमिला जाती है, और कहती है...

देवयानी- आप बिल्कुल चिंता न करें पायल बिटियां की। आप अपने लड़के के बारे में सोचिए, उनके लिए लड़कीं ढूंढिए क्योंकि पायल बिटिया की सगाई आज, अभी इसी महूर्त में आपके सामने ही होगी।

देवयानी की बात सुनकर वहाँ उपस्थित सभी लोग चौंककर एक-दूसरे का मुँह देखने लगते है।

गरिमा भी अचरज में पड़ जाती है और मनोरमा को देखती है। मनोरमा आंखों ही आंखों में इशारा करते हुए मानो कहती है, कि उसे इस बारे में कुछ नहीं पता है।

देवयानी आकाश को अपने पास बुलाती है और पुष्पा से कहती है- यह हैं पायल बिटियां के मंगेतर उनके होने वाले पति और हमारे इकलौते पोते आकाश।

देवयानी की बात सुनकर पुष्पा का चेहरा ऐसा पीला पड़ जाता है जैसे अचानक उसका सारा खून पानी बन गया और उसे पीलिया हो गया हो।

मनोरमा भी चकित सी देवयानी को देखती रह जाती है।

गरिमा, मधुमती, शशिकांत और खुशी को तो जैसे अपने कानों पर यक़ीन ही नहीं हुआ। पायल भी देवयानी की बात सुनकर ठहर जाती है।

देवयानी, आकाश से पूछती है- बेटा आकाश तुम तो हमारी कठपुतली नहीं हो न ? क्या तुम हमारे इस फैसले का समर्थन करते हो ?

आकाश (गर्व से)- दादी, आपका हुक़्म सिर आंखों पर। पायलजी जैसी लड़की तो भाग्यशाली इंसान की किस्मत में लिखते हैं विधाता। आपके ही आशीर्वाद का यह फल आज मुझे मिलने जा रहा है तभी सर्वगुण सम्पन्न लड़कीं का वरण आपने मेरे लिए किया है।

आकाश की बात सुनकर वरपक्ष की ओर से आए सभी लोग लज्जित होते हैं। वह मुँह नीचा किए हुए चुपचाप वहां से चले जाते हैं।

ख़ुशी (अतिउत्साहित होकर)- अरे वाह! आकाशजी, आज तो आपने दिल जीत लिया।

आकाश- आकाशजी नहीं जीजाजी कहिए ख़ुशीजी...

आकाश की बात सुनकर सामुहिक ठहाके से वातावरण गुंजायमान हो जाता है।

मधुमती कहती है इतनी शुभ घड़ी है.. ढोली ज़रा जमकर ढोल बजा। हर थाप पर सब झूम उठे।

ढोल बजने लगता है। देवयानी शशिकांत से कहती है, हम अपने पोते आकाश के लिए आपकी बेटी पायल का हाथ मांगते है।

शशिकांत- आज तो आपने इस ग़रीब पिता की लाज रख ली। हम आपको क्या दे सकते हैं भला ? ये बच्चियां ही मेरी संपत्ति है और एक आपको सौंप रहा हूं।

देवयानी- जिस सम्पत्ति से ईश्वर ने आपको नवाजा हैं उससे हम वंचित ही रहे। अब उन्हीं की कृपा से इतनी अच्छी बहू मिली है।

देवयानी, मनोरमा से मुखातिब होते हुए- बरसों पहले की हुई हमारी भूल का आज पश्चाताप करने का मौका मिला है।

देवयानी शशिकांत और गरिमा से कहती है- मेरे बेटे ने भी एक गरीब परिवार की लड़कीं से ब्याह रचा लिया था, जिसकी सज़ा हमने अपनी बहू को दी और उन्हें कभी नहीं अपनाया।

फिर आपकी प्यारी बेटी ख़ुशी से मिलने के बाद हमें अपनी भूल का अहसास हुआ और हमने मनोरमा को अपना तो लिया पर उन्हें वह पल नहीं लौटा पाए जो हमने अपनी नफ़रत की आग में जलकर उनसे छीन लिए थे।

आज ईश्वर ने हमें जीते जी उस अपराध का प्रायश्चित करने का सुअवसर प्रदान किया है तो हम इसे खोने नहीं देंगे।

देवयानी कहती- सगाई की रस्म पूरी करवाइए पंडितजी।

हम बाद में सबसे सलाह मशविरा करके धूमधाम से परिवार के सभी सदस्यों के साथ एक पार्टी रखेंगे।

जिसमें शहर के सभी प्रतिष्ठित लोगों को भी इन्वीटेशन देंगे।

आकाश, अर्नव को कॉल करके सारी घटना बताता है और कहता है कि भाई मेरी सगाई आपके बिना हो ही नहीं सकती। आप जल्दी से यहाँ आ जाओ।

सगाई की सारी तैयारियां हो चूंकि थी बस सबको बेसब्री से अर्नव के आने का इन्तज़ार था।

कुछ ही समय में अर्नव भी कार्यक्रम स्थल, गुप्ता हॉउस पहुंच जाता है।

अर्नव को आया हुआ देखकर आकाश अर्नव को गले लगा लेता है।

अर्नव- अब समझ आया आकाश कि आख़िर तुम इतनी ज्यादा तैयारी क्यों कर रहे थे? तुम ही दुल्हेराजा थे बस ये पता नहीं था। अच्छा लगा आज अपने परिवार को ऐसे देखकर।

अर्नव (शशिकांत से)- "मुझे बेहद अफसोस है कि जितेंद्र जैसे लोग भी मेरी कम्पनी में काम कर रहें थे। मैंने आकाश से बातचीत होने के बाद जब उसका सच जाना तब तुरन्त ही एचआर को कॉल करके उसे अपनी कंपनी से निकाल दिया। अब मैं देखता हूं कि उसे जॉब कौन देता है।

मधुमती (मज़ाकिया लहज़े में)- वाह रे ! मधुसूदन ! अब तो नौकरी और छोकरी दोनों ही गई। उस पुष्पा की तो नाक ही कट गई।

ख़ुशी- और जीजी की लॉटरी लग गई। इतने अच्छे घर में रिश्ता तय हो गया।

अर्नव- ख़ुशी को देखता है फिर उससे नजरें हटाकर आकाश को देखकर कहता- सगाई आज ही होगी न ?

मधुमती- हाँ, आज ही होगी अर्नव बेटा।

कुछ देर पहले हुए घटनाक्रम को भुलाकर सभी लोग दुगुने उत्साह से रिंग सेरेमनी को आनंदित होकर मनाते हैं।

शशिकांत आकाश का तिलक करते है, और सभी आवश्यक वस्तुओं व उपहार को आकाश को देकर ख़ूब आशीर्वाद देते हैं।

पायल, आकाश को अँगूठी पहनाती है। सभी लोग तालियां बजाकर व फूल बरसाकर होने वाले वर-वधू का स्वागत करते हैं।

आकाश भी पायल को अँगूठी पहनाता है। अँगूठी अर्नव ने आकाश के कहने पर ख़रीदी थी जो बेशकीमती थी।

एक-दूसरे को अँगूठी पहनाने के बाद पायल और आकाश एक-दूसरे के हो गए। दोनों ही बड़े- बुजुर्गों से आशीर्वाद लेते हैं।

ख़ुशी पायल के लिए इतनी खुश होती है कि उसका दिल भर आता है और आंखे छलक जाती है। सबसे छुपाकर ख़ुशी अपने आंसू पोछती है, पर अर्नव से नहीं छुपा पाती है।

भावुक हुई ख़ुशी को देखकर अर्नव कहता है- ख़ुशी, इस ख़ुशी के मौके पर आंसू ?

खुशी- ये तो ख़ुशी के आंसू है...

अर्नव (मुस्कुराते हुए)- ऑब्वियसलि तुम्हारी आंखों में है तो तुम्हारे ही आंसू होंगे।

खुशी- अर्नवजी हम आज बहुत खुश है, हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि हमारी जीजी की शादी इतने बड़े घर में होगी और इतने अच्छे ससुरालवाले मिलेंगे।

अर्नव (मज़ाकिया अंदाज़ में)- उसी घर में एक नवाबजादा भी रहता है...

ख़ुशी (पलकें झुकाकर)- वो नवाबजादा इतना भी बुरा नहीं है, जितना हम समझते हैं।

अर्नव- लेकिन तुम बिल्कुल वैसी ही हो जैसा मैं समझता हूँ।

ख़ुशी (इठलाती हुई)- हम तो है भई जैसे वैसे रहेंगे....

ख़ुशी- वैसे अर्नवजी, आप तो इन सब बातों में यक़ीन नहीं करते हैं न..

प्यार, शादी...

अर्नव ख़ुशी की बात पर चुप ही रहता है, पर उसकी आंखें कह रही थी- कि अब यक़ीन होने लगा है।

अर्नव और खुशी आपस में बात कर रहे होते है, तभी वहाँ मधुमती आती है, वह ख़ुशी से कहती है- अरे ! सनकेश्वरी, तुम्हें मन्दिर नहीं चलना है ? दामादजी और पायल शिवजी से आशीर्वाद लेने जा रहें हैं। जल्दी से चलों...

मधुमती अर्नव को देखकर प्यार से कहती है- तुम भी चलो अर्नव बेटा..

अर्नव- जी..

मधुमती वहाँ से चली जाती है। अर्नव ख़ुशी के नाम पर हँसते हुए उसका मज़ाक उड़ाकर कहता है- जाओ सनकेश्वरी वरना शिवजी नाराज़ हो जाएंगे अपनी सनकेश्वरी भक्त को न पाकर...

खुशी का चेहरा शर्म से लाल हो जाता है। वह जाते हुए हँसकर कहती है- भोंदु...

अर्नव- व्हाट...

ख़ुशी तेज़ रफ़्तार से चलती जाती हैं और पलटकर अर्नव को देखती हुई चली जाती है।

आकाश की सगाई की सूचना जब अंजली को मिलती है, तो वह बहुत नाराज़ होती है। अंजली अर्नव को कॉल करती है।

अर्नव कॉल रिसीव करता है। फोन की दूसरी साइड से नाराजगी जताते हुए अंजलि कहती है- अर्नव, आपने भी हमें बताना ठीक नहीं समझा। अब इतने पराए हो गए है क्या ? इतनी बड़ी बात हमसे छुपाकर तय हो गई।

अर्नव- दी, सगाई जिन हालात में हुई उसमें मौका ही नहीं मिला। मैं ख़ुद ऑफिस के काम में बिजी था जब आकाश ने कॉल करके बताया कि मेरी सगाई है जल्दी से आ जाओ।

अंजली- बात जो भी रही हो अर्नव, आप सबने हमारा बहुत दिल दुखाया है। आपके जीजाजी भी बहुत नाराज़ हो रहे थे।

अर्नव- जीजाजी को तो मैं मना लूंगा।

आप मान जाओ न दी। बात को समझने की कोशिश करो।

अंजली- हम ही हर बार समझते हैं। पर हमें कोई कुछ नहीं समझता। तभी तो इतने बड़े फैसले ले लिए जाते हैं।

अर्नव- ऐसी बात नहीं है दी, नानी जी को उस समय जो ठीक लगा उन्होंने वही किया और हमको भी उनके इस निर्णय का सम्मान करना चाहिए।

अंजली- हम नानी के फैसले का सम्मान करते हैं और उससे बहुत खुश भी है। बात बस ये है कि किसी ने भी इस मौके पर हमें याद नहीं किया।

अर्नव- याद तो सबने किया बस आपको उस वक़्त बता नहीं पाए। अब इस गलती को सुधारने के लिए एक ही उपाय है मैं आपको मनाने के लिए, एक शानदार पार्टी दूँगा। जिसमें फिर से रिंग सेरेमनी होगी। अब ख़ुश..

अंजली (ख़ुश होते हुए)- हाँ बहुत ज़्यादा ख़ुश।

अर्नव- अच्छा दी, आप जल्दी से यहाँ आ जाओ।

अंजली (अचकचाकर)- अर्नव दरअसल आकाश, नानी और मामी का हमारे पास कॉल आ गया था। पर हम सगाई में आ नहीं सके क्योंकि..

अर्नव (चिंता करते हुए)- क्योंकि क्या दी...? आपको सगाई का पता था फिर भी आप मुझसे नाराज़ है और आप आए क्यों नहीं..? सब ठीक तो है न..

अंजलि (अटककर रूकते हुए कहती है)- हमने तुम्हें सुबह आधा सच ही बताया था कि हमारी साड़ी खराब हो गई थी । असल में हमारे पैर में हल्की सी मोच आ गई है। हम घर ही है और आराम कर रहे हैं।

अर्नव (फिक्र करते हुए)- दी मैं अभी वहाँ आता हूँ।

अंजली- बस इसीलिए हमने सबसे कहा था कि तुम्हें इस बारे में कुछ न बताए। अर्नव, अभी आकाश के साथ रहो, उसे तुम्हारी जरूरत है। अचानक से हुई उसकी सगाई के लिए वह भी तैयार नहीं होगा। तुम साथ रहोगे तो उसे अच्छा लगेगा। हमारी चिंता मत करो। हम ठीक है। कुछ जरूरत हुई भी तो हरिराम है ही।

अर्नव- ठीक है दी, अपना ध्यान रखना।

फ़ोन डिस्कनेक्ट करने के बाद अर्नव शिव मंदिर की तरफ़ चल देता है। कुछ देर ड्राइव करने के बाद ही शिव मंदिर आ गया। शिव मंदिर के शिखर को देखकर अर्नव को ख़ुशी से हुई पहली मुलाकात याद आती है। किसी फ़िल्म की रील की तरह सारे दृश्य अर्नव की आंखों के सामने चलने लगे। इस बार इन दृश्य से अर्नव ज़रा भी विचलित नहीं हुआ अर्नव के चेहरे पर गुस्से की जगह हल्की सी मुस्कान थी। किसी ने सच ही कहा है प्यार का अहसास इंसान को बदल देता है तभी तो इस प्यार के चक्कर में पड़कर कोई मजनूं बना तो कोई राँझा।

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