इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 18 Vaidehi Vaishnav द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 18

(18)

प्रिया (अर्नव की पी०ए०) फ़ाइल लेकर केबिन में आती है। वह अर्नव का इंतजार कर रही होती है तभी वहाँ ख़ुशी भी आ जाती है। प्रिया ख़ुशी को ऊपर से नीचे तक देखते हुए मुँह बनाकर कहती है- ये बहनजी कौन है ? यहाँ क्या कर रही है।

प्रिया (तंजिया लहज़े में)- हे यू ! मैं अर्नव सर की पर्सनल असिस्टेंट हूँ।

तुम्हें यहाँ किसने बुलाया है ?

ख़ुशी (मुस्कुराते हुए)- हम अर्नवजी के घर काम करते हैं।

प्रिया- ओह ! सर्वेन्ट हो।

वॉशरूम से बाहर निकलते ही अर्नव प्रिया की बात सुन लेता है। ख़ुशी प्रिया की बात का जवाब देती उसके पहले ही अर्नव प्रिया से पूछता है- मिस प्रिया आपके घर का सारा काम कौन करता हैं ?

प्रिया (सीट से उठते हुए)- सर, मम्मी ही करते हैं सारा काम।

अर्नव- क्या आप अपनी मम्मी को सर्वेन्ट समझती हैं?

प्रिया (शर्मिंदा होते हुए)- नो सर, सॉरी सर...

अर्नव- कोई भी व्यक्ति जो कही भी काम कर रहा होता है वह सर्वेन्ट नहीं होता। यदि होता तो आप भी मेरी पर्सनल असिस्टेंट नहीं सर्वेन्ट ही कहलाती। आइंदा ऐसी गलती नहीं होनी चाहिए।

प्रिया (नज़रें नीचे किए हुए)- ऑय एम वैरी सॉरी सर...

प्रिया केबिन से बाहर चली जाती है।

ख़ुशी अर्नव को अपलक निहारतीं रहती है। कई बार अर्नव द्वारा जलील होने पर खुशी को आदत सी हो गई थी अर्नव के कटु शब्दों को सुनने की। यह पहली बार हुआ था जब अर्नव को ख़ुशी ने अपने लिए किसी औऱ पर गुस्सा होते देखा था। इस एक पल ने ख़ुशी के दिल को झंकृत कर दिया। दिल के तार जलतरंग से बजने लगे।

ख़ुशी को अचानक से सब कुछ बदला हुआ सा लगने लगता है। उसे लगता है जैसे वह अर्नव के ऑफिस में न होकर स्वप्नलोक में है, जहाँ उसके सपनों का सौदागर रुई से नरम मुलायम बादलों को चीरता हुआ, सफ़ेद घोड़े पर बैठकर उसकी ओर आ रहा है। जब वह ख़ुशी के करीब आता हैं, और अपने चेहरे से नक़ाब हटाता है तो वह चेहरा अर्नव का होता है। ख़ुशी झटके से स्वप्नलोक से बाहर आ जाती है और अपने सामने अर्नव को देखती है।

अर्नव अपनी चेयर पर बैठा हुआ हलवे को स्वाद लेकर खा रहा था। पूरा हलवा खा लेने पर अर्नव ख़ुशी से कहता है- दी के हाथ का बना हलवा माँ की याद दिलाता है।

ख़ुशी अब भी ख्यालों के नशें में चूर थी। उसका ध्यान अर्नव की कही बात पर न होकर अपने ख्यालों की खूबसूरत दुनिया में था।

अर्नव- ख़ुशी, मैं तुमसे ही बात कर रहा हूं।

खुशी (हड़बड़ाकर)- हाँ अर्नवजी, हम सुन रहे हैं।

अर्नव- आर यू ओके ?

ख़ुशी- हमारी तबियत कुछ ठीक नहीं लग रहीं। अब हम चलते है।

ख़ुशी फुर्ती से अर्नव के केबिन से निकल जाती है। अपनी स्कूटी तक पहुँचने के लिए वह पैदल ही चलती है। रास्ते में कभी किसी लड़के की शर्ट देखकर उसे अर्नव दिखता है, कभी किसी की हेयरस्टाइल को देखकर अर्नव दिखाई देता है। हर किसी लड़के की कोई न कोई गतिविधि या तौर-तरीका अर्नव से मिलता-जुलता लगता है और हर एक लड़के में ख़ुशी को अर्नव ही दिखता है।

ख़ुशी अपनी स्कूटी तक पहुँच जाती है। स्कूटी पर एक लड़का बैठा हुआ कॉल पर बात कर रहा होता है। ख़ुशी को उस लड़के के चेहरे में भी अर्नव का ही चेहरा दिखता है।

ख़ुशी- आप यहाँ कैसे आ गए?

लड़का (आश्चर्यचकित होकर)- जी मैं तो यही काम करता हूँ।

ख़ुशी बुदबुदाते हुए- लगता है अर्नव जी का टोटका उतरकर हम पर आ गया है। हम उनकी दीदी से कहकर ऐसा ही हलवा अपने लिए भी बनवा लेंगे।

ख़ुशी अपनी स्कूटी स्टार्ट करती हैं और घर की ओर चल देती है। कुछ ही देर में वह अपने घर पहुँच जाती है।

वह घर जाते ही अपने कमरे में चली जाती है। मधुमती उसके पीछे जाती है।

मधुमती- ए सनकेश्वरी ! सुपरफ़ास्ट ट्रैन के जैसी आई और सीधे मुख्य स्टेशन अपने कमरे में आकर रूकी हो। क्या हुआ? सबको न्यौता दे आई?

ख़ुशी (फुसफुसाते हुए)- हर जगह, हर किसी में वह नवाबजादा ही दिखाई दे रहा है, अब एक ही इंसान को कितनी बार कार्ड दूँ ?

मधुमती- क्या फुसफुसा रही हों। तनिक हम भी तो सुनें।

ख़ुशी- बुआजी हम कही नहीं गए कॉर्ड देने। हमारी तबियत खराब है।

मधुमती- तबीयत से ज़्यादा तुम्हारा दिमाग़ ख़राब है सनकेश्वरी। अब ऐन वक्त पर, जब इत्ता सारा काम पड़ा है तभी तुम्हारे नाटक शुरू होने थे।

ख़ुशी- बुआजी हम सच कह रहे हैं।

हम थोड़ी देर आराम कर ले, फिर कर देंगे आपके सारे काम। इतना कहकर ख़ुशी चादर तानकर सो गई।

मधुमती सिर पकड़ कर वहाँ से चली जाती है।

अगले दृश्य में...

अर्नव खुशी के बारे में सोच रहा होता है, फिर अचानक अपनी भावनाओं पर पाबंदी लगाते हुए वह बड़बड़ाते हुए कहता है- मैं उस खुशी के बारे में क्यो सोच रहा हूँ ? वो तो वहाँ अपनी सगाई की तैयारियों में लगीं होगी। मुझे उससे कोई मतलब नहीं है। मैं अब उसके बारे में नहीं सोचूंगा।

अर्नव ख़ुद को व्यस्त रखने की लाख कोशिशों के बावजूद भी खुद को ख़ुशी के ख्यालों से मुक्त नहीं कर पाता हैं।

गुस्से से फ़ाइल बन्द करके वह चेयर से सिर को टिकाकर आँख बंद कर लेता है। तभी वहाँ आकाश आता है।

आकाश- हैलो ब्रदर! लुक एट मी...

ये फॉर्मल ऑउटफिट सही रहेंगे न कल के लिए..?

अर्नव- कल क्या है ?

आकाश- ख़ुशी की....

अर्नव आकाश की बात काटते हुए- मेरे पास फालतू बातों के लिए टाइम नहीं है।

आकाश- भाई, मुझे भी इतना इंटरेस्ट नहीं होता, पर बात ख़ुशीजी की खुशी की है। वो मुझे वहाँ देखेंगी तो खुश होंगी।

अर्नव- वो तुम्हें देखकर खुश क्यों होगी ? वह तो मंगेतर को देखकर ख़ुश होंगी।

आकाश (गहन वैचारिक मुद्रा में)- भाई, मंगेतर तो उनकी बहन के लिए आएगा न ? तो ख़ुशीजी क्यों खुश होंगी..?

अर्नव (चिढ़ते हुए)- स्टूपिड सगाई ख़ुशी की है तो मंगेतर बहन के लिये क्यों आएगा ?

आकाश (हँसते हुए)- नो.. नो.. भाई, गलती से मिस्टेक हो गई आपसे। सगाई ख़ुशीजी की नहीं उनकी बहन की है।

आकाश की बात को सुनकर अर्नव के दिल को ऐसे राहत मिलती है जैसे उसका अरबों का नुकसान होते-होते बच गया। आकाश के शब्द मरहम की तरह अर्नव के दिल पर लगे और उसके दर्द की दवा बन गए।

आकाश- भाई, कहां खो गए ? आप भी चलोगे न ?

अर्नव- नहीं, तुम ही कंपनी दो उसे। मुझे अपनी कंपनी पर फोकस करना है।

आकाश (मुँह बिचकाकर)- भाई, यू आर सो बोरिंग...

अर्नव आकाश की बात पर ध्यान नहीं देता है और रिलेक्स होकर अपना काम करने लगता है।

आकाश वहाँ से चला जाता है।

अगली सुबह....

गुप्ता परिवार में सुबह से उत्सव का माहौल बन जाता है। मेहमानो के आने से घर में चहलपहल हो जाती है। घर की साफ़ सफ़ाई एवं सजावट करके घर को एक नया रूप दिया गया था।

मेहमानों के लिए उचित प्रबंध किए गए। शामियाने, कुर्सियां व मेजों की व्यवस्था की गई। सगाई से संबंधित सभी आवश्यक सामान मंगवाए गए।

रसोईघर से मन ललचाने वाली सुगंध आ रही थीं। तरह-तरह के पकवान और मिठाईयां तैयार की जा रही थी।

घर में उत्साहपूर्ण वातावरण था। नन्हें-मुन्ने बच्चे सबसे अधिक उत्साहित दिखाई दे रहे थे।

गरिमा बनारसी साड़ी और गहनों से अलंकृत बेहद खुश और सुंदर लग रहीं थीं। वह मेहमानों की आवभगत कर रहीं थी। शशिकांत भी कुर्ते पायजामे में आज किसी हीरो से कम नहीं लग रहे थे। वह रसोई आदि की व्यवस्था देख रहे थे।

सबकी नज़रें तो पायल का इंतजार कर रहीं थीं। सबके इंतज़ार की घड़ियां उस समय खत्म हो गई जब पायल पार्लर से तैयार होकर घर आई। हल्के गुलाबी रंग के लहँगे, औऱ जयपुरी ज्वेलरी में पायल फ़लक से उतरी कोई अप्सरा लग रहीं थीं।

पायल को देखकर बड़ी-बूढ़ी महिलाएं किसी की नज़र न लगे कहकर बलैयां लेती है।

सबकी नजरें पायल पर टिकी हुई थी और पायल की नजरें ख़ुशी को ढूंढ रहीं थीं।

पायल ख़ुशी को न पाकर बैचेन हो जाती है। वह मेहमानों से घिरी हुई मधुमती से ख़ुशी के बारे में पूछती है- बुआजी, आपने ख़ुशी को कहीं देखा है क्या ?

मधुमती- पायलिया, वो तो तुम्हारे साथ ही पार्लर गई थी न ?

पायल- नहीं बुआजी हम जब जाने लगे तब तो वह नहा ही रही थी।

मधुमती- तो हो सकता है सनकेश्वरी अब तक तैयार ही नहीं हुई होगी और घुसी बैठी होगी अपने कमरे में।

पायल- यहीं हुआ होगा। हमसे ज़्यादा समय तो उसे लगेगा तैयार होने में। अब तक तो उसकी ड्रेस भी डिसाईड नहीं हुई होगी।

पायल ख़ुशी के कमरे की तरफ़ जाने लगती हैं तभी गरिमा उसे रोकते हुए कहती है- पायल लड़के वाले आ गए हैं, तुम कहाँ जा रहीं हो?

पायल- अम्मा, ख़ुशी अब तक तैयार होकर नहीं आई।

गरिमा- ख़ुशी को हम लेकर आते हैं। तुम यही रहो।

गरिमा ख़ुशी के कमरे की तरफ जाती है।

उधर ख़ुशी पलँग पर सभी ड्रेस फैलाये हुए उनके सामने असमंजस में खड़ी हुई थी। वह समझ ही नहीं पा रही थी कि कौन सी ड्रेस सबसे सुंदर और अलग लगेगी।

तभी कमरे में हँसते हुए गरिमा वहां आती है और कहती है- क्या हुआ अब तक कोई ड्रेस समझ में नहीं आई ?

ख़ुशी- हाँ, अम्मा देखो न इतनी ड्रेस है पर हर किसी में कमी ही नज़र आ रहीं हैं। कोई भी ऐसी नहीं लग रहीं जो एक नज़र में ही मन को भा जाए।

गरिमा पलंग पर ड्रेस के अंबार में से ड्रेस निकालकर ख़ुशी को दिखाती है।

ख़ुशी भावुक हो जाती है क्योंकि गरिमा हमेशा इस तरह से सिर्फ़ पायल के लिए ड्रेस निकाला करती थी और ख़ुशी की हमेशा ही उपेक्षा कर दिया करती थी। ख़ुशी इस पल को जीना चाहती थी जब गरिमा प्यार से उसके लिए भी ड्रेस निकालकर दे। आज वही पल था और खुशी को लगा जैसे इस एक पल में उसने गरिमा के प्यार से वंचित बचपन जी लिया।

गरिमा- ख़ुशी, क्या हुआ ? ये जो इतनी ड्रेस दिखाई उनमे से कोई पसन्द नहीं आई ?

ख़ुशी- अम्मा जो आपको पसंद हो वही दे दो। हम आपकी पसंद की ड्रेस ही पहनेंगे इस ख़ुशी के मौके पर।

गरिमा- ड्रेस के पहाड़ से एक नीले रंग की ड्रेस निकालकर देती है और कहती है, तुम पर तो हर रंग बहुत सुंदर लगता है ख़ुशी। इस नीले रंग की ड्रेस में तुम नीली परी लगोगी।

ख़ुशी गरिमा के हाथ से ड्रेस ले लेती है और कहती है- अब तो हम चन्द मिनटों में ही तैयार होकर आते हैं।

गरिमा- जल्दी आना ख़ुशी.. लड़के वाले भी आ गए हैं और पायल कबसे तुम्हारी राह देख रहीं है।

खुशी- जी अम्मा...

गरिमा ख़ुशी के कमरे से बाहर आ जाती है। आज गरिमा के चेहरे की रौनक पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह उज्ज्वल थी।

लड़के वालों के लिए विशेष इंतज़ाम किए गए थे। उनकी आवभगत में परिवार के सभी वयोवृद्ध से लेकर नवयुवक लगे हुए थे। तमाम सुव्यवस्थित प्रबन्ध के बावजूद लड़के की माँ व पिता व अन्य रिश्तेदारों के मुँह फूले हुए थे।

लड़के वालों की खातिरदारी में जलपान में केसरिया दूध व लस्सी दी गई जिसे कई लोगों ने मुँह बिचकाकर लिया।

अक़्सर कन्यापक्ष के लोग इस तरह के व्यवहार को जायज़ ठहराते हुए अनदेखा कर देते हैं। यहाँ भी वही हो रहा था। लड़कीं वाले मनुहार करके लड़के वालों की ख़ातिरदारी कर रहे थे। पायल को अपने बाबूजी को इस तरह मनुहार करते, बार-बार झुकते हुए देखकर मन ही मन गुस्सा आ रहा था। उसका दिल कह रहा था कि वह इस सगाई को करने से इनकार कर दे।

लेकिन बुआजी के शब्द उसे ऐसा करने से रोकते हैं- "यही संसार की रीत है पायलिया, लड़कीं के पिता को तो झुकना ही होता है। आखिरकार लड़कीं होती तो पराया धन ही है, कब तक यह बोझ शशिकांत अपने काँधों पर लादे रहेगा। कभी न कभी तो बेटी को विदा करना ही है।"

पायल कड़वा घुट पीकर रह जाती है।

उसका दिमाग़ बग़ावत करता है औऱ मन धीरज रखने को कहता है।

अगले दृश्य में...

रायजादा हॉउस में भी पायल की सगाई को लेकर जोरोशोरो की तैयारियां चल रहीं होती है।

आईने के सामने सजीधजी मनोरमा ख़ुद की ही बलैयां लेते हुए कहती है...

मनोरमा- अब हम ठहरें गरिमा के बेस्ट फिरैंड, हमका तो टिपटॉप हाई का पड़ी।

देवयानी भी लखनवी चिकन की साड़ी में बिल्कुल राजमाता सी लगती है।

सबसे ज़्यादा सँवरने में आकाश को समय लगता है। मनोरमा तीन से चार बार आकाश के कमरे का दरवाजा खटखटाकर चली गई। दोबारा जब वह आकाश के कमरे की ओर जाती है तो उसे सामने से अर्नव आता दिखता है।

मनोरमा- ई का अर्नव बिटीवा, अबहुँ तक ट्रैक सुटवा मा घुमत हो। अब मॉर्निंगवॉक का टाइम ख़त्म हुई गवा और सगाई में जाई का टाइम स्टार्ट हुई गवा है। हरिअप करेका पड़ी।

अर्नव- मामी जी आप लोग ही अटेंड कीजिए। मुझे आज ऑफिस में जरूरी काम है।

मनोरमा- ठीक है बिटीवा, जईसन तुम्हरि मर्जी।

मनोरमा आकाश का दरवाजा खटखटाकर कहती है- आकाश अगर तुम मेंकअपिया लिये हो तो चलने का कष्ट करो। सगाई की महूर्त निकलत रहा, तुम्हरे ख़ातिर वैट करत रहें तो शादी भी हाई जात है।

कहकर मनोरमा वहाँ से चली जाती है।

आकाश (तेज़ आवाज में)- आ गया माँ.. ख़ुशीजी के लिए तैयार होना तो बनता है। वो भी कितनी सुंदर लग रही होगी न..?

अर्नव, आकाश की बात सुन लेता है और सुनकर अनमना सा वहाँ से चला जाता है।

कमरे में पहुँचकर अर्नव चहलकदमी करने लगता है। उसका मन आकाश की बात से बेचैन हो जाता है।

आकाश तैयार होकर कमरे से बाहर निकलता है और मनोरमा के पास जाकर कहता है...

आकाश- चलो भी माँ, आप लोग भी न इतनी देर कर दी निकलने में। वहाँ ख़ुशीजी हमारा रास्ता देख रही होंगी।

मनोरमा और देवयानी आकाश की इस बात पर एक-दूसरे की शक़्ल देखती है।

ड्राइवर गाड़ी लेकर आ जाता है। आकाश, देवयानी और मनोरमा के साथ ख़ुशी के घर के लिए रवाना हो जाता है।

अर्नव का मन किसी भी काम में नहीं लगता है। वह भी तैयार होकर घर से निकल जाता है।

आकाश, मनोरमा और देवयानी रिंग सेरेमनी से ठीक पहले ही पहुँचते हैं।

गरिमा, शशिकांत और मधुमती उनको बहुत ही आदर से घर में लाते है। गरिमा अपने क़रीबी रिश्तेदारों व पायल के होने वाले ससुराल पक्ष के लोगों से रायजादा परिवार के सदस्यों का परिचय करवाती है।

लड़कीं की माँ पुष्पा चापलूसी के अंदाज में- आप अर्नवसिंह रायजादा के परिवार से ही है न ?