इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 6 Vaidehi Vaishnav द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 6

(6)

तुम्हें हमरी मदद की ख़ातिर हमरे घर आई का पड़ी। नौकरी ही समझ लो। हमरा भांजा हमार बिटवा के जईसन।

उह के पास रुपए की कोई कमी नाहीं।

महिला ने बड़े गर्व से यह बात कही।

ख़ुशी को हर हाल में अपनी चेन चाहिए थी। लेकिन वह महिला की शर्त सुनकर असमंजस में पड़ गई।

नौकरी करना सम्भव नहीं था। घर से नौकरी की इजाज़त भी नहीं मिलेगी।

ख़ुशी विचारों की उधेड़बुन में ही थी कि वह महिला ख़ुशी से कहती है- का सोच में पड़ गई। तुम्हरी चेन चाहिए कि नाही ?

चेन तो चाहिए- ख़ुशी ने धीमे से कहा।

तो ई लो हमरा विज़िटिंग कारड- ख़ुशी की ओर कार्ड बढ़ाते हुए वह महिला बोली। औऱ जब तुम्हारी अपने मन के साथ मीटिंग खत्म हुई जाए तो हमरे नंबर पर फ़ोन लगाई दियो- कहकर वह महिला वहाँ से चली गईं।

ख़ुशी दूर जाती हुई उस महिला को एकटक देखती रहीं। उसे लगा जैसे चेन नहीं एक बार फिर से उसकी माँ उसे छोड़कर चली गईं। वह बेबस सी देखती रही औऱ कुछ न कर सकीं।

वह महिला ख़ुशी के चेहरे की मुस्कान भी अपने साथ ले गई। ख़ुशी ठगी सी जस की तस खड़ी रहीं।

तभी पायल वहाँ आती है और ख़ुशी को झकझोरकर कहती है- ख़ुशी क्या हुआ ? रुपये जमा नहीं किए अब तक ? औऱ ये चेहरा अब तक क्यों उतरा हुआ है ? पता है डॉक्टर साहब ने कहा है कि अम्मा ठीक है। चिंता की कोई बात नहीं है। शायद कल डिस्चार्ज भी कर देंगे। इसलिए अब रोनी शक़्ल बनाना बन्द करो और अपने नाम की तरह ख़ुश हो जाओ।

पायल के इतना कुछ कहने पर भी ख़ुशी गुमसुम सी चुपचाप खड़ी रहीं। उसकी आँखें अब भी उसी दिशा को देख रही थी जिस ओर वह महिला ओझल हो गई।

ख़ुशी कहाँ खोई हुई हो?- पायल ने जैसे ख़ुशी को नींद से जगाया हो।

कुछ नहीं जीजी, चेन हम लेकर ही रहेंगे- हड़बड़ाकर खुशी ने कहा।

चेन ???- हैरत से पायल ने पूछा।

चैन, जीजी सुख चैन। अब अम्मा ठीक है तो चैन तो लेकर ही रहेंगे न हम- बात बनाते हुए ख़ुशी ने कहा।

पगली- ख़ुशी के सिर पर मारते हुए पायल ने कहा। दोनों बहनें अपनी अम्मा के पास चली गई।

अगले दृश्य में...

आई.सी.यू. के बाहर मरीजों व उनके साथ आए परिजनों के बैठने के लिए लगाई गई कुर्सी पर शशिकांत व मधुमती बैठे हुए है। मधुमती सारी घटना शशिकांत को बता रही होती है कि कैसे खुशी घर लौटी औऱ ख़ुशी के प्रति गरिमा का ह्रदय परिवर्तन हुआ।

अचानक मधुमती गम्भीर होकर कहती है- जब गरिमा बेसुध होकर गिर पड़ी तब एक पल के लिए तो हमारे मन में यही कुविचार आया कि गरिमा का ख़ुशी के प्रति जो रूखापन औऱ व्यवहार में सख़्ती थी, वह सही ही थी। ख़ुशी को अपना लेने के बाद गरिमा के साथ जो हुआ उससे मुझे महिमा याद आ गईं। ख़ुशी के जन्म के तुरन्त बाद ही तो महिमा ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था...

शशिकांत मधुमती की बात को बीच में ही काटते हुए कहते हैं- जीजी , ये कैसी बातें कर रही है आप ? किसी भी घटना को इत्तेफाक के साथ जोड़कर एक भोली-मासूम सी बच्ची को अशुभ मान लेना गलत है।

हम विज्ञान के युग में जी रहे हैं औऱ फिर जीवन-मृत्यु तो विधाता का लिखा लेख है जिसे कोई नहीं टाल सकता।

मधुमती अपने भाई शशिकांत की बातें सुनकर भावविह्वल हो जाती है। वह कहती तुम्हारी बातों को सुनकर बाऊजी याद आते है। वह भी ऐसे ही बात किया करते थे। मुझे बहुत प्रसन्नता है कि तुम मेरे भाई हो। मेरे पति के देहांत के बाद भी तुमने और इन बच्चियों ने मेरा मन हमेशा लगाए रखा। कभी महसूस नहीं हुआ कि ये दोनों मेरी अपनी बच्ची नहीं है।

इतने में ही वहां ख़ुशी औऱ पायल भी आ जाती है। दोनो को आया देखकर मधुमती कहती है- ई लियों शैतान की नानी को याद किया औऱ सामने हाज़िर।

ख़ुशी औऱ पायल मधुमती की बात सुनकर मुस्कुरा देती हैं। ख़ुशी कहती है बस अम्मा घर पर आ जाएं फिर हम सब ऐसे ही हँसते-मुस्कुराते सारी मुश्किलों का सामना कर लेंगे।

सही कह रही हो सनकेश्वरी- मधुमती ने हँसते हुए कहा।

अच्छा जीजी बहुत रात हो चुकी है। अब आप बच्चियों के साथ घर चले जाइये। अब फिक्र की कोई बात भी नहीं है। यहाँ मैं सब सम्भाल लूंगा- शशिकांत ने कहा।

मौसाजी हम भी आपके साथ यहाँ रहेंगे- ख़ुशी ने कहा।

हाँ बबुआ ये ठीक रहेगा। ख़ुशी को देखकर गरिमा के मन को तसल्ली भी हो जाएंगी कि वह सुरक्षित है औऱ उसके पास ही है। मैं और पायलिया घर जाते हैं- मधुमती ने ख़ुशी की बात का समर्थन करते हुए कहा।

अर्नव मीटिंग में मौजूद हर मेम्बर्स के प्रेजेंटेशन को बहुत ही ग़ौर से औऱ गम्भीरता से सुनता है। बारी-बारी से सभी बेस्ट देते हुए अपना-अपना प्रेजेंटेशन देते हैं। तभी अर्नव की नज़र एक लड़की पर पड़ती है जो लगातार एकटक अर्नव को ही देख रही होती है। अर्नव से नज़र मिलते ही वह लड़की अपनी नज़रें नीचे कर लेती है।

वन मिनट- प्रेजेंटेशन दे रहें स्टाफ़ मेंम्बर अरुण को बीच में टोकते हुए अर्नव ने कहा।

मिस प्रिया, अरुण की प्रेजेंटेशन के बाद मैं चाहता हूँ कि आप इस फ़ाइल के कंटेन्स को सबके सामने प्रेजेंटे करो- फ़ाइल को आगे बढ़ाते हुए अर्नव ने कहा।

लड़की सकपका जाती हैं। वह अर्नव से फ़ाइल लेती है औऱ कहती है- जी सर..

स्टॉफ मेम्बर्स हैरत से एक-दूसरे को देखते हैं। उनकी आंखें एक-दूसरे से यही सवाल पूछती है- क्या यह वही अर्नव है जो लड़कियों को पसन्द नहीं करते? या हमने इनके बारे में जो सुना था वह सब झूठ था ?

कॉन्टिन्यू अरुण- अर्नव ने अरुण को देखकर कहा।

सर, हमें टाइटल वर्क आउट करना है। देअर आर लॉट्स ऑफ़ वर्क टू बी डन.. सो हमें ये प्लान्स समय पर कर लेना चाहिए। इन सब कामों को करने के लिए हमें आपका गो अहेड चाहिए- अरुण ने अपनी बात ख़त्म करते हुए कहा।

हाँ बिल्कुल.. हम जल्दी ही इस पर काम शुरु करेंगे अरुण।

मिस प्रिया, आर यू रेडी ? नाउ इट्स यॉर टर्न- अर्नव ने प्रिया से कहा।

"जी सर" - कहते हुए प्रिया अपनी सीट से उठकर बोर्ड की तरफ़ जाती है।

प्रिया अर्नव को इम्प्रेस करने के लिये फ़ाइल कंटेन्स से हटकर अपनी बात ऱखते हुए कहती है- सर, जैसा कि अरुण ने कहा टाइटल के लिए, तो आई थिंक इट शुड बी ख़ुशी... यह हमारे न्यू प्रोडक्ट के साथ परफेक्ट लगेगा। यह नाम भी बहुत अच्छा है औऱ हमारे प्रोडक्ट से बहुत हद तक जुड़ा हुआ भी है- ख़ुशी। यह वो नाम है जिसके इर्दगिर्द हमारा प्रोमोशन और मार्केटिंग भी हो सकती है। क्योंकि ख़ुशी हर उम्र के इंसान को चाहिए होती है। ख़ुशी के बिना हर उत्सव, त्यौहार और आयोजन अधूरा है। ख़ुशी के लिए ही तो हम उत्सव मनाते हैं।

सभी लोग प्रिया की बात से सहमत होते है।

अपनी बात को ख़त्म करते हुए प्रिया अर्नव से कहती है- सर आपकी ख़ुशी किस टाइटल में है ? यह आप क्या डिसिजन लेते हैं उसी पर डिपेंड करता है। कैसा रहा सर ?

ग्रेट- प्रिया से इंप्रेस होते हुए अर्नव ने कहा। यू आर वैरी स्मार्ट। मुझे अपने न्यू प्रोडक्ट लॉन्च के लिए ऐसे ही डेडिकेटेड स्टॉफ की जरूरत है।

सभी लोगों से मैं यहीं एक्सपेक्ट करता हूं, इसी एनर्जी के साथ आप सभी लोग कल मुझे कम्पनी के हेड ऑफिस में मिलेंगे।

थैंक यू सर- प्रिया ने अर्नव से कहा।

प्रिया का घमंड तो मानो सातवें आसमान पर पहुँच गया। पहली ही बार में अर्नव को इम्प्रेस करके उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसने कोई अविजित किला फ़तह कर लिया हो।

मीटिंग ख़त्म होते ही अर्नव मीटिंग हॉल से चला जाता है। स्टॉफ के मेम्बर्स प्रिया के चारों ओर ऐसे जमा हो जाते हैं जैसे गुड़ पर मधुमक्खी लालच से चली आती है। सभी प्रिया की तारीफ़ में क़सीदे गढ़ने लगते हैं। कुछ एक चापलूसी के लहज़े में प्रिया को इम्प्रेस करते हुए उसकी वाकपटुता की तारीफ करने लगते हैं। मीटिंग में मौजूद हर कोई यहीं सोच रहा था कि अब प्रिया को कोई अच्छी पोस्ट मिलना तय है। इसलिए सभी अभी से अपना मतलब साधने के लिए प्रिया को इंप्रेस करके उसकी गुड लिस्ट में आना चाहते थे।

अगले दृश्य में....

शशिकांत डॉक्टर सन्दीप के केबिन में बैठे हुए उनसे बात कर रहे होते हैं।

जैसा कि मैंने कल ही कहा था कि घबराने की कोई बात नहीं है। टेस्ट रिपोर्ट भी आ गई है औऱ सभी नॉर्मल ही है- डॉक्टर सन्दीप ने चिंतित बैठे अपने दोस्त शशिकांत से कहा।

शशिकांत ने डॉ सन्दीप की बात सुनकर राहत की सांस ली।

अब तुम डिस्चार्ज पेपर्स बनवाकर भाभीजी को घर ले जा सकते हो- सन्दीप ने हँसते हुए शशिकांत से कहा।

शशिकांत डिस्चार्ज पेपर बना लेते हैं और हॉस्पिटल के बिल बनवाकर ऑटोरिक्शा लेने चले जाते हैं।

गरिमा को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया जाता है। ख़ुशी गरिमा को इस तरह से पकड़े हुए थी जैसे गरिमा कोई छोटा बच्चा हो और जो पहली बार चलना सीख रहा हो।

गरिमा हँसते हुए ख़ुशी से कहती है- हम ठीक है ख़ुशी।

ठीक होती अम्मा, तो यहाँ हॉस्पिटल आना पड़ता क्या ?- ख़ुशी ने मासूमियत से कहा।

यहाँ न आती तब भी एक नया जन्म तो मिल ही गया था ख़ुशी। मैंने तुम्हारे साथ बहुत नाइंसाफी की है। तुम्हें कभी अपना नहीं माना। हमेशा कड़वे बोल से तुम्हारे भोले से मन को आहत किया। तुम्हारा दिल दुखाया। ईश्वर ने मुझे मेरे उन्हीं खोटे कर्मो की सज़ा दी पर बहुत कम दी- प्रायश्चित करते हुए गरिमा ने कहा।

ख़ुशी गरिमा की बातें सुनकर दुःखी हो जाती है । वह रूठते हुए लहज़े में कहती है- अम्मा, इससे तो आप पहले ही ठीक थी। कम से कम तब ऐसी बातें तो नहीं कहती थी। इससे अच्छा तो आप हमें डांट दो। उस डांट में भी अपनापन था। आपके गुस्से के पीछे के प्यार को हम महसूस कर लेते थे। पर आज तो आपकी बात सुनकर लग रहा जैसे मन जलकर ज्वालामुखी जैसा धधक रहा हो।

पगली- गरिमा ने मुस्कुराकर प्यार से ख़ुशी के सिर पर अपना हाथ फेरते हुए कहा।

हाँ, अब ठीक लग रहा है अम्मा। अब बस हमेशा ऐसे ही हमारे साथ रहना। आपका यह स्नेह भरा हाथ हमारे सिर पर रहेगा तो हमारे मन का ज्वालामुखी भी अंगारे नहीं फूल बरसाएगा।

माँ-बेटी की बात ख़त्म हो गई हो तो घर चले ? हम ऑटोरिक्शा ले आए हैं- शशिकांत ने कहा।

मौसाजी बातें तो क़भी ख़त्म नहीं होंगी पर अब तो हम घर पर ख़ूब सारी बातें करेंगे। वहाँ तो जीजी और बुआजी भी रहेंगे- ख़ुशी ने चिड़ियों सा चहकते हुए कहा।

पर मैं अब तुमसे बात नहीं करूंगा ख़ुशी- गम्भीर होकर शशिकांत ने कहा।

गरिमा औऱ ख़ुशी दोनो ही चौंककर शशिकांत को देखती है।

ख़ुशी रुआँसी शक्ल बनाकर शशिकांत से कहती है- हमने ऐसा क्या कर दिया मौसाजी ?

शशिकांत मुँह बिचकाते हुए कहते है- "तुम्ही सोचो की क्या किया ?"

ख़ुशी ज़मीन में नजरें गढ़ाए हुए अपने पैरों के पंजे से ज़मीन कुरेदते हुए सोचने लगतीं है।

कही मौसाजी को हमारी चेन का पता तो नहीं चल गया ?- यह विचार मन मे आते ही ख़ुशी ने झटके से शशिकांत को देखा।

शशिकांत मन्द-मन्द मुस्कुरा रहें थे। उनका मुस्कुराता चेहरा देखकर ख़ुशी अचरज में पड़ जाती है। उँगली को दाँत के बीच रखकर वह समझने की कोशिश करतीं है कि आखिर माजरा क्या है ?

तभी शशिकांत हँसते हुए कहते है- अरे! ख़ुशी अपने इस छोटे से राई बराबर मगज़ पर इतना दबाव मत दे। मैं ही बता देता हूँ। अब तू ही बता तुम दोनो माँ बेटियों में सुलह हो गई है। अब तुम्हारी मौसी तुम्हारी अम्मा बन गई। पर हम ठहरे अब भी मौसाजी ही। भई ये तो बहुत नाइंसाफी है।

जब तुम छोटी थी तब तो मुझे प्यार से अपनी तुतलाती जबान से बाबू कहा करती थी।

शशिकांत की बात सुनकर ख़ुशी भावुक हो जाती है। उसकी झील सी आँखे नम हो जाती है। वह शशिकांत से लिपट जाती है और कहती है-बाबूजी...

गरिमा भी अब खुश थी। वह ख़ुशी के सिर पर हाथ रखते हुए कहती है। आज मेरा परिवार पूरा हो गया।

गरिमा की आँखे भर आती है।

शशिकांत कहते हैं- अरे, गरिमा ये क्या ? इतने शुभ अवसर पर इन सुंदर सी आँखों मे आँसू....

ये तो ख़ुशी के आँसू है- गरिमा ने आँसू पोछते हुए शशिकांत से कहा।

हँसते हुए शशिकांत कहते हैं- ख़ुशी के आँसू तो उसकी आँखों में झिलमिला रहें हैं।

डबडबाई आंखों से ख़ुशी गरिमा और शशिकांत को देखती है फिर दोनो से लिपटकर मन ही मन फूली नहीं समाती है। आज ख़ुशी को उसकी दुनिया उसके अम्मा-बाबूजी मिल गए।

शशिकांत कहते हैं। घर नहीं चलना है क्या ? ऑटो चालक हमारे इंतज़ार में कबसे खड़े हुए हैं।

हाँ बाबूजी अब जल्दी से यहाँ से चलते हैं। अगर डॉक्टर अंकल ने अम्मा की आँखों मे आँसू देख लिए तो वह हम दोनों को डांट लगाते हुए कहेंगे- अभी तो भाभी जी घर भी नहीं पहुंची और तुम लोग उन्हें रुलाने लगें- डॉ सन्दीप की नकल करते हुए खुशी ने कहा।

शशिकांत औऱ गरिमा ख़ुशी की बात सुनकर खिलखिलाकर हँस देते हैं।

हाँ भई अब जल्दी से चलो- शशिकांत ने झोला संभालते हुए कहा। सभी ऑटोरिक्शा में बैठ जाते है और घर के लिए रवाना हो जाते हैं।

ख़ुशी पायल को फ़ोन करके कहती है- जीजी हम लोग थोड़ी ही देर में घर पहुंचने वाले हैं।

पायल पूछती है- अभी कहाँ तक आ गए हो ?

ख़ुशी दबी हुई आवाज़ में कहती है- टॉवर चौराहे तक।

पायल- मतलब पाँच- सात मिनिट में घर आ जाओगे। अच्छा अब हम फोन ऱखते है। पायल फोन डिस्कनेक्ट कर देती है। वह किचन की ओर जाती है और वहाँ पहले से मौजूद मधुमती से कहती है- बुआजी, सारी तैयारी हो गई है न ? वो लोग बस आते ही होंगे।

हाँ पायलिया बस ये सूजी का हलवा बन जाए फिर मैं भी हॉल में आती हूँ- एक हाथ से कढ़ाई के हत्थे को पकड़े हुए व दूसरे हाथ से खुरपी चलाते हुए मधुमती ने कहा।

ठीक है बुआजी- कहकर पायल हॉल में चली गई।

पहले से ही व्यवस्थित ढंग से जमे हुए सोफ़े के कवर औऱ कुशन को ठीक करते हुए पायल ने एक नज़र घड़ी पर डाली।