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सफलता की चाबी

जाट और बनिया बहुत अच्छे मित्र थे। बनिया बहुत पूजा पाठ करता और जाट को तो पुजा का पता ही नही था, क्या होती है। बनिया हर रोज मंदिर में पूजा करने जाता था। चाहे दुनिया इधर से उधर हो जाए पर बनिया मंदिर में पूजा करने जरूर जाता था।

एक दिन जाट और बनिये की बहस हो गई की कोई भगवान् नहीं होता। बहस इतनी बढ गई कि जाट जिद पर आ गया कि मुझे तेरा भगवान देखना है। बनिये को बोला मै हररोज तेरे साथ मन्दिर में जाऊगा और तेरे भगवान् को दो जूते मारकर आऊंगा फिर देखता हूँ तेरा भगवान् मेरा क्या बिगाडता है।
बनिये को एक बार तो ये बात बड़ी अटपटी सी लगी,चल तेरी जिद है तुझे जो करना है कर ।
अब बनिया और जाट हर रोज मंदिर जाने लगे बनिया पूजा करता था, और जाट मंदिर में हर रोज भगवान को दो जूते मारकर आता था ।
ऐसे-करते बहुत समय बीत गया हर रोज का यही चलता रहा ,बनिया पूजा करता रहा और जाट भगवान को जूते मारता रहा...
एक दिन इतनी बारिश आ गई कि घर से निकलना ही मुश्किल हो गया।
जो गाँव में मंदिर था वह नदी के पार था ।
अब जाट की जिद थी कि मंदिर तो जाना ही जाना है।जाट और बनिए चल पड़े, उसने थाली में पूजा का सामान रखा और जाट को तो सिर्फ भगवान को जूते ही मारने थे।
आगे जाकर देखा तो नदी बहुत ऊफान पर थी क्योंकि मंदिर नदी के पार था बनिया कहने लगा मै तो यही से सब कुछ अर्पित कर देता हू ,भगवान् को, तुझे जो करना है कर।

जाट की तो जीद थी कहने लगा जब तक मैं तेरे भगवान को दो जूते ना मार लूं तो मेरी पूजा सफल नहीं होगी। बनिया बोला तेरी मर्जी मै तो नदी के इधर ही खड़े होकर भगवान को सब कुछ अर्पित कर दिया है।अब जाट जिद में आकर नदी में उतर गया और कहने लगा चाहे मैं मारूं जाऊ पर मुझे तो तेरे भगवान को दो जूते मारने ही मारने हैं ।
अब जाट नदी में उतर पड़ा और नदी इतनी उफान पर थी कि उसका पानी सिर के ऊपर आ गया। बनिया ने बहुत आवाज लगाई की तु पीछे मुड़ जा नहीं तो तु मर जाएगा । जाट कहने लगा कि मुझे मरना मंजूर है पर मैं पीछे नहीं हटूंगा,
अब जाट की तो जिद थी कि भगवान को जूते ही मारने हैं ।अब जाट पानी में डूबने ही वाला था। भगवान भी जाट की परीक्षा ले रहे थे।जब भगवान
ने देखा कि ये जिद्दी पिछे नही हटेगा। तब जाकर भगवान् प्रकट हुए और कहने लगे अरे मूर्ख रुक जा मैं तो तेरी परीक्षा ले रहा था तु कितना अपने नियम का पक्का है, तुझे अपनी जान की भी परवाह नहीं है।
मेरा सच्चा भगत तो तू ही है, बनिया तो दिखावे के लिए पुजा करता था । क्योंकि तूने अपने मरने की परवाह ना कर के मुझे जुुुते मारने के लिए तू अपने नियम पर अडिग रहा और तेरे दोस्त बनिये को अपनी जान प्यारी थी।
भगवान् बोले, हे सेवक मैं उसी कोई दर्शन देता हूं जो मेरे दर्शन करने के लिए अपनी जान से खेल कर अपने नियम पर चलता है।
और उन लोगों से दूर रहता हूं जो मेरी पूजा के बहाने सिर्फ दिखावा करते हैं ।
मुझे किसी के फल, फूल और मेवे नही चाहिए, जो मेरी नियम से पुजा करता है, मै उसका हूँ.....!!
जाट प्रभू की यह सारी लीला देखकर मानने लगा कि भगवान हैं ।
और उस दिन के बाद जाट भगवान को मानने लगा

Moral of story:-

इस कहानी से यही शिक्षा मिलती है कि जो भी काम करो नियम से करो चाहे पूजा करो चाहे कोई मेहनत करो उसमें नियम होना बहुत जरूरी है ।

तभी आप सफल हो सकते हो वरना अधूरे कामों में कभी सफलता नहीं मिलती।

लगन हर मुश्किल को भी आसान बना देती है,आस्था में वो ताकत है, जो पत्थर को भी भगवान् बना देती है।

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