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मेरे हमसफर

शुक्ला जी के घर आज शहनाई बजेगी आज उनके बड़े बेटे शिव कि शादी है , शुक्ला जी एक प्राइवेट इंस्टिट्यूट मे क्लार्क का काम किया करते थे , बड़ी बारीकी से अपने घर को संभाला था दोनों बच्चों को पढ़ाया था ,बड़ा बेटा बैंक मे accountany का कम करता था और छोटा बेटा पढ़ाई , शुक्ला जी अब रिटायर्ड हो चुके थे घर का पूरा खर्च बड़ा बेटा हि संभालता था ,
आज बड़े बेटे शिव कि शादी थी , घर बार साधा और रहेंन सेहन भी साधा था शुक्ला जी के परिवार का..
उस परिवार मे अब गुंजन भी शामिल होने वाली थी , बड़ी गुमसुम और बेहद खूबसूरत सी लड़की पसंद कि थी शिव ने ,
एक रिश्तेदार कि शादी मे शुक्ला जी और उनकी पत्नी ने पहली बार देखा था गुंजन को वो उन्हें पहली नजर मे पसंद आ गई ,
और बेटा उनकी बात को टालने वालोंं मे से तो नहीं था तो उसने फट से शादी को हा बोल दिया ,
मंडप मे चहल पहल थी शिव कि नजरें सिर्फ अपनी दुल्हन के रास्ते पे थी ,
इतने मे पंडितजी बोले "लड़की को लेकर आओ मुहूर्त बीतता जा रहा है"....,
गुंजन लाल रंग के जोड़े मे सिर पर घुंगट लिए अपने सहेलियों के साथ धीमे पैरों से मंडप की और चाली आ रही थी , सबकी नजरें सिर्फ गुंजन पे टिकी हुयी थी ।
शादी के रस्मों के दौरान जब सिंदूर वाली रस्म आयी तो , गुंजन की बुवाजी ने हलके से घूँघट उठाया देखा तो वो किसी परी की तरह लग रही थी, और वो निचे वाले ओठों के निचे जो तील था बस सारे श्रृंगार की नजर उतार रहा था,
फेरों के वक़्त जब अपना हाथ आगे बढ़ाया तब चूड़ियों के बीच से मेरा हाथ कसकर पकड़ लिया था उसने ,
बहोत अच्छा महसूस हुआ मुझे ,
शादी के सरी रस्मे होने के बाद हम घर चले आये, आयते वक़्त गुंजन अपने मा को बिलगकर ऐसे रोई मनो कोई उसे school ले जा रहा हो वो भी जबरदस्ती , हा लेकिन मुझे बहोत बुरा भी लगा , तब से मैने खुद से एक वादा कर लिया , जो लड़की अपना परिवार छोड़कर मेरे परिवार को संभालने आ रही उसे मे दुनिया की हर खुशी दूँगा,
2 दिन बाद शादी की सब रस्मे हो गयी ती अब गुंजन के साथ शिव की बातों का सिलसीला शुरू हूआ ,
एक दिन जब शिव बैंक से वापस आया तो गुंजन अपनी सहेली से बात कर रही थी , बात खत्म होने के बात हु हि मेरी और देख हमारे कमरे मे चली गयी , मे पिछसे गया तो एकदम से छोटे बच्चे की तरह मुझसे लिपट गयी , मैने पूछा क्या हुआ ??
आप मुझे honeymoon पे कहा ले जा रहे हो , मे सुन्न रह गया अब ये क्या है , बोलो कहा जाना है ? मनाली ,,,,
अच्छा ठीक है तो अगले महीने जाएंगे ,
खुशी से फिर मुझसे लिपट गयी कहती है बहोत अच्छे हो ,
पागल है बिल्कुल ,
अगले दिन नाश्ता करते वक़्त छोटे भाई संस्कार ने कहा भैया कॉलेज की fees देनी है ,
मेने बोला ठीक है दे देंगे कल ,
शिव बैंक के लिए निकल गया ,
शाम वापस आने के बाद पिताजी आंगन मे बैठे थे साथ मे शिव को बुलाते हुए कहते शिव बेटा यहा आओ बात करनी है तुमसे ,
हा बोलो पिताजी क्या हुआ ,
मैने और तुम्हारी मा ने ये तय कर लिया था तुम्हारी शादी होने के बाद हम हरिद्वार जाएंगे , हमारी टिकेट करा दोगे बेटा ,
मैने बोला हा पिताजी ,
गुंजन अंदर से सब सुन रही थी ,
रात के समय अपनी सड़िया देख रही थी हमे वहा गर्म कपड़े भी लगेंगे ना मैने सिर्फ हा मे सर हिलाया ,
अब समाझ नही आ रहा था क्या करू ,
मुझे अपने भाई की कॉलेज की फीज देनी है या मा पिताजी को हरिद्वार भेजना है , या अपनी पत्नी को हनीमून लेकर जाना है ......
सरे सवाल दिमाग़ मे घर बनाये बैठे थे ,
घर का खर्च और ये सब कैसे करु समझ नही आ रहा था , किसे समझाऊ ,
रातभर घड़ी के काटों के साथ विचारों की सुईया भी नहीं रुक रही थी ,
सबह बैंक मे पता चला इस महीने तन्खा आधी मिलेगी ,
अब कैसे करूंगा ये सब पहले हि शादी का खर्च ,
अपने कुछ सेविंग्स से पैसे निकाले तो उससे भाई की फीज चली जाएगी फिर घर का पुरा खर्चा और रह गये बाकी के पैसे तो इसमे 1 हि हो सकता है मा और पिताजी को हरिद्वार को भेजना या फिर पत्नी को मनाली ले जाना ,
आज घर जाने का मन हि नही हो रहा था और होगा भी कैसे दोनो मे से एक चुनना है तो कैसे चुनु एकतरफ मा पिताजी एयर एक तरफ नई नवेली मेरी दुल्हन,
लड़को की ज़िंदगी भी कितनी अजीब हि होती है , यु तो जिम्मेदारियां बहोत सी होती है और किसीसे मदद भी नही ले सकते , किसे बोल भी नही सकते ,

विचारों के इसी भंडार मे को लेकर घर आ गया आंगन पहुंचा तो देखा दरवाज़े मे पिताजी और मा बैठे थे गुंजन उनके लिए चाई लेकर आयी जैसे मुझे देखा एक हल्की मुस्कान दी और अपने आँचल से सर ढक लिया ,
आओ बेटा बैठो करवा दी हरिद्वार की टिकेट ,
अब क्या बोलु ..... जी पिताजी मे 2 दिन मे कर लूंगा,
अच्छा ठीक है ,
बहु मे आ रही हु अकेली मत बनाना सब कुछ ,
और मे अपने कमरे मे चला गया ,
रत को खाना खाने के बाद गुंजन यु पास आकर बोली
सुनो जी हम कब जा रहे है ......
मे बस कुछ बोल ना सका उसके हाथों को बस कसकर पकड़ लिया और उसे गले लगा लिया ,
पता नही वो कुछ समझ पायी या नही ,
रातभर ये सोचता रहा की गुंजन को हि समझा सकू लेकिन फिर ऐसा भी लगा की उसे ये ना लगे की उसका पति उसकी कुछ इच्छाएं भी पुरी नही कर सकता ,
अगले दिन रवीवार था छुट्टी का दिन था ,
मैने सोचा आज अपने दोस्त से मिल लु शायद उससे कुछ मदद मिल जाये , आजतक मैने कभी किसीसे पैसे नही मांगे थे अब हालात ही कुछ ऐसे थे ,
मे बाहर गया तो देखा आज तो मा हलवा पुरी बना रही थी और उसके साथ मीठी बासुंदी पूरे घर मे इतनी मिठास थी की बस , उसके साथ हि मेरी गुंजन ने पुलाव बनाया जो इस खाने मे चर चांद लगा रहा था ,
आज का दिन तो बड़ मेरे परिवार का है सबके साथ बैठकर बाते करते दिन बित गया और इतने सरे पक्कवान भी खाने को मिले,
जब 4 बजे दोस्त मिलने आया तो उससे भी कुछ मदद नही मिल सकी ,उल्टा अफ़सोस हुआ की किसी के सामने हाथ क्यू फैलाये मैने , और फिर से निराशा हाथ आयी ,
कुछ समझ नहीं आ रहा की किसी समझाउ मा पिताजी उआ गुंजन , क्या करू मे ?
रात के खाने के बाद मे कमरे मे गया तो गुंजन मेरी तरफ पीठ कर के सोइ थी मैने अपने उंगलिया बस उसकी चूड़ियों पे फैलाई तो वो जग गयी ,
अरे सो जाओ sry
उठकर बोली कोई बात नही जी ,
मेरे हाथ को अपने हाथ मे लेकर हल्के से चूमा ,
मुझे ये समझ नही आया की क्या कर रही हो,
कुछ देर ऐसे देख कर फिर बोली ,
मनाली हम फिर कभी जाएंगे आप मा और पिताजी को हरिद्वार भेज दो ,
मेरी आँखे नम हो चुकी थी मे कुछ बोलता इससे पहले
मेरी बाहों को कसकर लिपट गयी ,
सुनो जी अगर मे आपको नही समझूंगी तो और कों समझेगा,
मे तो आपके साथ कही भी खुश रह सकती हु ,
मे समझ गया था मेरी गुंजन सिर्फ दिखने मे नही बल्कि दिल से भी बहोत खूबसूरत है ,
जिंदगी मे अगर ऐसा हमसफ़र हो तो क्या चाहिए और मेरी गुंजन ने तो मेरा दिल जीत लिया ,
रिश्तों मे बस पैसा हि कम नही आता तो एकदूसरे का साथ हि काफी होता है , ये मेरी गुंजन आज मुझे सीखा दिया .....
मे बस उसे निहारता रहा वो कभी शर्माती और कभी हसती थी उसकी मुस्कुराहट से मेरा घर आज खिल उठा
आखिर मैने तो ये मकान बनाया लेकिन आज उसने इसे फिर से घर बनाया ............


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