इशिका Munish Sharma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

इशिका

इशिका!

....अंकल मेरा नाम इशिका है।
(मैं 8-10 दिन पहले भी उस घर मे गया था। कोई छोटा बच्चा सामने वाले कमरे में था और मुझे गेट के पीछे से छुप-छुप कर देख रहा था। मैं जल्दी में था। ज्यादा ध्यान नहीं दिया। आज फिर जाना हुआ उस घर में। उस दिन की तरह आज भी कोई बच्चा गेट के पीछे छुपा हुआ था। बार-बार आहट हो रही थी। मुझे चुपके से देखने की कोशिश कर रहा था। शायद कोई बच्ची थी।
बच्ची पास में दिखी तो नाम पूछने से रहा नहीं गया। बहुत ही प्यारी बच्ची थी।
हालांकि जिन भैया के यहां गया था। उन्होंने साफ कह दिया। ये सही लोग नहीं हैं। इनसे ज्यादा बात मत करना। शायद बच्ची के पिता के शराब पीने के आदि होने की वजह से कहा हो। उसका पिता आए दिन किसी न किसी बात पर झगड़ा करता रहता था। उसके व्यवहार के चलते पास होकर भी उससे दूर ही रहते थे। उसके सामने पड़ने से बचते थे। सामने आने पर निगाह फेर कर निकल जाते थे।)
बच्ची:इशिका
मैं: बहुत प्यारा नाम है बेटे आपका। किसने रखा ये नाम? जरूर आपकी मम्मी ने रखा होगा।
बच्ची: एकदम शांत।
मैं: मैने फिर से पूछा, लेकिन वो नहीं बोली।
बच्ची: कड़ाही और प्लेट धोने में मगन हो गयी।
मेरी बात को पूरी तरह से इग्नोर करके काम करने लगी।
मैं: संकोच में पड़ गया। पूछू की नहीं?
मैने अपने आप से पूछा? मैंने कोई गलत सवाल तो नहीं पूछ लिया। बार-बार जहन में यही विचार आ रहे। आखिर दिल से पूछा तो अंदर से आवाज आई नहीं, नहीं।
बच्ची: अपने कमरे में चली गयी।
भैया: यार क्यों पूछ रहे हो। इसकी माँ के बारे में!!चलो खाना खायो।
मैं: क्यों क्या हुआ।
भैया: चुप्पी साध गए। खाने ने कमी निकालने लगे। ताकि मेरा ध्यान भटक जाए और मैं कोई सवाल ही ना करू।
मैं: जब वहां से चला, तो कमरे में बच्ची, उसका भाई और उसके पापा तीनों लोग खाना खा रहे थे। हालांकि अब बच्ची मुझे देख रही थी। जैसे मुझसे कुछ कहना हो उसे। मेरे हर कदम को रोकना चाह रही हो। कमरे के सामने से गुजरते वक्त बच्ची एकटक मुझे देखती ही रही। उसके भाई और पापा के खाने जैसे बच्ची और मैं अदृश्य थे। उसके बिन बोले भी मेरे कानों में कोई आवाज सी पड़ती रही। मेरे घर जाने की जल्दी से कदम थमे नहीं। मैं बच्ची के कमरे के सामने से निकल गया।                          इतने में कमरे से गिलास गिरने की आवाज हुई। बच्ची का पिता जोर-जोर से चिल्लाने लगा। एक और काम बढ़ने की बात बोलने लगा। 

भैया: इसलिए बोल रहा था मत बोल बच्ची से । इसका पिता बैल है बैल। छोटी-छोटी बात पर चिल्लाता है बच्चों पर। मेरे से देखा नहीं जाता बचचो का दुख। इससे बैल से बोलना मतलब आफत मोल लेना है।

(आगे की कहानी बच्ची से मिलने पर। मन कर रहा है कल सुबह ही जा कर मिलू उस बच्ची से।
शायद उसकी माँ नहीं है। तभी तो वह छह-सात साल की बच्ची बर्तन साफ कर रही थी।)-मुनीश।