जोग लिखी - 2 Sunita Bishnolia द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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जोग लिखी - 2

बेटी लाली की बातें सुनकर अब बाबा को वास्तव में गुस्सा आ रहा था। उन्होंने हुक्के को कोने में रखा और बाहर जाते,-जाते बोले- ‘‘ तो का ई जिनावर को हँसने से भी रोक दें का? एक बात बता लाली तोहरी बिटिया नाही हँसती है का? "
बाउजी की इस बात पर लाली बिल्कुल शांत हो गई थी क्योंकि इसके जवाब में उसके पास कुछ बोलने को नहीं था
‘‘सगुनिया के मुख पर हँसी बनाए ख़ातिर हम अउर ई के माई-बाबू पूरे पन्द्रह साल इका दूर रखे हैं खुद सेल, अउर दूर रखे है, हमार गलतियों की छाया से,फिर तू… . ! "
बाउजी के तीन बेटों के आठ बच्चों में शगुन दूसरे नंबर पर है,इससे बड़ी बहन मणि का बीमारी के कारण देहांत हो गया।मणि के देहांत के बाद शगुन अपने माँ - बाप की इकलौती संतान है। दोनों चाचाओं के दो - दो लड़कियां और एक-एक लड़का है। शगुन के एक चाचा अपने परिवार के साथ नौकरी के सिलसिले में लखनऊ रहते हैं।घर में सबकी लाडली है शगुन और सभी बच्चों की प्यारी जीजी।
लाली समझ गई थी कि बाउजी अब सच में नाराज है इसलिए कुछ कहना ठीक नहीं और कहीं माँ और छोटे भाई - भौजी आ गए तो आफत हो जाएगी।
इसलिए वो थोड़ी हकलाते हुए बोली- ‘‘वो..... वो हम तो ईका घर बसाई का चाही.. .... कहते हुए लाली ने देखा कि बाउजी तो उसकी बात को अनसुना करके घर से बाहर निकल चुके थे।
पर लाली को नहीं पता था कि अम्मा आ चुकी है और वो पीछे खड़ी सब सुन रही है। लाली के कानों में जब माँ के चीखने की आवाज़ आई तो वो जैसे जड़ हो गई - ‘‘तू ना सोच ईका घर बसाये के बारे और लाली सुन, तू का चाहे है कि हमार बिटिया हँसे बी ना! अरे सहर पढ़ लिख आई है फिर भी संस्कार ना भूली है हमार सगुनिया।’’
अब तो लाली बुआ की शामत आ गई थी। माँ उसके जो पीछे पड़ी कि पीछा छुड़ाना भारी हो गया। वो मन ही मन प्रार्थना करने लगी कि भाई-भौजी आएँ तो यह न्याय खतम हो।
और भगवान ने लाली की सुनी पर अधूरी...। अब आप सोचेंगे भला भगवान ने अधूरी कैसे सुनी! हाँ भई लाली की अधूरी ही सुनी तभी तो भाई-भौजी तो नहीं पर दादी की आवाज सुनकर भतीजी शगुन जरूर कमरे से निकल कर आई।
चहकती हुई शगुन को देखकर दादी तो जैसे धन्य हो गई। पर बुआ ने मुँह बना लिया।
बुआ का कुढ़ता हुआ चेहरा देखकर शगुन ने बुआ को पकड़ लिया और हँसते हुए कहा-
‘‘क्या हुआ बुआ यहाँ तो फूफा भी नहीं, किस पर गुस्सा कर रही हो। ’’
लाली अपने आपको शगुन से छुड़वाते हुए प्यार से बोली-
‘‘सगुनिया .....! तोहर पिटाई लगाई के परी।’’
लाली बुआ जबान की जरूर थोड़ी कड़वी है पर भाई - भतीजों को बहुत प्यार करती है और उनके बारे में घर वालों से जो भी कहती है वो उनके भले की सोचकर ही कहती है। इसलिए शगुन के सामने आते ही बुआ भी मोम-सी पिघल जाती है और उसके साथ हँसी- ठिठोली करने लग जाती है।
ये देखकर अम्मा माथा पीट लेती है कि - "ये लाली भी ना....!"
क्रमशः..
सुनीता बिश्नोलिया