तेरी आँखों के सिवा दुनिया मैं रखा क्या है….. RDGSB द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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तेरी आँखों के सिवा दुनिया मैं रखा क्या है…..

रात के १२:४० हो रहे है , आँखों मैं नींद भी है और ये भी पता है की जैसे ही सोने के लिए आँखें बंद करूँगा ये नींद भाग जाएगी और फिर दिन निकलने तक करवटें बदलने का सिलसिला चलता रहेगा।

आज कई दिनो बाद कुछ पुराने दोस्तों को वट्सप पर मेसिज  किया है इस उमीद मैं की शायद कोई जाग रहा हो और जवाब दे दे। वैसे तो मैं रोज़ सवेरे ४,३० तक उठ  जाता हूँ पर मुझे मालूम  है कि आज की रात जागते जागते ही जाएगी। वैसे भी आज इतवार नही है और अगले दिन ऑफ़िस भी जाना  है। किसी का कोई जवाब नहीं आया है वट्सप पर मतलब सारी जनता सो चुकी है।

रात का अंधेरा पूरी तरह पसर चुका है, कानो मैं झींगुर की आवाज़ भी आ रही है, पता नही सच मैं आ रही है या मुझे लग रहा है। बाहर काफ़ी सारे पौधे है, शायद वंहा कोई हो। मेरे बेडरूम की खिड़की से सटा  हुआ एक पेड़ है और उस पेड़ पर कुछ गौरिय्या  का बसेरा भी है। वैसे मैंने शहेर मैं गौरिय्या  पहेली बार ही देखी है। इनको देख कर बचपन की यादें ताज़ा हो गयी। बचपन मैं हमारे आँगन मैं कितनी गौरिय्या उछलती कूदती रहेती थी। अब इन कंक्रीट के शहरो मैं ये सब नहीं दिखता। पर इतनी रात मैं वो तो कोई आवाज़ कर नही सकती।

कभी कभी जब मैं रात को सो नहीं पता और रात जागते जागते गुजरती है तो कुछ लोग ये पूछ लेते है क्या करते हो रात भर, ये आदत अच्छी  नहीं है । चलो आज इस सवाल का भी जवाब दे देता हूँ की क्या करता हूँ रात को, क्या ख़ुशी मिलती है। पहली बात, मैं रोज़ रात को नहीं जागता, सिर्फ़ कभी कभी। और जब जागता हूँ तो खिड़की से बाहर अंधेरी रात मैं ख़ाली सड़क को देखना मुझे पसंद है , इतना अंधेरा भी नहीं होता क्यूँकि स्ट्रीट लाइट बहुत लगी हुई है, मेरे कमरे की खिड़की से दिखायी देता हुआ बच्चों के खेलने का पार्क भी मुझे बहुत पसंद है। पसंद है मुझे कमरे की खिड़की से अनंत गगन को अपने अंदर समा लेना। मुझे रात का वो शांत समाये बहुत पसंद है जब कोई मुझे कुछ नहीं कहता  और मैं खुद से आराम से बातें कर सकता हूँ, अपने मन की बात। ये वो समय है जब बार बार फ़ोन की घंटियाँ तंग  नहीं करती। पसंद है मुझे गाने सुनते हुए सक़ून की दुनिया मैं खो जाना। कभी कभी ऐसे ही जगती रातों में , मैं तस्वीरें लेने लगता हूँ । मेरे घर के बाहर लगे पेड़ की डालियों के बीच से झांकते हुए चंदा मामा की तस्वीरें। दूर टीम – टीम करते तारो की तस्वीरें। ये सब  तस्वीरें  लेते वक्त मुझे लागत है कि हर चीज़ जो हमसे दूर होती है हम बहुत कोशिश करते है उसको अपने पास लाने की और शायद कभी ले भी आते है, पर मुझे वो सब एक भ्रम लागत है । मुझे लगता है की हम किसी डोर से उससे जुड़ जाते है , जैसे इस वक्त मेरा कैमरा। इस कैमरा की वजह  से मैं चमकते हुए चाँद के पास चला  गया हूँ, जबकि सचाई  ये है कि चाँद भी वंही  है और मैं भी यंही  हूँ……. बस मेरा कैमरा एक डोर है। चाँद को देखते हुए उसमें पड़े हुए दागो पर भी नज़र जाती है, फिर ये ख़याल भी आता है की हम लोग बहुत बार ये बोलते हुए पाए जाते है की दूसरों को हमारी खामियों को अपनाना चाहिए क्योंकि दाग़ तो चाँद में भी होते है लेकिन जनाब, हम ये नहीं जानते कि चाँद पर इतने गीत इसलिए लिखे जाते हैं क्योंकि चाँद अपने दाग़ों के साथ खुश है और उन्हें अपना चुका है। तो हमें भी अपनी खामियों के साथ पहले खुश रहना सीखना फिर दूसरे अपने आप अपना लेंगे।

आज भी रात में जागते-जागते 3 बज चुके हैं और किसी का जवाब आने वाला भी नही है। वैसे मैं किसी से ज्यदा कोई बात करता नहीं पर कभी कभी कुछ समस्याएँ होती है जिनको पार पाने के लिए किसी से सलाह ली जा सकती है। हमारे दिल मैं कई बातें होती है और हम दिल की बातें करना भी चाहते है पर मज़ाक़ बना दिए जाने के वजह से किसी से नहीं कहे पाते  या कोई ऐसा नहीं  मिलता जो हमारी बात समझ सके। इसलिए हम सारी बातें अपने अंदर ही रखने लगते है। कभी कभी ये बहुत बड़ी समस्या का रुप ले लेती है । जब कुछ गलत हो जाता लगता हैं कि क्यूँ बात छुपाये रखी किसी से सलाह ही ले लेते और जनाब जिंदगी में सही सलाह वही लोग दे सकते है जिन्होंने उन मुश्किलों को जिया हो, जिन्हें जब सहारे की ज़रूरत थी तो कोई नही था और वो उस रास्ते पर अकेले चले, गिरे, उठे फिर चले।

मैं आसमान की आंखों से आंखें मिला रहा था, जैसे शर्त लगी हो कि पहले आंखें झपकाने वाला हार जाएगा। मैंने इतना उदास आसमान कभी नहीं देखा था। कुदरत कभी आपका साथ नहीं छोड़ती। जब आप  ख़ुश होता हूं तो आसमान के रंग आपकी ख़ुशी बांट लेते हैं। जब उदासी आती है तो वही आसमान के रंग उदासी में मशगूल हो जाते हैं। ख़ैर! रात गहेरी होती जा रही है और दिमाग़ है की शांत नहीं हो रहा है, वो अपनी ही धुन मैं है, अब धीमी  आवाज़ में रेडीयो चालू  किया है और आँखें मूँद ली है की शायद अब नींद आ जाए। “

तेरी आँखों के सिवा दुनिया मैं रखा क्या है…….रफ़ी साहब।

जब फ़ैज़ आहेमद फ़ैज़ ने ये लिखा होगा तो उनकी आँखें भी सिर्फ़ और सिर्फ़ उन्ही आँखों को याद कर रही होंगी। जब आप किसी से प्रेम करते है तो आप घँटो उन खूबसूरत आँखों को निहारते रहेते हो और वो आँखें भी नही थकतीं आपकी और देखते हुए। शायद आपको आदत पड़ जाती है इसकी। शायद, क्यूँकि मुझे नहीं पता, मैं अकेले रहता हूँ तो ऐसे ख़याल आते रहेते है। ऐसा नहीं  है कि मैं देखना नहीं चाहता  उन आँखों मैं, पर कैसे? आप एक तरफ़ा प्रेम मैं भी उन आँखों को ही निहारते रहते है, आधी रात को, आँखें मूँदे हुए भी। और वो २ आँखें है जो ख़्यालों से जाती ही नहीं, ऐसा लगता है की प्रेम का अस्तित्व  ही आँखों से होता है।

कुछ ऐसी ही बातों की वजह से रातें सक़ून बन जाती है मेरे लिए और इसलिए रातों को जागना इतना मुश्किल भी नही होता। लेकिन अगर एक सच ये है कि रातें सुकून हैं तो एक सच ये भी है कि वही रातें डर भी हैं । उन्हीं रातों से डर भी लगता है । इतना डर कि अपने कमरे से नीचे किचन तक जाने में भी डरते हो। लेकिन सुबह के 4 बजने के साथ ही किचन तो क्या, कहीं भी जाने की हिम्मत आ जाती है । पूरी रात का डर घड़ी में 4 बजने के साथ ख़त्म हो जाता है । ऐसा लगता है मानो जैसे सब ठीक हो, मानो जैसे अब कुछ ग़लत हो ही नहीं सकता । दुनिया भर की सकारात्मकता उस वक़्त महसूस होती है । रातें और जीवन ऐसे ही चल राह है! बहुत तेजी से। रात दिन का पता नहीं चलता.. सुबह उठकर जब अपने बिस्तर की और देखता हूँ , तो वंहा सिर्फ़ सिलवटें  ही नज़र आती है, मन करता है फिर से पसर जाऊँ। पर अब इतनी आज़ादी किधर जनाब, वो दिन कब के हवा हुए जब हम सुबह का सूरज देखने के बाद सोने जाते थे। अब तो ज़िंदगी से जंग लगी हुई है की कौन किसको चित करेगा। एक रात और जी ली है, कुछ सपने और देख लिए है खुली आँखों से बस आब उन सपनो को समेट के रखना है, खुद  को खुद ही उठाना है और उठ कर चल देना है । सामने एक नया क़िस्सा, एक नयी कहानी इंतेज़ार कर रही है…………. थोड़ी देर वहीं पड़ा रहता हूँ , फिर उठ चल देता हूँ।