सफर से पहले ही - अंतिम भाग Kishanlal Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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सफर से पहले ही - अंतिम भाग

फिर एक दिन उसके कानों में भनक पड़ी की उसे वर्धआश्रम भेजने की तैयारी हो रही है।यह जानकर उसके कलेजे के टुकड़े हो गए।मा बाप बेटे के पैदा होने की चाहत इसलिए रखते है कि बेटा बुढ़ापे में उनका सहारा बनेगा।बेटे के लिए मा बाप कुछ भी करने के लिए तैयार रहते है पर बुढापा आने पर बेटे को मा बाप बोझ लगने लगते है।बेटे को सरला ने ऐसा करने का मौका ही नही दिया।बेटा उसे वरदाश्रम छोड़कर आता उससे पहले ही सरला घर छोड़कर चली आयी।
अपनी कहानी सुनाकर सरला भी चुप्प हो गयी।सरला और राम लाल के बीच मे फिर से मौन पसर गया।
कोई ट्रेन शायद इस प्लेटफॉर्म पर आने वाली थी।इसलिय यात्रियों का आना शुरू हो गया था।वेंडर भी इस प्लेटफॉर्म पर आ रहे थे।जो प्लेटफॉर्म खाली और सुनसान था।उस पर ट्रेन आने से पहले काफी चहल पहल हो गयी थी।राम लाल और सरला बेंच पर बैठे यात्रियों को देखने लगे।और कुछ देर बाद ट्रेन आयी थी।ट्रेंन से यात्री चढ़ने उतरने लगे।वेंडरों का शोर भी हवा में तैरने लगा।और ट्रेन चली गयी।धीरे धीरे प्लेटफॉर्म खाली होने लगा और सन्नाटा पसर गया था।
कुछ देर बाद एक बूढ़ा और एक बुढ़िया आती हुई दिखाई दी।शायद वे ट्रेन के अंतिम कोच से उतरे थे।राम लाल उन्हें देखने लगा।दोनो एक दूसरे को सहारा देकर चक रहे थे।राम लाल उन्हें तब तक देखता रहा जब तक वे आंखों से ओझल नही हो गए।जब वे दोनों दिखना बन्द हो गए तब राम लाल मोन तोड़ते हुए सरला से बोला,"क्यो न हम एक किराए का घर लेकर साथ रहे।"
"जानते हो लोग क्या कहेंगे?"
"क्या कहेंगे?"
"हमारे बीच मे कोई रिश्ता नहीं है।अगर हम साथ रहेंगे तो लोग तरह तरह की बाते बनाएंगे।"
"अगर तुम्हें लोगों के बात बनाने की चिंता है,तो हम लोगो को बाते बनाने का मौका ही नही देंगे,"राम लाल बोला,"हम शादी कर लेंगे।"
"यह तुम क्या कह रहे हो,"राम लाल की बात सुन कर सरला चोंकते हुए बोली,"शादी और इस उम्र में?"
"औरत आदमी को सहारे की जरूरत इसी उम्र में होती है।अगर हमारे बहु बेटों ने हमे घर से न निकाला होता तो हमे इस उम्र में साथी की जरूरत क्यो होती?अब तुम भी अकेलेई अकेली हो और मैं भी,"राम लाल सरला को समझाते हुए बोले,"जवानी में आदमी खुद ही सक्षम होता है।उसे किसी के सहारे की जरूरत नही पड़ती।इस उम्र में शरीर शिथिल हो जाता है।इसलिए सहारे की जरूरत पड़ती है।अगर हम दोनों साथ रहेंगे तो हमारा शेष जीवन आसानी से कट जाएगा।"
सरला पुराने सोच की पतिव्रता औरत थी।उसका मानना था कि जिस घर मे औरत की डोली जाती है उससे उसकी अर्थी ही उठती है।लेकिन पति रहा नही था।बेटे का सहारा था।लेकिन बेटे ने
वह आज तक अकेली कंही नही गयी थी।अब इस उम्र में कहा जाएगी?जब बेटे ने ही सहारा नही दिया तो और कोई क्यो देगा?
राम लाल के प्रस्ताव पर सोच विचार करने के बाद वह बोली,"तुम कह तो सही रहे हो"
"तो चलो"राम लाल ने अपना हाथ सरला की तरफ बढ़ाया था।सरला ने उसका हाथ थाम लिया।और वे नए जीवन की शुरुआत के लिए चल पड़े।प्लेटफार्म पार करके वे पुल पर चढ़ने लगे।अचानक सरला के पैर लड़खड़ाए और उसका हाथ छुटा वह लुढ़कती हुई नीचे आ गई।
"क्या हुआ
राम लाल तेजी से नीचे आया।राम लाल ने सरला का हाथ पकड़कर उसे उठाना चाहा।पर सरला इस दुनिया को छोड़कर जा चुकी थी