एक रूह की आत्मकथा - 59 Ranjana Jaiswal द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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एक रूह की आत्मकथा - 59

हॉस्पिटल में स्वतंत्र को देखने प्रथम अपने मित्र परम के साथ आया।स्वतंत्र की हालत देखकर वह बहुत दुःखी हुआ।उसे उमा पर बड़ी दया आई।उसने सोचा कि अगर स्वतंत्र को कुछ हो गया तो वह बेचारी दो बच्चियों के साथ कैसे जीवन काटेगी।अभी तो उसकी उम्र भी इतनी कम है।
पूरी तरह सेनेटाइज होकर ही वह स्वतंत्र के रूम में गया था।उसने देखा कि स्वतंत्र की आंखें बंद हैं और मुंह खुला हुआ है। उसके गले से पैर तक का शरीर सफेद चादर से ढका हुआ है।चादर के ऊपर से भी उसका सीना ऊपर -नीचे हो रहा है साथ ही मशीन के चलने की आवाज आ रही है।तो क्या मशीन से ही स्वतंत्र सांसें ले रहा है?जाने क्यों उसे स्वतंत्र मरा हुआ प्रतीत हुआ?उसे लगा कि स्वतंत्र मर चुका है और डॉक्टर पैसा ऐंठने के लिए उसे आई सी यू में बेंटिलेटर पर रखे हुए हैं। वह आई सी यू से निकला तो उसने उमा से अपनी शंका व्यक्त की।
"क्या आपने कन्फर्म किया है कि स्वतंत्र जिंदा है।"
"हाँ,तभी तो उनके शरीर के अंदरूनी पार्ट्स ठीक ढंग से काम कर रहे हैं।उनके शरीर में कोई बीमारी नहीं थी।उनके सारे अंग पूर्ण स्वस्थ हैं।सिर्फ ज्यादा चोट लग जाने की वजह से दिमाग ही डेड हो गया है। चूंकि दिमाग ही पूरे शरीर को संचालित करता है,इसलिए दिमाग का काम मशीनों से लिया जा रहा है।अगर शरीर के सभी पार्ट्स डेड हो जाएंगे तो मशीन भी बंद हो जाएगा"
उमा ने प्रथम को पूरी जानकारी दी।
प्रथम ने लंबी -सी हुँकारी भरी और परम को उठने का संकेत दिया।फिर उसने उमा से इजाज़त मांगी।
रास्ते में उसने परम से दुखी स्वर में कहा-"मुझे नहीं लगता कि स्वतंत्र बचेगा।ये जीवन भी कितना नश्वर होता है यार!"
परम ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा-"सच कह रहे हो,तभी तो मैं कह रहा हूँ कि हमें जल्द ही साथ रहना शुरू कर देना चाहिए।इस तरह चोरी- छिपे सम्बन्ध निभाते मन खिन्न हो गया है।"
"सच कहते हो,आज मैं माँ से इस बारे में बात करूँगा,फिर परिणाम चाहें जो हो।"
प्रथम ने निर्णायक स्वर ने कहा।
"अगर वे नहीं मानीं तो....।"
परम ने शंका व्यक्त किया।
-"तो हम किसी ऐसे बड़े महानगर में जाकर रहेंगे,जहां कोई किसी के बारे में जानने की कोशिश नहीं करता।"
स्वतंत्र ने परम को आश्वस्त किया।
प्रथम ने जब राजेश्वरी देवी से अपने और परम के सम्बंध का खुलासा किया तो वो गुस्से से पागल हो उठीं। उन्होंने उसे तड़ातड़ कई चाँटे जड़ दिए।उनका यह रौद्र रूप देखकर परम धीरे से खिसक लिया।
"तू इतना गन्दा निकलेगा,ये तो मैंने सोचा ही नहीं था।नालायक तो तू पहले से था अब ये नया शौक पाल लिया।तू एक लड़के से ब्याह रचाएगा। यह समाज स्वीकार करेगा इसे।तू मर क्यों नहीं गया?हे ईश्वर तुमने मेरे लायक बेटे रौनक को तो उठा लिया फिर इस नालायक को क्यों छोड़ दिया?"
राजेश्वरी रोते हुए प्रथम को कोस रही थीं ।
"माँ ,इसमें मेरी क्या गलती है?मुझे कुदरत ने ही ऐसा बनाया है।ये मेरा शौक नहीं है।मुझे किसी लड़की में कोई आकर्षण नहीं दिखता।"
प्रथम अपनी सफाई देते हुए बोला।
"मेरा वंश कैसे चलेगा?बड़े को कोई संतान हुई नहीं ।रौनक की लड़की ही है,वो भी लगभग पराई और तू लड़के का आशिक!"
राजेश्वरी देवी बिलखती हुईं बोलीं।
"माँ ,जरूरत होगी तो हम किसी बच्चे को गोद ले लेंगे।आज के जमाने में वंश आदि की चिंता कौन करता है?"
स्वतंत्र ने उन्हें समझाने की कोशिश की।
-"तूने कहा और सबने मान लिया।अरे ,हम किसी को कैसे मुँह दिखाएंगे?आस -पास और रिश्ते -नाते लोग क्या कहेंगे?"
राजेश्वरी ने अपना माथा पीट लिया।
"माँ आपको मेरी खुशियों से ज्यादा लोगों की चिंता है।आप हमेशा तो नहीं रहेंगी न! ।हमारी पूरी जिंदगी का सवाल है।मैं परम से बहुत प्यार करता हूँ माँ उसके बिना नहीं जी सकता" प्रथम रोने लगा था।
"तू मेरी आँखों से दूर हो जा....कहीं दूर किसी शहर में चला जा।न सामने देखूँगी न दुःख होगा।"
राजेश्वरी देवी ने चीखकर कहा।
"आपकी यही मर्जी है तो ठीक है माँ,मुझे जाने की इजाज़त दीजिए।"
प्रथम राजेश्वरी देवी का पैर छूने के लिए झुका तो उन्होंने अपने पैर पीछे खींच लिए।
प्रथम अपने कमरे ने गया और थोड़ी देर में अपना बैग लेकर बाहर आ गया।उसने एक बार फिर किसी उम्मीद में राजेश्वरी देवी की ओर देखा,पर राजेश्वरी देवी पत्थर की मूर्ति -सी अचल खड़ी रहीं।प्रथम दुःखी चेहरा बनाए घर से बाहर निकल गया।सड़क के किनारे एक पत्थर पर परम बैठा हुआ था।धूप और चिंता से उसका चेहरा काला पड़ गया था। प्रथम को देखते ही उसका चेहरा खिल उठा। वह दौड़ता हुआ उसके पास आया और उसके गले लग गया।प्रथम के जाते ही राजेश्वरी देवी दहाड़े मार -मारकर रोने लगीं।इस समय वह घर में अकेली ही थीं ।बड़े बेटे और बहू स्वतंत्र को देखने सिटी हॉस्पिटल गए हुए थे। अगले महीने वे दोनों भी विदेश चले जाएंगे।फिर वह अकेली हो जाएंगी।कैसे काटेगी वह अपना बुढापा?कामिनी होती तो वह उन्हें इस हाल में कभी अकेला नहीं छोड़ती।अमृता भी अच्छी है।उनसे प्यार भी करती है पर वह भी तो लंदन जा रही है।सात साल बाद लौटेगी तब तक पता नहीं वे जिंदा रहेंगी भी या नहीं।उनकी भी कितनी खराब किस्मत है ।उन्होंने तीन -तीन बेटों को जन्म दिया ,उन्हें पाला -पोसा,पढ़ाया- लिखाया पर सभी अपनी राह चले गए।उम्र के इस पड़ाव पर जब अपनी देह भी अपनी नहीं रह जाती।शरीर के सारे अंग अपनी मनमानी पर उतर आते हैं अपने बच्चे भी साथ छोड़ जाएं तो क्या आश्चर्य!
राजेश्वरी देवी दुःख से बावली हो गईं।उनका ब्लडप्रेशर हाई हो गया।वे बेसुध होकर ड्राइंगरूम में ही गिर पड़ी।अब यह संयोग था या फिर या दिली आभास कि उसी समय अमृता आ गई।वह अपने ताया ताई को घर छोड़ने आई थी।राजेश्वरी देवी को ड्राइंगरूम में बेसुध देखकर सबके होश उड़ गए। अमृता ने तुरत डॉक्टर को फोन किया।तब तक बेटे ने उन्हें उठाकर बिस्तर पर लिटा दिया था।डॉक्टर ने उनका अच्छी तरह मुआयना किया और उन्हें इंजेक्शन लगाया फिर बोले -"वैसे अभी चिंता की कोई विशेष बात नहीं,पर इनको अकेला छोड़ना या इनका किसी बात से तनाव होना ख़तरनाक़ साबित हो सकता है।"
"दादी बेहोश क्यों हो गई थीं डॉक्टर साहब?अमृता ने चिंता से कहा।"
"इनको किसी बात से सदमा लगा है।परिवार में कोई बात हुई है क्या?"डॉक्टर ने जानकारी के लिए पूछा।
"नहीं डॉक्टर साहब ,अभी थोड़ी देर पहले जब हम इन्हें छोड़कर गए थे तो ये बिल्कुल ठीक थीं।"
इस बार माया ने जवाब दिया।
"हो सकता है आपलोगों की अनुपस्थिति में कोई घटना हुई हो।चिंता न करें अभी इनको होश आया जाएगा।"डॉक्टर ने उन्हें आश्वस्त किया।
तभी राजेश्वरी देवी ने आंखें खोल दी।अपने सामने बेटे- बहू और अमृता को देखकर वे भरभराकर रो पड़ीं।