एक रूह की आत्मकथा - 55 Ranjana Jaiswal द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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एक रूह की आत्मकथा - 55

उमा ने जब 'कामिनी प्राइवेट लिमिटेड' में नौकरी के ऑफर की बात सास नंदा देवी को बताई तो वे जोर से चीखने- चिल्लाने लगीं।शोर सुनकर स्वतंत्र भी अपने कमरे से निकलकर वहाँ आ गया।
"आखिर तुम्हें ही क्यों नौकरी का ऑफर मिला?इतने दिनों से मेरा बेटा इसके लिए रिक्वेस्ट कर रहा था,पर किसी ने उसकी बात नहीं सुनी।क्या तू मेरे बेटे से ज्यादा योग्य है?"
"कौन -सी नौकरी माँ?"स्वतंत्र ने अपने कमरे से निकलकर माँ से पूछा।
" इसे 'कामिनी प्राइवेट लिमिटेड' में काम करने का ऑफर मिला है।अमृता आज इसीलिए तो आई थी।उसने मुझे भी इस बारे में नहीं बताया।उस लड़की के पेट में भी दाढ़ी है।"
नंदा देवी गुस्से में थीं।
"जैसी माँ वैसी ही बेटी।देखा,उसने मुझे नौकरी का ऑफर नहीं दिया। जैसे मैं कोई अनपढ़ -गंवार हूँ या चोर -उच्चका हूँ।आखिर क्यों मुझ पर न बहन को भरोसा हुआ था ,न उसकी बेटी को है?"
"कामिनी जी आपकी बड़ी बहन थीं और अमृता आपकी सगी भांजी है।थोड़ा इज्जत से उनका नाम लीजिए।" उमा ने तिलमिलाकर कहा।
"तुम तो सदा से उसकी वकील रही हो।चापलूसी करना तुम्हें पसंद है ।उसी चापलूसी का तुम्हें इनाम मिल रहा है।" स्वतंत्र ने चिढ़े स्वर में कहा।
"अब ये तो वही लोग जाने कि क्यों मुझे ऑफर दे रहे?मैंने पूछा भी था कि क्यों नहीं आपको काम दे दे रहे?" उमा ने सफाई देनी चाही।
"मुझे तुम्हारी सिफारिश नहीं चाहिए।" स्वतंत्र ने जमीन पर पैर पटककर कहा।
"मैंने अभी "हाँ "नहीं की है ।अब जैसा आप लोग कहें।वैसे ऑफर अच्छा है।50 सेलरी।आवास और गाड़ी की सुविधा के साथ आकर्षक बोनस भी।" उमा ने उन्हें जानकारी दी।
"इतना कुछ एक साथ! उससे कहो कि ये नौकरी तुम्हारे पति को दे दे।"
नंदा देवी ने बात संभालने की कोशिश की।
वे इतनी अधिक सेलरी सुनकर शांत हो गई थीं।इतनी सेलरी से तो उनके घर की सारी आर्थिक समस्याओं का समाधान आसानी से हो जाएगा।
"मैं कैसे कहूँ...ये कम्पनी के प्रबंधक समर और उसकी मालकिन अमृता का फैसला है।उन्होंने काफी सोच -विचार कर यह फैसला लिया है।" उमा ने बात समझानी चाही।
"मुझे तो लगता है कि यह समर की चाल है।वह कामिनी की तरह इसे भी अपनी रखैल बनाकर रखना चाहता होगा।" स्वतंत्र ने जल -भुनकर कहा।
"जुबान संभालकर बात कीजिए।अपनी ही बहन के बारे में अपशब्द कहते आपको शर्म नहीं आती।"
उमा रखैल शब्द पर भड़क उठी।
"सच सुनने में कड़वा ही लगता है।"
स्वतंत्र बेहयाई से हँसा।
"आपकी सोच छि:!"उमा ने घृणा से मुँह घुमा लिया।
"तुम उस कम्पनी में काम नहीं करोगी।यह मेरा आखिरी फैसला है।"
स्वतंत्र ने अपना फैसला सुना दिया।
"आप मेरे बारे में एकतरफा फैसला नहीं ले सकते।"
उमा ने भी स्वतंत्र को चुनौती दी।
"ले सकता हूँ मैं तुम्हारा पति हूँ।"
स्वतंत्र ने ऐंठ के साथ कहा।
"पति हैं मालिक नहीं।"
उमा ने भी उसी स्वर में जवाब दिया।
"तो तुम वहाँ काम करोगी ही।"
स्वतंत्र ने उमा को आँखें दिखाई।
"मजबूरी है । मेरी छोटी -सीनौकरी से यह गृहस्थी नहीं चल पा रही।मेरी बेटियाँ अच्छे स्कूल में नहीं पढ़ पा रहीं।आपको तो कुछ करना- धरना है नहीं।"
उमा ने रोष से कहा।
"प्रयास तो कर रहा हूँ न!अब नौकरी नहीं मिलती तो क्या करूं? मर जाऊँ क्या?"
स्वतंत्र ने रुआंसे स्वर में कहा।
"मरने से क्या हासिल होगा?आप ये करें कि मुझे यह ऑफर स्वीकार करने दें।सब कुछ ठीक हो जाएगा।फिर मैं नौकरी करूं या आप करें।सब इसी परिवार के लिए तो होगा।हमारे लिए ही तो होगा।"उमा ने इस बार नम्रता से कहा।
"नहीं, मुझे उस समर पर भरोसा नहीं।वह चरित्रहीन है ।वह तुम्हें फंसा लेगा।"
स्वतंत्र ने घबराए स्वर में कहा।
"आपको समर जी पर विश्वास हो न हो पर मुझ पर तो विश्वास है न!क्या आपको लगता है कि मैं आप से बेवफाई करूंगी? नई उम्र पर तो कुछ किया नहीं अब दो बच्चियों की माँ होने के बाद ऐसा कुछ करूंगी क्या!"
उमा ने स्वतंत्र को समझाने की कोशिश की।
"नहीं ,मैं कुछ नहीं जानता।तुम्हें वह नौकरी नहीं करनी।मैं कोई दूसरा काम कर लूंगा।अगर तुम नहीं मानी तो अपनी जान दे दूंगा।"
इतना कहते हुए स्वतंत्र अपना माथा पकड़कर वहीं जमीन पर बैठ गया।
"बेटा,बात को समझ,यह नौकरी जरूरी है।"
नंदा देवी ने उनके बीच में हस्तक्षेप किया।उन्हें डर था कि ऐसा न हो कि दोनों की इस लड़ाई में किसी को भी यह नौकरी न मिले।वो जानती हैं कि अवसर किसी का दरवाजा बार -बार नहीं खटखटाता।
"आप भी इसी का पक्ष लेने लगीं।आप भी नहीं चाहतीं कि मैं शांति से जीऊँ।"
कहते हुए स्वतंत्र घर से निकल गया।
स्वतंत्र को बहुत गुस्सा आ रहा था।गुस्सा उसे उमा और अपनी माँ पर ही नहीं खुद की क़िस्मत पर भी आ रहा था।उसी की एक बहन कामिनी थी,जो अपार सम्पत्ति की मालकिन थी और एक वो है कि उसे आज तक ढंग की एक नौकरी भी नहीं मिली है।आज उसके पास पैसा होता तो उसकी पत्नी उससे इस तरह का व्यवहार नहीं करती।उसकी बेटियाँ उससे ज्यादा उमा को पसंद नहीं करतीं।आज तो माँ भी उमा का पक्ष ले रही है।सब पैसे की माया है।
वह समर से नफ़रत करता है,इसलिए नहीं कि उसने कामिनी को फंसाया था ,बल्कि इसलिए कि उसके ही बहकावे में आकर कामिनी ने उसे कोई नौकरी नहीं दी।पहले वह उसकी कुछ आर्थिक मदद कर दिया करती थी,पर बाद में उसने वह भी बंद कर दिया।हाँ,उसने उसकी बेटियों की शिक्षा -दीक्षा की सारी जिम्मेदारी खुद पर ले ली थी।किसी न किसी बहाने घर की जरूरत का सामान भी भिजवाती रहती थी पर यह सब उसको बहुत कम लगता था।
अगर उमा समर के साथ काम करेगी तो जरूर बहक न जाएगी।
समर स्मार्ट तो है ही कामिनी की सारी प्रॉपर्टी का प्रबंधक भी है।अमृता तो अभी बच्ची है।समर के इशारों पर ही नाचेगी।दौलत की चकाचौंध से कोई भी चौंधियाँ जाता है।उमा तो खैर एक साधारण औरत है।वह उसे कोई सुख- सुविधा भी तो नहीं दे पाया है।ऊपर से उनका वैवाहिक सम्बन्ध भी मधुर नहीं है। वह भी तो जया के सम्बंध में कमज़ोर पड़ गया था।सुंदर स्त्री को देखते ही कोई भी पुरुष बहक जाता है ।अगर उमा को देखकर समर भी बहक जाए तो क्या आश्चर्य?
स्वतंत्र इस सम्बंध में जितना ही सोच रहा था,उतनी ही उसकी व्याकुलता बढ़ती जा रही थी। उसकी आँखों के सामने समर और उमा के प्रेम- एंगल चल रहे थे। वह इतना बौखलाया हुआ इस तरह सड़क पर चल रहा था कि उसे ट्रैफिक नियमों का कोई ज्ञान ही नहीं रहा।
एकाएक वह तेजी से आती हुई बस के रास्ते में आ गया।बस से उसे ज़ोरदार टक्कर लगी और वह उछलकर सड़क से कुछ दूर जा गिरा।उसके सिर पर काफ़ी चोट लगी । सिर से ढेर सारा खून बहकर जमीन पर जम गया ।वहाँ लोगों की भीड़ लग गई।