एक रूह की आत्मकथा - 52 Ranjana Jaiswal द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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एक रूह की आत्मकथा - 52

अमन को विश्वास नहीं था कि अमृता उसकी पार्टी में आएगी फिर भी वह उसके इंतज़ार में था।वह उससे अपनी पुरानी गलतियों के लिए सॉरी बोलना चाहता था।दरअसल अपनी माँ लीला की आंसुओं ने उसे कामिनी आंटी पर गुस्सा दिला दिया था।उसने अपना वह गुस्सा अमृता पर उतार दिया था। हालांकि कामिनी आंटी की हत्या के बाद से ही वह उससे बात करने के लिए बेचैन था,पर पिता समर के जेल चले जाने से वह फिर गुस्से में आ गया।उसके अनुसार कामिनी आंटी मरकर भी उसके पिता को परेशान कर रही थीं।पुलिस ने तो आंटी कामिनी की हत्या के लिए उसकी माँ के साथ ही उस पर भी डाउट किया था।जब तक असली हत्यारा गिरफ़्तार नहीं हुआ ,उसे शहर से बाहर जाने तक को मना कर दिया गया था।वह माँ के साथ -साथ कभी हवालात तो कभी अदालत के चक्कर लगाता रहा।वह जितना परेशान होता ,उतना ही उसे अमृता पर गुस्सा आता।
उसे एक बार भी इस बात का ख्याल नहीं आता कि इसमें अमृता का क्या दोष है? कामिनी आंटी और उसके पिता के बीच सम्बन्ध दोनों की मर्जी से था।ये सम्बन्ध उसकी माँ की नजरों में सिर्फ लस्ट था पर धीरे -धीरे वह जान गया था कि उन लोगों में सच्चा प्रेम था।कामिनी आंटी की हत्या के बाद पिता की मानसिक स्थिति देखकर उसे यह अहसास हुआ।
अमृता के प्रयास से अब उसके पिता स्वस्थ दिख रहे हैं।कामिनी आंटी की वसीयत ने उन्हें न केवल अमृता का संरक्षक नियुक्त किया है बल्कि वे उनकी कम्पनी के प्रबंधक और मैनेजर दोनों बन गए हैं।उन्हें अपने काम के लिए अच्छी- खासी रकम भी निर्धारित है।कामिनी आंटी जानती थीं कि उसके पिता समर के पास अपना कोई काम नहीं है जबकि उन पर उनके परिवार की जिम्मेदारी है,इसलिए उन्होंने उनकी आय की समुचित व्यवस्था न केवल अपने जीते- जी की थी बल्कि मरकर भी कर गई थीं।अगर वे अपनी सम्पत्ति में उन्हें हिस्सा देतीं तो एक तो जग -हँसाई होती ,दूसरे उसके पिता समर के स्वाभिमान को चोट पहुँचती। वे उस हिस्से को कामिनी आंटी का अहसान या दया समझकर स्वीकार नहीं करते।
कामिनी आंटी कितनी अच्छी तरह उसके पिता को समझती थीं।यह समझ बिना प्रेम के नहीं आ सकती।कामिनी आंटी ने कभी उसकी माँ लीला का घर नहीं तोड़ा,न उनको उनके बच्चों से अलग किया।जब भी वह उनसे मिला,उन्होंने उसे खूब प्यार दिया। अपनी माँ और पिता के बीच दूरी तो उसने छोटी उम्र से ही देखी है,इस दूरी का कारण कामिनी आंटी नहीं थीं।वह तो बहुत बाद में उनकी जिंदगी में आई थीं ।
वह अपने पिता को भी कामिनी आंटी से रिश्ते की वज़ह से गलत नहीं कह सकता था।रौनक अंकल की मृत्यु के बाद कामिनी आंटी बहुत अकेली पड़ गई थीं।उसके पिता ने उन्हें संभाला।उन्हें फिर से जीने के लिए सहारा दिया।एक साथ काम करने और दुःख- दर्द शेयर करते उनमें प्यार हो गया होगा।यह स्वाभाविक भी है।कामिनी आंटी तो अकेली थीं ही।उसके पिता भी तो मन से अकेले थे।दो अकेलों ने एक दूसरे का साथ चुन लिया तो यह कोई अपराध तो नहीं था।
ऐसा नहीं कि उसकी माँ की सोच गलत है।उनकी दृष्टि से कामिनी आंटी और उसके पिता के बीच का प्यार गलत था। दरअसल चीजों को देखने का सबका नजरिया अलग होता है।एक ही चीज किसी के लिए गलत हो सकती है तो किसी के लिए सही।रिश्तों के विषय में भी परिभाषाएं बदलती रहती हैं ।
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होटल के सामने कार से उतरती अमृता को देखते ही अमन खुश हो गया।अमृता ने उसकी पसंद की ड्रेस पहन रखी थी।रेड कलर के डिजाइनर गाउन में अमृता गजब की सुंदर लग रही थी।उसने बालों को कर्ल कराया था।चेहरे पर हल्का -सा ही मेकअप था।अमन ने भी रेड कलर का कोट पहना था।वह भी बहुत हैंडसम लग रहा था।
घर से बाहर आते ही अमृता ने अपना गुस्सा थूक दिया था।उसने सोच लिया था कि आज वह टेंशन वाली कोई बात नहीं करेगी।हो सकता कि यह अमन से उसकी आखिरी मुलाकात हो।अमन को कहाँ पता होगा कि वह लंदन जा रही है और कई वर्षों बाद लौटेगी।समर अंकल अपने घर पर उससे जुड़ी कोई बात शेयर नहीं करते।
"कैसे हो?"अमृता ने अमन को सामने देखकर पूछा।
"उनको देखे जो आ जाती है मुंह पर रौनक
वे समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।"
यह शेर पढ़ते हुए अमन हँस पड़ा।
होटल रोशनी से जगमगा रहा था।दिल के शेप में उसकी सजावट की गई थी।प्रेमियों की जोड़ियां बाहों में बाहें डाले इधर -उधर टहल रही थी।कुछ जोड़े होटल के भीतर जा रहे थे तो कुछ होटल के लान में बैठे एक -दूसरे की आंखों में खोए हुए थे।
अमन ने अमृता की ओर अपना हाथ बढ़ाया।अमृता ने उसका हाथ थाम लिया।दोनों होटल के उस हॉल में पहुंचे,जहाँ वैलेंटाइन डे की पार्टी का आयोजन था। अमन के बहुत सारे मित्र अपनी प्रेमिकाओं के साथ आए हुए थे। कुछ डांस फ्लोर पर मधुर रोमांटिक गीतों की धुन पर थिरक रहे थे।कुछ अपनी- अपनी कुर्सियों पर बैठे पसंदीदा पेय पी रहे थे।कुछ मनपसंदीदा स्नेक्स खा रहे थे। अमन और अमृता को देखकर सबने हुर्रे कहकर शोर मचाया। विशेष म्यूजिक बजने लगा और उन पर गुलाब के फूलों की वर्षा होने लगी। अमृता भौंचक थी।अमन को कैसे विश्वास था कि वह आएगी ही।उसने कितना अच्छा इंतज़ाम किया था।अमन ने अमृता से अपने साथ डांस करने का आग्रह किया।पहले तो अमृता ने ना -नुकूर किया फिर मान गई।हॉल की रोशनी हर मिनट पर बदल रही थी। जब वे दोनों डांस फ्लोर पर पहुँचे तो रोशनी सिर्फ फ्लोर पर सिमट गई और हॉल में अंधेरा छा गया।अमन ने जब अमृता की कमर में अपनी बाहें लपेटीं तो वह सिहर उठी।उसने अमन के कंधे सिर रख दिया अब रोमांचित होने बारी अमन की थी।दोनों एक- दूसरे की आंखों में खोए डांस करते रहे।दोनों की सांसें एक- दूसरे को सुनाई दे रही थीं।
एकाएक बिजली चली गई।कुछ पलों के लिए फ्लोर पर अंधेरा छा गया।इस अंधेरे का लाभ उठाकर अमन ने अमृता के होंठ चूम लिए।अमृता थरथरा उठी।
तब तक रोशनी वापस आ चुकी थी।अमृता संकोच से गड़ी डांस फ्लोर से उतर आई और हॉल की एक कुर्सी पर बैठ गई।अमन भी आकर उसके पास वाली कुर्सी पर बैठ गया।उसने अमृता की ओर देखा तो उसको नजरें झुकाए देख वह डर गया।
"सॉरी अगर तुम्हें बुरा लगा हो तो...।"अमन ने हाथ जोड़े।
"ये नहीं करना चाहिए था तुम्हें..."अमृता के स्वर में नाराज़गी थी।
"अब मैं चलूँगी।मैंने अंकल से जल्दी लौटने का वादा किया है।मेरा ड्राइवर मेरी प्रतीक्षा कर रहा होगा।"
"थोड़ी देर और रुको ना,अभी तो तुमने कुछ खाया -पिया भी नहीं।"
"नहीं,अमन मैंने तुम्हारे कहने का मान रख दिया।अब चलना चाहिए।"
"ठीक है चलो ,तुम्हें कार तक छोड़ देता हूँ।उम्मीद है कि फिर जल्द ही मुलाकात होगी।"
"शायद......।"