तमाचा - 31 (अनुभव) नन्दलाल सुथार राही द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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तमाचा - 31 (अनुभव)

"जब देंखूं बन्ना री लाल-पीली अँखियाँ...." एक माँगलियार लोक कलाकार जैसलमेर में सुनहरे पत्थरों से बनी पटवों की हवेली के पास यह गीत गा रहा था। जिसके आसपास खड़े कुछ टूरिस्ट राजस्थानी लोक गीत-संगीत का आनंद ले रहे थे।
विक्रम मिस्टर गिल एवं मिसेज गिल को इस गीत के लिरिक्स का अर्थ बता रहा था। सोनम ,जगजीत और बिंदु पास में ही दुकान से कुछ कलात्मक वस्तुओं को देखने में लगे थे। सोनम कालबेलियाई शैली में बना एक लहंगा देखने में मशगूल हो गयी । पास में ही जगजीत अपने दोनों हाथ अपनी जींस के आगे की जेबों में रखकर ,अपने पैरों की एड़ी को ऊपर नीचे करके,चोर नजरों से बिंदु को निहार रहा था। वह अपने अंदर उससे बात करने की हिम्मत जुटा रहा था। बिंदु अपने दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में गूँथलाती हुई, यह अहसास कर रही थी कि जगजीत उसको बार-बार देख रहा है। पर बात नहीं कर रहा था। बिंदु कभी सोनम की ओर देखती जो लहंगे देख रही थी तो कभी अपनी आँखें नीचे झुका लेती। लड़कियों में एक तरह का सेंसर होता है कि उसको पता चल जाता है ,कौन उसको किस तरह से देख रहा होता है।

"ये लहंगा कैसा है बिंदु? ज़रा देखो तो! " सोनम ने एक लहंगा उसकी ओर करते हुए बोला।
"दिख तो अच्छा ही रहा है।" बिंदु ने अपने कोमल स्वरों को स्फुटित करते हुए कहा।
"तुम देखो न कोई? मुझे तो पता नहीं यहाँ का। तुम्हें ज्यादा नॉलेज होगा इसका।"
"नहीं.. मैं भी आती नहीं ज्यादा बाज़ार, आज पापा ले आये साथ में।" बिंदु ने अपने स्वर में कुछ हल्कापन लाते हुए कहा।
"अच्छा! ओके फिर भी देखो इनमें से कोई अच्छा हो तो।"
सोनम ने आग्रहपूर्वक कहा।
"हाँ, देखती हूँ।" कहते हुए बिंदु भी उसका साथ देने लगी।


"वाह, यह बहुत अच्छी लग रही है।" अचानक जगजीत बिंदु के हाथ में एक ड्रेस देखकर बोला और बिंदु की तरफ़ देखकर हल्का सा मुस्कुरा दिया।
सभी को पसंद आ जाने के बाद सोनम उसको पैक कराने लगी तभी जगजीत मौका देखकर बिंदु से बोलता है।"आप क्या करते हो जी?"
"मतलब...अ... कुछ नहीं .." बिंदु ने उसके द्वारा अचानक पूछने पर हिचकिचाते हुए बोला।
"कुछ तो करती होगी? मतलब स्टडी में कुछ चल रहा है?"
जगजीत ने फिर अपने प्रश्न को सुलझाते हुए वापस पूछा।
"नहीं , स्टडी नहीं करती । बस घर पर ही रहती हूँ। और आप?" बिंदु ने कुछ संभलते हुए बोला।
"मैं तो अभी नीट के लिए तैयारी कर रहा हूँ। वैसे एक बात बोलूं आपको बुरा मत मानना जी।" जगजीत ने अपने अचेतन मन की बात चेतन में लाने से पहले , अपनी सुरक्षा का बंदोबस्त पहले से करते हुए कहा ताकि उसको गुस्सा न आये।
"नहीं नहीं.. ऐसी कोई बात नहीं। बोलो आप क्या बात है?"
बुरा न मानने वाली कहकर, जगजीत ने उसके मन में जिज्ञासा उत्पन्न कर ली।
"आप...हो गई शॉपिंग चले अब?" दिलजीत ने देखा कि सोनम आ गई है, तो उसने अपनी बात बदलते हुए कहा।
बिंदु ने देखा कि सोनम के आने पर दिलजीत अपनी बात कहने से रुक गया है। फिर उसके मन में भी उसकी बात सुनने की इच्छा होते हुए भी वह संकोच से उसे कुछ नहीं पूछकर उनके साथ चल दी।


झरोखे और उत्तम कलाकृतियों को देखकर मिस्टर और मिसेज गिल अचंम्भित हो रहे थे। सोनम अपनी मस्ती में मस्त थी । विक्रम उन्हें इसके इतिहास और कला के बारे में बता रहा था। पर जगजीत और बिंदु दोनों की दिल की धड़कने तेज थी। दोनों एक दूसरे के बारे में ही सोच रहे थे कुछ ही देर में उनको बात करने का एक मौका मिल ही गया। जब बाकी सब आगे वाले कक्ष में चले गए और बिंदु एक कक्ष में एक चित्र को देखकर रुक गयी तभी जगजीत भी वहाँ आकर रुक जाता है।
"बहुत सुंदर।" जगजीत ने बिंदु की और देखकर बोला।
"क्या?" बिंदु ने अपने पीछे से अचानक जगजीत द्वारा ऐसा बोलने पर अपनी मासूम हँसी के साथ बोला।
"यह चित्र। " जगजीत ने अपने आपको कुछ संयमित करते हुए कहा।
"हाँ ..वो तो है। " वैसे आप क्या बोल रहे थे ? बीच में ही रुक गए।" बिंदु ने अपने मन में चल रही जिज्ञासा की आंधी को शांत करने हेतु बोला।
"मैं...अम्म्म्म... यही की बहुत सुंदर ..."
"क्या? सुंदर!"
"यही की बहुत सुंदर हो आप भी।"
"अच्छा जी।"
"हाँ जी।" बिंदु ने जब अपनी मुस्कान के साथ अच्छा जी बोला तो जगजीत थोड़ा खुल सा गया।
"सुंदर तो मैं हूँ। वैसे थैंक यू जी। "
"वेलकम जी। वैसे क्या हम बात कर सकते है?"
"कर ही तो रहे है।"
"हाँ वो तो है ही, पर.."
"पर क्या?"
"अगर मोबाइल नंबर मिल जाते तो , फिर कभी बात हो जाया करेगी।"
"अच्छा! मोबाइल पर भला क्या बात करनी है। अभी कर लो। " बिंदु ने वक्रोक्ति लहजे में कहा।
"चलो कोई बात नहीं जी। अब आपको नहीं करनी है तो रहने दो।" जगजीत ने प्रत्युत्तर देते हुए कहा।
"ओहो! लगदा है तुस्सी नराज हो गए हो?" बिंदु ने हिंदी के साथ पंजाबी मिक्स करते हुए बोला।
"अरे वाह! पंजाबी।"
"हाँ जी थोड़ी बहुत बोल देते है। आपके पंजाबी गाने सुनकर इतनी तो सीख ही गए।"
"अच्छा जी।"
"हाँ जी। चलो ले लो नम्बर और तो कुछ नहीं पर थोड़ी सी पंजाबी तो सीख ही जाएँगे आपसे।नाइन...." बिंदु बोल ही रही थी तभी वो हुआ जो अक्सर लव स्टोरियो के पनपने से पहले होता है। सोनम उनको बुलाने आ गयी।
"बिंदु तू यहाँ रुक गयी? उधर सब आगे निकल गए। होर जगजीते तुस्सी वी इधर तो । हुण चलो बाहर । सब वेट कर रहे होंणगे।"


बिंदु पहली बार ऐसे किसी लड़के के साथ बात कर रही थी। उसको जगजीत से बात करना अच्छा लग रहा था। उसके मन ने सदैव अपनी इच्छाओं को दबाया ही था।
पर आज उसने अपनी मन की मानी। लेकिन वह अभी जगजीत को मोबाइल नंबर नहीं दे पाई। कुछ ही देर में मिस्टर एवं मिसेज गिल विक्रम के साथ हॉटेल की और चले गए।
बिंदु के लिए यह पहला अनुभव था। उसका मन अभी इस अनुभव को जारी रखने का था। लेकिन अभी उसको खबर नहीं थी कि यह अनुभव का चक्कर उसको कौनसा नया अनुभव देने वाला था।

क्रमशः....