अब तक सोनिया की माँ माया को भी इस दुर्घटना की ख़बर मिल चुकी थी और वह अस्पताल की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए तेजी से ऊपर आ रही थीं। रोहन ऑपरेशन थिएटर के बाहर खड़ा इंतज़ार कर रहा था। वह कभी अपनी कलाई में बंधी घड़ी को देखता जो बता रही थी कि समय कितना महत्वपूर्ण है। कभी उस लाल बल्ब की ओर देखता जो बता रहा था कि अभी और समय बाकी है; मेरी ड्यूटी अभी ख़त्म नहीं हुई है। इसी बीच माया पर नज़र पड़ते ही रोहन की बेसब्री, उसकी चिंता का बाँध फट पड़ा और उसकी आँखों से तूफ़ान बन कर बह निकला।
वह दौड़ कर माया के पास पहुँच गया और बोला, "मम्मी जी देखो ना यह क्या हो गया हमारी सोनिया ..."
"डरो नहीं रोहन हिम्मत से काम लो भगवान चाहेंगे तो सब अच्छा ही होगा।"
"लेकिन मम्मी जी हमारा बच्चा ..."
"बच्चा ... ये क्या कह रहे हो रोहन तुम?"
"हाँ मम्मी जी कल शाम ही डॉक्टर ने हमें यह खुश ख़बर दी थी। सोनिया कह रही थी कि शाम को मम्मी के पास जाकर उन्हें बताएंगे फ़ोन पर नहीं। वह कह रही थी कि वह आपकी ख़ुशी अपनी आँखों से प्रत्यक्ष देखना चाहती है।"
हालात के गंभीर थपेड़ों को अपने जीवन में अनुभव कर चुकी माया ने इतना सुनकर भी ख़ुद की भावनाओं और दर्द पर नियंत्रण करते हुए कहा, "रोहन हमने कभी किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा है। भगवान हमारे साथ कुछ भी ग़लत नहीं करेंगे।"
उधर डॉक्टर सोनिया के ऑपरेशन में लगे हुए थे। टक्कर होते समय सोनिया का हाथ अपने पेट के सामने अपने आप ही आ गया था। शायद यह एक माँ बनने वाली स्त्री का अपने बच्चे की रक्षा करने का एक प्रयास था जो अनजाने में ही उसने पूरा कर दिया था; लेकिन सोनिया की कोहनी की हड्डी टूट गई थी। इस समय उसी का ऑपरेशन चल रहा था; लेकिन रोहन तो सोनिया के साथ-साथ अपने होने वाले बच्चे के लिए भी परेशान था। लगभग दो घंटे के अंतराल के बाद लाल बल्ब जिस पर रोहन और माया लगातार नज़रें गड़ाए हुए थे वह बंद हो गया। शायद उसकी ड्यूटी अब ख़त्म हो गई थी।
डॉक्टर के बाहर आते ही रोहन उनकी तरफ लपका और पूछा, "डॉक्टर साहब कैसी है मेरी सोनिया?"
डॉक्टर ने रोहन की पीठ थपथपाते हुए कहा, "डरो नहीं तुम्हारी पत्नी अब ठीक है। ऑपरेशन भी सफलतापूर्वक हो गया है।"
"डॉक्टर साहब, हमारा बच्चा?"
"रोहन, एक माँ ने अनजाने में ही अपने बालक को बचाने के लिए अपना हाथ तुड़वा लिया। यदि भगवान चाहेंगे तो वह ठीक से विकसित होगा। अभी बहुत कम समय हुआ है हमें सावधानी तो अवश्य ही रखनी होगी,” इतना कह कर डॉक्टर चले गए।
कुछ समय के बाद सोनिया को कमरे में शिफ्ट कर दिया गया। अब तक रोहन के माता-पिता भी इस हादसे की ख़बर सुनते ही अस्पताल पहुँच गए। उन्हें भी बस यही लग रहा था कि भगवान उनकी बहू को बचा ले। दो-तीन घंटे के बाद जब उसे होश आया तो उसके सामने आँखों में आँसू लिए रोहन और माया के साथ ही साथ रोहन के माता पिता भी दिखाई दिए। उन्हें देखते ही सोनिया की आँखें भी आँसुओं को अपने अंदर कहाँ रोक पाई थीं।
रोहन की माँ ने आगे बढ़ कर सोनिया के माथे का चुंबन लेते हुए कहा, “सोनिया बेटा जल्दी से ठीक होकर घर आ जाओ अब कुछ दिन हम भी तुम्हारे साथ ही रहेंगे।”
अब सब कुछ ठीक था पर रोहन के मन में बार-बार यह प्रश्न उठ रहा था कि आख़िर टक्कर मारने वाला कौन था? वह सोच रहा था कि सोनिया और वह तो सड़क के बिल्कुल किनारे पर चल रहे थे। कोई ट्रैफिक भी नहीं था फिर कैसे ...?
सोनिया भी अंजान थी उसने भी निर्भय का चेहरा नहीं देखा था। वह तो उस समय रोहन के साथ अपने गर्भ में आ चुके बच्चे की ख़ुशी के एहसास को महसूस कर रही थी।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः