दिल है कि मानता नहीं - भाग 4 Ratna Pandey द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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दिल है कि मानता नहीं - भाग 4

सोनिया के इंकार करने के बाद, उसके अगले दिन से निर्भय ने कॉलेज जाना बंद कर दिया। एक महीने बाद वह सीधे परीक्षा देने के लिए ही गया। कॉलेज पहुँचते ही उसने सामने से आती सोनिया को देखकर अपनी आँखों को मसला, फिर देखा, फिर मसला, फिर देखा; पर वह जो देख रहा था, वह आँखों का धोखा नहीं सच्चाई थी। निर्भय यह सच्चाई देखकर टूट गया। उसकी आने जाने वाली साँसें जिसमें वह सोनिया को महसूस करता था उन साँसों में से सोनिया उसे बाहर कहीं दूर जाती हुई दिखाई दे रही थी। सोनिया का विवाह हो चुका था। एक माह की छोटी सी अवधि में इतना बड़ा फेर बदल, इतना बड़ा निर्णय, नहीं-नहीं यह नहीं हो सकता।

सोनिया के हाथों में हरी-हरी चूड़ियाँ, गले में बड़ा सा मंगलसूत्र, पाँव की उंगलियों में बिछिया, सर पर बड़ी सी लाल बिंदी थी। बालों में मोगरे के फूलों की वेणी अपनी ख़ुश्बू बिखेर रही थी। निर्भय की आँखें फटी की फटी रह गईं। वह ऊपर से नीचे तक उसे तथा उसके श्रृंगार को तक रहा था। उसे इस समय सोनिया का यह रूप देख कर उससे नफ़रत हो रही थी। उसके इस सुहागन के रूप में निर्भय को अपनी हार दिखाई दे रही थी। बार-बार उसके मन में एक ही प्रश्न आ रहा था, आख़िर क्यों, आख़िर क्यों सोनिया ने उसका प्यार ठुकरा दिया? उसके बेमिसाल प्यार को तड़पने के लिए छोड़ दिया।

निर्भय को फिर से चक्कर आने लगे, तनाव के कारण ब्लड प्रेशर बढ़ने लगा और वह गिर गया।

सोनिया के पास सहेलियों की भीड़ बढ़ती ही जा रही थी। बधाइयां देने वाली बहुत लड़कियाँ उसके चारों तरफ उसे घेर कर खड़ी थीं। सोनिया तो निर्भय को देख ही नहीं पाई; लेकिन कुणाल तो उसके साथ ही था। उसने तुरंत ही प्यून से कह कर निर्भय को अस्पताल पहुँचाया और ख़ुद पेपर देने अपनी क्लास में चला गया।

डॉक्टर ने निर्भय को दवाइयाँ देकर, दो-तीन घंटे मुआयना करने के बाद, ब्लड प्रेशर सामान्य अवस्था में लाकर उसे घर जाने की अनुमति दे दी। तब तक कुणाल भी पेपर देकर सीधे अस्पताल आ गया। निर्भय अब होश में था पर उसका दिल टूट चुका था। उसकी आँखों में आँसू सूख गए थे। अब वह एक अलग ही अंदाज़ में दिखाई दे रहा था।

कुणाल ने पूछा, "कैसा है यार?" 

"बिल्कुल ठीक हूँ, चल घर चलते हैं।"

उसके बाद वे घर चले गए, रास्ते भर निर्भय चुप था।

कुणाल उसे आज भी समझा रहा था, "बस निर्भय अब भूल जा उसे, जब उसे तेरे लिए रत्ती भर भी हमदर्दी नहीं तो तू क्यों उसके लिए दीवाना हो रहा है। रात को मैं तेरे घर आ जाऊँगा फिर हम मिलकर पढ़ाई करेंगे। तेरा आज का पेपर तो छूट गया है पर अब आगे के पेपर संभाल लेना। काश तू ख़ुद पर नियंत्रण रख पाता पर तू तो उसे देखते से बादल के समान फट कर गिर ही पड़ा।" 

अब निर्भय बिल्कुल पहले जैसा नहीं रहा था। जहाँ वह दिन के पूरे 24 घंटे प्यार के एहसास के साथ जीता था। वहीं अब 24 घंटे उदासी, दुःख और अपमान की आग में जलने लगा। उसका मन बार-बार यही सोचता कि क्या कमी थी उसके प्यार में और क्या कमी थी उसमें? क्यों इतनी बेरुखी से सोनिया ने उसके प्यार का अपमान किया। अब वह उसके प्यार के बिना जी नहीं पाएगा। वह उसके तन को पा ना सका तो क्या हुआ लेकिन उसकी छवि को हमेशा अपने दिल में बसा कर रखेगा, जीवन की अंतिम साँस तक। सोनिया उसके ख़्यालों से कैसे दूर जाएगी। वह उसे कभी जाने ही नहीं देगा। वह अपने आपको साबित करके दिखाएगा और अपने प्यार को हमेशा ज़िंदा रखेगा; उससे मिले बिना, उसे देखे बिना और उसे पाए बिना।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः