Dil hai ki maanta nahin - Part 6 books and stories free download online pdf in Hindi

दिल है कि मानता नहीं - भाग 6

शाम को निर्भय जब घर आया तो श्रद्धा को देखकर उसने कहा, “अरे जीजी तुम अचानक?”

“अचानक ही आना पड़ा निर्भय, मैं तेरे लिए कुछ लाई हूँ।”

“क्या लाई हो जीजी,” कहते हुए निर्भय आकर श्रद्धा के गले से लग गया।

“यह देख निर्भय, यह तस्वीर कैसी है?”

“किसकी तस्वीर जीजी?”

“अरे पागल यदि तुझे पसंद हो तो मैं इसे अपनी भाभी बना सकती हूँ।”

“मुझे कोई तस्वीर नहीं देखनी,” कहते हुए निर्भय अपने कमरे में चला गया।   

सुबह जब निर्भय उठा तो आज वही दिन था जिस दिन, तीन साल के लंबे इंतज़ार के बाद उसने सोनिया के सामने अपने प्यार का इज़हार करते हुए उसके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था। आज पूरा एक वर्ष बीत गया था और निर्भय बहुत ही ज़्यादा परेशान था। उसे बार-बार वह दिन याद आ रहा था। वह इतना परेशान था कि उसने आज सुबह से कुछ ज़्यादा ही शराब पी ली और नशे की हालत में बाइक उठाकर घर से बाहर निकल गया।

आज पहली बार निर्भय उस रास्ते पर निकल गया, जिस रास्ते पर सोनिया की ससुराल थी। इतने दिनों में वह कभी उस तरफ़ नहीं गया था; पर आज उसका मानसिक संतुलन बहुत ही बुरी तरह से बिगड़ गया था। निर्भय आज बेचैनी में सोनिया की एक झलक पाने के लिए बार-बार सोनिया के घर के सामने चक्कर लगा रहा था। वह सोच रहा था आज तो सोनिया को देख कर ही रहूँगा। आज उसकी यही मंशा थी। भाग्य ने आज उसका साथ भी दे दिया। सोनिया अपने पति रोहन के साथ दूर से आती हुई निर्भय को दिखाई दे रही थी। निर्भय की धड़कनें समंदर की लहरों की तरह उछल रही थीं। 

सोनिया और राहुल शायद टहलने निकले हुए थे और हाथ में हाथ डाले एक दूसरे की तरफ देख कर बातें करते हुए दुनिया की सुध बुध भूल कर अपनी मस्ती में चले आ रहे थे। रोहन और सोनिया के जीवन में हर तरह की ख़ुशी थी।

निर्भय ने सोनिया का हाथ रोहन के हाथों में देखा तो उसकी आँखें वहीं पर अटक गईं और वह सोचने लगा कि यह हाथ तो उसके हाथों में होना चाहिए था। शराब के नशे में निर्भय की आँखें कहीं और तथा दिमाग कहीं और था। उसने अपनी कलाई और उंगलियों से एक्सीलेटर को घुमा दिया। बाइक का संतुलन बिगड़ गया और निर्भय की बाइक सीधे जाकर सोनिया के पेट से जा टकराई।

जोर की टक्कर लगते ही सोनिया गिर पड़ी और गिरते ही वह बेहोश हो गई। रोहन घबरा गया उसने तुरंत सोनिया को उठाने की कोशिश की; लेकिन उससे पहले उसने निर्भय की ओर देखा जो कि बाइक के साथ घिसटता हुआ अब भी रास्ते पर जा रहा था और कुछ ही देर में एक जोर की आवाज़ आई जो उसकी बाइक के गिरने की थी। रोहन सोच रहा था क्या करूँ एंबुलेंस को फ़ोन करके बुलाऊँ या उस इंसान की बाइक का नंबर देखूँ। कई सवाल उसके मस्तिष्क में घूम गए पर सही समय पर लिया गया सही निर्णय यही था कि वह अपनी पत्नी को जल्दी से जल्दी अस्पताल पहुँचा दे।

कुछ लोग भी अब तक एकत्रित हो चुके थे। कुछ सोनिया के पास तो कुछ निर्भय के पास। निर्भय भी बेहोशी की हालत में था, कुछ लोगों ने उसे भी अस्पताल पहुँचा दिया। कुणाल को घटना की ख़बर मिलते ही उसने सरस्वती को भी फ़ोन करके बताया और उन्हें लेकर वह अस्पताल पहुँच गया। निर्भय के एक पाँव की हड्डी टूट चुकी थी और सोनिया ऑपरेशन थिएटर में अपने पेट में जन्म ले चुके बच्चे के साथ जीवन और मौत के बीच संघर्ष कर रही थी।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः

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