SUDESH - 4 ANKIT YADAV द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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SUDESH - 4

सुदेश --4


' हाँ पापा, आज मैथ का टेस्ट है, ' ट्यूशन से आने में थोड़ा लेट हो जाएगा, वो टेस्ट देर, शाम तक चलेगा न। मैं आते वक्त कुछ खाने को भी लेते आऊंगी, अदिति ने राजेश को शांत करते हुए कहा जो आज कुछ चिंतित दिखाई पड़ रहा था। राजेश को स्कूल स्पीच की कोई जानकारी न थीं। अदिति जैसे ही ट्यूशन के लिए निकली, उसे एक ब्लू शर्ट पहने एक लड़का उसका पीछा करते दिखाई दिया। वो पहचान गई थी। कहने को अदिति सिर्फ टप्पू की प्रेमिका थी, लेकिन उसकी बड़े-बड़े गुंडों से बड़ी पहचान थी। इसकी वजह उसके सौंदर्य को माने या उसके व्यवहार को, ये आप पर है।
टेस्ट आज कुछ अच्छा नहीं हुआ था। सिर्फ आधा ही अदिति attempt कर पाई थी। रात का अंधेरा भी घना होता जा रहा था, ऊपर से लाइट भी नहीं थी। सहसा उसे अपने पीछे साया देखा, मुड़ी तो कोई नहीं, फिर छाया, फिर कोई नहीं, फिर छाया, फिर कोई नहीं, फिर छाया। लेकिन अबकी बार उसे वही ब्लू शर्ट पहने बेइज्जत समीर दिखा। उसने फट जोर से अदिति का हाथ पकड़ उसे घसीटने लगा। घसीटते-घसीटते के अंधेरे में सुनसान गली में ले गया। वहां उसके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की। इधर अचानक कुछ ऐसा हुआ कि समीर की आंखें फटी की फटी रह गई। अदिति ने अपनी बंदूक निकाल ली थी और जोर से उसके सिर पर मारी। समीर लहूलुहान होकर वहीं गिर पड़ा।
' आज तो इसके पापा को बता कर ही दम लूंगी। पहले सुदेश मैम और आज मुझे, इस की हद पार हो गई है। लेकिन,क्या इसके पापा को परेशान करना ठीक होगा। वह उनकी सुनेगा भी नहीं। हां, पापा को बताने का रहने देती हूं। अपने हिसाब से इसका निपटारा करूंगी। कल स्कूल में इसकी ऐसी मरम्मत होगी कि याद रहेगा '।
घर आ चुका था। अदिति पसीने से तर घर पहुंची। घर पहुंच कर उसने सामान्य व्यवहार करने की चेष्टा की। खाना आज उसे बेस्वाद सा प्रतीत हो रहा था।
सुदेश का जन्मदिन आने वाला था। सुदेश को इसमें कोई खास रुचि न थी, पर मनीष को इसमें गहरी रुचि थी। दरअसल मनीष सुदेश को मन ही मन चाहने लगा था। उसे जब मौका मिलता वह उसके करीब आने की चेष्टा करता। सुदेश को भी इसमें कोई आपत्ति न थी।
' कहीं नहीं पापा, कोई लड़ाई नहीं हुई, वो रास्ते में एक औरत को कुछ बदमाश छेड़ रहे थे, तो मैंने उसे बचाने की कोशिश की। इसी कोशिश में मुझे ये चोट आ गई।
समीर को यह झूठ बोलते समय तनिक भी लज्जा न आ रही थी क्योंकि वो झूठ का आदी हो चुका था। जिस लड़की को वह खुद छेड़ रहा था, उसके बजाने की बात कहकर उसके मन में जरा भी द्वन्द्व न था।
'happy birthday Mam . '
'' Happy birthday "
सभी बच्चे सुदेश के जन्मदिन पर पधारे। मजबूरी में समीर को भी न्योता देना पड़ा था। क्योंकि उसके पिता से गहरे रिश्ते जो थे। लेकिन न्योता न देने पर भी वह कौन सा रुकने वाला था। हालांकि अदिति व टप्पू ने उसे जल्दी केक खिलाकर रफा-दफा कर दिया।
लेकिन मनीष आज कुछ और करने की फिराक में था। सुदेश का मन भी चंचल हुए जा रहा था। मिस सुदेश मनीष को केक खिलाने लगी तो मनीष ने अपना पक्ष समक्ष रखते हुए कहा ' Happy birthday dear ' . ' Happy b'day dear का मंतव्य सुदेश समझ गई थी। उसने फौरन मनीष को ऊपर बुलाया और उसके गले से लिपट गई। दोनों के होंठ एक हो चुके थे, दोनों का स्वाद एक हो चुका था, दोनों का शरीर एक होने की प्रक्रिया में था। प्रक्रिया पूर्ण होती उससे पहले अदिति ने ये सारा दृश्य देखा। उसे जरा भी आश्चर्य न हुआ बल्कि ये प्रक्रिया निभाने की इच्छा जो प्रकट हुई। टप्पू तो ऐसे मसलों में सहभागी बनने को तैयार ही रहता है। अदिति और टप्पू ने भी होंठ एक करना चाहे, लेकिन अदिति का मन नैतिक- अनैतिक के बंधन से मुक्त न हो पाया था। उसका अंतर्मन सही गलत के प्रतिमान बनाने की चेष्टा में था। उसका मन अपने विचारों को सही साबित करने के लिए नैतिक पक्ष बुन रहा था। टप्पू को इससे चिढ़ हो रही थी की वो क्यों इतना सोच रही थी।
टप्पू ये न समझता था कि ये कृत्य पर समाज पुरुष को तो मर्द साबित करने लगता है और औरत को चरित्रहीन। टप्पू अदिति के लायक था भी नहीं, पागलपन से भगवान की भक्ति व असीम वासनाएं उसके दोहरे चरित्र की प्रतीत मात्र थी। सुदेश आज बहुत कुछ कर चुकी थी। सहमति का यही फायदा होता है कि सुदेश के मुख पर तनिक भी दुख न था। उसका मुख कांति से लहलहा रहा था।