सुदेश - 2
सुदेश के घर से वही 50 मीटर चलकर दोनो फाटक पार करके करीब 200 मीटर चलने पर left side मे एक मोड आता है जहां से आदर्श कॉलोनी शुरू होती हैं। इसी कॉलोनी मे एक युवक रहता है मनीष। मनीष 12 वी कक्षा मे है व अदिति, समीर, टप्पू के ही स्कूल में पढ़ता है। सुदेश भी इसी DPS school में अध्यापिका है। सुदेश ने अभी हाल ही मे स्कूल Join किया है।
होली का त्योहार बस घंटों दूर है। समीर पूरी ताक मे है कि बस इस होली अपनी बात सुदेश को कहदे। टप्पू के रसायन ( horomones) भी उससे कुछ करवाने की कह मैं हैं। रंगों के इस त्योहार में भंग पड़ना निश्चित है।
" Happy holi aunty ji"
" happy holi, same to you sudesh ''
सुदेश आज बिल्कुल नए वस्त्र पहन होली खेलने आए हैं। हालाकि पिता पवन ने उसे मना किया था। लेकिन उसने एक न सुनी। समीर का आज कुछ ओर ही विचार है। पूरी तैयारी जो कर रखी हैं। आज उसने भांग कुछ ज्याया ही पिला दी है।
' अरी सुदेश, तुम भी भांग पिओ ना '
' नहीं आंटी , मुझे सर चढ़ने लगती हैं '
'अरे आज होली है, कुछ न होगा, पिओ पिओ '
' ठिक है आटी,
थोड़ी ही देर में होली का रंग गहरा गया, भांग जो सबके चढ़ गई थी। इसी नशे में सब बेसुध होली खेले जा रहे थे। सबके मन की खिड़कियां खुलती जा रही थी। इसी मे से एक खिड़की टप्पू की खुली, बोला - ' I love you Aditi ' आदिति खुद नशे मे चुर थी। बाली ' । love you Tapu , I love you Samir , l love you . . . . . . . . . ' .
खिड़कियां खुल तो रही थी . लेकिन इनपर कोई ध्यान नही दे रहा था क्योंकि सब कुछ सोचने - समझने की स्थिति मे न थे ।
इधर ये सब हो रहा था कि समीर ने अपना अंतिम पाँसा फेंका । सुदेश को पकड़ एक कोने की तरफ चला । सुदेश बेचारी बेसुध थी। समीर ने सुदेश को गलत छुने की कोशिश ही की कि सुदेश ने दो रहपट्टे उसे दे मारे। सुदेश होश मे न होकर भी होश मे आ चुकी थी।
सुदेश इतनी चरित्रहीन न थी जितना उसे समीर ने समझ रखा था । सुदेश बेशक अपनी माताजी की मृत्यु पशचात थोड़ी बिगड़ गयी थी। गली मे लडको से ठिठुलिया कर लिया करती थी, लेकिन ऐसी उम्मीद समीर से उसे कतई न थी । समीर के पापा अवसर उसके लिए रिश्ते लाया करते थे। लेकिन सुदेश अभी तक उनमें से कोई भी न चुन पाई थी। समीर के ये बर्ताव उसके लिए बेहद असहनीय था। लेकिन वो समीर के पापा की बड़ा इज्जत करती थी, इसी कारण उसने वही मौके पर शोर मचाना उचित ऩ समझा । उसने फट अपनी चुन्नी उठाई और घर की ओर चल दी। उसके ऑखो से अश्नु धारा बह रही थी मानो किसी ने उसे नर्म घाव को चीर दिया हो |
और इधर मोहल्ले के बाकी लोग भी होश मे आने लगे थे। सबको भांग मिलाने वाले व्यक्ति का इंतजार था। इस भांग के चक्कर में कई राज निकले थे। रोहित ने तो समुंद्र को इतनी गालियां दी कि समुंद्र के प्राण सुखने लगे थे। समुंद्र दरअसल कुछ समय पहले रोहित का घर बिकवा रहा था, लेकिन आदतन समुंद्र ऐसे बीज बोता है जिसमे पेड़ नहीं निकला करते। इधर अदिति नशे मे चुर हर किसी को propose करते फिर रही थी। सहसा वो Rajesh से टकराई, Rajesh और कोई नही उसका बाप है, Rajesh ने ऐसा मारा कि उसका सारा नशा उड़ गया । इधर टप्पू खुन के ऑसु रोए जा रहा था कि अदिति मुझे नही समीर को भी चाहती है। लेकिन टप्पू ये नही समझ रहा था कि अदिति केवल उसकी है, नशे मे व्यक्ति कुछ भी कह ही देता है। उसकी आंखें नम भी मानो भविष्य क़ी सारी हसीन कल्पनाएँ एक पल मे चुर हो गई हो।
सुदेश रोते - रोते नहीं रुक रही थी। चाहती तो सब समीर के पापा को बती देती और सही सबक सिखा सकती थी। लेकिन उसने ये न बताने का फैसला किया। दरअसल वो जानती थी कि अगर वो ये बता भी दे , तो समीर को कोई फर्क नही पढ़ना , उसके जितना बेशज्जत आदमी उसकी नजरो मे कोई ओर था भी नही। ऐसा नही है, सुदेश को समीर से कोई नफरत हैं बस बात ये थी कि समीर रात काटने योग्य हैं , जीवन काटने योग्य नही । उसे तो पूर्ण जिंदगी काटने वाले युवक का इंतजार था । सुदेश न चाहते हुए भी मजबूर थी। समीर उसकी ये मजबूरी जानता था । समीर की यह बर्बरता उसे किस रास्ते पर पहुंचती , ये दृश्य देखने योग्य होने वाला है । रात के खाने का समय हो गया था। सुदेश खाने की तैयारियों मे मशगुल हो गई थी।