कल सुबह-सुबह रास्ते में दस सिर वाला हट्टा कट्टा बंदा अचानक मेरी बाइक के आगे आ गया खैर जैसे तैसे ब्रेक लगाई और पूछा ... क्या अंकल 20-20 आँखें हैं ... फिर भी दिखाई नहीं देता जवाब मिला : तमीज से बोलो, हम लंकेश्वर रावण हैं मैंने कहा : ओह अच्छा ! तो आप ही हो श्रीमान रावण एक बात बताओ ये दस-दस मुंह संभालने थोड़े मुश्किल नहीं हो जाते ? मेरा मतलब शैम्पू वगैरह करते टाइम ... यू नो ... और कभी सर दर्द शुरू हो जाए तो पता करना मुश्किल हो जाता होगा कि कौनसे सर में दर्द हो रहा है...? रावण : पहले ये बताओ तुम लोग कैसे डील करते हो इतने सारे मुखोटों से ? हर रोज चेहरे पे एक नया मुखोटा उस पर एक और मुखोटा, उस पर एक और ! यार एक ही मुंह पर इतने नकाब ... थक नहीं जाते ? मैंने झेंपते हुए कहा : अरे-अरे आप तो सिरियस ले गए ... मै तो वैसे ही ... अच्छा ये बताओ मैंने सुना है आप कुछ ज्यादा ही अहंकारी हो? रावण- हाहाहाहाहाहाहा अब इसमे हंसने वाली क्या बात थी , कोई जोक मारा क्या मैंने ? रावण- और नहीं तो क्या...एक कलियुगी इन्सान के मुंह से ये शब्द सुनकर हंसी नहीं आएगी तो और क्या होगा ? तुम लोग साले एक छोटी मोटी डिग्री क्या ले लो, अँग्रेजी के दो-पवरी अक्षर क्या सीख लो, यूं इतरा के चलते हो जैसे तुमसे बड़ा ज्ञानी कोई है ही नहीं इस धरती पर ... एक तुम ही समझदार बाकी सब गँवार ! और मैंने चारों वेद पढ़ के उनपे टीका टिप्पणी तक कर दी ! चंद्रमा की रोशनी से खाना पकवा लिया ! इतने-इतने क्लोन बना डाले, दुनिया का पहला विमान और खरे सोने की लंका बना दी ! तो थोड़ा बहुत घमंड कर भी लिया तो कौन आफत आ पड़ी... हैं? मैं थोडा सा और सकुचाते हुए : चलो ठीक है बॉस,ये तो जस्टिफ़ाई कर दिया आपने, लेकिन ... लेकिन गुस्सा आने पर बदला चुकाने को किसी की बीवी ही उठा के ले गए ! ससुरा मजाक है का ? बीवी न हुई छोटी मोटी साइकल हो गयी...दिल किया, उठा ले गए बताओ ! (एक पल के लिए रावण महाशय तनिक सोच में पड़ गए, मेरे चेहरे पर एक विजयी मुस्कान आने ही वाली थी कि फिर वही इरिटेटिंग अट्टहास ) हाहाहाहाहाहहह लुक हू इज़ सेइंग ! अबे मैंने श्री राम की बीवी को उठाया, मानता हूँ बहुत बड़ा पाप किया और उसका परिणाम भी भुगता ,पर मेघनाथ की कसम-कभी जबरदस्ती दूर...हाथ तक नहीं लगाया,उनकी गरिमा को रत्ती भर भी ठेस नहीं पहुंचाई और तुम ... तुम कलियुगी इन्सान !! छोटी-2 बच्चियों तक को नहीं बख्शते ! अपनी हवस के लिए किसी भी लड़की को शिकार बना लेते हो...कभी जबरदस्ती तो कभी झूठे वादों,छलावों से ! अरे तुम दरिंदों के पास कोई नैतिक अधिकार बचा भी है भी मेरे चरित्र पर उंगली उठाने का ?? फोकट में ही ! इस बार शर्म से सर झुकाने की बारी मेरी थी...पर मै भी ठहरा पक्का इन्सान ! मज़ाक उड़ाते हुए बोला...अरे जाओ-जाओ अंकल ! दशहरा कल ही है, सारी हेकड़ी निकाल देंगे देखना (और इस बार लंकवेशवर जी इतनी ज़ोर से हँसे कि मै गिरते-गिरते बचा !) यार तुम तो नवजोत सिंह सिद्धू के भी बाप हो ,बिना बात इतनी ज़ोर-2 से काहे हँसते हो...ऊपर से एक भी नहीं दस-दस मुंह लेके, कान का पर्दा फाड़ दो, जरा और ज़ोर से हंसो तो ! रावण- यार तुम बात ही ऐसी करते हो । वैसे कमाल है तुम इन्सानो की भी..विज्ञान में तो बहुत तरक्की कर ली पर कॉमन सैन्स ढेले का भी नहीं ! हर साल मेरा पुतला भर जला के खुश हो जाते हो ...घुटन मुझे होती है तुम लोगों का लैवल देख कर...मतलब जानते नही दशहरा का ,बदनाम मुझे हर साल फालतू मे करते हो किसी दिन टाइम निकाल कर तुम सब अपने अंदर के रावण को देख सको तो पता चले की क्या तुम मुझे जलाने लायक हो ?? जलाना छोडो ! तुम आज के तुच्छ इन्सान मेरे पैर छूने लायकभी नही.. बाकी दिल बहलाने को कुछ भी करो और उसके बाद मेरी हिम्मत जवाब दे गयी और मैं पतली गली से निकल लिया ...