Saat fere Hum tere - 37 books and stories free download online pdf in Hindi

सात फेरे हम तेरे - भाग 37

नैना होटल पहुंच कर ही विक्की को बोली की कोई मेरा बर्थ डे सेलिब्रेशन इतना अच्छा करेगा ऐसा सोचा नहीं था पर तुमने किया। विक्की ने कहा हां मैं हर साल तुम्हारा बर्थ डे सेलिब्रेशन ऐसे ही करना चाहता हूं पर तुम क्या चाहती हो? नैना कुछ भी नहीं बोल पाती है और अन्दर रूम जाकर फ्रेश होकर सो जाती है।

नैना के मोबाइल पर विक्की का मेसेज आता है तुम्हारे एक जबाव से मेरी पुरी दुनिया बदल सकती है। इन्तजार में हुं।

नैना कुछ भी जवाब नहीं दे पाती है। फिर एक और सुबह हो जाती है।
माया ने कहा नैना चल जल्दी से वो लोग बहुत बार लौट गए।
नैना उठते हुए कहा अरे बाबा क्यों।आप लोग जाओ।
माया ने कहा अरे बाबा साथ में ही जाएंगे चल अब।

फिर नैना उठकर तैयार हो गई और फिर दोनों नीचे पहुंच गए। विक्की ने कहा लो कचौड़ी और आलू की मसालेदार सब्जी इन्तजार कर रही है। नैना ने कहा हां ठीक है तुम लोग खा लो। विक्की ने कहा हां बिमल और अतुल खा लिए है पर मैं तो तुम्हारा इन्तज़ार में था।
नैना गुस्से से देखने लगी और फिर बोली अरे दीदी तुम भी ना क्यों नहीं खा लिया अब चलो जल्दी खाते हैं।
नैना ने कुछ नहीं कहा।
अतुल ने कहा आज हम सब डालॅ देखने जाएंगे।
नैना ने कहा बच्चों जैसी हरकतें करते हो।
फिर नाश्ता करने के बाद टैक्सी में बैठ गए।

नैना म्यूजियम का नाम सुनकर ही काफी उत्साहित थी कि आखिर आज इतने सालों बाद फिर से तरह-तरह की गुड़ियों को देखने को मिलेगा। माया ने कहा हां हमारा बचपन और फिर कोकिला आंटी और निलेश ने बताया था कि तुम्हारी तो कमजोरी है गुड़ियों पर।

ऐसे पहुंचे डॉल्स म्यूजियम-
डॉल्स म्यूजियम पहुचंने के लिए आप खास मशक्कत नहीं करनी होगी। बस आपको आरटीओ पहुंचना है और गेट नंबर 4 से बाहर निकलते ही आपको डॉल्स म्यूजियम दिखाई दे रहा था। वहां पर प्रवेश द्वार पर टिकट बुक करने के बाद ही अन्दर जाने को मिलता है।

नैना वहां पहुंची तो ऐसा लगा कि बस अपनी सारी गुड़िया उठाऊं और अपने घर ले जाऊं। फिर वहीं बचपन वापस आ जाएं लेकिन ऐसा अब कहां हो सकता है।

बचपन में हर किसी को डॉल्स काफी पसंद होती है चाहे फिर आप हो या फिर मैं। गुड़िया ऐसी चीज है जिसे देखकर बस मन से एक ही बात निकलती है कि "वाह कितनी खूबसूरत और प्यारी डॉल है।" कभी-कभी अपना बचपन याद आता है कि कैसे मां-पापा हमारे लिए मार्केट से गुड़िया लेकर आते थे और तब हम खूब खुश हो जाते थे। ऐसा लगता था मानों पूरी दुनिया अपनी मुट्ठी में कर ली हो। शायद आपको भी याद हो कि हम बचपन में कैसे गुड़ियों से खेलते थे उनके लिए घर बनाते थे। हम उन्हें खिलाते भी थे और सुलाते भी थे मानो वो सच में खाना खाकर सो जाएगी। इसी बात का मां हमेशा फायदा उठाती थी जब हम नहीं खाते थे तो कहती थी, 'खा लो नहीं तो तुम्हारी गुड़ियां को खिला देगें', इस बात में हम झट से खाना खा लेते थे। अब आप सोच रहे होगे कि मैं इतने बचपन की बात क्यों कर रही हूं और वो भी गुड़ियो की। तो मैं बता दूं कि मुझे कुछ ऐसा ही महसूस हुआ था जब मैं 'डॉल्स म्यूजियम' गई।

डॉल्स म्यूजियम का नाम सुनकर ही मैं काफी उत्साहित थी कि आखिर आज इतने सालों बाद फिर से तरह-तरह की गुड़ियों को देखने को मिलेगा। वहां पहुंची तो ऐसा लगा कि बस सारी गुड़िया उठाऊं और अपने घर ले जाऊं। फिर वहीं बचपन वापस आ जाएं लेकिन ऐसा अब कहां हो सकता ये सब बातें नैना सोचने लगी और बहुत ही खुश थी।

शंकर्स इंटरनेशनल डॉल्स म्यूजियम के नाम के इस म्यूजियम स्टोरी भी बहुत ही रोचक है। इतनी बड़े म्यूजियम बनने के पीछे है सिर्फ एक गुड़िया। आपको यह बात जान हैरानी होगी। इतनी सारी डॉल्स का संग्रह पूरी दुनिया में कहीं और नहीं है। भारत एकलौता ऐसा देश है जहां पर इतनी सारी गुड़ियों का म्यूजियम ह

चलोॆ अब बताते है कि आखिर इसके पीछे की कहानी क्या है? एक बार शंकर 50 के आरंभ में हंगरी के राजदूत से मिले थे जहां पर उन्हें एक गुड़िया गिफ्ट की गई। वह इस गुड़िया से इतना ज्यादा अभिभूत हुए कि जब भी वह विदेश जाते तो वहां से एक गुड़िया ले आते थे।

जब ये चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट अपनी बिल्डिंग तैयार कर रहा था तो उस समय गुड़ियों को रखने के लिए एक हिस्सा बनाया गया था। इस म्यूजियम का उद्घाटन 1965 में भारत के राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन ने किया था। उस समय यहां पर एक हजार गुड़िया थीं और आज की बात करें तो 85 देशों की 7000 से भी ज्यादा गुड़िया यहां पर मौजूद है जो कि अब एक इंटरनेशनल पहचान बन चुका हूं

आपको बता दें कि यह म्यूजियम 5184 वर्ग फीट है जो कि 2 बराबर हिस्सों में बटा हुआ है। अब बात करते है पहले हिस्से की तो इसमें विभिन्न देश जैसे कि यूरोपीय देश, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड जैसे देशों की डॉल्स विभिन्न वेशभूषा के साथ रखी है। वहीं दूसरे हिस्से में अफ्रीका, मध्य पूर्व, एशियाई देशों के साथ-साथ भारत के हर राज्य के हिसाब से वेशभूषा में गुड़िया रखी हुई है। उन्हें देखकर पुराने भारत की याद ताजा हो गई कि राज्य के हिसाब से सभी की वेशभूषा कैसा होती था। यहां पर भारत की 150 से ज्यादा वेशभूषा में गुड़िया रखी हुई है।
नैना ने कहा अगर आपको भी गुड़ियों से बहुत प्यार है तो एक बार डॉल्स म्यूजियम घूम आइए। वहां जाकर आपको अपना बचपन जरूर याद आएगा लेकिन इस बात का ध्यान रखना कि वहां डॉल्स सिर्फ देखने के लिए है न कि घर लाने के लिए....

माया ने कहा थैंक यू विक्की आज तुमने फिर से हमें अपना बचपन दे दिया।
विक्की ने कहा हां दीदी थैंक यू।
नैना ने कहा काश मैं सारे गुड़ियों को ले जा पाती।

विक्की ने कहा अब भी खेलने का मन होता है क्या? नैना ने कहा हां बहुत ज्यादा।
विक्की ने कहा ओके।

फिर विक्की ने कहा आप लोग थोड़ी देर रुको मैं अभी आता हूं।
माया ने कहा अच्छा ठीक है चलो हम यहां पर बैठते हैं।

विक्की वहां के आफिस में जाकर कुछ बातें कर के वापस आ जाता है।

माया ने कहा अब कहां जाना है?
बिमल ने कहा अब चिड़िया घर चलते हैं।
चलो अब चलते हैं फिर सब बैठ गए।।

वहां से सब चिड़िया घर पहुंच गए।

दिल्ली के नियंत्रण में रहने के बीच में ही घर का प्रबंधन करता है। 176 अद्भुत स्थिति में देखने को मिला। हर बार घुमाने के लिए विविध प्रकार के पशु जैसे हर बार चलने वाले जानवर से रूबरू मारते हैं। डेल्वी का वार चकरा देने वाला नजारा बड़े-बड़े आकार वाले खतरनाक पशु, जो छोटे-छोटे आकार वाले खतरनाक होते हैं, वे नादान पशु होते हैं।

हाथी, सफेद बाग, घड़ियाल, और बहुत कुछ देखा और फिर हम वहां से एक बड़े से होटल में खाना खा कर अपने होटल वापस आ गए।

क्रमशः

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