एक रूह की आत्मकथा - 41 Ranjana Jaiswal द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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एक रूह की आत्मकथा - 41

माँ को सामने देखकर अमृता उससे लिपट गई और फूट फूटकर रोती हुई बोली--
"तुम बहुत बुरी हो माँ,तुम मुझे छोड़कर कहाँ चली गई थी?तुम्हें एक बार भी मेरा ख्याल नहीं आया।एक बार भी नहीं सोचा कि बिना तुम्हारे कैसे जीऊँगी मैं....!"
"मेरी बच्ची,मैं अपनी मर्ज़ी से नहीं गई थी।मुझे ज़बरन तुमसे दूर भेजा गया था पर मैं सिर्फ़ देह से तुमसे दूर थी।मेरी आत्मा तो तेरे ही पास थी।"कामिनी ने बेटी के सिर पर हाथ फेरा।
"अब मैं तुम्हें नहीं जाने दूँगी माँ,मुझे कहीं भी और कुछ भी अच्छा नहीं लगता।मैं अभी इतनी बड़ी नहीं हुई माँ कि अकेले जी सकूँ.....।"अमृता ने बिलखते हुए कहा।
"जानती हूँ बेटा,तभी तो तुम्हारे पास लौटी हूँ तुम्हें रास्ता दिखाने तुम्हें समझाने।तू मेरी रानी बेटी है मेरी बात मानेगी न!" कामिनी ने अमृता का माथा चूमा।
"हाँ माँ ,जरूर मानूँगी...तू जो कहेगी वही करूँगी।"अमृता और कसकर माँ से लिपट गई।
"तुम अपने समर अंकल की बात मानना।वो जो और जैसा कहें वही करना।एकमात्र वही हैं ,जो तुम्हें मेरी तरह प्यार करते हैं।"कामिनी ने अमृता को समझाते हुए कहा।
"पर माँ मैं उन्हें कैसे माफ कर दूँ।उन्हीं की वज़ह से मैंने आपको खोया था।"अमृता ने रूठे स्वर में जवाब दिया।
"नहीं बेटा,उनके कारण ही तो मैंने जीवन का हर सुख पाया था।उनकी वज़ह से ही तो तुम इस दुनिया में आ पाई।मैं तो तुम्हारे पापा के जाने के बाद ही मर गई होती।उन्होंने मुझे सहारा दिया संरक्षण दिया ।प्यार और सम्मान दिया।हमेशा मेरी खुशी देखी।उनके मन में कोई स्वार्थ नहीं।वे तुम्हें अपने बच्चों से ज्यादा प्यार करते हैं।उनके सिवा कोई तुम्हारा भला नहीं चाहता बेटा।उन पर भरोसा रखना।उनसे हमारा दिल का रिश्ता है और दिल के रिश्ते खून के रिश्तों से ज्यादा मजबूत होते हैं।"
"मगर माँ....।"
"अगर मगर कुछ नहीं बेटा...तुम्हें मुझ पर भरोसा है न!"
"ये भी कोई पूछने की बात है माँ...।"
"तो बस ये समझ लो कि वे मुझसे अलग नहीं।उनमें मेरा ही अक्स देखना...लोग तुम्हें भरमाएँगे उनके खिलाफ भड़काएँगे पर तुम उनपर विश्वास रखना।"
"तो क्या तुम मुझे फिर से छोड़कर चली जाओगी।नहीं माँ ,मैं तुम्हें नहीं जाने दूँगी।''
"मुझे तो जाना ही होगा बेटा अब तो हमेशा के लिए पर मैं फिर आऊँगी किसी न किसी रूप में ।तुम खुश रहना बेटा,मजबूती से खड़े रहना।"
"नहीं माँ नहीं .....माँ रूक जाओ प्लीज़....।"
रोते -रोते अमृता की हिचकियाँ बंध गई।अचानक उसकी आँख खुली तो देखा कि उसकी आँखें भरी हुई हैं और गला रूंधा हुआ है।
...'तो माँ मेरे सपने में आई थी।उसको मेरी चिंता है।देह छूट जाने के बाद भी उसकी रूह भटक रही है।मुझे माँ की बात मान लेनी चाहिए।वो कभी मुझे गलत रास्ता नहीं दिखाएंगी।मरकर भी नहीं ।'
पर वह समर अंकल से कैसे मिले?उनके घर वह नहीं जा सकती।उसे लीला आंटी से डर लगता है और फिर उस घर में अमन भी तो है।हालांकि अब वह उससे फिर से दोस्ती करना चाहता है,पर वह उससे दूर ही रहना चाहती है। उसने उसके साथ कितना बुरा व्यवहार किया था ।उसकी माँ को कितना बुरा -भला कहा था जैसे सारा दोष उसकी माँ का ही हो।
वह अपनी माँ को गलत कहने -समझने वाले को कभी माफ़ नहीं कर सकती।वह जानती है किसकी माँ गलत नहीं थी।
उसने अपनी माँ से अमन से दोस्ती की बात छिपाई थी क्योंकि वे उसकी जरा -जरा सी बात पर चिंतित हो जाती थीं।उन्होंने अपने जीवन में इतना कुछ झेल लिया था कि आसानी से किसी पर विश्वास नहीं करती थीं।सिर्फ़ समर अंकल पर उन्हें भरोसा था।उस भरोसे से ही उनके बीच प्रेम की शुरूवात हुई थी।
उसकी दादी ने माँ की आत्मा की शांति के लिए उसके ही बंगले पर बहुत बड़ी पूजा रखी है।इस पूजा में इष्ट- मित्र,रिश्तेदार सभी आएंगे।उसी दिन श्रद्धांजलि सभा भी होगी।जिसमें मीडिया के लोग भी होंगे।पता नहीं कोई समर अंकल को बुलाएगा या नहीं पर वह अपनी तरफ से उन्हें जरूर बुलाएगी।वह जानती है कि यह बात उसके रिश्तेदारों को अच्छी नहीं लगेगी,पर उसे इसकी परवाह नहीं है।पूजा के बाद वह अपने बंगले पर ही रहेगी।दादी चाहें तो उसके साथ रह सकती है ।न चाहें तो उनकी मर्ज़ी।साथ रहने के लिए नानी से भी एक बार वह पूछ ही लेगी। उमा मामी उसे अच्छी लगती हैं उनकी बेटियां भी उसे दीदी -दीदी कहकर अकेला नहीं छोड़तीं,पर स्वतंत्र मामा उसे अच्छे नहीं लगते। उसे किसी के भी घर रहना अच्छा नहीं लगता।उसे अपने बंगले पर रहना पसंद है पर माँ के न रहने पर वह डरेगी-यह कहकर दादी उसे अपने पास रख रही हैं।
पूजा का आयोजन बंगले पर करने का उद्देश्य प्रकारांतर से बंगले का शुद्धिकरण भी है।दूसरे शब्दों में कहें तो कामिनी की रूह से बंगले का मुक्तिकरण।कितनी अजीब बात है कि जिस बंगले के रोम- रोम में कामिनी की उपस्थिति की खुशबू है उसे दूसरी खुशबूओं से मिटाने की कोशिश की जाएगी,ताकि दूसरे उसमें निर्भय होकर रह सकें।
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आज सुबह से ही नन्दा देवी और राजेश्वरी देवी के निर्देशन में कामिनी के बंगले के भीतर की सफाई -धुलाई हो रही है। एक -एक चीज को धोया -पोछा जा रहा है।बाहर लॉन में श्रद्धांजलि सभा के लिए पंडाल और मंच बनाया जा रहा है।लोगों के बैठने की व्यवस्था भी की जा रही है।प्रथम और स्वतंत्र पर बाहर की व्यवस्था की जिम्मेदारी है।बहुत सारे।। नौकर-नौकरानियां इस काम में लगे हुए हैं।कामिनी की एक बड़ी -सी तस्वीर बनवाई गई है।गुलाब के फूलों की ढेर सारी मालाएं मंगवाई गई हैं।
पहले पूजा होगी फिर सभी लोग मृतात्मा को अपने श्रद्धासुमन अर्पित करेंगे।श्रद्धासुमन नाम शायद इसलिए दिया गया होगा कि सभी मर चुके व्यक्ति की अच्छाई ,उसकी खूबियां ही गिनाते हैं।वे लोग भी, जो जीवन भर उस व्यक्ति को कांटे चुभोते रहे थे,इस दिन फूल ही अर्पित करते हैं।मरने के बाद जैसे व्यक्ति वीतराग हो जाता है वैसे ही कुछ समय के लिए जीवित भी हो जाते हैं।भले ही सभा से निकलते ही घोर रागी बन जाएं।अमृता उदास भाव से इस तैयारी को देख रही है। उसकी माँ को उसके ही बंगले से ही भगाने की तैयारी कितने मनोयोग से कर रहे हैं लोग। मां की पसंद के व्यंजन भी तैयार कराए जा रहे हैं।उमा मामी पर यह जिम्मेदारी है।मान्यता है कि अपनी पसंद का आख़िरी भोजन करने के बाद आत्मा तृप्त होकर सदा के लिए चली जाती है।लोग भूल जाते हैं कि एक माँ कहीं नहीं जाती,वह अपनी संतान के भीतर ही समा जाती है।अपनी संतान की आदतों में,स्वाद में,रूचियों और इच्छाओं में वह हमेशा जिंदा रहती है।